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भारत की कृषि निर्यात नीति (India’s agricultural export policy)

Samsul Ansari January 13, 2024 06:55 236 0

संदर्भ

भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक कृषि निर्यात को दोगुना कर लगभग 100 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

संबंधित तथ्य 

  • वर्तमान कृषि निर्यात मूल्य: भारत के कृषि निर्यात का मूल्य वर्ष 2022-23 में 52.50 बिलियन डॉलर था, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 50.21 बिलियन डॉलर था।
  • त्वरित वृद्धि की आवश्यकता: इस प्रकार 100 बिलियन डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वृद्धि में काफी तेजी लाने की आवश्यकता होगी, जिससे देश में कृषि विकास को बढ़ावा देने और किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी।

भारत के कृषि संबंधी निर्यात एवं आयात की स्थिति

  • वैश्विक उत्पादन और निर्यात में हिस्सेदारी: भारत वैश्विक कृषि उत्पादन में दूसरे स्थान पर है लेकिन वैश्विक कृषि निर्यात में इसकी हिस्सेदारी केवल 2.4 प्रतिशत है, जो इसे दुनिया में आठवें स्थान पर रखती है (WTO की व्यापार सांख्यिकीय समीक्षा, 2022)।
    • वर्ष 2023 में, भारत ने 44 MMT कृषि उत्पादों का  निर्यात और 25 MMT कृषि उत्पादों का आयात किया।
  • सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी: घरेलू योगदान के संदर्भ में, कृषि निर्यात भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 2 प्रतिशत से भी कम है, जो अन्य विकासशील कृषि प्रधान देशों की तुलना में कम है।
  • शीर्ष कृषि आयात: वर्ष 2023 में भारत के कृषि आयात में वनस्पति तेल, दालें और ताजे एवं सूखे फल का हिस्सा 72.1% था।

  • वनस्पति तेल को सबसे अधिक आयात किया जाता है, जो भारत के कुल कृषि आयात का 51.9% है।
  • भारत से शीर्ष कृषि निर्यात: भारत के कुल कृषि निर्यात में बासमती चावल, चावल की अन्य किस्में, चीनी, मसाले और खाद्य तेल की भागीदारी 51.5 प्रतिशत है।

भारत में कृषि निर्यात नीति

इसे कृषि निर्यात उन्मुख उत्पादन, निर्यात प्रोत्साहन, भारत सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों के अंतर्गत पूर्व प्राप्तियों तथा समन्वयन पर ध्यान केंद्रित करके तैयार किया गया है।

कृषि निर्यात नीति, 2018 (Agriculture Export Policy, 2018)

  • यह भारत की नवीनतम कृषि नीति है जिसका उद्देश्य कृषि निर्यात को दोगुना करना और भारतीय किसानों तथा कृषि उत्पादों को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के साथ एकीकृत करना है।

कृषि निर्यात नीति के उद्देश्य

  • वर्ष 2022 तक कृषि निर्यात को दोगुना करना और स्थिर व्यापार नीति व्यवस्था के साथ अगले कुछ वर्षों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाना।
  • निर्यात टोकरी और गंतव्यों में विविधता लाने तथा खराब होने वाली वस्तुओं पर ध्यान देने सहित उच्च मूल्य एवं मूल्य वर्द्धित कृषि निर्यात को बढ़ावा देना।
  • नवीन, स्वदेशी, जैविक, स्थानीय, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना।
  • बाजार तक पहुँच बढ़ाने, संबंधित बाधाओं से निपटने और स्वच्छता एवं पादप-स्वच्छता संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए एक संस्थागत तंत्र प्रदान करना।
  • वैश्विक मूल्य शृंखला के साथ जल्द-से-जल्द एकीकरण करके विश्व कृषि निर्यात में भारत की हिस्सेदारी को दोगुना करने का प्रयास करना।
  • किसानों को विदेशी बाजारों में निर्यात के अवसरों से लाभ उठाने में सक्षम बनाना।

भारतीय कृषि निर्यात के सामने चुनौतियाँ

  • नैरोबी पैकेज की समाप्ति: वर्ष 2015 में नैरोबी में विश्व व्यापार संगठन (WTO) के 10वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारत को विकासशील देशों और अल्प विकसित देशों (LDC) के लिए एक सनसेट क्लॉज प्रदान किया। जिसके तहत कृषि निर्यात के लिए उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली निर्यात सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना था।
    • इस प्रकार, भारत वर्ष 2023 के अंत तक अपनी निर्यात सब्सिडी को समाप्त करने के लिए बाध्य है।
    • खाद्य सुरक्षा के लिए भारत की बड़ी सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग एक विवादास्पद मुद्दा है। इस संदर्भ में अमेरिका ने भारत के खिलाफ WTO में संबंधित मुद्दे को उठाते हुए, WTO के गैर-अनुपालन के रूप में व्यापार विकृत करने वाले भारतीय निर्यात सब्सिडी कार्यक्रमों को चुनौती दी।

सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग (PSH) 

यह एक नीतिगत उपकरण है, जिसका उपयोग सरकारें जरूरत पड़ने पर खाद्य की खरीद, भंडारण और वितरण के लिए करती हैं। उदाहरण: MSP योजना।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA)

यह केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है, जो भारत से कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है।

  • सीमित कृषि निर्यात बास्केट: ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, भारत की कृषि निर्यात बास्केट केवल पाँच वस्तुओं पर निर्भर है, जिससे यह क्षेत्र वैश्विक कीमतों और माँग में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील है।
    • ये पाँच उत्पाद (बासमती चावल, चावल की अन्य किस्में, चीनी, मसाले और खाद्य तेल) भारत के कुल कृषि निर्यात का 51.5 प्रतिशत भाग कवर करते हैं।
  • भारत की अनिश्चित व्यापार नीतियाँ: भारत ने उन उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिनमें वह कई वर्षों से विश्व बाजार में अग्रणी स्थान रखता है।
    • उदाहरण के लिए, भारत ने चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। भारत, दुनिया भर के चावल निर्यात में 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है।
    • प्रतिबंध लगाने से न केवल वैश्विक खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है, विशेष रूप से ‘ग्लोबल साउथ’ में कम समृद्ध देशों के लिए, बल्कि एक भरोसेमंद खाद्य आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की प्रतिष्ठा भी कमजोर होती है।

भारत की प्रतिबंधात्मक व्यापार नीति (Restrictive Trade Policy of India)

  • गेहूँ और चावल पर प्रतिबंध: मई 2022 में, भारत सरकार ने गेहूँ और सितंबर 2022 में टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया और सभी गैर-बासमती चावल शिपमेंट पर 20% शुल्क लगाया।
  • अगस्त 2023 में, गैर-बासमती चावल (उबले हुए) के निर्यात पर 20% शुल्क लगाया गया था, जबकि बासमती शिपमेंट पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) प्रतिबंध लगाया गया था।
  • चीनी निर्यात पर प्रतिबंध: गेहूँ और चावल के अलावा, भारत सरकार ने मई 2022 में चीनी निर्यात को ‘मुक्त’ से ‘प्रतिबंधित’ श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया और किसी भी वर्ष के दौरान बाहर जाने वाली चीनी की कुल मात्रा को सीमित कर दिया।

  • बुनियादी ढाँचे के मुद्दे: यह क्षेत्र अपर्याप्त कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर (CCI) और अकुशल लॉजिस्टिक्स के कारण बाधित है और फार्मगेट पैकहाउस (कोल्ड रूम के साथ प्री-कूलिंग इकाइयाँ) या अन्य CCI घटकों की आवश्यकता के बारे में बहुत कम जागरूकता है।
    • इससे उत्पादों की गुणवत्ता से संबंधित समस्याओं सहित खराब होने और निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता संबंधी समस्याएँ पैदा होती हैं।
    • APEDA के अनुसार, देश के लगभग 40 फीसदी कृषि खाद्य पदार्थ खराब हो जाते हैं, जिससे किसानों की आय पर नकारात्मक असर पड़ता है।
  • छोटी एवं सीमांत भू-जोत: छोटी और सीमांत भू-जोत, ऋण तक पहुँच की कमी के साथ मिलकर वाणिज्यिक उत्पादन में परिवर्तन में चुनौतियाँ पेश करती है।
    • दो हेक्टेयर से कम भूमि वाले छोटे और सीमांत किसान भारत के कुल किसानों का 86.2% हैं।
  • भू-राजनीतिक संघर्ष: भारत के कृषि निर्यात को लाल सागर संकट से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च माल ढुलाई दर और कंटेनर की कमी हुई है।
    • वैश्विक शिपिंग यातायात का लगभग 15 प्रतिशत व्यापार स्वेज नहर के माध्यम से होता है, जो यूरोप और एशिया के बीच सबसे छोटा शिपिंग मार्ग है, जो लाल सागर और भूमध्य सागर को जोड़ता है।
    • स्वेज नहर (लाल सागर में) के माध्यम से यूरोप को होने वाले भारतीय निर्यात में खाद्य उत्पाद, परिधान और इलेक्ट्रॉनिक्स सहित अन्य वस्तुएँ शामिल हैं और इसके आयात में कच्चा तेल शामिल है।

निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल

  • भारत की कृषि-निर्यात नीति: इसमें बुनियादी ढाँचे और लॉजिस्टिक्स में सुधार, राज्य सरकारों की अधिक भागीदारी और मानक गुणवत्ता मानकों को पूरा करने वाली अधिशेष उपज सुनिश्चित करने के लिए निर्यात केंद्रित क्लस्टर विकसित करने का आह्वान किया गया है।
  • कृषि प्रकोष्ठ: विश्व के विभिन्न गंतव्यों में भारतीय निर्यात को बेहतर बनाने के लिए वास्तविक समय के आधार पर इनपुट प्रदान करने हेतु 13 देशों में भारतीय दूतावासों में कृषि प्रकोष्ठ भी स्थापित किए गए हैं।
    • उदाहरण के लिए वियतनाम, अमेरिका, बांग्लादेश, नेपाल, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, सऊदी अरब, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, चीन, जापान और अर्जेंटीना।
  • मुक्त व्यापार समझौते (FTA): भारत ने व्यापार बाधाओं को दूर करने के प्रयास में विभिन्न देशों के साथ FTA पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • निर्यात उन्मुख कृषि उपज प्रसंस्करण और भंडारण सुविधा: राज्य के स्वामित्व वाली जवाहरलाल नेहरू पोर्ट अथॉरिटी (JNPA) ने इसे महाराष्ट्र में बनाने की योजना बनाई है।
    • प्रस्तावित सुविधा का उद्देश्य प्रसंस्करण दक्षता को बढ़ाना, एकाधिक हैंडलिंग को कम करना और बुनियादी ढाँचे की कमियों को दूर करना है, जिससे निर्यात और आयात में होने वाली बर्बादी पर अंकुश लगाया जा सके।
  • कृषि-खाद्य वस्तुओं को GI टैग: खाद्य एवं कृषि संबंधी भौगोलिक संकेतक (GI) और एक जिला एक उत्पाद (ODOP) पहल के तहत विभिन्न जिलों में 708 अद्वितीय खाद्य वस्तुओं की पहचान करना।
  • कृषि निर्यात के लिए समुद्री प्रोटोकॉल: भारत समुद्री मार्गों के माध्यम से अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए केले, आम, अनार और कटहल जैसे विभिन्न ताजे फलों एवं सब्जियों के लिए समुद्री प्रोटोकॉल विकसित कर रहा है।
  • अन्य योजनाओं में शामिल हैं
    • निर्यातित उत्पाद पर शुल्कों और करों में छूट (RoDTEP योजना)
    • अग्रिम प्राधिकरण योजना
    • शुल्क वापसी योजना (DBK योजना)।

भारतीय निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक सुधार

  • खाद्य निर्यात बास्केट का विविधीकरण: भारत को किसी-न-किसी वस्तु के उत्पादन में गिरावट के साथ समग्र निर्यात के जोखिम को रोकने के लिए अपने खाद्य निर्यात बास्केट में विविधीकरण बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • इसके लिए भारत द्वारा मूल्य वर्द्धित बाजरा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए। उच्च विविधीकरण से भारत को वैश्विक कीमतों और माँग में उतार-चढ़ाव से खुद को बचाने में मदद मिलेगी।
  • उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना: प्रतिस्पर्द्धात्मकता मुख्य रूप से उत्पादकता बढ़ाने से उत्पन्न होती है जिसके लिए कृषि अनुसंधान एवं विकास, बीज, सिंचाई, उर्वरक, सटीक कृषि सहित बेहतर कृषि पद्धतियों में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता होती है।
    • कृषि अनुसंधान एवं विकास में भारत का कुल निवेश कृषि GDP का लगभग 0.5% है, जो बहुत कम है और इसे दोगुना करने की आवश्यकता है।
    • चावल की खेती के तहत सबसे अधिक क्षेत्रफल (चीन से काफी अधिक) होने के बावजूद, भारत अपनी कम उपज दर के कारण दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो चीन के 6,710 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के विपरीत 2,809 किलोग्राम/हेक्टेयर है।
  • मजबूत निर्यात बुनियादी ढाँचे का विकास: कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए, बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढाँचे के विकास की तत्काल आवश्यकता है, जो आयात तथा निर्यात के लिए मुख्य निकास बिंदु के रूप में काम करते हैं।
    • प्रसंस्करण और संबंधित गतिविधियों में निजी निवेश आकर्षित करने से निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
  • खाने के लिए तैयार खाद्य पदार्थों पर ध्यान केंद्रित करना: भारत का ध्यान केवल कच्चे माल के निर्यात के बजाय बड़े पैमाने पर खाद्य प्रसंस्करण के निर्यात पर होना चाहिए।
    • इसमें ‘रेडी-टू-ईट’ खाद्य पदार्थ जैसे खंड शामिल किए जाने चाहिए।
  • मजबूत विपणन और प्रचार के माध्यम से ब्रांड इंडिया पर फोकस करना: इस संबंध में, सरकार को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर भारतीय उत्पादों के लिए अभियानों, प्रदर्शनियों, डिजिटल प्रचार और प्रचार रणनीतियों के लिए अलग से धन आवंटित करना चाहिए।
    • व्यापार एवं उद्योग संघ तथा विदेशों में भारतीय मिशन भी इसमें प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
  • पर्यावरणीय लागतों के साथ निर्यात आय को संतुलित करना: कृषि निर्यात नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता है क्योंकि भारत की निर्यात टोकरी जल गहन फसलों पर आधारित है और ज्यादातर मामलों में निर्यात आय पर्यावरणीय लागतों को उचित नहीं ठहराती है।
    • उदाहरण के लिए चीन, जिसकी चावल उत्पादकता भारत से अधिक है, चावल के निर्यात को प्रोत्साहित नहीं करता है क्योंकि प्रत्येक किलोग्राम चावल 80 लीटर तक जल की खपत करता है।
  • व्यापार बाधाओं को दूर करना: व्यापार बाधाओं की पहचान करने और उन्हें खत्म करने के लिए वाणिज्य मंत्रालय के भीतर एक टास्क फोर्स की स्थापना की जानी चाहिए।

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