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कोयला खदान नियंत्रण (संशोधन) नियम, 2025

Lokesh Pal December 29, 2025 03:17 17 0

संदर्भ 

केंद्र सरकार ने कोयला और लिग्नाइट खदानों को खोलने के लिए अनुमोदन प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाने हेतु कोयला नियंत्रण नियम, 2004 में संशोधन करते हुए कोयला नियंत्रण (संशोधन) नियम, 2025 को अधिसूचित किया है।

संशोधन का औचित्य

  • यह संशोधन वर्ष 2020 से वाणिज्यिक कोयला खनन की शुरुआत और निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी के बाद बदलते नीतिगत वातावरण को दर्शाता है।
  • खनन, पर्यावरण और सुरक्षा कानूनों के तहत पहले से ही कई वैधानिक स्वीकृतियों की आवश्यकता होने के कारण, पूर्व CCO अनुमति काफी सीमा तक दोहराव वाली हो गई थी, जिससे शासन में आनुपातिक सुधार के बिना नियामकीय जटिलताएँ बढ़ रही थीं।
  • अनुमति-आधारित व्यवस्था से जवाबदेही-आधारित मॉडल की ओर बदलाव, जिसमें जिम्मेदारी उच्चतम कॉरपोरेट स्तर पर तय की गई हो।
  • इसका उद्देश्य वैधानिक अनुपालन बनाए रखते हुए कोयला क्षेत्र को अधिक व्यवसाय-अनुकूल बनाना है।

प्रावधानों में परिवर्तन (तुलनात्मक विवरण)

पहलू कोयला खदान नियंत्रण नियम, 2004 (पूर्व प्रावधान) कोयला खदान नियंत्रण (संशोधन) नियम, 2025 (नए प्रावधान)
खदान खोलने हेतु सक्षम प्राधिकारी किसी भी कोयला या लिग्नाइट खदान को खोलने से पूर्व केंद्र सरकार की लिखित अनुमति अनिवार्य थी। खदान के स्वामित्त्व कंपनी के निदेशक मंडल की पूर्व स्वीकृति पर्याप्त है; कंपनियों के लिए केंद्र सरकार की अनुमति समाप्त कर दी गई है।
कोयला संस्तर (Seam) या कोयला संस्तर के किसी भाग का खनन  प्रत्येक कोयला संस्तर या उसके भाग के लिए केंद्र सरकार की पृथक पूर्व अनुमति आवश्यक थी। कंपनी के निदेशक मंडल की स्वीकृति पर्याप्त है; केंद्र सरकार की अलग अनुमति आवश्यक नहीं।
विराम ( 180 दिन) के बाद पुनः संचालन 180 दिन या उससे अधिक के अंतराल के बाद संचालन पुनः प्रारंभ करने हेतु केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक थी। अनुमोदन तंत्र में अंतर है, कंपनियों के लिए बोर्ड का अनुमोदन; गैर-कंपनी संस्थाओं के लिए कोयला नियंत्रक संगठन का अनुमोदन।
कोयला नियंत्रक संगठन की भूमिका CCO की भूमिका अप्रत्यक्ष थी, अनुमोदन केंद्रीय सरकार के माध्यम से किए जाते थे; उद्घाटन के बाद रिपोर्टिंग का कोई दायित्व नहीं था। कोयला नियंत्रक संगठन की भूमिका अब निगरानी और सुविधा प्रदान करने की हो गई है; कंपनियों को खदान/कोयला संस्तर/खंड खोलने के 15 दिनों के भीतर कोयला नियंत्रक संगठन को सूचित करना होगा।

भारत का कोयला क्षेत्र

  • वैश्विक स्थिति: भारत विश्व में कोयला भंडार के मामले में पाँचवें स्थान पर है और कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
    • यह भारत की ऊर्जा और औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा करने में कोयले के निरंतर महत्त्व को दर्शाता है, विशेष रूप से विद्युत उत्पादन और प्रमुख उद्योगों के लिए।
  • कोयला भंडार: भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित राष्ट्रीय कोयला भंडार 2023 के अनुसार, अप्रैल 2023 तक भारत के अनुमानित कुल कोयला भंडार लगभग 378.21 अरब टन था।
  • भौगोलिक वितरण: भारत में कोयला भंडार अत्यधिक सघन रूप से कुछ राज्यों में केंद्रित हैं। ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ मिलकर देश के कुल कोयला भंडार का लगभग 69 प्रतिशत हिस्सा कवर करते हैं।

  • कानूनी एवं नीतिगत ढाँचा: कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 भारत में कोयला खनन पात्रता को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून बना हुआ है।
  • सुधार एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी
    • वर्ष 2014: नीलामी-आधारित कोयला आवंटन व्यवस्था शुरू हुई; निजी क्षेत्र को भागीदारी की अनुमति, परंतु खनन अपने ही अंतिम उपयोग संयंत्रों (विद्युत, इस्पात, सीमेंट) तक सीमित था।
    • वर्ष 2020 में एक प्रमुख नीतिगत बदलाव हुआ, जब सरकार ने व्यावसायिक कोयला खनन को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया, जो क्षेत्रीय उदारीकरण और प्रतिस्पर्द्धा की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
  • भारत में पाए जाने वाले कोयले के प्रकार
    • एन्थ्रेसाइट: सर्वोच्च श्रेणी का कोयला, उच्च स्थिर कार्बन सामग्री; सीमित मात्रा में उपलब्ध है।
    • बिटुमिनस कोयला: मध्यम श्रेणी का कोयला, उच्च ऊष्मीय मान; विद्युत उत्पादन में सर्वाधिक प्रयुक्त होता है।
    • सब-बिटुमिनस कोयला: मटमैले काले रंग का; लिग्नाइट की तुलना में अधिक ऊष्मीय मान।
    • लिग्नाइट: न्यूनतम श्रेणी का कोयला, कम कार्बन सामग्री, कम ऊर्जा घनत्व के कारण मुख्यतः खदान-मुख विद्युत संयंत्रों में उपयोग।

भारत के विकास में कोयले का महत्त्व

  • ऊर्जा संक्रमण में निरंतर प्रासंगिकता: अनुमान दर्शाते हैं कि वर्ष 2030 तक विद्युत उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी लगभग 55 प्रतिशत और वर्ष 2047 तक लगभग 27 प्रतिशत रहेगी, जो ऊर्जा विश्वसनीयता में इसकी संक्रमणकालीन भूमिका को रेखांकित करता है।
  • विद्युत उत्पादन का प्रमुख स्रोत: नवंबर 2024 तक, कोयला-आधारित विद्युत संयंत्र भारत की कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 46.88 प्रतिशत थे।
    • तेजी से बढ़ती माँग की पूर्ति: अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत की विद्युत खपत तीन गुना होने का अनुमान है, जिसमें कोयले की भूमिका महत्त्वपूर्ण रहेगी।
  • मुख्य उद्योगों को समर्थन: इस्पात उद्योग अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग 8 प्रतिशत कोयले से और सीमेंट क्षेत्र लगभग 5 प्रतिशत कोयले पर निर्भर है, जिससे अवसंरचना और विनिर्माण विकास में इसकी अनिवार्यता सिद्ध होती है।
  • रोजगार सृजन: कोयला खनन प्रत्यक्ष रोजगार का एक प्रमुख स्रोत है, जो देश की 350 से अधिक कोयला खदानों में लगभग 5 लाख श्रमिकों को आजीविका प्रदान करता है।

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