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विधायकों के अयोग्यता मामले में महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय (Maharashtra Assembly Speaker’s decision in the disqualification case of MLAs)

Samsul Ansari January 13, 2024 06:13 225 0

संदर्भ

हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष (Speaker) ने एक फैसला सुनाया है कि 21 जून, 2022 को राजनीतिक दल शिवसेना के भीतर प्रतिद्वंद्वी गुटों के उभरने के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को ही “वास्तविक शिवसेना” माना जाएगा।

संबंधित तथ्य

  • विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय: स्पीकर के अनुसार, पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पास एकनाथ शिंदे को पार्टी नेतृत्व से हटाने का कोई अधिकार नहीं था। 
  • याचिकाएँ खारिज: स्पीकर ने उद्धव ठाकरे समूह/गुट द्वारा दायर की गई याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें शिंदे गुट के सदस्यों को दल-बदल रोधी अधिनियम के तहत अयोग्य घोषित करने की माँग की गई थी।
    • अध्यक्ष ने पार्टी व्हिप की अवहेलना के लिए शिंदे गुट के सदस्यों को अयोग्य ठहराने की माँग वाली याचिकाएँ भी खारिज कर दीं।
    • अध्यक्ष ने शिंदे गुट और अन्य सदस्यों द्वारा उद्धव गुट के सदस्यों की अयोग्यता की माँग वाली याचिकाओं को भी खारिज कर दिया, जिनपर व्हिप (Whip) के निर्देशों का पालन न करने का आरोप लगाया गया था  

व्हिप के बारे में

  • सचेतक (Whip) राजनीतिक दल का एक अधिकारी होता है, जिसे सदन  के उप-नेता के रूप में काम करने के लिए नियुक्त किया जाता है।
  • सचेतक के पद का उल्लेख न तो भारत के संविधान में है, न सदन के नियमों में और न ही किसी संसदीय कानून में है। यह संसदीय सरकार की परंपराओं पर आधारित है।

  • 10वीं अनुसूची और दल का आंतरिक विवाद: स्पीकर ने कहा कि 10वीं अनुसूची का निर्माण दल के आंतरिक विवादों को सुलझाने के लिए नहीं हुआ है। यह बड़ी संख्या में सदस्यों के सामूहिक असंतोष को दबाने का उपकरण नहीं है।

संक्षिप्त घटनाक्रम

  • नवंबर 2019: शिवसेना नेता और महा विकास अघाड़ी (Maha Vikas Aghadi-MVA) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की
    • MVA शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच एक गठबंधन है।
  • जून 2022:
    • विधानसभा में शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे और कई अन्य शिवसेना विधायकों ने पार्टी के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
    • ठाकरे समूह ने विद्रोही गुट के खिलाफ पार्टी हितों के विरुद्ध काम करने के लिए अयोग्यता कार्यवाही शुरू की।
      • शिंदे ने अयोग्यता कार्यवाही को चुनौती देने के लिए भारत के उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
    • SC की एक अवकाश पीठ (Vacation Bench) ने विद्रोही समूह को उपाध्यक्ष (कार्यवाहक अध्यक्ष) द्वारा जारी अयोग्यता नोटिस का जवाब देने के लिए 12 दिनों का समय दिया।
      • सामान्य तौर पर, अयोग्यता नोटिस का जवाब देने का समय 7 दिन होता है।
    • शिंदे गुट ने महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलकर महाविकास अघाड़ी के नेतृत्त्व वाली गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की जानकारी दी। राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे सरकार के पास विधानसभा में बहुमत की जाँच के लिए सदन में विश्वास मत कराने का निर्देश दिया।
    • ठाकरे गुट ने विश्वास मत को उच्चतम न्यायालय  में चुनौती दी, लेकिन न्यायालय ने  विश्वास मत पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद मुख्यमंत्री ठाकरे ने बिना विश्वास मत का सामना किए ही इस्तीफा दे दिया।
  • अगस्त 2022: 3 जजों की पीठ ने मामले को 5 जजों की संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया।
  • फरवरी 2023: भारतीय निर्वाचन आयोग (Electoral Commission of India-ECI) ने शिवसेना नाम और धनुष-बाण पार्टी चिह्न शिंदे गुट को आवंटित कर दिया है।
  • जुलाई 2023: ठाकरे गुट की शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने का निर्देश देने के लिए उच्चतम न्यायालय में अपील की
  • दिसंबर 2023:  उच्चतम न्यायालय ने अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को 10 दिन का समय दिया।
  • जनवरी 2024: महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट ही “वास्तविक शिवसेना माना है क्योंकि जब परतेरे में प्रतिद्वंद्वी गुट उभरे थे तब उनके पास 55 में से 37 विधायकों का बहुमत था।
    • याचिकाओं पर फैसला करते समय, स्पीकर को तीन मापदंडों पर निर्भर रहना पड़ा: संबंधित दल का संविधान, इसकी नेतृत्व संरचना और विधायी बहुमत।

यह मामला दल-बदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) की प्रभावशीलता और स्पीकर की तटस्थता के महत्त्व पर कानूनी सवाल उठाता है।

दल-बदल के बारे में

  • दल-बदल: संविधान की 10वीं अनुसूची में, विधायक द्वारा चुनाव जीतने के बाद अपनी राजनीतिक पार्टी बदलने के कार्य को दल-बदल या पक्षपात के रूप में संदर्भित किया जाता है।
  • दल-बदल के लिए सजा: 10वीं अनुसूची के तहत अपनी पार्टी से अलग होने वाले विधायकों को उनकी सीटों से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
  • संविधान (52वाँ संशोधन) अधिनियम, 1985: संविधान (52वें संशोधन) अधिनियम, 1985 द्वारा 10वीं अनुसूची को भारत के संविधान में शामिल किया गया था।
    • वर्ष 1967 में, हरियाणा के एक विधायक ने एक दिन में 3 बार पार्टी बदल ली, जिससे लोकप्रिय वाक्यांश ‘आया राम, गया राम’ प्रचालन में आया।
    • भारत के संविधान में वर्ष 1985 में दल-बदल रोकथाम कानून को जोड़ा गया था। इसका मुख्य उद्देश्य दल-बदल की घटनाओं को रोकना और संभावित राजनीतिक भ्रष्टाचार को कम करना था।

दल-बदल के आधार पर अयोग्यता

  • अयोग्यता के लिए आधार: 10वीं अनुसूची अयोग्यता के लिए दो आधार प्रदान करती है:
    • यदि सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है।
    • यदि कोई सदस्य पार्टी की सहमति के बिना मतदान से अनुपस्थित रहता है या अपनी पार्टी के निर्देशों के विरुद्ध मतदान करता है।
  • अयोग्य घोषित करने की शक्ति: 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता का प्रश्न विधान परिषद के मामले में सभापति द्वारा और विधानसभा के मामले में अध्यक्ष द्वारा तय किया जाता है (राज्यपाल द्वारा नहीं)।
  • न्यायिक समीक्षा के तहत अयोग्यता:  वर्ष 1992 में, किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्हू और अन्य (Kihoto Hollohan vs Zachillhu and Others) में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अध्यक्ष द्वारा अयोग्यता के संबंध में लिया गया निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है।

विधानसभा सदस्यों के दल-बदल के मामले

  • किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्हू, 1992
    • उच्चतम न्यायालय ने ‘सैद्धांतिक और अनैतिक राजनीतिक दल-बदल’ (Unprincipled & Unethical Political Defections) पर अंकुश लगाने के लिए 10वीं अनुसूची को बरकरार रखा क्योंकि सदस्य व्यक्तिगत लाभ के लिए दल-बदल कर सकते हैं।
    • उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि SC और उच्च न्यायालय अध्यक्ष के फैसलों की समीक्षा कर सकते हैं।
  • रवि एस. नाइक बनाम भारत संघ, 1994:
    • उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उच्च न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश पारित किए जाने के बाद अध्यक्ष का सदस्यों को अयोग्य ठहराने का निर्णय गैर-कानूनी था और इसे रद्द कर दिया गया।
  • राजेंद्र सिंह राणा बनाम स्वामी प्रसाद मौर्य, 2007:
    • SC ने कहा कि अध्यक्ष स्वत: संज्ञान लेते हुए अयोग्यता की कार्यवाही शुरू नहीं कर सकते बल्कि इसके लिए उनके समक्ष याचिका प्रेषित किया जाना आवश्यक है
  • श्रीमंत बालासाहेब पाटिल बनाम माननीय अध्यक्ष, कर्नाटक विधान सभा, 2019:
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अयोग्यता से संबंधित कोई कार्य करने के बाद  के बाद सदस्य द्वारा अपना इस्तीफा सौंपने से अयोग्यता की कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी।
    • न्यायालय ने यह भी माना कि अध्यक्ष के पास अयोग्यता की अवधि निर्धारित करने की शक्ति नहीं है, न ही उन्हें किसी सदस्य को चुनाव लड़ने से रोकने का अधिकार है।

दल-बदल विरोधी कानून से जुड़ी चुनौतियाँ

  • अध्यक्ष की भूमिका: अध्यक्ष आम तौर पर सत्तारूढ़ दल का सदस्य होता है और जिससे उसकी निष्पक्षता को लेकर चिंताएँ बनी रहती हैं। निर्णय लेने में देरी या कथित पूर्वाग्रह कानून की प्रभावशीलता को कमजोर कर सकते हैं।
    • शिवसेना के प्रतिद्वंद्वी गुटों द्वारा दायर अयोग्यता याचिकाओं पर महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष का फैसला दर्शाता है कि दल-बदल विरोधी कानून के तहत न्यायिक कार्य विधायिका के पीठासीन अधिकारियों के हाथों में नहीं होना चाहिए।
  • न्यायालय का हस्तक्षेप: कुछ मामलों में, अयोग्यता प्रक्रिया में शामिल कई प्राधिकरणों का अस्तित्व भ्रम पैदा कर सकता है क्योंकि निर्णय लेने की शक्ति शुरू में अध्यक्ष में निहित होती है लेकिन इसमें न्यायिक हस्तक्षेप भी संभव है, जिससे परस्पर विरोधी निर्णय हो सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए, न्यायालय सदन की चल रही कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं करता है और अध्यक्ष के निर्णय की प्रतीक्षा करता है, जिसकी वह बाद में समीक्षा कर सकता है।
  • कानून में खामियाँ: दल-बदल विरोधी कानून में कुछ खामियाँ हैं, जिनका फायदा उठाया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए, मार्च 2020 में, मध्य प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के 20 से अधिक विधायकों के राज्य विधानसभा से इस्तीफे के कारण सरकार गिर गई थी। बाद में, ये विधायक उपचुनाव जीतकर विपक्षी दल की सरकार में शामिल हो गए। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि कैसे इस्तीफा देकर विधायक दल-बदल विरोधी कानून को दरकिनार कर सकते हैं और निर्धारित सजा से बच सकते हैं।
  • लंबी प्रक्रिया: अयोग्यता की कार्यवाही लंबी हो सकती है और इस अवधि के दौरान संबंधित विधायक कार्यवाही में भाग लेना और मतदान करना जारी रख सकता है, जो संभावित रूप से निर्णयों को प्रभावित कर सकता है

आगे की राह 

  • अध्यक्ष की तटस्थता सुनिश्चित करना: एक निष्पक्ष और व्यक्तिगत पूर्वाग्रह से मुक्त अध्यक्ष सुनिश्चित करने तथा अयोग्यता की कार्यवाही में तटस्थता की धारणा को बढ़ाने के लिए अध्यक्ष के चयन हेतु अधिक पारदर्शी और सर्वसम्मति आधारित प्रक्रिया का निर्माण किया जा सकता है।
    • दिनेश गोस्वामी समिति (1990) ने सुझाव दिया कि अयोग्यता के कानूनी मुद्दे पर निर्णय लेने की शक्ति सदन के अध्यक्ष या सभापति पर नहीं छोड़ी जानी चाहिए, बल्कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को चुनाव आयोग की सलाह पर कार्य करना चाहिए, जो निष्पक्ष रूप से कथित दल-बदल मामलों का निर्णय कर सकता है।
  • दल-बदल विरोधी कानून की समीक्षा और संशोधन: दल-बदल विरोधी कानून की खामियों की पहचान करने और उन्हें दूर करने के लिए कानून की व्यापक समीक्षा आवश्यक है
    • उदाहरण के लिए, दिनेश गोस्वामी समिति (1990) के अनुसार, अयोग्यता प्रावधानों को राजनीतिक दल की सदस्यता स्वेच्छा से त्यागने, मतदान में पार्टी के निर्देश या व्हिप के विरुद्ध मतदान करने अथवा मतदान से परहेज करने के मामलों  केवल विश्वास मत के प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव , धन विधेयक या राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव जैसे विधेयकों तक तक ही सीमित करना चाहिए।
  • नैतिकता को मजबूत करें: विधानसभाओं के भीतर मौजूदा आचार समितियों (Ethics Committees) को सशक्त और मजबूत करना आवश्यक है, जिससे वह दल-बदल के मामलों की जाँच में सक्रिय भूमिका निभा सके तथा अध्यक्ष पर बोझ कम हो सके और प्रक्रिया में तेजी आ सके।
    • इसके अलावा, संविधान समीक्षा आयोग, 2002 (Constitution Review Commission) द्वारा अनुशंसित, दल-बदल करने वालों को सार्वजनिक पद धारण करने से रोकने और सरकारों को गिराने में उनके मतों को अमान्य करने से सार्वजनिक नैतिकता को मजबूत करने में मदद मिल सकती है।
  • समयबद्ध कार्यवाही: अयोग्यता कार्यवाही का समय पर समाधान सुनिश्चित करने के लिए एक प्रक्रिया का निर्माण किया जाना चाहिये। अध्यक्ष के लिए निर्णय लेने के लिए निश्चित समय सीमा निर्धारित करने तथा यदि इसका पालन नहीं किया जाता है, तो अनुचित देरी को रोकने के लिए त्वरित न्यायिक समीक्षा की अनुमति दी जानी चाहिये।

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