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जैविक उपचार

Lokesh Pal December 05, 2025 02:32 7 0

संदर्भ

चूँकि भारत वायु, जल और मृदा में बढ़ते प्रदूषण का सामना कर रहा है, इसलिए जैविक उपचार प्रक्रिया मौजूदा प्रदूषण को समाप्त करने और भविष्य में पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिए एक स्थायी, कम लागत आधारित जैविक विधि प्रदान करती है।

जैविक उपचार क्या है?

  • जैविक उपचार का अर्थ है ‘जीव विज्ञान के माध्यम से जीवन को पुनर्स्थापित करना’, जिसमें बैक्टीरिया, कवक, शैवाल आदि जैसे सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके तेल, कीटनाशक, प्लास्टिक और भारी धातुओं जैसे विषैले प्रदूषकों को हानिरहित अंतिम उत्पादों में विखंडित या परिवर्तित किया जाता है।
  • क्रियाविधि: ये जीव प्रदूषकों को भोजन के रूप में चयापचय करते हैं, उन्हें जल, CO, कार्बनिक अम्ल जैसे हानिरहित उप-उत्पादों में विखंडित करते हैं, या विषैली धातुओं को कम खतरनाक रूपों में परिवर्तित करते हैं।

जैविक उपचार के प्रकार

‘इन-सीटू’ जैविक उपचार

  • ‘इन-सीटू’ जैविक उपचार में दूषित पदार्थों का सीधे प्रभावित स्थान पर ही उपचार किया जाता है।
  • इसे आमतौर पर इसलिए पसंद किया जाता है क्योंकि इससे श्रम की लागत कम होती है, प्रदूषकों के प्रसार का जोखिम न्यूनतम होता है और परिवहन संबंधी खतरों से बचा जा सकता है।
  • प्रमुख ‘इन-सीटू’ तकनीकें
    • बायोवेंटिंग: इस तकनीक में मृदा में वायु पहुँचाने के लिए छोटे व्यास वाले कुओं का उपयोग किया जाता है, जिससे ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के स्तर को नियंत्रित करके सूक्ष्मजीवी गतिविधि को बढ़ाया जाता है जिससे मृदा और भूजल का प्रभावी उपचार होता है।
    • बायोस्पार्जिंग: इस विधि में घुलित ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाने के लिए जल स्तर के नीचे उच्चदाब युक्त वायु प्रवाहित की जाती है, जिससे प्रदूषकों का सूक्ष्मजीवी अपघटन तेज होता है और यह उत्खनन का एक वहनीय विकल्प है।
    • जैव-संवर्द्धन: यह विधि दूषित स्थलों पर अतिरिक्त देशी या गैर-देशी सूक्ष्मजीवी प्रजातियों को सम्मिलित करती है, प्रायः बायोवेंटिंग या बायोस्पार्जिंग के संयोजन में।
    • इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि संवर्द्धित सूक्ष्मजीव मौजूदा सूक्ष्मजीवी पारिस्थितिकी तंत्र के साथ कितनी अच्छी तरह अनुकूलित होते हैं।
    • जैव-क्षीणन (प्राकृतिक क्षीणन): यह तकनीक प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों पर निर्भर करती है ताकि वे प्रदूषकों, विशेष रूप से पेट्रोलियम यौगिकों जैसे-बेंजीन, टोल्यूनि, एथिलबेंजीन और जाइलीन (BTEX) को धीरे-धीरे विघटित कर सकें, हालाँकि इसकी प्रभावशीलता स्थल की स्थितियों और उपलब्ध पोषक तत्वों द्वारा सीमित होती है।

‘एक्स सीटू’ जैविक उपचार

  • बाह्य स्थल जैव उपचार में दूषित मृदा या जल को हटाकर एक अलग नियंत्रित स्थान पर उसका उपचार किया जाता है।
  • यद्यपि यह प्रभावी है, लेकिन उत्खनन की आवश्यकता और परिवहन के दौरान संदूषकों के प्रसार के जोखिम के कारण इसका उपयोग कम ही किया जाता है।
  • प्रमुख ‘एक्स सीटू’ तकनीकें
    • जैव निस्पंदन: यह विधि दूषित वायु या जल को कम्पोस्ट, पीट मृदा जैसी सामग्रियों से बने सूक्ष्मजीवी फिल्टरों से निकलकर उपचारित करती है, जहाँ सूक्ष्मजीव वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCs) और अन्य प्रदूषकों का अपघटन करते हैं।
    • जैव पाइल: यह तकनीक सूक्ष्मजीवी अपघटन को बढ़ाने के लिए वायु संचार, नमी, पोषक तत्वों और तापमान का प्रबंधन करके उत्खनित मृदा का उपचार करती है, हालाँकि इसमें सुखाने, उच्च रखरखाव और महत्त्वपूर्ण ऊर्जा आवश्यकताओं जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • जैव रिएक्टर: यह विधि नियंत्रित वाहिकाओं का उपयोग करती है जो कुशल सूक्ष्मजीवी अपघटन सुनिश्चित करने के लिए तापमान, pH और पोषक तत्वों की सांद्रता सहित इष्टतम स्थितियों को बनाए रखते हैं, लेकिन यह महंगा, श्रम-गहन और बड़ी मात्रा में उत्पादन के लिए कठिन है।
    • भूमि कृषि: यह तकनीक दूषित मृदा को तैयार सतह पर प्रसारित करती है, उसे वायु संचारित करती है और प्राकृतिक जैव अपघटन को बढ़ावा देने के लिए पोषक तत्वों से पूरित करती है, हालाँकि यह अकार्बनिक प्रदूषकों और अत्यधिक वाष्पशील विषाक्त पदार्थों के लिए कम प्रभावी है।

आधुनिक प्रगति

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित सूक्ष्मजीव: वैज्ञानिक आनुवंशिक रूप से संशोधित सूक्ष्मजीव विकसित कर रहे हैं जो प्लास्टिक और तेल जैसे जटिल प्रदूषकों को अधिक कुशलता से विघटित कर सकते हैं।
  • सिंथेटिक बायोलॉजी: इसने ऐसे बायोसेंसर निर्माण में मदद की है जो पर्यावरण में विशिष्ट विषाक्त पदार्थों का पता लगाने पर रंग बदलते हैं या प्रतिदीप्ति प्रदान करते हैं।
  • उभरती जैवप्रौद्योगिकियाँ: उन्नत जैव प्रौद्योगिकियाँ सूक्ष्मजीवी जैवअणुओं की पहचान, प्रतिकृति और अनुकूलन की अनुमति देती हैं, जिससे जैविक उपचार प्रक्रियाओं की समग्र प्रभावशीलता बढ़ जाती है।

जैविक उपचार का महत्त्व

  • सामर्थ्य: पारंपरिक सफाई विधियों, जो प्रायः महंगी और ऊर्जा-गहन होती हैं, की तुलना में जैव-उपचार एक कम लागत वाला विकल्प प्रदान करता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन: जैविक उपचार आमतौर पर कम आक्रामक होता है और प्राकृतिक जैविक प्रक्रियाओं का समर्थन करता है, जिससे अतिरिक्त तनाव या व्यवधान पैदा किए बिना पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्स्थापित करने में मदद मिलती है।
  • समृद्ध सूक्ष्मजीव विविधता: भारत की विशाल सूक्ष्मजीव जैव विविधता स्थानीय रूप से अनुकूलित सूक्ष्मजीव उपभेद प्रदान करती है जो सतत् और स्थानीय रूप से प्रबंधित जैविक उपचार समाधानों का समर्थन कर सकते हैं।

भारत में जैव उपचार की आवश्यकता

  • प्रदूषण का बोझ: तीव्र औद्योगीकरण ने नदियों (गंगा, यमुना) में गंभीर प्रदूषण, तेल रिसाव, कीटनाशक अवशेषों और भारी धातुओं के संदूषण को उत्पन्न किया है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र और जन स्वास्थ्य को खतरा है।
  • पारंपरिक तरीकों की सीमाएँ: यांत्रिक और रासायनिक सफाई, विधियाँ महंगी, ऊर्जा-गहन हैं और प्रायः द्वितीयक प्रदूषण उत्पन्न करती हैं, जिससे वे बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए अव्यावहारिक हो जाती हैं।
  • लागत-प्रभावी विकल्प: जैव-उपचार सस्ता, मापनीय और सतत् है, जो भारत के बड़े दूषित भू-भागों और सीमित उपचार बजट के लिए आदर्श है।
  • जैव विविधता संबंधी लाभ: भारत के स्वदेशी सूक्ष्मजीव, जो पहले से ही उच्च तापमान, लवणता या अम्लता के अनुकूल हैं, प्रायः आयातित प्रजातियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

भारत द्वारा की गई पहल

  • सरकारी पहल
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) अपने स्वच्छ प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के माध्यम से जैव-उपचार अनुसंधान और कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है।
    • CSIR-NEERI देश भर में कई पायलट-स्तरीय जैव-उपचार परियोजनाओं का नेतृत्व कर रहा है।
  • अनुसंधान सफलताएँ 
    • IIT के वैज्ञानिकों ने कपास आधारित नैनोकंपोजिट विकसित किए हैं जो तेल रिसाव को प्रभावी ढंग से अवशोषित और स्वच्छ कर सकते हैं।
    • भारतीय शोधकर्ताओं ने दूषित मृदा में मौजूद विषैले प्रदूषकों को नष्ट करने में सक्षम जीवाणुओं की प्रजातियों को सफलतापूर्वक उत्पन्न किया है।
  • उद्योग और स्टार्टअप: बायोटेक कंसोर्टियम इंडिया लिमिटेड (BCIL) और इकोनार्मल बायोटेक जैसी कंपनियाँ मृदा पुनर्स्थापन और अपशिष्ट जल उपचार के लिए डिजाइन किए गए माइक्रोबियल फॉर्मूलेशन का उत्पादन कर रही हैं।
  • प्रमुख चुनौतियाँ
    • तकनीकी चुनौतियाँ: भारत को अपर्याप्त स्थल-विशिष्ट डेटा और विभिन्न प्रदूषकों के बीच जटिल अंतःक्रियाओं के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • नियामक चुनौतियाँ: देश में अभी भी जैविक उपचार प्रक्रियाओं के लिए एकीकृत राष्ट्रीय ढाँचे या मानकीकृत दिशा-निर्देशों का अभाव है।

वैश्विक पहल 

  • जापान: जापान अपने शहरी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों में पादप-आधारित और सूक्ष्मजीवी जैविक उपचार तकनीकों को एकीकृत करता है।
  • यूरोपीय संघ: यूरोपीय संघ तेल रिसाव प्रबंधन और परित्यक्त खनन स्थलों के जीर्णोद्धार पर अंतर-देशीय सूक्ष्मजीवी परियोजनाओं को वित्तपोषित करके केंद्रित जैव-उपचार पहलों का समर्थन करता है।
  • चीन: चीन अपने मृदा प्रदूषण नियंत्रण कानून के प्रावधानों के तहत, औद्योगिक बंजर भूमि के पुनर्वास के लिए आनुवंशिक रूप से संवर्द्धित जीवाणुओं का उपयोग करता है।

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