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भारत में अधिकरण (tribunal in india)

Samsul Ansari January 02, 2024 05:50 400 0

संदर्भ

उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि शासकीय कानूनों के सख्त मापदंडों के तहत काम करने वाले अधिकरण सरकार को नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकते हैं।

 संबंधित तथ्य

  • उच्चतम न्यायालय का यह स्पष्टीकरण सशस्त्र बल अधिकरण (The Armed Forces Tribunal-AFT) के संदर्भ में आया, जिसमें सरकार को जज एडवोकेट जनरल (Judge Advocate General) की नियुक्ति के लिए एक नीति स्थापित करने का निर्देश दिया गया था।
  • निर्णय में कहा गया है कि रक्षा कर्मियों की सेवा या उनके स्थायीकरण (Regularization) के संबंध में किसी योजना या नीति का निर्माण अथवा स्वीकृति पर “सरकार का एकमात्र विशेषाधिकार” है।

सशस्त्र बल अधिकरण (The Armed Forces Tribunal-AFT) 

  • स्थापना: सशस्त्र बल अधिकरण की स्थापना ‘सशस्त्र बल अधिकरण अधिनियम, 2007’ के तहत की गई थी।
  • उद्देश्य
    • ‘सेना अधिनियम, 1950’, ‘नौसेना अधिनियम, 1957’ और ‘वायु सेना अधिनियम, 1950’ के अधीन व्यक्तियों के संबंध में आयोग, नियुक्तियों, नामांकन और सेवा की शर्तों के संबंध में विवादों और शिकायतों के निर्णय के लिए प्रावधान करना।
    • उक्त अधिनियमों के तहत कार्रवाई के मामलों जैसे- कोर्ट-मार्शल के आदेशों, निर्णयों या सजाओं और उससे जुड़े या उसके आकस्मिक मामलों के विरुद्ध अपील का मंच प्रदान करना।

अधिकरणों के बारे में 

  • अधिकरण न्यायिक या अर्द्ध-न्यायिक कार्यों/कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए स्थापित संस्थाएँ हैं।
  • उद्देश्य: न्यायपालिका पर मुकदमों का बोझ कम करना या तकनीकी मामलों के लिए विषय में विशेषज्ञता लाना है।
  • संवैधानिक प्रावधान: वर्ष 1976 में, 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद-323A और 323B को भारत के संविधान में शामिल किया गया था।
    • अनुच्छेद-323A ने संसद को लोक सेवकों की भर्ती और सेवा शर्तों से संबंधित मामलों के निर्णय के लिए प्रशासनिक अधिकरण (केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर) गठित करने का अधिकार दिया है।
      • उदाहरण के लिए, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT)और राज्य प्रशासनिक अधिकरण (SAT)।
    • अनुच्छेद-323B के तहत, संसद और राज्य विधानमंडल दोनों को निम्नलिखित मामलों से संबंधित विवादों के निपटारे के लिए अधिकरण की स्थापना के लिए अधिकृत किया गया है। 
  • कराधान, विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात, औद्योगिक और श्रम, भूमि सुधार। 
    • वर्तमान में, अधिकरणों का निर्माण उच्च न्यायालयों के विकल्प के रूप में और उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ दोनों के रूप में किया गया है।
    • पहले मामले में, अधिकरणों [जैसे प्रतिभूति अपीलीय अधिकरण (Securities Appellate Tribunal)] के निर्णयों की अपील सीधे उच्चतम न्यायालय में की जाती है।
    • जबकि दूसरे  मामले में (जैसे कि कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के तहत अपीलीय बोर्ड), अपीलों की सुनवाई संबंधित उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है।
  • अधिकरणों की आवश्यकता
    • अधिकरणों की स्थापना का उद्देश्य पारंपरिक अदालतों की तुलना में तेजी से निर्णय के लिए एक मंच प्रदान करने के साथ-साथ कुछ विषय मामलों पर विशेषज्ञता प्रदान करना है।
      • भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा एकीकृत प्रकरण प्रबंधन प्रणाली (Integrated Case Management System-ICMIS) से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, 1 जुलाई, 2023 तक उच्चतम न्यायालय में 69,766 मामले लंबित थे।

केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (Central Administrative Tribunal-CAT)

  • CAT की स्थापना वर्ष 1985 में दिल्ली में मुख्य पीठ के साथ की गई थी।
  • CAT एक बहु-सदस्यीय निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष और अन्य सदस्य होते हैं। 
  • CAT भर्ती और इसके अंतर्गत आने वाले लोक सेवकों के सभी सेवा मामलों के संबंध में मूल क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है।
  • इसका अधिकार क्षेत्र अखिल भारतीय सेवाओं, केंद्रीय सिविल सेवाओं, केंद्र के अधीन सिविल पदों और रक्षा सेवाओं के नागरिक कर्मचारियों तक फैला हुआ है।

राज्य प्रशासनिक अधिकरण (State Administrative Tribunals-SAT)

  • वर्ष 1985 का प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम केंद्र सरकार को संबंधित राज्य सरकारों के विशिष्ट अनुरोध पर राज्य प्रशासनिक अधिकरण (SAT) स्थापित करने का अधिकार देता है।
  • SAT के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श के बाद की जाती है।

भारतीय अधिकरण प्रणाली: संक्षिप्त घटनाक्रम 

  • 1941: भारत में पहले अधिकरण के रूप में आयकर अपीलीय अधिकरण की स्थापना की गई थी।
  • 1969: प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर पर लोक सेवा अधिकरण स्थापित करने की सिफारिश की।
  • 1974: छठे विधि आयोग (1974) ने उच्च न्यायालयों में मामलों के निर्णय के लिए एक अलग उच्चाधिकार प्राप्त अधिकरण और आयोग स्थापित करने की सिफारिश की।
  • 1976: 42वें संशोधन ने संसद को निम्नलिखित का गठन करने का अधिकार दिया:
    • लोक सेवकों की भर्ती और सेवा शर्तों से संबंधित मामलों के निर्णय के लिए प्रशासनिक अधिकरण (केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर) का गठन करना;
    •  औद्योगिक विवादों, कराधान (जैसे कर लगाना और संग्रह करना) और विदेशी मुद्रा सहित कुछ विषयों के निर्णय के लिए अन्य अधिकरण।
  • 2017: वित्त अधिनियम, 2017 ने कार्यात्मक समानता के आधार पर अधिकरणों का विलय करके अधिकरण प्रणाली को पुनर्गठित किया और अधिकरणों की संख्या 26 से घटाकर 19 कर दी गई। 

सशस्त्र बल अधिकरण (The Armed Forces Tribunal-AFT)

  • AFT की स्थापना सशस्त्र बल अधिकरण अधिनियम, 2007 के तहत की गई थी। इसे सेना अधिनियम, 1950, नौसेना अधिनियम, 1957 और वायु सेना अधिनियम, 1950 के तहत व्यक्तियों के संबंध में आयोग, नियुक्तियों, नामांकन और सेवा की शर्तों से संबंधित विवादों और शिकायतों के समाधान या निपटान का अधिकार दिया गया है।
  • यह उपरोक्त अधिनियमों के तहत आयोजित किए गए या उससे जुड़े मामलों के लिए कोर्ट मार्शल के आदेशों, निष्कर्षों या वाक्यों के विरुद्ध अपीलों पर भी विचार कर सकता है।
  • मुख्य पीठ: नई दिल्ली। 
  • क्षेत्रीय पीठ: चंडीगढ़, लखनऊ, कोलकाता, गुवाहाटी, चेन्नई, कोच्चि, मुंबई, जबलपुर, श्रीनगर और जयपुर।
  • संरचना: प्रत्येक पीठ में एक न्यायिक सदस्य और एक प्रशासनिक सदस्य शामिल होते हैं।
    • न्यायिक सदस्य: उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं।
    • प्रशासनिक सदस्य: सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त सदस्य होते हैं, जिन्होंने कम-से-कम तीन साल या उससे अधिक की अवधि के लिए मेजर जनरल/समान या उससे अधिक का पद धारण किया है।
    • जज एडवोकेट जनरल (JAG), जिन्होंने कम-से-कम एक वर्ष के लिए नियुक्ति पर सेवा दी है, वे भी प्रशासनिक सदस्य के रूप में नियुक्त होने के हकदार हैं।
  • नियम और प्रक्रिया: अधिकरण अपनी कार्यवाही सशस्त्र बल अधिकरण (प्रक्रिया) नियम, 2008 के अनुसार करेगा। अधिकरण आम तौर पर भारत के उच्च न्यायालयों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का पालन करेगा।

अधिकरणों के सामने चुनौतियाँ

  • अधिकरणों की संवैधानिक क्षमता: अधिकरणों की संवैधानिक स्थिति पर सवाल उठाया गया है। विशेष रूप इस बात पर कि क्या उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार को हटाया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 1986 में, उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संसद उच्च न्यायालयों का विकल्प बना सकती है, बशर्ते कि उनकी प्रभावशीलता उच्च न्यायालयों के समान हो।
  • अधिकरणों की स्वतंत्रता: वर्ष 2010 में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भारत में अधिकरणों ने पूर्ण स्वतंत्रता नहीं प्राप्त की है।
    • वर्ष 2014 में, राष्ट्रीय कर अधिकरण अधिनियम, 2005 की समीक्षा करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि जब किसी अधिकरण को उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार दिया जाता है तो उस अधिकरण को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए।
  • प्रमुख अधिकरणों में लंबित नियुक्ति: कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति (2015 ) ने उल्लेख किया था कि कई अधिकरणों (जैसे साइबर अपीलीय अधिकरण और सशस्त्र बल अधिकरण) में रिक्तियाँ हैं, जो उन्हें निष्क्रिय बनाती हैं।
    • 3 मार्च, 2021 तक, सशस्त्र बल अधिकरण में न्यायिक और प्रशासनिक सदस्यों के कुल 34 स्वीकृत पदों में से 23 पद खाली थे।
  • निर्दिष्ट प्रक्रिया का अभाव: प्रशासनिक न्यायनिर्णय निकायों (Administrative Adjudicatory Bodies) के पास नियमों और प्रक्रियाओं की कोई स्पष्ट संहिता नहीं है, जिससे , प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के उल्लंघन की संभावना बनी रहती है।
  • मामलों की बढ़ती लंबितता: कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, 31 दिसंबर, 2022 तक CAT की विभिन्न बेंचों में 80,545 मामले लंबित हैं।
    • इनमें से, 16,661 मामले एक वर्ष तक; 46,534 एक से पाँच वर्ष तक; 16,000 पाँच से 10 वर्ष तक और 1,350 10 वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं।
  • अपर्याप्त अवसंरचना: कई अधिकरणों के पास अपने कार्यों को कुशलता से करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढाँचा भी नहीं है, जिसके कारण लंबित मामलों की दर अधिक होती है और इस प्रकार अधिकरण त्वरित न्याय देने में असफल साबित होते हैं।

अधिकरणों से संबंधित उच्चतम न्यायालय के प्रमुख निर्णय निर्दिष्ट सिद्धांत 

(Principles specified)

  • एस. पी. संपत कुमार आदि बनाम भारत संघ एवं अन्य, 1986
  • यह संवैधानिक रूप से वैध है कि संसद कुछ मामलों पर अधिकार क्षेत्र के साथ उच्च न्यायालयों के लिए एक वैकल्पिक संस्था का निर्माण करे, बशर्ते कि वैकल्पिक निकाय की प्रभावकारिता उच्च न्यायालय के समान हो।
  • आर. गांधी बनाम भारत संघ एवं अन्य, 2010
  • संसद संघ सूची के विषयों पर उच्च न्यायालयों के लिए एक वैकल्पिक तंत्र बना सकती है।
  • मद्रास बार एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 2020
  • अधिकरण के कामकाज और प्रशासन के साथ-साथ नियुक्तियों की निगरानी के लिए राष्ट्रीय अधिकरण आयोग का गठन किया जाना चाहिए।
  • मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ, 2021
  • SC ने सदस्यों के लिए चार वर्ष के कार्यकाल और न्यूनतम 50 वर्ष की आयु के प्रावधानों को रद्द कर दिया।

आगे की राह

  • राष्ट्रीय अधिकरण आयोग (National Tribunal Commission-NTC): राष्ट्रीय अधिकरण आयोग का प्रस्ताव विधि पर संसदीय स्थायी समिति की वर्ष 2023 में प्रकाशित 74वीं रिपोर्ट में उठाया गया था। इस रिपोर्ट में राष्ट्रीय अधिकरणों के कामकाज और नियुक्तियों से जुड़े कुछ मुद्दों को संबोधित करने के लिए NTC  के गठन की सिफारिश की गई थी। 
  • न्यायिक प्रभाव आकलन (Judicial Impact Assessment): वर्ष 2019 में, अधिकरणों के एकीकरण/विलय की समीक्षा करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अधिकरणों के एकीकरण का विश्लेषण करने के लिए न्यायिक प्रभाव आकलन आयोजित किया जाना चाहिए।
  • योग्यता: भारत संघ बनाम आर. गांधी मामले में, उच्चतम न्यायालय ने रेखांकित किया कि जब किसी न्यायालय का मौजूदा क्षेत्राधिकार किसी अधिकरण को हस्तांतरित किया जाता है, तो उसके सदस्य ऐसे व्यक्ति होने चाहिए, जो यथासंभव न्यायालय के पद, स्थिति और क्षमता के बराबर पद, क्षमता एवं ओहदे (Status) के हों।
  • स्वतंत्रता: सभी अधिकरणों के लिए प्रशासनिक सहायता कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा प्रदान की जानी चाहिए।
    • न तो अधिकरण और न ही उसके सदस्य अपने संबंधित प्रायोजक/मूल मंत्रालयों या विभागों से कोई सुविधा प्राप्त करेंगे अथवा माँगेंगे।
  • केस प्रबंधन प्रणाली (Case Management System): अधिकरण को एक उन्नत केस सूचना प्रणाली (Advance Case Information System) अपनानी चाहिए, जो वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामलों की सुनवाई और अधिकरण के कामकाज के पूर्ण डिजिटलीकरण की सुविधा प्रदान करती है।
    • उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (National Judicial Data Grid-NJDG) एक ऑनलाइन डेटाबेस है, जिसे वर्ष 2020 में “ई-कोर्ट्स प्रोजेक्ट” (e-Courts Project) के हिस्से के रूप में स्थापित किया गया था।

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