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सिविल सोसायटी संगठन (Civil Society Organization)

Samsul Ansari January 08, 2024 03:22 579 0

संदर्भ

नागरिक समाज संगठनों ने विकास प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालाँकि यह विचार कि हस्तक्षेप आत्मनिर्भर हो सकते हैं, अवास्तविक है।

सिविल सोसायटी संगठनों (CSO) के प्रकार

  • गैर-सरकारी संगठन (NGO): वे पेशेवर संगठन हैं जो निजी तौर पर संचालित किये जाते हैं जो ‘नॉट फॉर प्रॉफिट’, स्वशासी एवं स्वैच्छिक होते हैं।
    • वे सरकार के साथ पंजीकृत होते हैं लेकिन स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।
    • वे स्वच्छता, आवास, महिला सशक्तिकरण और मानसिक स्वास्थ्य जैसे कई मुद्दों पर काम करते हैं।
  • समुदाय-आधारित संगठन (Community-based organizations- CBOs): CBO विशिष्ट समुदायों में स्थित स्वैच्छिक, बॉटम- अप, जमीनी स्तर के संगठन हैं जो अपने कार्य क्षेत्रों की स्थानीय जरूरतों को पूरा करते हैं।
    • उनके सदस्य भी कार्य के लाभार्थी हैं।
  • धार्मिक और आस्था-आधारित संगठन: इसके अंतर्गत लोग धार्मिक प्रथाओं और शिक्षाओं के आधार पर सामान्य लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं।
    • उदाहरण के लिये- रामकृष्ण मिशन और यूनानी चिकित्सा क्लीनिक।
  • सदस्यता संघ (Membership Associations): ये सदस्यों के हितों को पूरा करने के लिए व्यक्तियों द्वारा स्व-चयन पर आधारित संघ हैं।
  • अनुसंधान संगठन और थिंक टैंक (Think Tanks): इनकी स्थापना सामाजिक विकास, राजनीति, अर्थशास्त्र और विदेशी सुरक्षा सहित कई मुद्दों पर अनुसंधान के प्राथमिक लक्ष्य के साथ की गई है।
    • उदाहरण के लिए- ‘ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन’ अन्य क्षेत्रों के अलावा विदेश नीति, अर्थव्यवस्था और विकास पर शोध करता है।
  • सामाजिक आंदोलन: ये नागरिकों के समूह का गठन करते हैं जो सामान्य हितों एवं उद्देश्यों के लिए अपनी आवाज उठाते हैं। हाल के सामाजिक आंदोलनों ने भ्रष्टाचार विरोधी, धर्मनिरपेक्षता, नागरिक अधिकार और महिला सुरक्षा आदि मुद्दों को संबोधित किया है।
  • युवा और छात्र संगठन: ये वे संगठन हैं जो युवाओं एवं छात्रों के कल्याण को बढ़ावा देते हैं, और सामान्यतः उनके द्वारा ही संचालित किये जाते हैं।
    • इसमें ऑल इंडिया यूथ फेडरेशन, नेशनल कैडेट्स कोर और कई छात्र संघ शामिल हैं।

सिविल सोसायटी संगठन (Civil Society Organisations- CSOs) क्या हैं?

  • परिचय: सिविल सोसायटी संगठन (CSO) संगठित स्वैच्छिक गैर-राज्य संस्थान हैं जो ज्यादातर गैर-लाभकारी आधार पर संचालित होते हैं।
  • उद्देश्य: CSO का मुख्य उद्देश्य सेवा वितरण, विशेष रूप से पहुँच, गुणवत्ता और जवाबदेही है। वे लोकतांत्रिक शासन प्रणालियों के सफल कामकाज में अभिन्न भूमिका निभाते हैं तथा  सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय हितधारक हैं।
  • सदस्यता: इनका गठन तथा नेतृत्त्व नागरिकों द्वारा अपने सामूहिक या सामान्य हितों एवं सदस्यों, विशिष्ट लक्ष्य समूहों या आम जनता की चिंताओं की वकालत करने के लिए किया जाता है।

समाज में CSO द्वारा निभाई गई भूमिका

  • सहायता सेवा वितरण: CSO बुनियादी सेवाओं की प्रभावी एवं समय पर डिलीवरी के लिए सहायता प्रदान करते हैं।
    • CSO जागरूकता सृजन, साक्ष्य, सहयोग और वकालत के माध्यम से इसे सुनिश्चित करते हैं।
    • स्माइल फाउंडेशन एक बाल शिक्षा गैर सरकारी संगठन है जिसका लक्ष्य वंचित बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सहायता प्रदान करके सशक्त बनाना है।
  • नीति निर्माण: कई CSO आज नीतिगत कार्य योजनाओं और कानून का समर्थन करने के लिए सरकार के साथ प्रभावी परामर्श और सहयोग तंत्र पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • मजदूर किसान शक्ति संगठन (Mazdoor Kisan Shakti Sangathan- MKSS) ने राजस्थान में एवं उसके बाद पूरे भारत में सूचना के अधिकार आंदोलन का नेतृत्त्व किया।
  • अनुसंधान और साक्ष्य (Research and Evidence): भारत में अनुसंधान और साक्ष्य के विकास के साथ नागरिक समाज नीतिगत परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • CSO जमीनी स्तर से प्रासंगिक डेटा इकट्ठा करते हैं और कार्यक्रमों को लागू एवं परिष्कृत करते हैं तथा साक्ष्य के आधार पर निर्णय लेते हैं।
    • उदाहरण के लिए- एसोसिएशन फॉर सोशली एप्लिकेबल रिसर्च (ASAR) एक गैर-लाभकारी कंपनी है जो सामाजिक मुद्दों पर अनुसंधान, जागरूकता एवं कार्रवाई की दिशा में कार्य करती है।
  • नवोन्मेष (Innovation): भारत में नागरिक समाज को परिवर्तन के नवोन्मेषी मॉडल विकसित करने एवं  बड़े पैमाने पर विकसित करने में एक प्रमुख पक्षकार के रूप में देखा जाता है।
    • CSO की विविध रेंज और दायरे को देखते हुए, उनके पास पायलट परीक्षण मॉडल, अच्छी प्रथाओं को साझा करने एवं उदाहरण के माध्यम से दोहराने की एक अद्वितीय क्षमता है।
    • उदाहरण के लिए- कर्नाटक राज्य सरकार ने मैसूर पुनर्वास और विकास एजेंसी के स्वयं सहायता समूहों (SHGs) एवं वाटरशेड प्रबंधन के अभिनव मॉडल का विस्तार किया।
  • CSO भारत के विकास में सक्रिय भागीदार के रूप में कार्य कर रहे हैं: ये संगठन भारत की विकास यात्रा के दौरान उत्पन्न अंतराल को भरने का काम करते हैं और जमीनी स्तर पर समुदाय की मदद करते हैं।
    • उदाहरण के तौर पर कई CSO मनरेगा (MGNREGS) से जुड़े हुए हैं, ये मनरेगा के  कार्यान्वयन में श्रमिकों की भागीदारी में सुधार करने और मनरेगा अधिनियम के तहत प्रदान किए गए अधिकारों के प्रावधान को सुनिश्चित करने के लिए श्रमिकों को औपचारिक समूहों/श्रम समूहों में संगठित करने का काम करते हैं।
    • प्रथम, ऑक्सफैम इंडिया जैसे गैर सरकारी संगठन ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को शिक्षा प्रदान करते हैं।
  • हाशिये के वर्गों को सशक्त बनाना: ये संगठन सामाजिक और लैंगिक असमानताओं से लड़ने के लिए लगातार कार्य करते हैं।
    • उदाहरण के लिए- मिलान फाउंडेशन लड़कियों के लिए एक समावेशी एवं सुरक्षित समाज के लिए कार्य कर रहा है।
    • मिलन फाउंडेशन के माध्यम से अब तक 40,000 बच्चे एवं उनके समुदाय लाभान्वित हुए हैं।
  • नागरिकों और संसाधनों को जुटाना: वे समुदायों को शमिल करके योजना एवं डिजाइन तैयार करके विकास कार्यों में शामिल करते हैं।
    • वे सामुदायिक संसाधनों का उपयोग सामुदायिक बुनियादी ढाँचे, घरों एवं शौचालयों के निर्माण तथा पानी, बिजली आदि जैसी बुनियादी सेवाएँ प्रदान करने जैसी पहलों के लिए करते हैं।
    • ‘सोसाइटी फॉर द प्रमोशन ऑफ एरिया रिसोर्स सेंटर्स’ (SPARC) नामक NGO  शहरी गरीबों के लिए आवास एवं बुनियादी ढाँचे से संबंधित मुद्दों पर कार्य कर रहा है।

भारत में CSO के सामने चुनौतियाँ

  • प्रशासनिक व्यय: FCRA अधिनियम प्रशासनिक खर्चों को 20% तक सीमित करता है जो अनुसंधान, वकालत, क्षमता निर्माण, नेटवर्किंग और सामाजिक नवाचारों के लिए मॉडल विकास में लगे गैर सरकारी संगठनों के लिए एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
    • इन गतिविधियों में अक्सर पर्याप्त बैठकें, वेतन एवं यात्रा लागत शामिल होती है, उन्हें प्रशासनिक व्यय के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
    • प्रशासनिक व्यय की ऐसी बाधा किसी संगठन के अस्तित्त्व को अव्यवहार्य बना सकती है।
  • एक से अधिक नियामक प्राधिकरण: CSO क्षेत्र के विनियमन के लिए कई नियामक प्राधिकरण हैं जो अनुपालन आवश्यकताओं के साथ ओवरलैप करते हैं।
    • उदाहरण के लिए- पश्चिमी भारत में, ट्रस्टों तथा सोसाइटियों को चैरिटी कमिश्नर के कार्यालय द्वारा विनियमित किया जाता है एवं गैर-लाभकारी कंपनियों को कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा विनियमित किया जाता है, जबकि आयकर अधिकारी कर छूट के मामलों को विनियमित करते हैं।
    • इसके अलावा, केंद्रीय गृह मंत्रालय विदेशी स्रोतों से NGO एवं CSO को धन के प्रवाह को नियंत्रित करता है।
  • एकरूपता और मानकीकरण का अभाव: चूँकि भारत में ‘दान’ राज्य सूची का एक विषय है न कि केंद्र सूची का एक विषय परिणामतः कुछ राज्यों में अत्यधिक नियम हैं जबकि अन्य में लगभग कुछ भी नहीं हैं।
    • उदाहरण के लिये- महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में चैरिटी कमिश्नर को ‘परिवर्तन रिपोर्ट’ नियमित रूप से दाखिल करने की आवश्यकता होती है, साथ ही अचल संपत्ति खरीदने एवं बेचने के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है।
    • दूसरी ओर, राष्ट्रीय राजधानी (दिल्ली) के साथ-साथ कुछ अन्य राज्यों में कोई चैरिटी कमिश्नर नहीं है।
    • नए CSO नई दिल्ली या ऐसे क्षेत्रों में पंजीकरण प्राप्त करने का प्रयास करते हैं जहाँ कोई कम-से-कम एक नियामक प्राधिकरण को बायपास कर सकता है।
  • बढ़े हुए अनुपालन मानदंड: CSR दान के लिए बढ़ती अनुपालन आवश्यकताओं ने लेनदेन लागत में वृद्धि की है।
    • CSR दान के लिए एस्क्रो खातों के रखरखाव, प्रभाव विश्लेषण आदि की आवश्यकता होती है।
    • विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act- FCRA) में बदलाव के कारण पिछले पाँच वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी योगदान में 30% की गिरावट आई है।
  • राष्ट्र विरोधी गतिविधियाँ: कई बार आरोप लगता है कि कुछ CSO विदेशी फंडिंग लेकर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल रहे हैं।
    • कई गैर सरकारी संगठन विदेशी फंडिंग लेकर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाले माओवादियों-नक्सलियों और पाकिस्तान समर्थक संगठनों को सहायता प्रदान करते रहे हैं।
  • जवाबदेही के मुद्दे: वित्तीय मामलों में जवाबदेही एवं पारदर्शिता की कमी पाई गई है।
    • इन संगठनों द्वारा धन के दुरुपयोग की घटनाएं बढ़ रही हैं।
    • जनवरी 2017 में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने लगभग 30 लाख गैर सरकारी संगठनों के ऑडिट का आह्वान किया क्योंकि गैर सरकारी संगठन उन्हें प्राप्त फंड से किए गए खर्च का हिसाब देने में विफल रहे।

भारत में वैकल्पिक सार्वजनिक सेवा वितरण के रूप में कार्य करने में CSO के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ

  • स्थिरता को लेकर चिंता: सामाजिक क्षेत्र के हस्तक्षेप से किसी समुदाय में किए गए परिवर्तन और सुधार आत्मनिर्भर नहीं होते हैं और इसके लिए निरंतर देखभाल एवं क्षमता की आवश्यकता होती है। 
    • उदाहरणार्थ- कुछ पंचायतों में बाल विवाह और जाति-आधारित भेदभाव को रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं। हालाँकि, सिविल सोसायटी संगठनों (CSO) द्वारा काम रोक दिए जाने से, ये पंचायतें विरोधी ताकतों के प्रति संवेदनशील हो गईं, जिससे जब तक लगातार मुकाबला नहीं किया गया, प्रगति में गिरावट आई।
  • स्केलेबिलिटी की चिंताएँ: यह धारणा एक संदर्भ में प्रभावी कार्य के सिद्धांतों को दूसरे संदर्भ में लागू करके, सीखने और अनुकूलन की सुविधा प्रदान करके विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों एवं आबादी में तेजी से परिवर्तन का वादा करती है।
    • वास्तव में, विविध सामाजिक परिस्थितियों में, संसाधनों, जनशक्ति और बुनियादी ढाँचे के समर्थन आदि में अंतर के कारण एक मॉडल या अभ्यास को दूसरे पर लागू करना वास्तव में मुश्किल है।
  • प्रणालीगत परिवर्तन लाने में असमर्थता: दानदाताओं से लेकर CSO तक अनेक प्रतिभागियों का कहना है कि वे प्रणाली में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं। हालाँकि, इस तरह के दावों में यथार्थवादी मूल्यांकन का अभाव है कि अकेले ऐसे छोटे प्रयासों से प्रणालीगत परिवर्तन लाने की संभावना नहीं है। वे प्रणाली के एक खंड में अधिक से अधिक वृद्धिशील प्रगति प्रदान करेंगे।
    • एक अध्ययन के अनुसार, केवल एक-तिहाई NGO कार्यक्रम गरीबों और हाशिए पर रहने वाले समूहों तक पहुँचते पाए गए और भूमिहीन, दलितों, गरीब महिलाओं और गरीब मुसलमानों को लक्षित करने का स्तर कुल आबादी में उनके अनुपात से कम था।
  • CSO की दक्षता और सत्यनिष्ठा पर प्रश्न: एक व्यापक धारणा है कि CSO अक्षम, अप्रभावी, भ्रष्ट या इनके कुछ संयोजन हैं। वास्तव में, CSO हमारे समाज में किसी भी अन्य उद्यम से अधिक भ्रष्ट या अप्रभावी नहीं हैं।
    • इस मिथक को कायम रखने से न केवल उन असंख्य लोगों को नुकसान पहुँचता है जो समाज को बेहतर बनाने के लिए पूरी लगन से समर्पित हैं, बल्कि यह उनके प्रयासों को भी कमजोर करता है।

भारत में CSO का कानूनी ढाँचा

  • सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860:  यह साहित्यिक, वैज्ञानिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संगठनों को पंजीकृत करता है जो गैर-लाभकारी संस्थाएं हैं।
  • भारतीय ट्रस्ट अधिनियम 1882: यह निजी ट्रस्टों के प्रबंधन के लिए एक संघीय अधिनियम है। हालाँकि, बाद में विभिन्न राज्यों ने सार्वजनिक, धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए ट्रस्टों को पंजीकृत करने के लिए अपने स्वयं के सार्वजनिक ट्रस्ट अधिनियमों को अपनाया।
  • भारतीय कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 8: यह अनुभाग कंपनियों को कला, विज्ञान, शिक्षा, सामाजिक कल्याण और पर्यावरण संरक्षण आदि को बढ़ावा देने जैसे उद्देश्यों की एक सूची के लिए गैर-लाभकारी के रूप में पंजीकृत होने की अनुमति देता है।
  • FCRA संशोधन अधिनियम 2020: विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act- FCRA) सभी NPOs, जैसे सोसायटी, ट्रस्ट और धारा 8 के अंतर्गत कंपनियों पर लागू होता है, जो अपने काम के लिए विदेशी योगदान स्वीकार करते हैं। 
    • यह प्रशासनिक खर्चों पर खर्च होने वाले विदेशी योगदान के प्रतिशत को 50% के बजाय 20% तक सीमित करता है।

विदेशी फंडिंग प्राप्त करने वाले NPO का विनियमन:

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय विदेशी धन प्राप्त करने वाले गैर-लाभकारी संगठनों को नियंत्रित करता है।
  • किसी भी ‘विदेशी स्रोत’ से धन प्राप्त करने वाले NPO को FCRA के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय में आवेदन करना होता है।
  • भारत में शाखा स्थापित करने के इच्छुक विदेशी NPOs के मामले में, उन्हें विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 के प्रावधानों के तहत भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को आवेदन करना आवश्यक है।

    • यह प्राप्तकर्ता संगठन से अन्य भागीदारों एवं संबद्ध संगठनों को धन के हस्तांतरण को भी सीमित करता है।
    • यह सभी पदाधिकारियों के लिए आधार कार्ड, एक राष्ट्रीय बायोमेट्रिक पहचान पत्र का उपयोग अनिवार्य करता है। इन नियमों का पालन करने में विफलता के कारण किसी संगठन का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
    • सभी विदेशी योगदानों को नई दिल्ली में भारतीय स्टेट बैंक में निर्दिष्ट FCRA बैंक खाते में प्राप्त किया जाना अनिवार्य है।
  • यह FCRA निधियों को उप-अनुदान देने पर रोक लगाता है, जिससे जमीनी स्तर के NPO प्रभावित होते हैं जो विदेशी स्रोतों से वित्त पोषण के लिए बड़े NPO पर निर्भर थे।

आगे की राह

  • अनुपालन कानूनों में कमी लाना: CSO को विनियमित करने के लिए अतिरिक्त कानून या अनुपालन आवश्यकताएं पेश नहीं की जानी चाहिए। केंद्र सरकार नियंत्रक महालेखा परीक्षक और सीबीआई के माध्यम से NPO की जाँच करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकती है।
  • FCRA से संबंधित शिकायतों के लिए नई अपीलीय निकाय: केंद्रीय गृह मंत्रालय FCRA से संबंधित शिकायतों के समाधान के लिए एक अपीलीय निकाय का गठन कर सकता है।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: गैर-सरकारी संगठन, समुदाय-आधारित संगठनों, स्वैच्छिक संगठन और नागरिक समाज संगठन में काम करने वाले पेशेवरों की क्षमता निर्माण समय की मांग है।
    • प्रभावी और सुप्रबंधित संगठनों को विकसित करने के लिए CSOs पदाधिकारियों को शिक्षित एवं संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
    • स्वयंसेवकों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं की क्षमता निर्माण के लिए उभरते उपकरणों के साथ-साथ विशिष्ट कौशल एवं रणनीति आवश्यक हैं।
    • प्रशिक्षण कार्यक्रमों को संगठनों के पदाधिकारियों को आंतरिक रूप से एवं समुदाय के प्रति समग्र रूप से बेहतर प्रदर्शन करने के लिए सशक्त बनाना चाहिए।
  • धर्मार्थ निधि: CSO को अधिक सामूहिक दान को बढ़ावा देने के तरीकों पर ध्यान देना चाहिए, यह एक प्रकार का परोपकारी दान जिसमें संगठन मुद्दों को संबोधित करने के लिए अधिक धनराशि उत्पन्न करने के लिए अपने योगदान को जोड़ते हैं। सामूहिकीकरण को भौगोलिक रूप से करने की आवश्यकता है, जहाँ समाज सामान्य सामाजिक चुनौतियों पर एकजुट होते हैं और उन्हें संबोधित करने के लिए अपने संसाधनों को एकजुट करते हैं।
  • CSO, सरकार और निजी क्षेत्र के बीच तालमेल: समाज की समग्र प्रगति सुनिश्चित करने और समग्र विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निजी क्षेत्र और पारंपरिक सरकारी संरचनाओं के साथ CSO, संसाधनों और प्रौद्योगिकियों द्वारा जमीनी स्तर के काम के लाभों का उपयोग करने की आवश्यकता है।

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