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भारत में शिक्षा की लागत की भयावह वास्तविकता

Lokesh Pal December 12, 2025 05:15 60 0

सन्दर्भ:

राष्ट्रीय शिक्षा सर्वेक्षण (NSS) के 80वें दौर (अप्रैल-जून 2025) के “व्यापक मॉड्यूलर सर्वेक्षण: शिक्षा” विषय पर किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है, कि कई परिवार निजी स्कूलों और कोचिंग पर अत्यधिक व्यय करते हैं, जिससे बुनियादी शिक्षा की लागत निरंतर बढ़ती जा रही है।

संवैधानिक और नीतिगत ढाँचा

  • निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार: अनुच्छेद 21A (86वाँ संविधान संशोधन, 2002) छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)-2020 के अंतर्गत परिकल्पना: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)-2020 सार्वभौमिक शिक्षा के लक्ष्य को तीन से 18 वर्ष की आयु तक विस्तारित करती है, जिसमें पूर्व-प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक शिक्षा तक शामिल है और इसका उद्देश्य 2030 तक सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करना है।

स्कूलों में नामांकन संबंधी दृष्टिकोण

  • समग्र वितरण: राष्ट्रीय स्तर पर 9% विद्यार्थी सरकारी स्कूलों में, 11.3% निजी सहायता प्राप्त स्कूलों में और 31.9% निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करते हैं।
  • शहरी-ग्रामीण अंतराल: शहरी क्षेत्रों में 4% स्कूली बच्चे निजी स्कूलों में नामांकित हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह आँकड़ा 24.3% है।
  • लिंगभेद: निजी स्कूलों में दाखिले में लैंगिक अंतराल कम है, निजी स्कूलों में 34% लड़के और लड़कियाँ शिक्षा ग्रहण कर रही हैं
  • स्तरवार ग्रामीण बनाम शहरी नामांकन:ग्रामीण क्षेत्रों में, निजी स्कूलों में नामांकन पूर्व-प्राथमिक स्तर पर 28.1% से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर पर 25.8% तक है।
    • शहरी क्षेत्रों में, निजी स्कूलों में नामांकन दर काफी अधिक है, जो पूर्व-प्राथमिक स्तर पर 62.9% से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर पर 42.3% तक है।
  • समय के साथ निजी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि: 75वें दौर के सर्वेक्षण (2017-18) की तुलना में ग्रामीण निजी प्राथमिक स्कूलों में नामांकन 20.9% से बढ़कर 25.9% हो गया है, जो “गुणवत्ता की तलाश” को दर्शाता है, क्योंकि माता-पिता को लगता है कि सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता की कमी है और वे वित्तीय त्याग करने को तैयार हैं।
  • सभी क्षेत्रों में उच्च शुल्क स्तर: ग्रामीण क्षेत्रों में निजी स्कूलों की औसत वार्षिक फीस ₹18,000 से ₹33,000 तक होती है।
    • शहरी क्षेत्रों में, निजी स्कूलों की औसत वार्षिक फीस ₹26,000 से ₹49,000 तक होती है।

शुल्क का बोझ और अनौपचारिक शिक्षा का उदय

  • वित्तीय बहिष्कार में वृद्धि: निजी स्कूलों में पूर्व-प्राथमिक शुल्क भारत के सबसे गरीब 5% परिवारों के संपूर्ण मासिक प्रति व्यक्ति व्यय के बराबर है।
    • सबसे गरीब परिवारों के लिए, प्रारंभिक स्कूली शिक्षा के खर्चों को पूरा करने के लिए ही पूरे महीने की आय की आवश्यकता होती है, जो अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार) की भावना को कमजोर करता है।
  • निजी शिक्षा पर बढ़ती निर्भरता: ग्रामीण क्षेत्रों के 25.5% बच्चे और शहरी क्षेत्रों के 7% बच्चे निजी शिक्षा पर निर्भर हैं।
  • दुहरे बोझ का दुष्चक्र: हालाँकि निजी स्कूल अपेक्षाकृत अधिक फीस लेते हैं, लेकिन कई शिक्षकों को कम वेतन प्राप्त होता है और वे अक्सर कम योग्य होते हैं, जिसके कारण विद्यार्थियों को शैक्षणिक सहायता के लिए निजी ट्यूशन पर निर्भर रहना पड़ता है।

शिक्षा के संदर्भ में वित्तीय बहिष्कार का प्रभाव

  • अंतर-पीढ़ीगत असमानता: यह व्यवस्था “अंतर-पीढ़ीगत असमानता” को बनाए रखती है, क्योंकि अमीर परिवारों के बच्चे बेहतर स्कूलों और कोचिंग सुविधाओं तक पहुँच प्राप्त कर पाते हैं, जबकि गरीब बच्चे कम वित्त पोषित स्कूलों में ही रह जाते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है, कि आय अंतराल पीढ़ियों तक बना रहता है।
  • शिक्षा एक बाजार उत्पाद के रूप में: शिक्षा को “सार्वजनिक हित” से घटाकर “बाजार उत्पाद” बना दिया गया है।
  • लागत के बावजूद गुणवत्ता में गिरावट: एक अध्ययन से पता चलता है, कि ट्यूशन पर निर्भरता स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता से नकारात्मक रूप से जुड़ी हुई है, जो यह दर्शाता है कि यहाँ तक ​​कि सशुल्क निजी स्कूल भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में विफल रहे हैं।

आगे की राह:

  • सार्वजनिक शिक्षा को सुदृढ़ बनाना: अभिभावकों और बच्चों का विश्वास अर्जित करने के लिए बुनियादी ढाँचे तथा शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार करके सार्वजनिक विद्यालयों को मजबूत बनाएँ।
  • निजी स्कूलों की फीस का विनियमन: मनमानी वृद्धि को रोकने के लिए निजी स्कूलों की फीस को विनियमित और सीमित करें।
  • शिक्षकों की गुणवत्ता और वेतन में सुधार: बाह्य शिक्षण की आवश्यकता को कम करने के लिए शिक्षकों के वेतन और गुणवत्ता में वृद्धि करें

निष्कर्ष

वास्तव में अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है, कि शिक्षा एक अधिकार बनी रहे न कि विशेषाधिकार, ताकि समाज को और अधिक विभाजित होने से रोका जा सके।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: अनुच्छेद 21A द्वारा निःशुल्क शिक्षा की गारंटी दिए जाने के बावजूद, निजी स्कूलों और निजी ट्यूशन की बढ़ती संख्या ने भारत में शिक्षा को लगातार महंगा बना दिया है। इस प्रवृत्ति के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण कीजिए तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करने में राज्य की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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