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सिंधु घाटी सभ्यता का पतन

Lokesh Pal December 03, 2025 02:05 12 0

संदर्भ 

IIT गांधीनगर के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक वर्तमान अध्ययन के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता का पतन किसी एक विनाशकारी घटना से नहीं, बल्कि सदियों तक प्रभाव में रहे लगातार सूखे की घटना के कारण हुआ, जिसने क्रमशः नगरों, नदियों, कृषि व्यवस्था और सामाजिक ढाँचों को कमजोर किया।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

  • मूल निष्कर्ष
    • अध्ययन दर्शाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता का पतन किसी एक आकस्मिक आपदा से नहीं हुआ।
    • हडप्पा सहित प्रमुख सिंधु घाटी सभ्यता नगर 3000–1000 ईसा पूर्व के बीच कई दशकों के सूखे से प्रभावित थीं।
  • जलवायु पुनर्निर्माण: शोधकर्ताओं ने जलवायु संबंधी अभिलेखों (स्टैलैक्टाइट, स्टैलैग्माइट, झील स्तर) और जलवायु मॉडल सिमुलेशन का उपयोग कर उस अवधि की वर्षा व तापमान प्रवृत्तियों का पुनर्निर्माण किया।

सभ्यता के पतन के कारण

  • आवर्ती सूखा चक्र: 2425-1400 ईसा पूर्व के बीच चार प्रमुख सूखे की घटनाएँ घटीं, जिनमें से प्रत्येक 85 वर्षों से अधिक समय तक चली।
    • सर्वाधिक भीषण सूखा लगभग 1733 ईसा पूर्व में चरम पर था, जो लगभग 164 वर्ष तक प्रभाव में रहा और पूरे क्षेत्र को प्रभावित किया।
  • जल–तंत्र का पतन: दीर्घकालिक सूखे के कारण झीलें सूख गई, नदियों का प्रवाह कम हो गया, मृदा सूख गई, नौवहन क्षमता कम हो गई, जिससे व्यापार को नुकसान पहुँचा।
  • प्रशांत महासागर में जलवायु परिवर्तन
    • प्रारंभिक समृद्धि ‘ला नीना’ जैसी दशाओं (3000–2475 ईसा पूर्व) से संबंधित थी, जिससे मानसून आधुनिक काल की तुलना में अधिक आर्द्र था।
    • जैसे-जैसे उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर गर्म हुआ, वार्षिक वर्षा में 10–20 प्रतिशत की कमी आई और तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ा, जिससे शुष्कता में वृद्धि हुई।

सामाजिक और आर्थिक परिणाम

  • कृषि पर दबाव: सूखे ने कृषि को अत्यंत कठिन बना दिया, विशेषकर उन बस्तियों के लिए जो सतत् वाहिनी नदियों से दूर थीं।
    • अनुकूल कृषि पद्धतियाँ: हड़प्पावासियों ने फसल प्रतिरूप में परिवर्तन कर, उत्पादन में विविधता लाकर और सूखा-प्रतिरोधी कृषि अपनाकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
    • पुरातात्त्विक-वनस्पति साक्ष्य गेहूँ और जौ से सूखा-प्रतिरोधी बाजरा जैसी फसल की ओर परिवर्तन दर्शाते हैं, जो शुष्कता से निपटने के प्रयासों का संकेत देते हैं।
  • प्रवासन और बिखराव: समुदायों को बार-बार स्थानांतरित होना पड़ा, जिससे सिंधु और इसकी सहायक नदियों के किनारे बसावटों का वितरण बदल गया।
    • उन्होंने व्यापार मार्गों का विविधीकरण किया तथा बस्तियों को अधिक जल-सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित किया।
  • शासन संबंधी दबाव: कम होती खाद्य आपूर्ति और कमजोर राजनीतिक संरचनाएँ, जलवायु संबंधी दबावों के साथ मिलकर, समाज को पतन और विखंडन की ओर अग्रसर किया।
  • वि-नगरीकरण: पिछली शताब्दी का सूखा (3531-3418 ईसा पूर्व) पुरातात्विक साक्ष्यों के साथ संरेखित है, जिसमें बड़े शहरों को छोड़ दिया गया और आबादी छोटे ग्रामीण समूहों में वितरित हो गई।

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के सिद्धांत

प्राकृतिक आपदा सिद्धांत

बाढ़ के कारण

  • कुछ विद्वानों का तर्क है कि सिंधु घाटी में शहरी केंद्रों के विनाश और पतन में बाढ़ का योगदान हो सकता है।
  • इस दृष्टिकोण का समर्थन करने वाले साक्ष्यों में शामिल हैं:
    • अवसाद से आच्छादित मलबे पर निर्मित नवीन गृह-संरचनाएँ बाढ़-जनित क्षति के उपरांत पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को इंगित करती हैं।
    • घर और सड़कें अवसाद की परत के अधःस्थ लगभग 30 फीट की गहराई में समाविष्ट हो गई हैं।

भूकंप के कारण

  • सिंधु क्षेत्र एक विवर्तनिक रूप से सक्रिय भूकंप क्षेत्र में स्थित है, जिससे यह संभावना बनती है कि भूकंपों ने भू-दृश्य को बदल दिया हो।
  • भूकंपों ने बाढ़ के मैदानों को ऊँचा कर दिया होगा, जिससे नदियों का समुद्र की ओर प्राकृतिक प्रवाह अवरुद्ध हो गया होगा और जल शहरी क्षेत्रों में प्रवेश कर गया होगा।
नदी मार्ग परिवर्तन
  • यह अनुमान है कि सिंधु नदी का मार्ग प्रमुख शहरों से परिवर्तित हो गया होगा, जिससे जल संकट उत्पन्न हुआ होगा और कृषि की स्थिरता कम हुई होगी।
  • इस तरह के परिवर्तनों से शहरों का अस्तित्व में रहना कठिन हो गया होगा।
  • साक्ष्य: हड़प्पा सभ्यता में रेत और अवसाद की मौजूदगी संभवतः इसका संकेत देती है।
जलवायु परिवर्तन सिद्धांत
  • कुछ विद्वान इस पतन का कारण जलवायु परिवर्तन को मानते हैं, जिसमें बढ़ती शुष्कता और घग्गर-हकरा नदी प्रणाली (जिसे प्राचीन सरस्वती नदी के रूप में जाना जाता है) का सूखना शामिल है।
  • बढ़ी हुई शुष्कता ने अर्द्ध-शुष्क हड़प्पा क्षेत्रों में कृषि को गंभीर रूप से प्रभावित किया होगा।
आर्य आक्रमण सिद्धांत
  • कुछ प्रारंभिक विद्वानों का मानना ​​है कि हड़प्पा के शहरों पर इंडो-यूरोपीय आर्यों ने हमला किया और उन्हें नष्ट कर दिया, जिससे सभ्यता का पतन हुआ।
  • प्रमुख साक्ष्य
    • मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए मानव कंकालों को भयावह संघर्ष के परिणामस्वरूप मृत्यु के संकेत के रूप में व्याख्यायित किया गया है।
    • ऋग्वेद में भगवान पुरंदर द्वारा दस दुर्गों के विनाश का उल्लेख मिलता है।
  • आधुनिक पुरातत्त्वविद इस सिद्धांत को व्यापक रूप से खारिज करते  है।

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