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काई चटनी को जीआई टैग (Kai chutney)

Samsul Ansari January 05, 2024 10:01 221 0

संदर्भ

2 जनवरी, 2024 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के आदिवासी समुदाय द्वारा रेड वीवर (Red Weaver) चींटियों से निर्मित सिमिलीपाल काई चटनी को भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त हुआ है।

संबंधित तथ्य

  • आवेदन: मयूरभंज काई सोसायटी लिमिटेड द्वारा वर्ष 2020 में ‘वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक ’ (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 की धारा 13 की उपधारा (1) के तहत पंजीकरण के लिए आवेदन किया गया था।
  • लगभग 500 आदिवासी परिवा काई पिंपुडी (रेड वीवर चींटी) को एकत्रित करके और उनसे बनी चटनी बेचकर अपनी जीविका चला रहे हैं।
  • उच्च माँग: उच्च माँग के कारण वे ग्रामीण बाजारों और हाटों (मेलों) में रेड वीवर चींटियों को बड़ी मात्रा में बेचने का प्रबंध करते हैं। 
    • मूल्य: एक किलोग्राम जीवित काई पिंपुडी की कीमत लगभग 400-600 रुपये और चटनी की कीमत 1,000 रुपये है।

काई चटनी

  • परिचय
    • काई चटनी  रेड वीवर चींटियों से तैयार की जाती है और ओडिशा के मयूरभंज जिले में अधिकतर आदिवासी लोगों के बीच लोकप्रिय है।
    • आवश्यकता पड़ने पर चींटियों के पत्ते पर स्थित घोंसलों को पेड़ों से तोड़कर पत्तियों और मलबे को छाँटकर अलग किया जाता है।
    • इसके बाद नमक, अदरक, लहसुन और मिर्च को मिलाकर और पीसकर चटनी तैयार की जाती है।
    • गर्म चटनी का स्वाद तीखा और खट्टा होता है ।

महत्त्व

  • यह सामान्य सर्दी, काली खाँसी, फ्लू से छुटकारा पाने और भूख बढ़ाने तथा आँखों की रोशनी को प्राकृतिक रूप से बढ़ाने में मदद करती है।
  • इससे आदिवासी उपचारकर्ता औषधीय तेल भी तैयार करते हैं। इसका उपयोग बेबी ऑयल के रूप में किया जाता है और यह गठिया, दाद व अन्य त्वचा रोगों को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाता है।

काई (रेड वीवर चींटी) चींटियाँ

  • इन्हें वैज्ञानिक रूप से ओकोफिला स्मार्गडीना कहा जाता है।
  • काई के घोंसले आमतौर पर आकार में अंडाकार होते हैं और एक छोटे पत्ते से लेकर कई पत्तियों से मिलकर बने होते हैं। जिनकी लंबाई आधे मीटर से भी अधिक हो सकती है।
  • इसके परिवार में तीन श्रेणी के सदस्य होते हैं- श्रमिक, प्रमुख श्रमिक और रानियाँ।
    • श्रमिक और प्रमुख श्रमिक नारंगी रंग के होते हैं।
  • ये छोटे कीड़े और अन्य अकशेरुकियों से भोजन प्राप्त करते हैं, इनके शिकार मुख्य रूप से बीटल, मक्खियाँ और हाइमनोप्टेरान होते हैं।
  • काई ‘बायो-कंट्रोल एजेंट’ होती हैं। ये आक्रामक होती हैं और अपने क्षेत्र में प्रवेश करने वाले अधिकांश ‘आर्थ्रोपोड्स’ का शिकार करती हैं।
  • ये कई अलग-अलग कीटों के खिलाफ विभिन्न फसलों की रक्षा करने में सक्षम हैं। इस प्रकार वे अप्रत्यक्ष रूप से रासायनिक कीटनाशकों के विकल्प के रूप में उपयोग की जाती हैं।

भौगोलिक संकेतक

  • GI एक संकेतक है, जिसका उपयोग एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाली विशेषताओं वाली वस्तुओं को पहचान प्रदान करने के लिए किया जाता है।
  • ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999  भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतकों के पंजीकरण एवं बेहतर सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है।

जीआई टैग प्राप्त होने के लाभ

  • यह सिमिलीपाल टाइगर रिजर्व के महत्त्व को बढ़ावा देने में सहायता करेगा, यह कई वनस्पतियों और जीवों का परिवेश है एवं वर्ष 2009 से यूनेस्को के ‘वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व’ का हिस्सा है।
  • इस मान्यता से इस खाद्य पदार्थ के अद्वितीय गुणों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद मिलेगी।

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