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भारतीय खेल जगत में डोपिंग का खतरा

Lokesh Pal December 27, 2025 03:02 23 0

संदर्भ

विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (WADA) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत लगातार तीसरे वर्ष डोपिंग उल्लंघनों में सबसे बड़ा योगदानकर्ता बनकर उभरा है, जिससे वर्ष 2030 राष्ट्रमंडल खेलों और वर्ष 2036 ओलंपिक खेलों की मेजबानी की महत्त्वाकांक्षाओं के बीच संस्थागत विश्वसनीयता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

संबधित तथ्य 

  • लॉजेन ओलंपिक के लिए प्रस्ताव और IOC का दायित्व: हाल ही में, पीटी उषा (IOA अध्यक्ष) और हर्ष संघवी (गुजरात के खेल मंत्री) के नेतृत्व में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने स्विट्जरलैंड के लॉजेन में आयोजित होने वाले वर्ष 2036 के ओलंपिक के लिए भारत की ओर से निविदा प्रस्तुत की।
  • अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने डोपिंग को एक गंभीर प्रशासनिक जोखिम बताते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि मेजबान के रूप में विचार किए जाने के लिए भारत को अपनी व्यवस्था में सुधार करना होगा।

WADA की हालिया रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • वैश्विक रूप से सर्वाधिक डोपिंग उल्लंघन: भारत (260 मामले) में विश्व में सबसे अधिक उल्लंघन दर्ज किए गए, जो फ्राँस (91) और इटली (85) की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक हैं।
  • चीन से तुलना: जहाँ भारत ने 7,113 परीक्षणों में से 260 मामले (3.6% सकारात्मकता दर) दर्ज किए, वहीं चीन ने 24,000 से अधिक परीक्षण किए और केवल 43 सकारात्मक मामले (0.2% दर) पाए गए।
    • यह आँकड़े ‘अधिक परीक्षण का अर्थ अधिक मामले’ संबंधी तर्क को गलत सिद्ध करते हैं, और यह दर्शाते हैं कि भारत का संकट एक प्रणालीगत विफलता है, न कि मात्रा-आधारित सांख्यिकीय विसंगति।

  • सकारात्मकता का संकेंद्रण: भारत की 3.6% सकारात्मकता दर उन सभी देशों में सबसे अधिक थी, जिन्होंने 5,000 से अधिक परीक्षण किए, जो प्रदर्शन बढ़ाने वाली दवाओं पर गहरी निर्भरता को उजागर करती है।
  • खेल-विशिष्ट उच्च स्तर: एथलेटिक्स (76 मामले), भारोत्तोलन (43) और कुश्ती (29) प्रमुख ‘हॉटस्पॉट’ के रूप में उभरे, जो कुल राष्ट्रीय उल्लंघनों के 50% से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं।
  • प्रयोगशाला प्रदर्शन: नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय डोप परीक्षण प्रयोगशाला (NDTL) ने विश्व स्तर पर WADA से मान्यता प्राप्त सभी प्रयोगशालाओं में सर्वाधिक सकारात्मकता दर (3.65%) दर्ज की, जो कोलोन या पेरिस की प्रयोगशालाओं (0.7% से कम) के बिल्कुल विपरीत है।

इन निष्कर्षों के भारत के लिए निहितार्थ

  • वर्ष 2036 की मेजबानी की बोली के लिए प्रतिष्ठा संबंधी जोखिम: अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने बार-बार डोपिंग को ‘प्रशासन संबंधी जोखिम’ के रूप में चिह्नित किया है।
    • कतर या इंडोनेशिया जैसे प्रतिद्वंद्वी इन आँकड़ों का लाभ उठाकर ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए भारत की तैयारियों को चुनौती दे सकते हैं।

  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव और मानसिक स्वास्थ्य: ‘हर कीमत पर जीत’ की संस्कृति अत्यधिक मनोवैज्ञानिक तनाव पैदा करती है, जिससे युवा खिलाड़ियों में प्रदर्शन संबंधी चिंता और पहचान का संकट उत्पन्न होता है, जिन्हें नैतिकता और अस्तित्व के बीच चुनाव के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  • आर्थिक अवरोध: कॉरपोरेट प्रायोजक भारतीय खेलों को तीव्रता से ‘उच्च जोखिम’ वाला निवेश मान रहे हैं, जिससे ‘टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम’ (TOPS) के लिए आवश्यक निजी वित्तपोषण में संभावित रूप से बाधा उत्पन्न हो सकती है।

डोपिंग के बारे में

  • परिभाषा: डोपिंग का तात्पर्य प्रतिबंधित पदार्थों या विधियों, जैसे- एनाबॉलिक स्टेरॉयड, एरिथ्रोपोइटिन (EPO) या जीन डोपिंग का अवैध उपयोग करके अनुचित शारीरिक लाभ प्राप्त करना है।
  • कठोर दायित्व सिद्धांत: ‘डोपिंग’ कठोर दायित्व सिद्धांत द्वारा नियंत्रित होती है, जिसके अनुसार किसी भी एथलीट के नमूने में पाए जाने वाले किसी भी प्रतिबंधित पदार्थ के लिए वह स्वयं जिम्मेदार होता है, चाहे उसका उद्देश्य कुछ भी हो।
  • डोपिंग के तरीके: रसायनों के अतिरिक्त, इसमें रक्त विकार का पता लगाने से बचने के लिए ‘मास्किंग एजेंटों’ का उपयोग जैसी विधियाँ शामिल हैं।

डोपिंग के सामान्य प्रकार

एथलीट आमतौर पर अपने खेल की विशिष्ट माँगों के आधार पर विभिन्न पदार्थों का उपयोग करते हैं ।

  • उभरते हुए मादक पदार्थों के खतरे: वर्ष 2025 का परिदृश्य ‘सेलेक्टिव एंड्रोजन रिसेप्टर मॉड्यूलेटर’ (SARM), जिन्हें प्रायः जिम में ‘सुरक्षित सप्लीमेंट’ के रूप में बेचा जाता है और ‘पेप्टाइड हार्मोन’ द्वारा निर्मित होता है, जिनकी पहचान की अवधि अत्यंत कम होती है, जो NDTL की तकनीकी सीमाओं को चुनौती देती है।

प्रकार उदाहरण प्राथमिक लक्ष्य
एनाबॉलिक स्टेरॉयड टेस्टोस्टेरोन, स्टैनोजोलोल मांसपेशियों का आकार और शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए।
ब्लड डोपिंग / एरिथ्रोपोइटिन एरिथ्रोपोइटिन, रक्त आधान लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या बढ़ाने, ऑक्सीजन की आपूर्ति में सुधार करने और सहनशक्ति बढ़ाने के लिए।
उत्तेजक एंफेटामाइन, कोकीन थकान कम करने, सतर्कता बढ़ाने और आक्रामकता को बढ़ावा देने के लिए।
मानव विकास हार्मोन (HGH) सोमैटोट्रॉपिन चोट से उबरने की प्रक्रिया को तेज करने और मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए।
मूत्रवर्द्धक फ्यूरोसेमाइड वजन तेजी से कम करने के लिए (वजन-वर्ग खेलों के लिए) या शरीर से अन्य दवाओं को “बाहर निकालने” के लिए।
बीटा-ब्लॉकर्स प्रोप्रनोलॉल हृदय गति को धीमा करने और कंपन को रोकने के लिए (तीरंदाजी या शूटिंग जैसे खेलों में उपयोग किया जाता है)।

प्रदर्शन बढ़ाने वाले सामान्य पदार्थ

  • मांसपेशियों का विकास और ताकत: ‘एनाबॉलिक स्टेरॉयड’ खेलों में सबसे अधिक प्रयोग होने वाले पदार्थ हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य मांसपेशियों का आकार बढ़ाना और शारीरिक ताकत में वृद्धि करना है।
    • ‘टेस्टोस्टेरॉन’ के ये कृत्रिम रूप एथलीटों को प्राकृतिक रूप से मिलने वाली ऊर्जा की तुलना में अधिक मेहनत करने और गहन व्यायाम के बाद तेजी से ठीक होने में सक्षम बनाते हैं।
  • ऊर्जा और सहनशक्ति बढ़ाने वाले पदार्थ: उत्तेजक और एरिथ्रोपोइटिन दूसरी प्रमुख श्रेणी का निर्माण करते हैं, जिनका उपयोग सतर्कता और सहनशक्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है।
    • जहाँ उत्तेजक तुरंत ध्यान केंद्रित करने की क्षमता प्रदान करते हैं, वहीं एरिथ्रोपोइटिन अतिरिक्त लाल रक्त कोशिकाओं के साथ रक्त को गाढ़ा करता है, जिससे एथलीट लंबे समय तक उच्चतम स्तर पर प्रदर्शन कर सकते हैं।
  • वजन नियंत्रण और छिपाना: अन्य दवाओं की उपस्थिति को छिपाने या वजन वर्ग के मानदंडों को पूरा करने के लिए मूत्रवर्द्धक, जैसे-‘मास्किंग एजेंटों’ का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
    • ये पदार्थ एथलीटों को अपने शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने या मूत्र को पतला करने में मदद करते हैं, जिससे अधिकारियों के लिए ‘ड्रग टेस्ट’ के दौरान प्रतिबंधित पदार्थों का पता लगाना अधिक कठिन हो जाता है।

विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (WADA) के बारे में

  • स्थापना: खेलों में डोपिंग के खिलाफ वैश्विक संघर्ष को समन्वित और बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) द्वारा वर्ष 1999 में WADA की स्थापना की गई थी।
  • मुख्यालय: मॉन्ट्रियल, कनाडा।
  • उद्देश्य: खेलों में डोपिंग से निपटने के वैश्विक प्रयासों को बढ़ावा देना और समन्वित करना तथा डोपिंग-विरोधी नीतियों एवं विनियमों के विकास के माध्यम से विश्व स्तर पर निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना।
  • मुख्य कार्य
    • विश्व डोपिंग विरोधी संहिता: सभी खेलों और देशों में डोपिंग विरोधी नियमों और नीतियों में सामंजस्य स्थापित करती है।
    • निषिद्ध सूची: प्रतियोगिता के दौरान और प्रतियोगिता के बाहर दोनों स्थितियों में प्रतिबंधित पदार्थों और विधियों की पहचान करती है, जिसे वार्षिक रूप से अद्यतन किया जाता है।
    • मान्यता: डोपिंग विरोधी प्रयोगशालाओं को मान्यता प्रदान करती है और वैश्विक परीक्षण मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करती है।
    • शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम: खिलाड़ियों और सामान्य जनता को डोपिंग के जोखिमों और परिणामों के बारे में शिक्षित करने के लिए वैश्विक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करती है।
  • महत्त्व: डोपिंग के विरुद्ध संघर्ष में वैश्विक सहयोग सुनिश्चित करके WADA खेलों में निष्पक्षता बनाए रखने में केंद्रीय भूमिका निभाता है।

राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA) के बारे में

  • स्थापना: भारतीय खेलों में डोपिंग की रोकथाम और वैश्विक डोपिंग-विरोधी मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में नाडा की स्थापना की गई थी।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली।
  • उद्देश्य: डोपिंग की रोकथाम, परीक्षण संचालन और खिलाड़ियों तथा अन्य हितधारकों को डोपिंग के खतरों तथा परिणामों के बारे में शिक्षित करके भारत में स्वच्छ खेलों को बढ़ावा देना।
    • राष्ट्रीय डोपिंग-विरोधी (संशोधन) अधिनियम, 2025: अगस्त 2025 में पारित यह ऐतिहासिक कानून, NADA के महानिदेशक को वैधानिक परिचालन स्वतंत्रता प्रदान करता है, जिससे सरकार के साथ “निष्पक्ष” संबंध बनाए रखने की WADA की आवश्यकता पूरी होती है।
    • CAS में सीधी अपील: वर्ष 2025 का अधिनियम अंतरराष्ट्रीय स्तर के एथलीटों को स्विट्जरलैंड स्थित खेल मध्यस्थता न्यायालय (CAS) में सीधे अपील करने का अधिकार देता है, जिससे निष्पक्ष द्वितीयक सुनवाई प्रक्रिया सुनिश्चित होती है।
    • WADA मान्यता अनिवार्य: अब सभी घरेलू परीक्षण प्रयोगशालाओं के लिए WADA की मान्यता बनाए रखना कानूनी रूप से अनिवार्य है, जिससे पहले की सरकारी निरंकुशता समाप्त हो जाती है और वैश्विक फोरेंसिक मानकों को सुनिश्चित किया जाता है।
  • महत्त्वपूर्ण कार्य
    • डोपिंग नियंत्रण: प्रतियोगिता के दौरान और प्रतियोगिता के बाहर एथलीटों द्वारा डोपिंग-विरोधी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए परीक्षण आयोजित करता है।
    • शिक्षा और जागरूकता: एथलीटों, प्रशिक्षकों और आम जनता को डोपिंग के जोखिमों के महत्त्व के बारे में जागरूक करने और शिक्षित करने के लिए कार्यक्रम चलाता है।
    • अनुपालन की निगरानी: विश्व डोपिंग-विरोधी संहिता और अन्य अंतरराष्ट्रीय डोपिंग-विरोधी मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करता है।
    • पोषक पूरक प्रमाणीकरण: आकस्मिक डोपिंग के जोखिम को कम करने के लिए सुरक्षित, डोप-मुक्त पूरकों को प्रमाणित करने के लिए संगठनों के साथ सहयोग करता है।

भारत में डोपिंग के उच्च आँकड़े होने के पीछे के कारण

  • सामाजिक-आर्थिक दबाव: भारत में, खेलों को प्रायः सामाजिक गतिशीलता और वित्तीय सुरक्षा का एक प्रमुख मार्ग माना जाता है।
    • सरकारी नौकरियों की प्रतिस्पर्द्धा: कम आय वाले परिवारों के कई एथलीट सरकारी क्षेत्रों जैसे-रेलवे, पुलिस और सशस्त्र बलों में खेल कोटा के तहत मिलने वाली नौकरियों के लिए निर्धारित सख्त प्रदर्शन मानकों को पूरा करने के लिए डोपिंग का सहारा लेते हैं। ये नौकरियाँ नौकरी की सुरक्षा और स्थिर आय प्रदान करती हैं।
    • नकद पुरस्कार और प्रोत्साहन: राज्य और केंद्र सरकारें अंतरराष्ट्रीय पदक (जैसे- ओलंपिक या एशियाई खेलों के पदक) जीतने पर भारी नकद पुरस्कार प्रदान करती हैं। इससे एक उच्च दबाव युक्त वातावरण का निर्माण होता है, जहाँ जीतने का वित्तीय लाभ डोपिंग के लिए पकड़े जाने के जोखिम से कहीं अधिक होता है।
  • “सहयोगी समूह” का प्रभाव और प्रणालीगत मिलीभगत: एथलीट शायद ही कभी अकेले डोपिंग करते हैं; वे प्रायः एक बड़े, संगठित तंत्र का हिस्सा होते हैं।
    • कोच और सहायक कर्मचारियों की भूमिका: कई भूमिगत स्तर के कोच, जिनके पास खेल विज्ञान का औपचारिक प्रशिक्षण नहीं होता, प्रदर्शन बढ़ाने वाले पदार्थों के उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं।
    • सांस्कृतिक सामान्यीकरण: एथलेटिक्स, भारोत्तोलन और कुश्ती जैसे उच्च जोखिम वाले खेलों में, सप्लीमेंट्स का उपयोग इतना सामान्य हो गया है कि युवा एथलीट इसे कानूनी या नैतिक रूप से उल्लंघन नहीं मानते।
  • जागरूकता और शिक्षा में अंतर: यद्यपि नाडा (राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी) ने अपनी पहुँच में वृद्धि की है, फिर भी जमीनी स्तर पर डोपिंग के बारे में जागरूकता का स्तर कम है।
    • भाषा संबंधी बाधाएँ: डोपिंग रोधी शिक्षा का अधिकांश हिस्सा अंग्रेजी या हिंदी में होता है, जिसके कारण ग्रामीण या क्षेत्रीय क्षेत्रों (जैसे- हरियाणा, पंजाब या केरल) के एथलीट गलत जानकारी देने वाले मध्यस्थों पर निर्भर रहते हैं।
    • “सख्त दायित्व (Strict Liability)” की अवधारणा: इस अवधारणा की अपर्याप्त समझ के कारण अनेक एथलीट अपने कोच अथवा चिकित्सक द्वारा निर्धारित दवाओं की संरचना तथा डोपिंग अनुपालन की समुचित जाँच नहीं करते। वर्ष 2024 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 25% से अधिक एथलीटों ने यह सत्यापित किए बिना सप्लीमेंट्स का सेवन किया कि उनमें कोई निषिद्ध डोपिंग पदार्थ तो सम्मिलित नहीं है।
  • अनियमित सप्लीमेंट उद्योग: डोपिंग उल्लंघन के मामलों में एक सामान्य बचाव-तर्क यह दिया जाता है कि दूषित सप्लीमेंट्स के सेवन के कारण ‘अनजाने में डोपिंग’ (Inadvertent Doping) हुई।
    • मिलावटी उत्पाद: भारत में न्यूट्रास्यूटिकल्स उद्योग के अपर्याप्त विनियमन के परिणामस्वरूप अनेक हर्बल अथवा प्राकृतिक सप्लीमेंट्स में प्रदर्शन को त्वरित रूप से बढ़ाने के उद्देश्य से एनाबॉलिक स्टेरॉयड अथवा ऑक्सीलोफ्राइन जैसे उत्तेजक पदार्थों की मिलावट पाई जाती है।
  • संस्थागत और तकनीकी चुनौतियाँ: भारत की डोपिंग विरोधी प्रणाली को कई संस्थागत और तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • प्रतिक्रियात्मक बनाम सक्रिय परीक्षण: यद्यपि NADA ने परीक्षणों की संख्या बढ़ा दी है (वर्ष 2024 में 7,100 से अधिक परीक्षण), परंतु ऐतिहासिक रूप से इसका ध्यान प्रतियोगिता के दौरान परीक्षण पर ही केंद्रित रहा है। डोपिंग करने वाले प्रायः प्रतियोगिता से बाहर के समय में ड्रग्स लेते हैं, जिससे आधिकारिक परीक्षण होने से पहले ही ड्रग्स शरीर से निष्कासित हो जाते हैं।
    • संसाधन संबंधी बाधाएँ: भारत में केवल एक ही WADA द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला (राष्ट्रीय डोप परीक्षण प्रयोगशाला) है, जिसके कारण परीक्षण में देरी होती है। इस देरी का अर्थ है कि एथलीट प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं, पदक जीत सकते हैं, और परिणाम आने के बाद ही उन्हें डोपिंग के लिए चिह्नित किया जा सकता है, जिससे परीक्षणों की प्रभावशीलता कम हो जाती है।

भारत की डोपिंग-विरोधी पहलें

  • राष्ट्रीय डोपिंग-विरोधी (संशोधन) अधिनियम, 2025: यह ऐतिहासिक कानून हाल ही में लागू किया गया है ताकि NADA इंडिया को सरकार से पूर्ण परिचालन स्वतंत्रता मिल सके और संस्थागत स्वायत्तता के लिए WADA के एक महत्त्वपूर्ण जनादेश को पूरा किया जा सके।
  • NIDAMS के माध्यम से डिजिटलीकरण: राष्ट्रीय डोपिंग-विरोधी डेटा प्रशासन और प्रबंधन प्रणाली ने आदेशों से लेकर परिणाम प्रबंधन तक संपूर्ण परीक्षण प्रक्रिया को डिजिटल कर दिया है, जिससे मानवीय हस्तक्षेप और त्रुटि कम हो गई है।
  • NADA-FSSAI-NFSU सहयोग: NADA, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण और राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते के तहत, डोपिंग-मुक्त उत्पादों को प्रमाणित करने के लिए देश का पहला पोषण पूरक परीक्षण उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया गया है।
  • शैक्षिक पहुँच: वर्ष 2025 में, NADA ने 329 जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी पहुँच का विस्तार किया और “नो योर मेडिसिन” (KYM) ऐप का उपयोग करते हुए 2.4 लाख से अधिक हितधारकों को दवाओं के सत्यापन में सहायता प्रदान की।
  • NIDAMS पोर्टल और एल्गोरिदम परीक्षण: वर्ष 2025 में शुरू की गई राष्ट्रीय डोपिंग-विरोधी डेटा प्रशासन और प्रबंधन प्रणाली (NIDAMS) ने संपूर्ण परीक्षण प्रक्रिया को डिजिटल कर दिया है। इसका ‘मिशन ऑर्डर जनरेशन’ फीचर परीक्षण के लिए एथलीटों का चयन करने के लिए एल्गोरिदम का उपयोग करता है, जिससे मानवीय पूर्वाग्रह समाप्त हो जाता है और भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है।
  • रक्त के सूखे धब्बे (DBS) पर आधारित परीक्षण: NADA ने कम लागत और न्यूनतम आक्रामक विधि, DBS परीक्षण को एकीकृत किया है, ताकि उच्च जोखिम वाले ग्रामीण क्षेत्रों में परीक्षण की आवृत्ति बढ़ाई जा सके, जहाँ पारंपरिक रक्त संग्रह करना कठिन है।

वैश्विक पहल और कार्यवाहियाँ

  • WADA संहिता का अनुपालन: भारत विश्व डोपिंग विरोधी संहिता का पालन करता है, जो विश्व स्तर पर सभी राष्ट्रीय डोपिंग विरोधी संगठनों (NADO) में परीक्षण और प्रतिबंध मानकों को सुसंगत बनाती है।
  • एथलीट बायोलॉजिकल पासपोर्ट (ABP): यह एक वैश्विक मानक है, जिसका उपयोग समय के साथ एथलीट की जैविक निगरानी के लिए किया जाता है, जिससे प्रत्यक्ष दवा के अंशों की अनुपस्थिति में भी ‘अप्रत्यक्ष’ डोपिंग संकेतों का पता लगाया जा सकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय भागीदारी: भारत ‘डिजाइनर ड्रग्स’ और संगठित तस्करी से निपटने के लिए जानकारी और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने हेतु क्षेत्रीय कार्यशालाओं तथा यूनेस्को सम्मेलनों में भाग लेता है।

भारत की डोपिंग विरोधी व्यवस्था में चिंताएँँ और चुनौतियाँ

  • व्यावहारिक और नैतिक संकट
    • ‘सहयोगी दल’ का शोषण: खिलाड़ी के अलावा, कोच, चिकित्सा कर्मचारी और फार्मासिस्टों का एक शोषक खेल तंत्र प्रायः दीर्घकालिक स्वास्थ्य की तुलना में पदक जीतने को प्राथमिकता देता है और जमीनी स्तर के उन खिलाड़ियों का शोषण करता है, जिनमें विरोध करने की शक्ति नहीं होती।
    • विकृत संस्कृति: खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स जैसे आयोजनों में खिलाड़ियों का डोपिंग परीक्षण से बचना यह दिखाता है कि खेलों में ईमानदारी की गहरी कमी है, जहाँ डोपिंग-विरोधी नियमों को नैतिक जिम्मेदारी के रूप में नहीं, बल्कि बचने योग्य बाधा के रूप में देखा जाता है।
    • व्यक्तिगत से संस्थागत दायित्व: राष्ट्रीय खेल प्रशासन अधिनियम, 2025 के तहत, जिम्मेदारी राष्ट्रीय खेल संघों (NSF) पर स्थानांतरित हो गई है, जिन्हें NADA द्वारा अनुमोदित शिक्षा मॉड्यूल को लागू करने में विफल रहने पर मान्यता और सरकारी निधि खोने का सामना करना पड़ सकता है।
  • तकनीकी और वैज्ञानिक बाधाएँ
    • अत्याधुनिक तकनीकों की प्रतिस्पर्द्धा: ‘सिलेक्टिव एंड्रोजन रिसेप्टर मॉड्युलेटर्स’ (SARM) और तेजी से शरीर से बाहर निकलने वाले “डिजाइनर” पेप्टाइड्स के तीव्र प्रसार ने लगातार तकनीकी पिछड़ापन उत्पन्न कर दिया है, जिससे प्रयोगशालाओं के बीच डोपिंग का पता लगाने की प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न हुई है।
    • क्षमता-जनसंख्या विरोधाभास: विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (WADA) द्वारा मान्यता प्राप्त एक राष्ट्रीय डोपिंग परीक्षण प्रयोगशाला (NDTL) पर निर्भरता 1.4 अरब खिलाड़ियों की आबादी के लिए अपर्याप्त है, जिससे रसद संबंधी देरी होती है और प्रतियोगिता से बाहर प्रभावी परीक्षण सीमित हो जाते हैं।
  • संस्थागत और कानूनी बाधाएँ 
    • स्वायत्तता का विरोधाभास: विधायी उद्देश्य के बावजूद, राज्य द्वारा वित्तपोषित ढाँचे के भीतर NADA और युवा मामले एवं खेल मंत्रालय के बीच एक वास्तविक निष्पक्ष संबंध बनाए रखना कठिन बना हुआ है, जिससे निष्पक्षता की धारणा प्रभावित होती है।
    • न्याय प्रक्रिया में गतिरोध: डोपिंग विरोधी अनुशासनात्मक पैनल (ADDP) में लंबित मामलों के कारण खिलाड़ी लंबे समय तक अस्थायी निलंबन में रहते हैं, जिससे पेशेवर अनिश्चितता की स्थिति पैदा होती है और समय पर न्याय के सिद्धांत का हनन होता है।

आगे की राह

  • विधायी सुधार
    • प्राप्तकर्ता से लेकर डोपिंग के सूत्रधार तक जवाबदेही: भारत को अपने कानूनी ढाँचे को इस तरह से पुनर्गठित करना चाहिए कि डोपिंग के सूत्रधारों को निशाना बनाया जा सके, न कि केवल एथलीटों को अंतिम उपयोगकर्ता मानकर।
    • डोपिंग को अपराध घोषित करना: खेल कानूनों में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि प्रदर्शन बढ़ाने वाली दवाओं (PED) की आपूर्ति में सहायता करने या उनसे लाभ कमाने वाले कोचों, डॉक्टरों और फार्मासिस्टों पर कड़ी आपराधिक कार्रवाई की जा सके।
    • नाबालिगों का संरक्षण: नाबालिगों को PED देने के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया जाए और ऐसे कृत्यों को केवल खेल उल्लंघन के स्थान पर “युवाओं को खतरे में डालना” माना जाए।
  • सांस्कृतिक प्रतिमान परिवर्तन
    • प्रतिस्पर्द्धा से अतिरिक्त: पदक-केंद्रित संस्कृति को मूल्यों पर आधारित खेल भावना में बदलना होगा, जो नैतिकता और खिलाड़ियों के कल्याण पर केंद्रित हो।
    • डोपिंग-विरोधी साक्षरता को मुख्यधारा में लाना: स्कूल और जमीनी स्तर से शुरू करते हुए, डोपिंग-विरोधी शिक्षा को राष्ट्रीय खेल शिक्षा नीति में एकीकृत करना।
    • “खेल भावना” का मापदंड: राष्ट्रीय खेल संघों (NSF) का मूल्यांकन केवल पदकों की संख्या के आधार पर ही नहीं, बल्कि ईमानदारी सूचकांक के आधार पर भी करना, जिसमें नशामुक्त खिलाड़ियों की सूची, पारदर्शी शिक्षा कार्यक्रम और राष्ट्रीय डोपिंग-विरोधी एजेंसी (NADA) के मानदंडों का अनुपालन शामिल हो।
  • तकनीकी प्रगति
    • मात्रा से शुद्धता की ओर: अधिक मात्रा में, कम प्रभाव वाले परीक्षणों से हटकर डेटा-आधारित, बुद्धिमत्ता-आधारित निगरानी की ओर अग्रसर हों।
    • एथलीट बायोलॉजिकल पासपोर्ट (ABP) का व्यापक उपयोग: उच्च जोखिम वाले ओलंपिक और गैर-ओलंपिक खेलों में एथलीट बायोलॉजिकल पासपोर्ट (ABP) को सार्वभौमिक बनाना ताकि दीर्घकालिक शारीरिक संकेतकों पर नजर रखी जा सके।
    • खेल विज्ञान का स्वदेशीकरण: भारतीय एथलीटों के लिए सुरक्षित और अनुपालन योग्य रिकवरी विकल्प प्रदान करने के लिए, वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन सहित प्रमाणित “इन्फॉर्म्ड स्पोर्ट” सप्लीमेंट्स के अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना।
  • संस्थागत जवाबदेही
    • स्वतंत्र निगरानी: NADA की परीक्षण वितरण योजना (TDP) का तृतीय-पक्ष पर्यवेक्षण अनिवार्य करना, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि परीक्षण एक पूर्व निर्धारित प्रशासनिक प्रक्रिया के बजाय गोपनीय जानकारी पर आधारित और जोखिम-आधारित हो।
    • विकेंद्रीकृत प्रयोगशाला अवसंरचना: प्रमुख तकनीकी और चिकित्सा संस्थानों (जैसे- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और अखिल भारतीय आयुर्वेद विज्ञान संस्थान (AIIMS)) के साथ साझेदारी करके उपग्रह नमूना संग्रह और प्रसंस्करण केंद्र स्थापित करना, जिससे राष्ट्रीय डोप परीक्षण प्रयोगशाला (NDTL) पर निर्भरता कम हो और रसद संबंधी विलंब समाप्त हो।

निष्कर्ष

भारत का डोपिंग संकट महज खिलाड़ियों की लापरवाही नहीं, बल्कि एक व्यवस्थागत विफलता है। विश्वसनीयता बहाल करने के लिए आपूर्ति शृंखला में जवाबदेही, ईमानदारी को प्राथमिकता देने वाली खेल संस्कृति, खुफिया जानकारी पर आधारित जाँच और संस्थागत स्वतंत्रता की आवश्यकता है, साथ ही प्रदर्शन उत्कृष्टता को नैतिकता, स्वास्थ्य और वैश्विक डोपिंग विरोधी मानदंडों के अनुरूप स्थापित करना भी आवश्यक है।

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