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यूरोपीय संघ की कार्बन सीमा कर (EU carbon border tax)

Samsul Ansari January 11, 2024 06:16 193 1

संदर्भ:

यह लेख 1 जनवरी, 2026 से शुरू होने वाले यूरोपीय संघ (EU) के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) टैक्स के संदर्भ में भारत के समक्ष उपस्थित  चुनौतियों और विकल्पों को प्रदर्शित करता है।

प्रारम्भिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग सिस्टम (CCTS)

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: कार्बन बॉर्डर समायोजन तंत्र (CBAM) – प्रावधान, चुनौतियाँ और आगे की राह

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) के संदर्भ में:

  • यूरोपीय संघ के “2030 पैकेज में 55 के लिए फिट (Fit for 55 in 2030 package)का एक हिस्सा: यूरोपीय ग्रीन डील के तहत 1990 के स्तर की तुलना में 2030 तक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 55% की कमी के लक्ष्य को प्राप्त करने में , सीबीएएम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 
  • द्वीतीय चरण का कार्यान्वयन:
    • संक्रमणकालीन चरण: सीबीएएम का इरादा वर्ष 2026 से यूरोपीय संघ में आने वाले कार्बनसघन उत्पादों पर कर लगाने का है और इसे दो चरणों में विभाजित किया गया है, जिसमें पहला चरण (संक्रमणकालीन चरण) 1 अक्टूबर, 2023 से शुरू होगा।
    • स्थिर चरण: 1 जनवरी, 2026 से आयात में निहित उत्सर्जन की घोषणा उपरान्त सीबीएएम स्थिर चरण में प्रवेश करेगा I
  • अनुसरण: आयातकों को प्रतिवर्ष  सीबीएएम प्रमाणपत्र संख्या के तदनुसार कर देना होगा
  • प्रयोज्यता(Applicability): यह यूरोपीय संघ में  घोषित आयातित वस्तुओं में अंतर्निहित कार्बन कंटेंट पर लागू किया जाएगा।

कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) के उद्देश्य:

  • उत्पाद प्रतिस्थापन की चुनौती का मुकाबला: यूरोपीय संघ के उत्पादों को भारत या चीन जैसे अन्य देशों से कार्बनसघन आयात द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने का खतरा है और पर्यावरण अनुपालन के इस उच्च मानक से उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाएगी।
  • ईयू के उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) की तर्ज पर काम करने के लिए: सीबीएएम का उद्देश्य EU-ETS के तर्ज़ पर कार्य करना है I इसके तहत GHG उत्सर्जन की अनुमति प्राप्त मात्रा पर एक सीमा निर्धारित की जाती  है।
  • EU-ETS: कार्बन रिसाव को रोकने का एक तरीका: EU-ETS योजना के अंतर्गत आने वाली कंपनियों को उनके GHG उत्सर्जन के अनुरूप भत्तेखरीदनापड़ता है और उत्सर्जन में कटौती के लिए उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है। लेकिन ऊर्जागहन उद्योगों को उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता सुनिश्चित करने के लिए मुफ्त भत्ते प्रदान किए जाते हैं।
  • कार्बन रिसाव को रोकने का एक तरीका: यूरोपीय संघ में स्थापित उत्पादकों द्वारा किया गया कार्बनसघन उत्पादन, ढीले पर्यावरणीय नियमों के योगदान से गैरयूरोपीय संघ के देशों में भेजा जा सकता है। 
    • ईयूईटीएस की इस छूट के कारण आने वाले इन उत्पादों  को रोकने के लिए सीबीएएम को लाने पर जोर दिया गया  है।

भारत पर सीबीएएम का प्रभाव:

  • प्रतिकूल प्रभाव: भारत उन शीर्ष 8 देशों में शामिल है जिन पर सीबीएएम का प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अनुमान है कि स्टील उद्योग जैसे इसके कुछ मुख्य क्षेत्र सीबीएएम से काफी प्रभावित होंगे।
  • सुरक्षा चुनौती: उद्योगों के लिए सीबीएएम के संभावित नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिये सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ भी सामने आएगी
  • सीमित समय उपलब्धता: प्रभावी कार्बन कराधान उपायों को तैयार करना और लागू करने में समय उपलब्धता सीमित है
  • अन्य कारकों पर संज्ञान लेने में विफल: इस कदम से सस्ते श्रम और उत्पादन के अन्य तरीकों जैसे कारकों पर विचार करने में यूरोपीय संघ की विफलता  सामने आती है
  • 2027 तक यू.के. का अपना सीबीएएम: इससे आने वाले वर्षों में भारत के निर्यात क्षेत्र में बदलाव आने की संभावना है।

कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग सिस्टम (CCTS) के बारे में:

  • भारत की पहल: भारत के पास  अपना कार्बन व्यापार तंत्र है
  • भारत की सहभागिता : दिसंबर 2022 में, भारत ने सीसीटीएस पेश करने के लिए ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 में संशोधन किया था
  • उद्देश्य: निजी क्षेत्र द्वारा स्वच्छ ऊर्जा में निवेश बढ़ाने के संबंध में  उत्सर्जन में कटौती के लिए विभिन्न कार्यों को प्रोत्साहित करके जलवायु परिवर्तन की समस्याओं का समाधान करना।
  • भारत अभी भी कार्बन मूल्यांकन सहित सीसीटीएस को क्रियान्वित करने संबंधी विभिन्न  पहलूओं  पर काम कर रहा है।
    • पर्यावरणीय दृष्टि से सक्रिय कार्यों का आधार: भारत में, अनिवार्य सीसीटीएस मॉडल को स्वैच्छिक बाजारआधारित तंत्र के साथ भी जोड़ा गया है जिसे ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम नियम कहा जाता है।
    • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम नियमों को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2023 में अधिसूचित किया गया था, जिसका उद्देश्य कार्बन कटौती जनादेश से आगे बढ़ कर पर्यावरणीय रूप से सक्रिय कार्यों को और अधिक प्रोत्साहित करना था।

आगे की राह:

  • पर्यावरण संबंधी कार्यवाही को पेरिस समझौते के तहत सहमति प्राप्त देशों की  ‘समान लेकिन विभेदित जिम्मेदारियाँका उल्लंघन मानते हुए चुनौती दिया जाना चाहिये
    • भारत पहले ही विशेष और विभेदक उपचार प्रावधानों के तहत विश्व व्यापार संगठन के समक्ष सीबीएएम को चुनौती दे चुका है।
  • यूरोपीय संघ चाहे तो कर एकत्रण के उपरान्त  ऐसे देशों को उनकी हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिए धन लौटा सकता है।
  • भारत को अपने स्वयं के कार्बन कराधान उपाय तैयार करने की आवश्यकता है जो पेरिस समझौते के सिद्धांतों के अनुरूप हों और साथ ही साथ अपने उद्योगों के हितों की रक्षा भी कर सके।

News Source: The Hindu

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