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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal December 20, 2025 04:28 42 0

गोबरधन योजना

गुजरात केंद्र की गोबरधन योजना (GOBARDHAN Scheme) के प्रभावी क्रियान्वयन के माध्यम से अपने ग्रामीण परिदृश्य का रूपांतरण कर रहा है।

गोबरधन योजना के बारे में

  • गोबरधन का अर्थ है- जैविक कृषि संसाधन धन को सशक्त करना।
  • यह एक समग्र “संपूर्ण-सरकार” दृष्टिकोण पर आधारित अंब्रेला पहल है, जिसका उद्देश्य कचरे को धन में परिवर्तित करना और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
  • प्रारंभ: वर्ष 2018 में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अंतर्गत; वर्ष 2021 में इसे राष्ट्रीय मिशन के रूप में सुदृढ़ किया गया।
  • संबद्ध मंत्रालय: जल शक्ति मंत्रालय।
  • उद्देश्य
    • पशु गोबर और जैविक अपशिष्ट को बायोगैस, संपीडित बायोगैस, कंपोस्ट और जैव-पदार्थ में परिवर्तित करना।
    • स्वच्छ ऊर्जा, स्वच्छता और ग्रामीण आजीविका को प्रोत्साहित करना।
    • खुले में कचरा फेंकने, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करना।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बायोगैस और संपीडित बायोगैस संयंत्रों की स्थापना।
    • सतत् योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, राष्ट्रीय पशुधन मिशन और स्वच्छ भारत जैसी योजनाओं के साथ अभिसरण।
  • गोबरधन पोर्टल: एकीकृत पंजीकरण पोर्टल, जहाँ कोई भी इकाई जो बायोगैस या संपीडित बायोगैस संयंत्र स्थापित करना चाहती है, पंजीकरण कर सकती है।
  • यह पहल गाँवों के खुले में ODF+ स्थिति प्राप्त करने का प्रमुख प्रेरक है, जो सतत् स्वच्छता को दर्शाता है।

नुपी लान दिवस (Nupi Lan Day)

86वें नुपी लान दिवस (Nupi Lan Day) पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफाल में श्रद्धांजलि अर्पित की, जिसमें उन्होंने मणिपुर के उपनिवेशी आर्थिक शोषण के विरुद्ध ऐतिहासिक महिला नेतृत्व वाली प्रतिरोध मुहिम को उजागर किया।

नुपी लान दिवस (Nupi Lan Day)

नुपी लान दिवस प्रत्येक वर्ष 12 दिसंबर को मणिपुर में मनाया जाता है, ताकि दूसरे नुपी लान (1939) की स्मृति को संजोया जा सके, जो उपनिवेशी नीतियों और आर्थिक अन्याय के विरुद्ध महिला नेतृत्व आधारित एक महत्त्वपूर्ण जन आंदोलन था।

नुपी लान के बारे में

  • नुपी लान, का मैतेई भाषा में अर्थ महिलाओं का युद्ध” है, यह ब्रिटिश उपनिवेशी शासन के विरुद्ध मणिपुर में दो प्रमुख महिला नेतृत्व वाले आंदोलनों (1908 और 1939) को संदर्भित करता है।
  • पहला नुपी लान (1908) जबरन श्रम और उपनिवेशी प्रशासनिक अत्याचारों के खिलाफ विरोध था।

दूसरा नुपी लान (1939)

  • यह बड़े पैमाने पर चावल निर्यात, मूल्य वृद्धि और ब्रिटिश संरक्षण में मारवाड़ी व्यापारियों द्वारा शोषण के विरुद्ध फूटा।
    • मणिपुरी महिलाएँ, जो ख्वैरामबंद बाजार (इमा मार्केट) जैसे स्थानीय बाजारों के माध्यम से चावल व्यापार में केंद्रित थीं, ने निर्यात पर प्रतिबंध की माँग करते हुए जन विरोध का नेतृत्व किया।
  • हजारों महिलाओं ने औपनवेशिक अधिकारियों का सामना किया; दमन के बावजूद ब्रिटिश बलों के साथ संघर्ष हुए।
  • यह आंदोलन केवल आर्थिक विरोध से बढ़कर मणिपुर में प्रशासनिक और संवैधानिक सुधारों की माँग में परिवर्तित हो गया।

महत्त्व

  • ‘नुपी लान’ महिलाओं की सामूहिक कार्रवाई का एक शक्तिशाली प्रतीक बना हुआ है, जो मणिपुर और उसके बाहर आर्थिक न्याय, लोकतांत्रिक शासन और लैंगिक रूप से समावेशी सार्वजनिक भागीदारी के लिए समकालीन आंदोलनों को प्रेरित करता है।

पिपरहवा स्तूप और पिपरहवा रत्न

भारत ने पिपरहवा रत्नों की हांगकांग नीलामी को रोका, यह दावा करते हुए कि ये अवशेष जीवित आध्यात्मिक विरासत हैं और इन्हें सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए वापस लाया गया।

पिपरहवा स्तूप के बारे में

  • पिपरहवा स्तूप को व्यापक रूप से गौतम बुद्ध के अस्थि अवशेषों के एक हिस्से के अंतिम संस्कार स्थल के रूप में माना जाता है, जो उनके स्वयं के शाक्य वंश को उनके निर्वाण के बाद लगभग 480 ईसा पूर्व दिया गया था।
  • स्थान: पिपरहवा स्तूप उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में, लुंबिनी के पास भारत–नेपाल सीमा पर स्थित है।
  • ऐतिहासिक महत्त्व: यह गौतम बुद्ध के शाक्य वंश की राजधानी कपिलवस्तु से जुड़ा है।
  • खोज: वर्ष 1898 में ब्रिटिश अभियंता विलियम क्लैक्सटन पेप्पे द्वारा खुदाई की गई।
  • अवशेषों की खोज: पत्थर के संदूक में अस्थि अवशेष, आभूषण और स्वर्ण भूषण पाए गए।
  • ब्राह्मी लिपि: एक संदूक पर लिपि अंकित है, जिसमें बुद्ध के अवशेषों का उल्लेख है, जो शाक्यों द्वारा प्रतिष्ठित किए गए थे।
  • कालक्रम: सबसे प्राचीन स्तूप 5वीं–4वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है, जो बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तुरंत बाद का है।
  • मौर्य काल संबंध: स्तूप मौर्य काल में संभवतः सम्राट अशोक के शासन में बढ़ाया गया।
  • वर्तमान स्थिति: इसे महत्त्वपूर्ण बौद्ध पुरातात्त्विक स्थल और भारत के बौद्ध धरोहर पर्यटन मार्ग का हिस्सा माना जाता है।

पिपरहवा रत्न

  • विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने पिपरहवा स्तूप के भीतर अस्थि अवशेषों के साथ पाए, जिन्हें गौतम बुद्ध से संबंधित रत्नों के रूप में माना जाता है।
  • रत्नों का स्वरूप: स्वर्ण भूषण, अर्द्ध-कीमती पत्थर, मनके और आभूषण शामिल हैं।
  • ऐतिहासिक काल: लगभग 5वीं–4वीं शताब्दी ईसा पूर्व के हैं, जो बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद प्रारंभिक बौद्ध अवशेष पूजा से जुड़े हैं।
  • वितरण: कई अवशेष भारत और विदेश के संग्रहालयों में गए; कुछ रत्न पेप्पे के वंशजों के पास रहे।
  • वर्ष 2025 का विवाद: पेप्पे वंश के उत्तराधिकारियों द्वारा हांगकांग में नीलामी का प्रस्ताव भारत सरकार द्वारा आपत्ति जताने पर विवाद पैदा हुआ।
  • भारत का दृष्टिकोण: रत्नों को निजी संग्रहण नहीं, बल्कि जीवित आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत मानते हुए उनकी सुरक्षा की माँग।
  • पुनः प्रतिपूर्ति: गोदरेज समूह ने रत्नों को खरीदकर भारत वापस लाया और सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए सुरक्षित किया।

भारत और डोपिंग

विश्व एंटी-डोपिंग एजेंसी (WADA) 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने लगातार तीसरे वर्ष विश्व में सर्वाधिक डोपिंग उल्लंघनों का रिकॉर्ड बनाया है।

डोपिंग के बारे में

  • डोपिंग का अर्थ है प्रतियोगी खेलों में खिलाड़ियों द्वारा निषिद्ध पदार्थों या विधियों का उपयोग करना, ताकि प्रदर्शन को कृत्रिम रूप से बढ़ाया जा सके।
  • डोपिंग के सामान्य रूप
    • एनेबोलिक स्टेरॉयड: मांसपेशियों की वृद्धि के लिए।
    • उत्तेजक पदार्थ: सतर्कता और सहनशीलता बढ़ाने के लिए।
    • हार्मोन (उदाहरण के लिए-एरिथ्रोपोइटिन): लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या और सहनशक्ति बढ़ाने के लिए।
    • मूत्र वर्द्धक दवा: अन्य पदार्थों के उपयोग को छिपाने के लिए।

भारत का डोपिंग संकट

  • समस्या का आकार: 7,113 नमूनों में से 260 भारतीय खिलाड़ियों ने सकारात्मक परीक्षण किया, जिससे 3.6 प्रतिशत सकारात्मकता दर बनी, जो विश्व में सर्वाधिक में से एक है।
    • प्रत्येक पाँचवें भारतीय खिलाड़ी का परीक्षण राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग निगरानी संस्था द्वारा प्रतियोगिता के दौरान डोपिंग के लिए सकारात्मक पाया गया।
  • राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी (NADA), भारत: • NADA के अनुसार, डोपिंग परीक्षणों की संख्या वर्ष 2019 में 4,004 से बढ़कर वर्ष 2024 में 7,113 हो गई।
    • इसी अवधि में सकारात्मकता दर 5.6 प्रतिशत से घटकर 3.6 प्रतिशत हुई।
    • 16 दिसंबर, 2025 तक, इस वर्ष 7,068 परीक्षण किए गए, जिनमें 110 सकारात्मक मामले पाए गए, जिससे सकारात्मकता दर 1.5 प्रतिशत रही।
  • अन्य देशों के साथ तुलना: चीन, जर्मनी, फ्राँस, रूस, इटली और ब्रिटेन ने अधिक परीक्षण करने के बावजूद कम सकारात्मक मामले दर्ज किए।
  • प्रवृत्तियाँ: एथलेटिक्स, भारोत्तोलन और कुश्ती सर्वाधिक प्रभावित खेल हैं।

डोपिंग से संबंधित नियामक संस्थाएँ

  • विश्व एंटी-डोपिंग एजेंसी (WADA): अंतरराष्ट्रीय निकाय, जो विश्व स्तर पर एंटी-डोपिंग नियमों की निगरानी और प्रवर्तन करता है।
    • यह निषिद्ध पदार्थों और विधियों की वार्षिक सूची बनाए रखता है।
  • राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी (NADA), भारत: WADA संहिता को लागू करती है, परीक्षण करती है और दंड प्रदान करती है।

गैंडों के सींग हटाना (डीहॉर्निंग)

आठ अभयारण्यों में 2,284 गैंडों के सींग हटाने (डीहॉर्निंग) से शिकार की घटनाएँ 78 प्रतिशत कम हुईं और इसके लिए ‘शिकार-रोधी बजट’ का केवल 1.2 प्रतिशत उपयोग हुआ। यह दीर्घकालिक शिकार-रोधी रणनीति के रूप में मजबूत संभावनाएँ दर्शाता है।

सींग हटाने (डीहॉर्निंग) के बारे में

  • परिभाषा: ‘डीहॉर्निंग’ का अर्थ है गैंडे के सींग के अधिकांश भाग को हटाना, ताकि बिना जानवर को हानि पहुँचाए शिकार की आशंका को कम किया जा सके।
  • उद्देश्य:
    • शिकार के मुख्य प्रोत्साहन (अर्थात् सींग) को हटाना।
    • गैंडों को उनके सींग के लिए मारे जाने से बचाना।
  • प्रक्रिया
    • प्रारंभिक क्रियाविधि: गैंडों को बेहोश किया जाता है, आँखों पर पट्टी बाँधी जाती है और तनाव कम करने के लिए कान में प्लग लगाए जाते हैं।
    • सींग हटाना: 90–93 प्रतिशत सींग कोजर्मिनल परत’ के ऊपर से काटा जाता है, ताकि पुनर्विकास संभव रहे।
    • उपरांत-देखभाल: बचे हुए हिस्से को समतल किया जाता है और सूखने या संक्रमण से बचाने के लिए उस पर चीड़ का लेप (पाइन टार) लगाया जाता है।
  • प्रभावशीलता: अध्ययनों में ‘डीहॉर्निंग’ वाले क्षेत्रों में शिकार की घटनाओं में 75–78 प्रतिशत कमी दर्ज की गई है।
  • व्यक्तिगत रूप से डीहॉर्न किए गए गैंडे 95 प्रतिशत कम शिकार जोखिम का सामना करते हैं।

गैंडे के सींग के बारे में

  • गैंडे के बारे में: गैंडे हाथियों के बाद विश्व के दूसरे सबसे बड़े स्थलीय स्तनधारी हैं।
    • उनके सींगकेराटिन’ से बने होते हैं।
  • सींग का महत्त्व: गैंडे मुख्यतः शाकाहारी होते हैं।
    • वे खाद्य पौधों और जड़ों तक पहुँचने के लिए जमीन खोदने में सींग का उपयोग करते हैं।
    • यह प्रजनन-चयन का भी संकेतक होता है, मादा गैंडे सामान्यतः बड़े सींग वाले नर गैंडे को अधिक पसंद करती हैं।

गैंडों के शिकार के कारण

  • आर्थिक दबाव: स्थानीय समुदायों में गरीबी तथा गैंडे के सींग की अत्यधिक माँग मिलकर शिकार हेतु बड़ी आर्थिक प्रेरणा उत्पन्न करते हैं।
  • शिकारियों की विधि: शिकारी पूरे सींग को निकालने के लिए गैंडे को मार देते हैं क्योंकि 10 प्रतिशत सींग छोड़ देने पर भी उन्हें लाभकारी नहीं लगता।
  • माँग: गैंडे के सींग को प्रतिष्ठा-प्रतीक माना जाता है और एशियाई देशों—जैसे वियतनाम व चीन की पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग किया जाता है, जबकि इसके औषधीय लाभों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
  • उच्च व्यापार मूल्य: वर्ष 2012 से 2022 के बीच गैंडे के सींग का व्यापार अनुमानतः 874 मिलियन डॉलर से 1.13 बिलियन डॉलर के बीच रहा, जिसका मूल्य 3,382 डॉलर से 22,257 डॉलर प्रति किलोग्राम के बीच थी।

वैश्विक स्तर पर गैंडों की संख्या में गिरावट

  • जनसंख्या स्थिति: वर्ष 2024 तक विश्वभर में पाँचों प्रजातियों के कुल 28,000 से भी कम गैंडे शेष हैं।
  • शिकार का खतरा: लगातार शिकार गैंडों के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा है।
  • अफ्रीकी अभयारण्यों पर प्रभाव: ग्रेटर क्रूगर अभयारण्यों से वर्ष 2017 से 2023 के बीच 1,985 काले और सफेद गैंडे विलुप्त हो गए, जो लगभग 6.5 प्रतिशत प्रति वर्ष है, जबकि शिकार रोधी पहलों पर 74 मिलियन डॉलर का निवेश किया गया था (जिसमें- रेंजर की गश्त, प्रशिक्षित कुत्ते, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित कैमरे और हवाई निगरानी शामिल थे)।

जंपिंग जीन (Jumping Genes)

दक्षिणी ग्रीनलैंड में ध्रुवीय भालू, तीव्र गति से पिघलती समुद्री बर्फ से बचने के लिएजंपिंग जीन’ (Jumping Genes) का उपयोग कर अपने ही DNA को पुनर्लेखित कर रहे हैं।

जंपिंग जीन (Jumping Genes)

  • परिभाषा: ‘जंपिंग जीन’, जिन्हें ट्रांसपोसॉन’ या स्थानांतरित होने वाले तत्त्व भी कहा जाता है, ऐसे डीएनए खंड हैं, जो जीनोम में एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित हो जाते हैं।
  • महत्त्व
    • वे यह प्रभावित करते हैं कि अन्य जीन कैसे सक्रिय या निष्क्रिय होते हैं तथा जीवों को पर्यावरणीय तनाव के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाते हैं।
    • वे उत्परिवर्तन और जीन पुनर्व्यवस्था द्वारा आनुवंशिक विविधता तथा विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • संरचना: ध्रुवीय भालू के जीनोम का एक-तिहाई से अधिक भाग, मानव जीनोम का 45 प्रतिशत तथा पादप जीनोम का 70 प्रतिशत तक जंपिंग जीन’ द्वारा निर्मित होता है।

अनुसंधान के प्रमुख निष्कर्ष

  • अध्ययन संबंधी क्षेत्र और तुलना: शोधकर्ताओं ने ग्रीनलैंड के ध्रुवीय भालुओं के डीएनए का विश्लेषण किया और दक्षिणी (अधिक गर्म) आबादी की तुलना उत्तरी आबादी से की।
  • जीन सक्रियता में वृद्धि: दक्षिणी ग्रीनलैंड के भालुओं में उत्तरी भालुओं की तुलना में ‘जंपिंग जीन’ की गतिविधि अधिक पाई गई।
    • अधिक गतिविधि का संबंध उष्ण पर्यावरणीय परिस्थितियों से पाया गया। यह जलवायु-तनाव के प्रति तीव्र जैविक प्रतिक्रिया का संकेत देता है।
  • प्रभावित जीन: चयापचय, वृद्धावस्था और ऊष्मा-तनाव से संबंधित जीन प्रभावित हुए, जो ऊर्जा-उपयोग और वसा-संग्रहण को नियंत्रित करने में सहायता कर सकते हैं।
  • निहितार्थ: आनुवंशिक अनुकूलन, जलवायु-तनाव के प्रति अल्पकालिक अनुकूलन की अनुमति दे सकता है, किंतु इसका दीर्घकालिक अस्तित्व सुनिश्चित नहीं करता है।
  • भविष्य का शोध: वैज्ञानिक यह पता लगाने की योजना बना रहे हैं कि ये आनुवंशिक परिवर्तन वंशानुगत हैं या नहीं और निरंतर आर्कटिक ऊष्मीकरण की स्थिति में इनके स्वास्थ्य, प्रजनन और अस्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ेंगे।

अंतरराष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (IDF) का डायबिटीज एटलस

अंतरराष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (IDF) के ग्यारहवें डायबिटीज एटलस ने चेतावनी दी है कि वैश्विक मधुमेह मामलों की संख्या वर्ष 2050 तक बढ़कर लगभग 900 मिलियन तक पहुँच सकती है, जिसका प्रमुख कारण तीव्र शहरीकरण और जनसंख्या का वृद्धावस्था की ओर बढ़ना है।

  • अंतरराष्ट्रीय मधुमेह महासंघ का मुख्यालय ब्रुसेल्स, बेल्जियम में स्थित है, जो विश्व-भर में विस्तृत 250 से अधिक राष्ट्रीय मधुमेह संघों की नेटवर्क प्रणाली का केंद्रीय केंद्र है।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ

  • वैश्विक बोझ: वैश्विक मधुमेह मामलों के वर्ष 2024 में लगभग 500 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2050 तक 850–900 मिलियन होने का अनुमान है, जो 20–79 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 13 प्रतिशत वयस्कों को प्रभावित करेगा।
    • शहरी क्षेत्रों में मधुमेह का प्रसार पहले से ही बहुत अधिक है, लगभग 400 मिलियन लोग प्रभावित हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या लगभग 189 मिलियन है। अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह शहरी–ग्रामीण अंतराल और भी बढ़ जाएगा।
  • भारत का हिस्सा: भारत मधुमेह के मामलों में चीन के बाद विश्व में दूसरे स्थान पर है।
    • वर्ष 2050 तक भारत के विश्व में सर्वाधिक मधुमेह-प्रभावित देशों में बने रहने का अनुमान है।

मधुमेह बढ़ने के कारण

  • तीव्र शहरीकरण, जिसके चलते निष्क्रिय जीवन-शैली, अस्वास्थ्यकर आहार और शारीरिक गतिविधियों में कमी आती है।
  • निम्न-आय एवं मध्यम-आय वाले देशों में जनसंख्या का वृद्धावस्था की ओर बढ़ना और स्वास्थ्य-प्रणालियों पर बढ़ता दबाव।
  • कार्यस्थल का तनाव एवं व्यवहारगत जोखिम कारक विशेषकर मोटापा और खराब चयापचय स्वास्थ्य के कारण हैं, जो कार्यशील आयु वर्ग में अधिक दिखाई देते हैं।

मधुमेह की बढ़ती दर को रोकने हेतु सिफारिशें

  • देश-विशिष्ट और जनसंख्या-विशिष्ट जोखिम-प्रोफाइल के अनुरूप, रोग-प्रगति को धीमा करने के लिए मजबूत रोकथाम रणनीतियाँ निर्धारित करना।
  • विशेषकर शहरी क्षेत्रों और कमजोर आबादी में शीघ्र पहचान और प्राथमिक स्वास्थ्य-देखभाल को सुदृढ़ बनाना।
  • एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियाँ निर्मित करना, जो आहार, शारीरिक निष्क्रियता और तनाव जैसे जीवन शैली जोखिमों को संबोधित करें तथा उपचार तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करें।

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