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सर्वोच्च न्यायालय ने CSR को पारिस्थितिकी तंत्र और प्रजाति संरक्षण से जोड़ा

Lokesh Pal December 22, 2025 02:20 13 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (Corporate social responsibility-CSR) की व्याख्या करते हुए इसमें पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को शामिल किया है।

पृष्ठभूमि

  • मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने विलुप्ति के कगार पर खड़ी पक्षी प्रजाति ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ के संरक्षण से संबंधित याचिकाओं पर अपना निर्णय सुनाया।

कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के बारे में

  • परिभाषा: CSR कंपनियों का वह दायित्व है, जिसके तहत वे व्यवसाय करते समय समाज, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के कल्याण में योगदान देती हैं।
  • मानदंड: कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत, निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करने वाली कंपनियों के लिए CSR अनिवार्य है:
    • 500 करोड़ रुपये या उससे अधिक की शुद्ध संपत्ति, 1000 करोड़ रुपये या उससे अधिक का कारोबार अथवा किसी वित्तीय वर्ष में 5 करोड़ रुपये या उससे अधिक का शुद्ध लाभ।
  • CSR व्यय की आवश्यकता: ऐसी कंपनियों को पिछले तीन वर्षों के अपने औसत शुद्ध लाभ का कम-से -म 2% CSR गतिविधियों पर व्यय करना होगा।

निर्णय का संवैधानिक आधार

  • अनुच्छेद-51A(g) की प्रयोज्यता: न्यायालय ने अपने निर्णय के माध्यम से निगमों को संविधान के अनुच्छेद-51A(g) के दायरे में सम्मिलित किया।
    • न्यायालय ने कहा कि CSR के तहत पर्यावरण पर किया गया व्यय संवैधानिक दायित्व की पूर्ति है।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-51A(g) वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार करने एवं जीवित प्राणियों के प्रति करुणा रखने का कर्तव्य निर्धारित करता है।

निर्णय के मुख्य बिंदु

  • निगमों का मौलिक कर्तव्य: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि एक निगम का समाज के प्रमुख अंग के रूप में पर्यावरण की रक्षा करना और प्रजातियों के विलुप्त होने को रोकना मौलिक कर्तव्य है।
  • कॉरपोरेट उत्तरदायित्व का विस्तार: न्यायालय ने कहा कि कॉरपोरेट उत्तरदायित्व को शेयरधारकों की रक्षा से आगे बढ़कर पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा तक विस्तारित होना चाहिए।
  • सामाजिक उत्तरदायित्व के दावों की सीमाएँ: न्यायालय ने माना कि कंपनियाँ पर्यावरण और अन्य जीवित प्राणियों के अधिकारों की उपेक्षा करते हुए सामाजिक रूप से उत्तरदायी होने का दावा नहीं कर सकतीं हैं।
  • दान-आधारित दृष्टिकोण का अस्वीकरण: पर्यावरण संरक्षण के लिए CSR निधि का उपयोग करना दान का कार्य नहीं है।
  • प्रदूषक भुगतान’ सिद्धांत का अनुप्रयोग: जहाँ खनन, विद्युत उत्पादन या अवसंरचना जैसी कॉरपोरेट गतिविधियाँ लुप्तप्राय प्रजातियों के आवास को खतरे में डालती हैं, वहाँ प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ (‘Polluter Pays’ Principle) के तहत कंपनी को प्रजातियों के संरक्षण की लागत वहन करनी होगी।
    • इसलिए, CSR निधि का उपयोग विलुप्ति को रोकने के लिए स्थानीय और आंतरिक संरक्षण प्रयासों की ओर निर्देशित किया जाना चाहिए।
    • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) संदर्भ: न्यायालय ने प्रतिपादित किया कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के प्राकृतिक आवासों के समीप संचालित गैर-नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक इकाइयाँ उसके साथ पारिस्थितिकी परिक्षेत्र साझा करती हैं। अतः ऐसी ऊर्जा इकाइयों पर यह दायित्व है कि वे अपनी गतिविधियों का संचालन ‘प्रजाति के आवास-क्षेत्र में एक अतिथि’ की भाँति करें, जिससे उसके जीवित रहने के लिए आवश्यक आवासीय अखंडता एवं पारिस्थितिकी संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के बारे में

  • मूल निवास स्थान: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (आर्डियोटिस निग्रिसेप्स) दुनिया के सबसे भारी पक्षियों में से एक है और भारतीय उपमहाद्वीप के शुष्क और अर्द्ध-शुष्क घास के मैदानों की एक प्रमुख देशज प्रजाति है।
  • पारिस्थितिकी महत्त्व: यह घास के मैदानों के आवास की एक प्रमुख संकेतक प्रजाति है, जिसका अर्थ है कि इसका अस्तित्व उन आवासों के स्वास्थ्य का भी संकेत देता है।
  • वितरण
    • अकेले राजस्थान के रेगिस्तानी और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में ही 120 से अधिक बस्टर्ड प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • बाकी प्रजातियाँ गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के जंगलों में पाई जाती हैं।
  • इनकी संख्या में गिरावट के कारण: राजस्थान के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में बढ़ते कृषि क्षेत्रों के कारण इनके आवास का क्षरण
    • कुत्तों, मॉनिटर लीजर्ड और मनुष्यों जैसे अन्य शिकारियों द्वारा अंडों को नष्ट करना।
    • विद्युत के तारों से टकराने के कारण मौतें, GIB की कमजोर दृष्टि क्षमता और उनके बड़े आकार के कारण उड़ान पथ में विद्युत के तारों से बचने में असमर्थता, ट्रांसमिशन लाइनों से टकराने के दो प्रमुख कारण हैं।
  • संरक्षण स्थिति
    • भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची I
    • CITES: परिशिष्ट I
    • IUCN की रेड लिस्ट: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
    • पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम: भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा वन्यजीव आवासों के एकीकृत विकास के अंतर्गत चिह्नित।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए अन्य निर्देश

  • प्राथमिकता क्षेत्रों का संशोधन: सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के लिए प्राथमिकता क्षेत्रों के संशोधन हेतु विशेषज्ञ समिति की सिफारिश को बरकरार रखा।
    • राजस्थान में संशोधित प्राथमिकता क्षेत्र 14,013 वर्ग किलोमीटर निर्धारित किया गया।
    • गुजरात में संशोधित प्राथमिकता क्षेत्र 740 वर्ग किलोमीटर निर्धारित किया गया।
  • प्राथमिकता क्षेत्र: यह ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए केंद्रित संरक्षण, निगरानी और सुरक्षा हेतु एक महत्त्वपूर्ण पर्यावास क्षेत्र है।
  • संरक्षण एवं निगरानी निर्देश: न्यायालय ने समिति की सिफारिशों को तत्काल लागू करने का निर्देश दिया, जिसमें संशोधित प्राथमिकता क्षेत्रों में स्थानीय और बाह्य संरक्षण, निगरानी और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर दीर्घकालिक अध्ययन शामिल हैं।
  • विद्युत गलियारे संबंधी निर्देश: न्यायालय ने समिति की उस सिफारिश को स्वीकार किया, जिसके अनुसार राजस्थान में रेगिस्तानी राष्ट्रीय उद्यान (Desert National Park) के सबसे दक्षिणी भाग से कम-से-कम 5 किलोमीटर दक्षिण में स्थित 5 किलोमीटर चौड़े विद्युत गलियारे को अनुमोदित किया गया है।

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