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गुणवत्ता मानक परीक्षण में विफल रही दवाएँ (Medicines failed quality standard testing)

Samsul Ansari December 27, 2023 10:59 168 0

संदर्भ

दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय ने गुणवत्ता मानक परीक्षण में विफल रही दवाओं को वापस लेने के लिए स्वास्थ्य विभाग को पत्र लिखा है।

संबंधित तथ्य

गाम्बिया केस स्टडी (Gambia Case Study)

  • वर्ष 2022 में, WHO ने भारत के चार  निम्न-मानक  (Substandard) कफ सिरप ब्रांड्स को चिह्नित किया, क्योंकि वे कथित तौर पर गाम्बिया में  हुई 66 बच्चों की मौत से जुड़े थे।
    • बाद में उत्पाद में संदूषकों के रूप में डायएथिलीन ग्लाइकॉल  (Diethylene Glycol)  और एथिलीन ग्लाइकॉल  (Ethylene Glycol) की अत्यधिक मात्रा पाई गई।
  • भारत ने गाम्बिया में बच्चों की मौत से जुड़ी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई के तहत नकली दवाओं पर कार्रवाई की और कुछ कंपनियों के लाइसेंस रद्द या निलंबित कर दिए।

  • निम्न-मानक गुणवत्ता वाली दवाओं की आपूर्ति: दिल्ली के उपराज्यपाल ने उन दवाओं की कथित आपूर्ति के मामले में CBI  जाँच की सिफारिश की जो गुणवत्ता मानक परीक्षणों में विफल रही हैं और दिल्ली सरकार के अस्पतालों में मरीजों के जीवन को खतरे में डालने की क्षमता रखती हैं।
  • निम्न-मानक गुणवत्ता वाली दवाएँ: जो दवाएँ निम्न-मानक गुणवत्ता वाली पाई गईं उनमें शामिल हैं:
    • सेफेलेक्सीन (Cephalexin): फेफड़ों और मूत्रमार्ग (Urinary tract)  के संक्रमण के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली महत्त्वपूर्ण जीवन रक्षक एंटीबायोटिक्स
    • डेक्सामेथासोन (Dexamethasone): फेफड़ों, जोड़ों में जानलेवा सूजन/शोथ (Inflammation) और शरीर में सूजन को ठीक करने के लिए एक स्टेरॉयड
    • लेवेटिरासेटम (Levetiracetam): मिर्गी (epilepsy)-विरोधी और चिंता(anxiety)-विरोधी मनोरोग औषधि।
    • एम्लोडिपाइन (Amlodipine) :उच्च रक्तचाप रोधी दवा।
  • नकली दवा जब्ती (Counterfeit Medicine Sieze): हाल ही में, कोलकाता में स्थित बिना लाइसेंस वाले परिसरों से प्रमुख निर्माताओं की लगभग ₹2 करोड़ की नकली दवाएँ जब्त की गईं।
  • नकली दवाओं का प्रचलन (Spurious Drugs Circulation): विश्व स्तर पर और भारत में, फार्मा उद्योग पिछले कुछ समय से नकली या जाली दवाओं (Counterfeit or spurious drugs) से संबंधित मुद्दों से जूझ रहा है। हालाँकि, महामारी के बाद इनमें वृद्धि हुई है।
    • भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग मात्रा (Volume) के संदर्भ में विश्व में तीसरे स्थान पर है। हालाँकि, नकली दवाओं (Counterfeit Medications) और ड्रग्स (Drugs) के बाजार में आने की भी कई घटनाएँ देखने को मिली हैं।

नकली दवाओं के बारे में

  • नकली दवाएँ (Counterfeit Drugs): धोखे से निर्मित या पैक की गई दवाओं को नकली/जाली/गलत/धोखाधड़ी (Counterfeit/fake/spurious/falsified) वाली दवा भी कहा जाता है क्योंकि उनमें या तो सक्रिय अवयवों की कमी होती है या गलत खुराक होती है।
  • वैश्विक मुद्दा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का भयावह आँकड़ा बताता है कि दुनिया भर में लगभग 10.5% दवाएँ या तो घटिया हैं या नकली (Subpar or fake) हैं।
    • यद्यपि नकली दवाओं से जुड़ी गतिवधियों का मुख्य विकासशील और कम आय वाले देश रहे हैं परंतु ये दवाएँ संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय देशों सहित विकसित देशों में भी पहुँच रही हैं।

भारत का फार्मा उद्योग

  • विश्व की फार्मेसी : भारत को अपनी दवाओं की कम लागत और उच्च गुणवत्ता के कारण ‘विश्व की फार्मेसी’ (Pharmacy of the World) के रूप में जाना जाता है।
    • भारत विश्व स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता और अपने किफायती टीकों तथा जेनेरिक दवाओं के लिए जाना जाता है।
  • वैश्विक लीडर (Global Leader): भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग पिछले नौ वर्षों से 9.43% की CAGR से बढ़ रहे एक संपन्न उद्योग के रूप में विकसित होने के बाद वर्तमान में मात्रा (Volume) के हिसाब से फार्मास्युटिकल उत्पादन में तीसरे स्थान पर है।
    • भारतीय फार्मास्युटिकल क्षेत्र विभिन्न टीकों की वैश्विक माँग का 50%, अमेरिका में जेनेरिक माँग का 40% और यूके में सभी दवाओं का 25% आपूर्ति करता है।
    • वर्तमान में, AIDS (Acquired Immune Deficiency Syndrome) से निपटने के लिए विश्व स्तर पर उपयोग की जाने वाली 80% से अधिक एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं की आपूर्ति भारतीय दवा कंपनियों द्वारा की जाती है।
  • USFDA के अनुरूप: भारत में सबसे अधिक फार्मास्युटिकल विनिर्माण सुविधाएँ हैं, जो अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (USFDA) के अनुरूप संचालित की जाती हैं और इसमें 500 सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredient- API) उत्पादक हैं, जो दुनिया भर के API बाजार का लगभग 8% हिस्सा बनाते हैं।
  • भविष्य की संभावनाएँ: EY FICCI की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय फार्मास्युटिकल बाजार के वर्ष 2030 के अंत तक $130 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।

भारत में दवाओं का विनियमन 

  • औषधि प्रसाधन सामग्री अधिनियम,1940 (Drug Cosmetics Act 1940): भारत में दवा आयात की निगरानी के लिए ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट पारित किया गया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी घटिया या नकली दवाएँ देश में प्रवेश न करें।
  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945: इन नियमों ने दवाओं को अलग-अलग अनुसूचियों में वर्गीकृत किया और प्रत्येक श्रेणी की बिक्री, भंडारण और नुस्खे (Prescription) पर नियम प्रदान किए।
    • अनुसूची M (Schedule M): यह औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों का एक हिस्सा है और  दवाइयों के  विनिर्माण तथा गुणवत्ता नियंत्रण के लिए अनिवार्यताओं का विस्तृत विवरण प्रदान करता है। 
  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO)
    • नोडल मंत्रालय: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार।
    • यह भारत में औषधियों का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (National Regulatory Authority) है।
    • कार्य
      • CDSCO देश में दवाओं के अनुमोदन, क्लिनिकल परीक्षणों के संचालन, दवाओं के लिए मानक निर्धारित करने और आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण के लिए उत्तरदायी है।
      • CDSCO राज्य नियामकों के साथ रक्त और रक्त उत्पादों जैसी महत्त्वपूर्ण दवाओं (Critical Drugs) की कुछ विशेष श्रेणियों के लाइसेंस देने के लिए संयुक्त रूप से उत्तरदायी है।
  • अच्छी विनिर्माण कार्यप्रणाली (Good Manufacturing Practices- GMP): वे विनिर्माण सुविधा के डिजाइन, कर्मचारियों के प्रशिक्षण और गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाओं जैसी चीजों को कवर करते हैं।
  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम (Drugs and Cosmetics Act): यह निर्यात फार्मास्युटिकल उत्पादों और सौंदर्य प्रसाधनों के आयात, उत्पादन, वितरण और बिक्री को नियंत्रित करता है।
  • फार्मा निर्यात-आयात कानून और विनियम: इन नियमों में आवश्यक आयातक-निर्यातक कोड (Importer-Exporter Code- IEC) प्राप्त करना और निर्यात दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं का पालन करना शामिल है।

नकली दवाओं से जुड़ी चुनौतियाँ

  • विनिर्माण के पैमाने (Scale of Manufacturing) की जटिलता: भारत का घरेलू दवा उद्योग लगभग 3,000 दवा कंपनियों और लगभग 10,500 विनिर्माण इकाइयों का एक नेटवर्क है। इस शृंखला के प्रत्येक चरण में सामग्री की गुणवत्ता की निगरानी आसान नहीं है।
  • आपूर्ति शृंखला की जटिलता: किसी दवा के निर्माण में शुरुआत से लेकर विपणन, वितरण और बिक्री के बाद के चरणों तक न केवल बड़ी संख्या में घटक तथा सामग्रियाँ (Ingredients and Materials) शामिल होती हैं, बल्कि आपूर्तिकर्ताओं, पैकेजिंग और लॉजिस्टिक्स संस्थाओं, थोक विक्रेताओं तथा वितरक, खुदरा विक्रेता एवं यहाँ तक कि पुनर्विक्रेता जैसे बहुत से हितधारक भी शामिल होते हैं।
    • यह खंडित पारिस्थितिकी तंत्र प्रवेश और निकास के कई बिंदुओं के लिए रास्ता खोलता है, जो सामग्री को मिलावट, संदूषण या निम्न गुणवत्ता के लिए सुभेद्य छोड़ देता है, और इसके दुरुपयोग की संभावना भी होती है।
  • परीक्षण सुविधाओं और निगरानी कर्मियों की कमी: भारत में पर्याप्त संख्या में परीक्षण सुविधाओं और निरीक्षकों तथा निगरानी तंत्र का अभाव है।
    • रिपोर्टों के अनुसार, नेशनल गुड लेबोरेटरी प्रैक्टिस प्रोग्राम के तहत, भारत में केवल 47 दवा परीक्षण सुविधाएँ और छह केंद्रीय प्रयोगशालाएँ हैं, जो प्रति वर्ष केवल 8,000 नमूनों का परीक्षण करती हैं। इसके अलावा, देश में केवल 20-30 परीक्षण प्रयोगशालाएँ हैं,  जो पुष्टि कर सकती हैं कि कोई दवा नकली है, असली है या अपेक्षाकृत खराब बनी है।
    • भारत में दवा निरीक्षकों की संख्या के मामले में कर्मचारियों की भारी कमी है और अभी भी माशेलकर समिति की प्रत्येक 50 विनिर्माण इकाइयों के लिए एक दवा निरीक्षक और प्रति 200 वितरण खुदरा विक्रेताओं के लिए एक दवा निरीक्षक रखने की सिफारिश को पूरा करना बाकी है।
  • धूमिल छवि (Dented Image): भारत को ‘दुनिया की फार्मेसी के रूप में जाना जाता है, लेकिन पिछले साल उज्बेकिस्तान में भारत निर्मित कफ सिरप के सेवन से लगभग 18 बच्चों की मौत से यह छवि धूमिल हो गई है।
    • भारत ने उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की इन मौतों की जाँच शुरू कर दी हैI 
  • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: COVID-19 महामारी के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के दौरान, वर्ष 2020 से 2021 तक घटिया और नकली चिकित्सा उत्पादों की घटनाओं में लगभग 47% की वृद्धि हुई।
    • COVID-19 महामारी ने कुछ श्रेणियों की दवाओं जैसे कि एंटीपायरेटिक्स (Antipyretics), रेमेडिसविर (Remdesivir), कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स (Corticosteroids), टीके आदि की माँग को बढ़ा दिया, जिससे नकली दवाओं की माँग और निर्माण में वृद्धि हुई।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: फार्मा उद्योग में घटिया उत्पादों से जीवन-घातक क्षति (Life-threatening Damage) की उच्च संभावना है। नकली उत्पाद रुग्णता (Morbidity) और मृत्यु दर में वृद्धि के अलावा, दवा प्रतिरोध  (Drug Resistance) क्षमता को भी खराब कर सकते हैं तथा उपचार विफलता का कारण बन सकते हैं।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है कि नकली और घटिया दवाओं से प्रतिवर्ष 1 मिलियन से अधिक मौतें होती हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर 21 अरब डॉलर का नुकसान होता है।
  • नकली दवाओं का फार्मा विकास पर प्रभाव (Counterfeits Affecting Pharma Growth): नकली दवाएँ और उनका प्रचलन फार्मा उद्योग के विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जो केवल गुणवत्ता और विश्वास के आधार पर ही फल-फूल सकता है।

नकली दवाओं को खत्म करने के लिए उठाए गए कदम

  • समाधान प्रदान करने के लिए टास्क फोर्स: भारत सरकार ने दवा जालसाजी की समस्या से निपटने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया। टास्क फोर्स ने अंततः निष्कर्ष निकाला कि ट्रैक और ट्रेस को प्रभावी बनाने के लिए, निम्नलिखित दो प्रणालियों को एक साथ लागू किया जाना चाहिए।
    • प्रत्येक प्राथमिक पैक के लिए एक विशिष्ट पहचान संख्या (Unique Identification Number) जो उपभोक्ताओं को दवा की पहचान करने की अनुमति देती है। 
    • एक 2-D बारकोडिंग जिसमें आपूर्ति शृंखला के प्रत्येक चरण में त्वरित डेटा पुनर्प्राप्ति के लिए सभी उत्पाद जानकारी शामिल होती है।
  • भारत सरकार का नया बारकोड विनियमन: भारत के प्रमुख 300 दवा ब्रांडों की पैकेजिंग में बारकोड या क्यूआर कोड का अनिवार्य अनुप्रयोग
    • नया नियम फार्मास्युटिकल कंपनियों से इस विशिष्ट उत्पाद पहचान प्रणाली का सख्ती से पालन करने की माँग करता है, जिसका अनुपालन न करने पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।
    • इन बारकोड में दवा का नाम, ब्रांड नाम, निर्माता का विवरण, बैच नंबर, विनिर्माण और समाप्ति तिथियाँ और विनिर्माण लाइसेंस नंबर सहित महत्त्वपूर्ण जानकारी होगी।
  • विधायी उपाय (Legislative Measures): भारत में दवा जालसाजों को दंडित करने के लिए बौद्धिक संपदा कानून (ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 और पेटेंट अधिनियम, 1970) के तहत प्रावधान है।
  • WHO द्वारा किए गए उपाय: WHO ने वर्ष 1995 में नकली दवाओं पर एक परियोजना शुरू की। इसके अलावा, वर्ष 2006 में, WHO द्वारा अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा उत्पाद रोधी जालसाजी कार्यबल (International Medical Products Anti-Counterfeiting Taskforce) की स्थापना की गई, और तब से यह नकली दवाओं से निपटने के लिए संगठन के प्रयासों का प्राथमिक माध्यम बन गया है।

आगे की राह

  • विश्व की फार्मेसी के रूप में भारत: भारत की छवि को “विश्व की फार्मेसी” के रूप में और मजबूत करने के लिए, सभी हितधारकों को मिलकर काम करना आवश्यक है, जिससे नकली दवाएँ जैसे मुद्दे इस छवि को कमजोर न कर सकें।

भारत से निर्यात किए जाने वाले कफ सिरप के लिए नए परीक्षण पैरामीटर

  • विश्लेषण प्रमाण-पत्र (Certificate of Analysis- CoA):  सरकार ने भारत से निर्यात के लिए निर्धारित कफ सिरप के लिए अद्यतन परीक्षण पैरामीटर पेश किए हैं, जिसके लिए नामित प्रयोगशालाओं से विश्लेषण प्रमाण-पत्र (COA) प्राप्त करना आवश्यक हो गया है। 
  • नामित प्रयोगशालाएँ (Designated Labs): निर्दिष्ट केंद्र सरकार की प्रयोगशालाओं में भारतीय फार्माकोपिया आयोग ( Indian Pharmacopoeia Commission), क्षेत्रीय दवा परीक्षण प्रयोगशाला (RDTL – चंडीगढ़), और  NABL (परीक्षण और प्रत्यायन/प्रमाणन प्रयोगशालाओं के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories-NABL) राज्य सरकारों की मान्यता प्राप्त दवा परीक्षण प्रयोगशालाएँ शामिल हैं।

  • फार्मास्युटिकल उत्पाद भारत के कुल व्यापारिक निर्यात में लगभग 8% और भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2% का योगदान करते हैं। फार्मास्युटिकल उत्पादों के एक विश्वसनीय, भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की छवि की रक्षा करना भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को साकार करने के लिए अत्यावश्यक है।
  • दवाओं की जालसाजी से बचाव में विभिन्न हितधारकों की भूमिका: उपभोक्ताओं, फार्मासिस्टों, फार्मास्यूटिकल कंपनियों और नियामकों की भूमिका इसमें महत्त्वपूर्ण है कि लोगों को असली एवं गुणवत्तापूर्ण दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
    • उदाहरण के लिए, टास्क फोर्स की सिफारिशों के आधार पर, भारत ने प्रत्येक दवा पैक पर एक विशिष्ट पहचान संख्या और एक बार कोड शामिल करने के सुझाव को लागू किया है। कोई भी बोतल या पैकेज के पीछे का यूनिक कोड  ड्रग टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (Drug Technical Advisory Board’s -DTAB) के नंबर पर SMS भेजकर इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि कर सकता है।
  • नशीली दवाओं की जालसाजी को रोकने के लिए प्रौद्योगिकियों का उपयोग: मूल्य शृंखला के सभी स्तरों पर उपयोग की जाने वाली सामग्री और अवयवों पर नजर रखते हुए प्रौद्योगिकी को अपनाया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, बारकोड,  RFIDs और होलोग्राम के साथ-साथ ‘टेंपर एविडेंट सील’ (tamper-evident seal) के साथ फार्मा उत्पादों के बड़े पैमाने पर क्रमांकन द्वारा चिह्नित ट्रैक और ट्रेस प्रौद्योगिकियों को तेजी से मानक अभ्यास बनना चाहिए।
  • ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग: ब्लॉकचेन तकनीक लेनदेन प्रसंस्करण के लिए एक विकेंद्रीकृत पीयर-टू-पीयर आर्किटेक्चर का उपयोग करती है जिसमें रिकॉर्ड से छेड़छाड़ (Record-Tampering) की बहुत कम संभावना होती है।
    • इससे सभी लेनदेन का स्थायी रिकॉर्ड बनाए रखना संभव हो जाएगा, जो इसमें शामिल सभी पक्षों के लिए पहुँच योग्य होगा और इसमें स्थान, डेटा, गुणवत्ता और मूल्य निर्धारण जैसे विवरण शामिल होंगे।
    • आपूर्ति शृंखला में ब्लॉकचेन तकनीक के कार्यान्वयन से इसे सुरक्षित, पारदर्शी और विकेंद्रीकृत बनाने में मदद मिलेगी, जिससे संदिग्ध क्षेत्रों को ट्रैक करने और वास्तविक दवाओं की आपूर्ति शृंखला में किसी भी अंतराल को समाप्त करने की क्षमता सुनिश्चित करते हुए व्यय में बचत होगी।
  • जागरूकता अभियान (Awareness Campaigns): रोगियों और आम लोगों को उन जोखिमों और एहतियाती कदमों के बारे में जागरूक करने के लिए एक देशव्यापी अभियान होना चाहिए, जो उनके द्वारा खरीदी जाने वाली दवाओं की प्रामाणिकता को सत्यापित करने के लिए उठाए जाने चाहिए।

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