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क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (credit rating agency)

Samsul Ansari December 27, 2023 06:30 134 0

नोट : प्रस्तुत लेख The Indian Express में प्रकाशित “Why has the Indian government criticised the methodologies of global credit rating agencies?” पर आधारित है

संदर्भ:

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने आर्थिक नीति के विभिन्न पहलुओं पर वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए “री-एग्जामिनिंग नैरेटिव्स: ए कलेक्शन ऑफ एसेज़” शीर्षक से एक दस्तावेज़ जारी किया।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता : क्रेडिट रेटिंग एजेंसी और उससे संबंधित चुनौतियाँ तथा आगे की राह।

भारत की रेटिंग:

  • भारत, वर्तमान में सबसे कम निवेश ग्रेड रखता है और महामारी की शुरुआत के बाद से इसके आर्थिक मैट्रिक्स में पर्याप्त सुधार देखा गया है।
  • भारत मेंक्रेडिट रेटिंग एजेंसी(CRA): वर्तमान में भारत में सात पंजीकृत सीआरए हैं- क्रिसिल, केयर, आईसीआरए, एसएमआरईए, ब्रिकवर्क रेटिंग, इंडिया रेटिंग और रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड।
  • वैश्विक क्रेडिट रेटिंग उद्योग: यह तीन प्रमुख एजेंसियों के साथ अत्यधिक केंद्रित है-मूडीज़, स्टैंडर्ड एंड पुअर्स, और फिच।

विभिन्न क्रेडिट रेटिंग स्केल:

  • क्रेडिट रेटिंग कॉर्पोरेट वित्तीय उपकरणों की साख का आकलन करने के लिए वर्णमाला प्रतीकों (AAA, AA, A, B आदि) का उपयोग करती है।
  • उच्च रेटिंग डिफ़ॉल्ट के कम जोखिम का संकेत देती है, जिसमें AAA अत्यधिक अनुकूल है, जो मजबूत वित्तीय क्षमता का संकेत देता है।
    • BB से नीचे की रेटिंग खराब साख का सूचक मानी जाती है।
  • क्रेडिट रेटिंग प्रणाली में सुधार की आवश्यकता: सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (CRA) को अपनी संप्रभु रेटिंग प्रक्रिया में सुधार करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
    • विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के डिफ़ॉल्ट जोखिम का सटीक प्रतिनिधित्व करने के लिए यह सुधार आवश्यक है।

रेटिंग एजेंसी के बारे में: 

  • रेटिंग एजेंसियाँ सामान्यतः ऋण, इक्विटी अथवा किसी देश की क्रेडिट योग्यता अथवा उसकी क्षमता का आकलन करने का कार्य करती हैं।
  • ये एजेंसियाँ यह आकलन करती हैं कि किसी देश की इक्विटी अथवा ऋण वित्तीय रूप से स्थिर है अथवा यह कम या उच्च जोखिम स्तर पर है।
  • इन रिपोर्टों के माध्यम से निवेशकों को यह अनुमान लगाने में मदद मिलती है कि उन्हें अपने निवेश पर रिटर्न की प्राप्ति होगी अथवा नहीं।
  • किसी देश की कंपनियों में निवेश करने के लिए निवेशक इन एजेंसियों द्वारा जारी किए गए रिपोर्टों का आकलन करते हैं और अनुमान लगाते हैं कि इन कंपनियों में निवेश किया जाना चाहिए अथवा नहीं।

रेटिंग एजेंसियों द्वारा उपयोग की जाने वाली पद्धतियों से संबंधित मुद्दे:

  • विकासशील देशों के खिलाफ भेदभाव: क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के मूल्यांकन में विकासशील देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कल्याण और विकास कार्यों की अनदेखी की जाती है।
  • भार निर्धारित करने में पारदर्शिता का अभाव: रेटिंग एजेंसियाँ विचाराधीन प्रत्येक मानदंड के लिए निर्दिष्ट भार को पारदर्शी रूप से संप्रेषित नहीं करती हैं।
  • मूल्यांकन के लिए विशेषज्ञों का गैर-पारदर्शी चयन: रेटिंग मूल्यांकन के लिए जिन विशेषज्ञों से परामर्श लिया जाता है, उन्हें आम तौर पर गैर-पारदर्शी तरीके से चुना जाता है।
  • आत्मनिष्ठ आकलन पर अत्यधिक निर्भरता: फिच द्वारा संप्रभु जोखिम निर्णय में विश्व बैंक के विश्वव्यापी शासन संकेतक (WGI) पर अत्यधिक निर्भरता शामिल हैऔर गुणात्मक ओवरले का समावेशन शामिल है।
  • कथित संस्थागत ताकत का प्रभुत्व: समग्र शासन संकेतकों और कथित संस्थागत ताकत का प्रभाव, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए अपग्रेड का निर्धारण करने में अन्य व्यापक आर्थिक मौलिक सिद्धांतों के संयुक्त प्रभाव से अधिक है।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ:

  • अत्यधिक प्रतिस्पर्धा: भारत में, कई एजेंसियाँ एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं जिसके कारण वितरित उत्पाद की पारदर्शिता और गुणवत्ता में गिरावट आई है।
  • कंपनियों द्वारा धोखाधड़ी वाले डेटा का संचार: कंपनियाँ रेटिंग एजेंसियों को धोखाधड़ी वाले डेटा प्रस्तुत करती हैं, जिसके कारण कुछ कदाचार पकड़ में नहीं आ पते हैं, जिसकी वजह से गलत जानकारी का प्रसार होता है।
  • जारीकर्त्ता भुगतान मॉडल संबंधी चिंताएँ: इसके तहत, रेटिंग प्राप्त करने वाली कंपनी रेटिंग एजेंसी को भुगतान करती है, यह एजेंसी को देनदार की ऋण चुकाने की क्षमता को नजरअंदाज करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
    • इससे ‘हितों के मध्य टकराव’ भी होता है जिसके परिणामस्वरूप विश्लेषण की गुणवत्ता या एजेंसियों द्वारा दी गई रेटिंग की निष्पक्षता से समझौता होता है।

आगे की राह:

  • रेटिंग एजेंसियों की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता में सुधार: रेटिंग एजेंसियों को अपनी प्रक्रियाओं को पारदर्शी रूप से प्रकट करने और अनिश्चित निर्णय लेने से बचने की आवश्यकता है।
  • नियामकीय सुदृढ़ीकरण: रेटिंग एजेंसियों के लिए एक समर्पित नियामक स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • सीआरए का रोटेशन: रेटिंग एजेंसियों के अनिवार्य रोटेशन को शुरू किया जाना चाहिए क्योंकि इससे जारीकर्त्ता और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के मध्य दीर्घकालिक संबंधों के नकारात्मक परिणामों से बचने में मदद मिलेगी।
  • वैकल्पिक भुगतान मॉडल: सेबी को आरबीआई और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के परामर्श से जारीकर्त्ता द्वारा देय उपयुक्त रेटिंग शुल्क संरचना का निर्धारण करना चाहिए।

                                                                                     News Source: Indian Express

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