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फेक न्यूज पर अंकुश लगाने हेतु तंत्र की समीक्षा

Lokesh Pal December 06, 2025 03:50 7 0

संदर्भ:

संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी (IT) पर स्थायी समिति की एक रिपोर्ट में फेक न्यूज” की स्पष्ट कानूनी परिभाषा की माँग की गई है और सूचना प्रौद्योगिकी (IT)  अधिनियम, 2000 की धारा 79 (कुछ मामलों में मध्यस्थ के दायित्व से छूट)  के तहत सेफ हार्बर’ खंड पर पुनर्विचार करने की सिफारिश की गई है।

फेक न्यूज  क्या है?

  • फेक न्यूज: इसमें लोगों को बौद्धिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए तथ्य के रूप में प्रस्तुत की गई झूठी जानकारी शामिल होती है, जिससे तीव्र भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ और यहाँ तक कि हिंसा भी भड़क सकती है।
  • दुष्प्रचार: इसे ऐसी झूठी जानकारी के रूप में समझा जाता है, जो जानबूझकर नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से निर्मित या प्रसारित की जाती है।
  • गलत सूचना के मामले में, ‘उद्देश्य’ का तत्त्व अनुपस्थित माना जाता है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ 

वर्तमान तंत्र में चिंताएँ

  • परिभाषा की अस्पष्टता: संसदीय समिति के अनुसार, फेक न्यूज” की स्पष्ट कानूनी परिभाषा का अभाव प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नियामक स्तर पर भ्रम उत्पन्न करता है।
  • सेफ हार्बर’ प्रावधान संबंधी चिंताएँ: इस समिति ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि मध्यस्थ अक्सर IT अधिनियम की धारा 79 (कुछ मामलों में मध्यस्थ के दायित्व से छूट) का दुरुपयोग सेफ हार्बर’ प्रावधान के रूप में करते हैं, भले ही उनके एल्गोरिदम सनसनीखेज और भ्रामक सामग्री को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हों।
  • एल्गोरिथम प्रोत्साहन: समिति ने इस बात पर जोर दिया कि डिजिटल प्लेटफॉर्म अधिकतम जुड़ाव वाली सामग्री से लाभ अर्जित करते हैं, जिसमें अक्सर भ्रामक या गलत जानकारी शामिल होती है।
  • PIB तथ्य-जाँच डेटा: इस रिपोर्ट के अनुसार, PIB तथ्य-जाँच इकाई को 1.63 लाख प्रश्न प्राप्त हुए, लेकिन केवल 2,279 मामलों का ही खंडन किया गया, जो गलत सूचना की व्यापकता के सापेक्ष सीमित पहुँच को दर्शाता है।
  • सीमा-पार क्षेत्राधिकार: गलत सूचना अक्सर विदेशी रचनाकारों से आती है और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय कानूनों के कारण सीमाओं के पार उनकी जवाबदेही लागू करना मुश्किल हो जाता है।
  • AI जोखिम: इंटरनेट की बढ़ती पहुँच और डिजिटल साक्षरता के निम्न स्तर के कारण डीपफेक और AI-जनित वीडियो का तेजी से प्रसार हो रहा है।
  • स्व-नियमन की कमजोरी: समिति के अनुसार, भारत के आधे से अधिक टीवी चैनल किसी भी स्व-नियामक निकाय के दायरे से बाहर हैं, जिससे आंतरिक जवाबदेही प्रणाली कमजोर हो रही है।
  • दंड की सीमाएँ: समिति का कहना है कि ₹25 लाख तक के जुर्माने सहित वर्तमान दंड प्रावधान, फेक न्यूज के बार-बार प्रसार को रोकने के लिए अपर्याप्त हैं।

समिति की सिफारिशें

  • कानूनी परिभाषा: समिति व्यापक हितधारकों से परामर्श के माध्यम से फेक न्यूज” की एक सटीक, कानूनी रूप से ठोस परिभाषा तैयार करने की सिफारिश करती है।
    • संतुलन की आवश्यकता: समिति इस बात पर जोर दिया है कि फेक न्यूज” की किसी भी परिभाषा में गलत सूचना नियंत्रण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के बीच संतुलन होना चाहिए।
  • सेफ हार्बर’ प्रावधान में सुधार: समिति मध्यस्थों की जवाबदेही को बढ़ाने और प्रतिरक्षा संरक्षण के दुरुपयोग को कम करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की धारा 79 पर पुनर्विचार करने की सलाह देती है।
    • एल्गोरिदम पारदर्शिता: समिति डिजिटल प्लेटफॉर्म एल्गोरिदम द्वारा सामग्री को बढ़ावा देने या प्रतिबंधित करने की विधि के बारे में अनिवार्य पारदर्शिता प्रकटीकरण की माँग करती है।
  • कठोर दंड: रिपोर्ट में गलत सूचना को रोकने के लिए बार-बार उल्लंघन करने वालों के लिए अधिक जुर्माने और कठोर दंड का प्रस्ताव है।
  • नोडल अधिकारी की नियुक्ति: इस रिपोर्ट में भारत में बड़ी तकनीकी कंपनियों के साथ समन्वय करने और अनुपालन संबंधी मुद्दों को सँभालने के लिए एक समर्पित नोडल अधिकारी की नियुक्ति की सिफारिश की गई है।
  • अंतर-मंत्रालयी कार्य बल: समिति क्षेत्राधिकार संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए विदेश मंत्रालय और कानूनी विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक समर्पित कार्य बल स्थापित करने की सिफारिश करती है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता-मानव निरीक्षण: समिति एक सँकर प्रणाली का समर्थन करती है, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) गलत सूचना को चिह्नित करती है और मानव विशेषज्ञ द्वितीय-स्तर पर सत्यापन करते हैं।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता विनियमन: समिति ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा जनित सामग्री के निर्माताओं हेतु लाइसेंसिंग आवश्यकताओं और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) द्वारा निर्मित वीडियो तथा डिजिटल सामग्री की अनिवार्य लेबलिंग का प्रस्ताव रखा है।
  • स्व-नियमन को सुदृढ़ बनाना: समिति सभी टीवी चैनलों को स्व-नियामक निकायों के अंतर्गत लाने और सभी मीडिया क्षेत्रों (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल) में तथ्य-जाँच इकाइयों तथा आंतरिक लोकपालों को अनिवार्य बनाने की सिफारिश करती है।
  • मान्यता दंड: समिति ने बार-बार फेक न्यूज बनाने या फैलाने के दोषी पाए जाने वाले पत्रकारों या रचनाकारों की मान्यता रद्द करने का प्रस्ताव रखा है।

फेक न्यूज के प्रसार को रोकने के लिए पहलें 

  • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000: यह अधिनियम सरकार को गैर-कानूनी और भ्रामक सूचनाओं पर अंकुश लगाने के लिए ऑनलाइन मध्यस्थों और डिजिटल सामग्री को विनियमित करने का अधिकार देता है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: आईटी नियम डिजिटल समाचार प्रकाशकों, समसामयिक विषयों पर सामग्री बनाने वालों और क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल प्लेटफॉर्म को विनियमित करते हैं।
  • सेफ हार्बर’ प्रावधान: IT नियमों के तहत उचित सावधानी बरतने में विफल रहने वाले मध्यस्थों को सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की धारा 79 के तहत सेफ हार्बर’ उपबंध की सुरक्षा खोने का जोखिम होता है, जिससे वे उपयोगकर्ता-जनित सामग्री के लिए कानूनी रूप से उत्तरदायी हो जाते हैं।
  • भारतीय न्याय संहिता (BNS): भारतीय न्याय संहिता की धारा 353, जनता को नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से जानबूझकर झूठी सूचना या अफवाहों के प्रसार को अपराध घोषित करती है।
  • PIB तथ्य-जाँच इकाई: प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) सरकारी नीतियों और कार्यों से संबंधित गलत सूचनाओं की पुष्टि तथा उनका प्रतिकार करने के लिए समर्पित एक तथ्य-जाँच इकाई संचालित करता है।
  • सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का परामर्श-पत्र 2024: मंत्रालय ने भारतीय उपयोगकर्ताओं को लक्षित ऑनलाइन सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म और छद्म विज्ञापनों के प्रचार पर रोक लगाने के लिए एक परामर्श-पत्र जारी किया।
  • चुनाव आयोग की पहल: भारत के चुनाव आयोग ने वर्ष 2024 के आम चुनावों के दौरान गलत सूचनाओं की पहचान करने और उन्हें सही करने के लिएमिथक बनाम वास्तविकता रजिस्टर” की शुरुआत की। आयोग फेक न्यूज के विरुद्ध मतदाताओं को शिक्षित करने के लिए अभियान भी चलाता है।
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल: यह पोर्टल नागरिकों को साइबर अपराधों की रिपोर्ट करने में सक्षम बनाता है, जिन्हें फिर कार्रवाई के लिए संबंधित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश पुलिस को भेज दिया जाता है।

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