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भारत में मतदान के अधिकार की विधिक स्थिति

Lokesh Pal December 05, 2025 05:00 6 0

सन्दर्भ:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई कर रहा है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य गैर-नागरिकों और अवैध रूप से पंजीकृत व्यक्तियों को मतदाता सूची से हटाना है, जिससे मतदान के अधिकार की कानूनी स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं

ऐतिहासिक संदर्भ और संवैधानिक प्रावधान

  • सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार: संविधान के निर्माण के दौरान, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को न्यूनतम चर्चा के साथ अपनाया गया था, जिसमें आरंभ में मतदान की आयु 21 वर्ष निर्धारित की गई थी, जो अब 18 वर्ष है (1988 में 61वें संविधान संशोधन द्वारा)
  • मतदान का अधिकार: संविधान का अनुच्छेद 326, 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार प्रदान करता है, जब तक कि उन्हें विधि द्वारा अयोग्य घोषित न कर दिया जाए (जैसे- आपराधिक कार्यवाही के कारण)।

अधिकारों का वर्गीकरण

  • प्राकृतिक अधिकार: ये अंतर्निहित और अविभाज्य अधिकार हैं, जैसे- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, जिन्हें बनाए रखने के लिए प्रायः विधिक प्रवर्तन की आवश्यकता होती है।
  • मूल अधिकार (भाग III): ये अधिकार नागरिकों को संवैधानिक उल्लंघनों से सुरक्षा प्रदान करते हैं और अनुच्छेद 32 के तहत सीधे लागू किए जा सकते हैं
  • संवैधानिक अधिकार (भाग III के अलावा): संविधान में निहित लेकिन भाग III के बाहर के अधिकार, जैसे- संपत्ति का अधिकार, अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों के माध्यम से लागू किए जा सकते हैं
  • वैधानिक/विधिक अधिकार: ये अधिकार संसदीय या राज्य विधान द्वारा प्रदान किए जाते हैं, जैसे- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, मनरेगा अधिनियम, या राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम तथा इन्हें प्रदान करने वाले कानूनों के तहत लागू किए जा सकते हैं।

भारत में मतदान संबंधी कानून – जनप्रतिनिधित्व अधिनियम

  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (RPA, 1950):
    • धारा 16: केवल नागरिकों को ही मतदाता सूची में नामांकित किया जा सकता है, गैर-नागरिकों को अयोग्य घोषित किया जाता है।
    • धारा 19: मतदाता की आयु अर्हता तिथि को कम-से-कम 18 वर्ष होनी चाहिए तथा वह निर्वाचन क्षेत्र का सामान्यतः निवासी होना चाहिए
  • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA, 1951):
    • धारा 62: प्रत्येक व्यक्ति को वोट देने का अधिकार प्रदान करता है, जिसका नाम मतदाता सूची में शामिल है।
    • अपवर्जन: इस अधिकार का प्रयोग जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत अयोग्य ठहराए गए व्यक्तियों या जेल में बंद व्यक्तियों द्वारा नहीं किया जा सकता

मतदान के अधिकार की स्थिति का विकास (न्यायिक दृष्टिकोण)

  • एन.पी. पोन्नुस्वामी मामला (1952): सर्वोच्च न्यायालय की एक संवैधानिक पीठ ने माना, कि मतदान का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है और इसके द्वारा लगाई गई सीमाओं के अधीन है|
  • ज्योति बसु मामला (1982): न्यायालय ने पुनः कहा, कि मतदान का अधिकार न तो मूल अधिकार है और न ही सामान्य विधिक अधिकार, बल्कि यह एक साधारण वैधानिक अधिकार है।
  • PUCL (2003) और राजबाला मामला (2015): यह देखा गया कि मतदान का अधिकार, यदि मौलिक अधिकार नहीं है, तो निश्चित रूप से एक ‘संवैधानिक अधिकार’ है।
  • कुलदीप नायर केस (2006): मतदान का अधिकार केवल एक वैधानिक अधिकार है।
  • राजबाला मामला (2015): सर्वोच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने पीयूसीएल मामले में दिए गए निर्णय के आधार पर यह माना, कि मतदान का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है।
  • अनूप बरनवाल केस (2023): बहुमत की राय ने कुलदीप नैयर केस के निर्णय को दोहराया, कि मतदान का अधिकार केवल एक वैधानिक अधिकार है। इसलिए, मतदान के अधिकार की वर्तमान विधिक स्थिति यह है कि यह एक वैधानिक अधिकार है।
  • असहमतिपूर्ण विचार (अनूप बरनवाल मामला, 2023): न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी ने आंशिक रूप से असहमति जताते हुए कहा, कि मतदान का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत नागरिकों के चुनने के अधिकार को दर्शाता है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए महत्त्वपूर्ण है, साथ ही भले ही यह अधिकार वैधानिक हो, संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता के योग्य हो सकता है

निष्कर्ष

लोकतंत्र और स्वतंत्र चुनावों के लिए मतदान का अधिकार अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे संवैधानिक अधिकार प्रदान करने से चुनावी अखंडता मज़बूत होगी, नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे और इसकी कानूनी स्थिति स्पष्ट होगी, साथ ही जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत वैधानिक सुरक्षा उपाय भी बरकरार रहेंगे

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी के मद्देनजर ‘मतदान के अधिकार’ की विधिक स्थिति के संबंध में न्यायिक व्याख्या के विकास पर चर्चा कीजिए तथा विश्लेषण कीजिए, कि क्या इसे संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की जानी चाहिए। (15 अंक, 250 शब्द)

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