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डिजिटल अरेस्ट स्कैम

Lokesh Pal December 03, 2025 03:12 5 0

संदर्भ 

सर्वोच्च न्यायालय ने बढ़ते डिजिटल अरेस्ट’ स्कैम मामलों की जाँच हेतु केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को पूरे देश में जाँच करने का आदेश दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए प्रमुख निर्देश

  • स्वतंत्र जाँच का अधिकार
    • न्यायालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को व्यापक जाँच शुरू करने की अनुमति दी, जिसमें संदिग्ध खातों के नेटवर्क तथा बैंकिंग-संबंधित भ्रष्टाचार की जाँच शामिल है।
    • विशेष परिस्थिति: न्यायालय ने माना कि राज्य की सहमति के बिना केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को निर्देश देना असाधारण कदम है, जो केवल अत्यंत विरल परिस्थितियों में किया जाता है।
    • चरणबद्ध जाँच: प्राथमिकता—पहले डिजिटल अरेस्ट, फिर निवेश संबंधी स्कैम, उसके बाद रोजगार संबंधी स्कैम।
  • राज्य सरकार की सहमति
    • बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल सहित 13 राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत सहमति प्रदान करें, ताकि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के तहत डिजिटल अरेस्ट मामलों की जाँच कर सके।
    • बहु-राज्य एवं तकनीकी दल: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो राज्यों के पुलिस अधिकारियों और साइबर विशेषज्ञों की टीम बनाकर जाँच करेगा।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: वैश्विक स्तर पर सक्रिय स्कैमर को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को इंटरपोल के साथ सहयोग कर विदेशी साइबर अपराध केंद्रों की पहचान करने का निर्देश दिया।
  • भारतीय रिजर्व बैंक की भूमिका: भारतीय रिजर्व बैंक को यह स्पष्ट करने को कहा गया है कि वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता/यांत्रिक शिक्षण तकनीकों का उपयोग किस प्रकार करता है, ताकि बैंक खातों में ठगी की गई धनराशि के प्रवाह को पहचाना जा सके।
  • ऑनलाइन मध्यस्थ: सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 के अनुसार, डिजिटल मंचों को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के साथ सहयोग करना होगा और आवश्यक डेटा उपलब्ध कराना होगा।
  • राष्ट्रीय साइबर ढाँचा सुदृढ़ीकरण: सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित करने होंगे, जिन्हें भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) से जोड़ा जाएगा।
  • दूरसंचार क्षेत्र की जवाबदेही
    • सिम जारी करने में लापरवाही: न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों द्वारा एक ही नाम पर कई सिम जारी करने की चिंताजनक और गैर-जिम्मेदार” प्रक्रिया की आलोचना की।
    • दूरसंचार विभाग की कार्रवाई: दूरसंचार विभाग को कठोर सिम-सत्यापन उपायों का प्रस्ताव प्रस्तुत करने को कहा गया है, जिन्हें सभी दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा लागू किया जाएगा।

डिजिटल अरेस्ट स्कैम क्या है?

  • परिभाषा: एक साइबर अपराध, जिसमें ठग स्वयं को कानून प्रवर्तन अधिकारी बताकर नागरिकों पर झूठे आरोप लगाते हैं और धनराशि वसूलते हैं।
  • मानसिक दबाव: ठग, पीड़ितों को यह कहकर डराते हैं कि वे किसी अपराध (वित्तीय धोखाधड़ी, कर चोरी, पार्सल जब्ती आदि) में शामिल हैं और गिरफ्तारी का भय दिखाकर धन की माँग करते हैं।

स्कैम  कैसे संचालित होते है?

  • अधिकारियों का प्रतिरूपण: ठग स्वयं को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, पुलिस, आयकर, सीमा शुल्क या भारतीय रिजर्व बैंक अधिकारी बताकर कॉल या ईमेल से संपर्क करते हैं।
  • वीडियो कॉल पर दबाव: ठग पीड़ितों को व्हाट्सऐप या स्काइप वीडियो कॉल पर लाकर तथा नकली थाना पृष्ठभूमि स्थापित कर स्वयं को प्राधिकारी के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
  • नकली डिजिटल वारंट: ठगडिजिटल अरेस्ट वारंट” जारी कर पीड़ित को घंटों ऑनलाइन रहने को बाध्य करते हैं, जैसे वह हिरासत में हो।
  • कानूनी कार्रवाई की धमकी: धनशोधन, कर उल्लंघन या साइबर अपराध जैसे- आरोप लगाकर तात्कालिकता की स्थिति उत्पन्न की जाती है।
  • धन स्थानांतरण के लिए मजबूरी: पीड़ितों से कहा जाता है किअपना नाम संबंधित अपराध से हटाने” हेतु धनराशि निर्दिष्ट खातों, एस्क्रो वॉलेटों” (Escrow wallets) में भेजें।
  • धन प्राप्ति के बाद संपर्क तोड़ना: भुगतान होते ही ठग संपर्क तोड़ देते हैं, जिससे आर्थिक हानि और पहचान का दुरुपयोग होता है।

कार्रवाई की आवश्यकता

  • स्कैम का विस्तार: सरकारी जानकारी के अनुसार, ठगों ने ₹3000 करोड़ से अधिक की धनराशि की ठगी की है।
  • वरिष्ठ नागरिकों की संवेदनशीलता: वृद्धजन डिजिटल अपराधों की अपरिचित प्रकृति एवं भय के कारण अधिक निशाना बनते हैं।
  • CERT-In की सलाह: CERT-In ने डिजिटल अरेस्ट को उच्च-जोखिम साइबर खतरे के रूप में चिह्नित किया है, जिन्हें डीपफेक स्कैम और निवेश स्कैम के साथ उभरती चुनौतियों में शामिल किया गया है।
  • बढ़ते मामलों ने सर्वोच्च न्यायालय को राष्ट्रीय स्तर की कार्रवाई और उन्नत समन्वय का निर्देश देने को मजबूर किया।

एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae) साइबर अपराध का वर्गीकरण

  • डिजिटल अरेस्ट स्कैम : प्रतिरूपण, दबाव, उगाही।
  • निवेश स्कैम : नकली ट्रेडिंग ऐप, अवास्तविक उच्च प्रतिफल योजनाएँ।
  • रोजगार स्कैम: बेरोजगार युवाओं को लक्षित कर नकली अंशकालिक कार्य प्रस्ताव।

तीनों प्रकार के स्कैम  का उद्देश्य नागरिकों, विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों से ठगी करना है।

डिजिटल अरेस्ट से निपटने के लिए सरकारी पहल

  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C)
    • गृह मंत्रालय के अधीन यह राष्ट्रीय स्तर पर साइबर अपराध से निपटने के प्रयासों का नेतृत्व करता है, जिनमें डिजिटल अरेस्ट स्कैम  भी शामिल है।
    • यह त्वरित रिपोर्टिंग और फंड-फ्रीजिंग के लिए 24×7 साइबर अपराध हेल्पलाइन (1930) संचालित करता है।
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (cybercrime.gov.in)
    • पीड़ित डिजिटल अरेस्ट स्कैम की ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
    • पोर्टल पुलिस से जोड़ता है, जिससे वास्तविक समय में लेन-देन फ्रीज कर तीव्र जाँच संभव होती है।
  • साइबर स्कैम प्रबंधन प्रणाली
    • एक समन्वित व्यवस्था, जहाँ बैंक, भुगतान एप्लिकेशन और भारतीय रिजर्व बैंक संयुक्त रूप से साइबर स्कैम अलर्ट पर कार्रवाई करते हैं।
    • यह संदिग्ध लेन-देन को तुरंत फ्रीज कर डिजिटल अरेस्ट मामलों में हानि को कम करता है।
  • संचार साथी पोर्टल (दूरसंचार विभाग)
    • यह पोर्टल डिजिटल अरेस्ट स्कैम में प्रयुक्त फर्जी मोबाइल नंबरों, सिम कार्डों और नकली कॉलर आईडी की निगरानी और अवरोधन करता है।
    • इसमें केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर भी शामिल है, जो चोरी हुए उपकरणों को अवरुद्ध कर साइबर अपराधों में दुरुपयोग रोकता है।
  • सिम-बाइंडिंग’ की आवश्यकता
    • सरकार ने व्हाट्सऐप, टेलीग्राम, सिग्नल जैसे ‘मैसेज प्लेटफॉर्म’ को निर्देश दिया है कि वे अपने उपयोग को अनिवार्य रूप से उस सिम कार्ड से जोड़ें, जिसका उपयोग पंजीकरण के समय किया गया था।
    • इन मंचों को सुनिश्चित करना होगा कि उनकी सेवाएँ निरंतर उसी सिम कार्ड से जुड़ी रहें, जो पंजीकरण के समय प्रयुक्त हुआ था।

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