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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे पर कानूनी विवाद (Legal dispute over minority status of Aligarh Muslim University)

Samsul Ansari January 15, 2024 02:54 304 0

संदर्भ

उच्चतम न्यायालय की सात जजों की एक पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले पर सुनवाई शुरू की।

  • यह विवाद लगभग 57 साल पुराना है और विभिन्न न्यायालयों द्वारा कई बार इस पर निर्णय सुनाया गया है।

संबंधित तथ्य 

  • इस मामले में जिन कानूनी प्रश्नों पर बहस हो रही है वे हैं:
    • क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जा सकता है?
    • क्या संसदीय कानून द्वारा स्थापित केंद्रीय वित्तपोषित विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में नामित किया जा सकता है?
    • उच्चतम न्यायालय को इस मामले पर अभी निर्णय देना शेष है।
    • वर्ष 2016 के निर्णय का बचाव: सरकार ने निर्णय के आधार के रूप में तथ्यात्मक और संवैधानिक तर्कों का हवाला देते हुए, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक स्थिति पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्ष 2006 के निर्णय के खिलाफ अपील वापस लेने के अपने वर्ष 2016 के निर्णय को उचित ठहराया है।

किसी शैक्षणिक संस्थान के ‘अल्पसंख्यक दर्जे’ से क्या तात्पर्य है?

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-30(1) सभी धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रशासित करने का अधिकार देता है।
  • यह प्रावधान यह गारंटी देकर अल्पसंख्यक समुदायों के विकास को बढ़ावा देने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है कि सरकार ‘अल्पसंख्यक’ संस्थान होने के आधार पर आर्थिक सहायता देने में भेदभाव नहीं करेगी।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) का उद्भव

  • स्थापना: AMU की स्थापना वर्ष 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल (MAO) कॉलेज के रूप में की गई थी।
  • वर्ष 1920 में, भारत में ब्रिटिश सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) अधिनियम, 1920 नामक एक केंद्रीय कानून पारित किया, जिसने MAO और कुछ अन्य कॉलेजों को इसके साथ संबद्ध होने में सक्षम बनाया।
  • इस अधिनियम में संशोधन: केंद्र सरकार ने वर्ष 1951 और वर्ष 1965 में इस कानून में दो संशोधन पारित किए। इन संशोधन ने विश्वविद्यालय के शासी निकाय की संरचना को बदल दिया और भारत के राष्ट्रपति को अपने सदस्यों को नामित करने की शक्तियाँ दे दीं।
  • इन संशोधनों को अजीज बाशा नामक व्यक्ति ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।

अल्पसंख्यकों के लिए संवैधानिक सुरक्षा

  • अनुच्छेद-29(1): यह अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान करता है और ‘अपनी स्वयं की एक विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति’ को संरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद-30(1): यह भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद-350B: यह राष्ट्रपति को भाषायी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के बारे में जाँच करने और कार्य करने के लिए अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी नामित करने की अनुमति देता है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities- NCM) 

  • इसकी स्थापना राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत की गई थी।
  • इसकी स्थापना भारत के संविधान और संसद एवं राज्य विधानमंडलों द्वारा अधिनियमित कानूनों के अनुसार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा एवं सुरक्षा के लिए की गई थी।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (National Commission for Minority Educational Institutions- NCMEI) 

यह NCMEI अधिनियम, 2004 के तहत संविधान के अनुच्छेद-30(1) में निहित अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए अधिनियमित एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) पर विवाद की संक्षिप्त समयरेखा

  • वर्ष 1967 का एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामला: उच्चतम न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने संशोधनों को बरकरार रखा और निर्णय सुनाया कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है क्योंकि इसे नियंत्रित करने वाला केंद्रीय कानून है।
    • न्यायालय ने माना कि AMU न तो मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित किया गया था और न ही प्रशासित किया गया था और भारत के संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों की सुरक्षा विश्वविद्यालय पर लागू नहीं होती है।
  • अल्पसंख्यक दर्जे को पुनर्स्थापित करने वाले संशोधन: हालाँकि, जब संसद द्वारा वर्ष 1981 में AMU (संशोधन) अधिनियम पारित किया गया तो इसे अल्पसंख्यक दर्जे के रूप में मान्यता मिली।
    • वर्ष 1981 के संशोधन के तहत, 1920 के अधिनियम में ‘विश्वविद्यालय’ शब्द को ‘भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित उनकी पसंद का शैक्षणिक संस्थान, जिसकी उत्पत्ति मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज, अलीगढ़ के रूप में हुई थी’ के रूप में परिभाषित किया गया था।
    • इस अधिनियम में यह कहते हुए और संशोधन किया गया कि विश्वविद्यालय के पास भारत के मुसलमानों के शैक्षिक और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने की शक्ति होगी।
  • अल्पसंख्यक दर्जे को चुनौती: वर्ष 2005 में, मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए स्नातकोत्तर की 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के बाद, सरकार द्वारा संस्थान के अल्पसंख्यक दर्जे को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसके अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ निर्णय दिया।
  • याचिका वापस लेना: वर्ष 2016 में, सरकार ने यह तर्क देते हुए याचिका वापस ले ली कि वह विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को मान्यता नहीं देती है।
    • वर्ष 2019 में, इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया, जिसने 9 जनवरी, 2023 को सुनवाई शुरू की।

AMU के लिए अल्पसंख्यक संस्थान के पक्ष में तर्क

  • वर्ष 1981 के अधिनियम में संशोधन की यथास्थिति का आदेश: वर्ष 1981 के संशोधन पर यथास्थिति आदेश के कारण AMU एक अल्पसंख्यक संस्थान बना हुआ है।
  • अल्पसंख्यक प्रशासित संस्थान: अपनी स्थापना के बाद से AMU के सभी कुलपति मुस्लिम रहे हैं और वास्तव में अल्पसंख्यक समुदाय इसका प्रशासन करता है।
    • केवल इसलिए कि प्रशासन में राज्य का दखल है, यह विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को खत्म नहीं करता है, जिसे मुसलमानों ने मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए स्थापित किया था।
    • प्रशासन में राज्य की भूमिका विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक पहचान को कम नहीं करती है, जिसे मुसलमानों ने मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक कल्याण को आगे बढ़ाने के लिए स्थापित किया था।
  • महिला शिक्षा: महिलाओं की शिक्षा के लिए अल्पसंख्यक दर्जा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि स्थिति में बदलाव से मुस्लिम महिलाओं की उच्च शिक्षा में बाधा आ सकती है क्योंकि मुस्लिम समुदाय, विशेष रूप से महिलाएँ, अल्पसंख्यक स्थिति के कारण AMU का विकल्प चुनती हैं।
    • AMU के अल्पसंख्यक दर्जा और मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा के मध्य आपस में घनिष्ठ संबंध हैं।
  • सच्चर समिति की रिपोर्ट: यह रिपोर्ट मुस्लिम समुदाय द्वारा अनुभव की गई शैक्षिक कमी की सीमा को स्थापित करती है।
    • शिक्षा के निम्न स्तर और निम्न गुणवत्ता वाली शिक्षा के कारण मुसलमानों को दोहरा नुकसान हो रहा है।

AMU की अल्पसंख्यक स्थिति के विरुद्ध तर्क

  • राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान: सरकार के अनुसार, AMU को भारत के संविधान में शामिल करके एक विशेष दर्जा दिया गया है, जिसे ‘राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान’ माना जाता है।
    • संविधान इसे अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में नहीं मानता है और संस्थान ने लगातार राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण इकाई के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखी है।
    • इसके नाम के विपरीत इसके बारे में पता चलता है कि, यह मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में प्रमुखता से कार्य करने वाला विश्वविद्यालय नहीं है क्योंकि इसकी स्थापना और प्रशासन अल्पसंख्यकों द्वारा नहीं किया गया है।
  • पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण: वर्ष 2023 में शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) द्वारा इसे भारत के विश्वविद्यालयों और स्वायत्त संस्थानों में 9वाँ स्थान दिया गया है।
    • इसलिए, यदि इसे अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया जाता है तो इसे केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006 (वर्ष 2012 में संशोधित) की धारा 3 के तहत आरक्षण नीति लागू करने की आवश्यकता नहीं होगी।
      • इस अधिनियम की धारा 3 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए सीटें आरक्षित करने का आदेश देती है।
  • संघ सूची के अंतर्गत सूचीबद्ध: भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को संघ सूची में रखा गया है। संघ सूची में उल्लिखित कोई भी संस्था कभी भी अल्पसंख्यक संस्था नहीं हो सकती है।
  • टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य: इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थानों में अलग-अलग प्रवेश प्रक्रियाएँ हो सकती हैं, जो निष्पक्ष, पारदर्शी और योग्यता पर आधारित हों।

वर्तमान सुनवाई में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • अल्पसंख्यकों को अलग-थलग करना उद्देश्य नहीं: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-30(1) के तहत धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का जो अधिकार दिया गया है, उसका उद्देश्य उन्हें अलग-थलग करना नहीं है।
  • गैर-अल्पसंख्यक शासी परिषद: न्यायालय ने प्रश्न किया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान क्यों माना जाता है जबकि 180 सदस्यीय गवर्निंग काउंसिल में केवल 37 मुस्लिम सदस्य हैं?
  • प्रशासकों से स्वतंत्र अल्पसंख्यक दर्जा: पैनल ने AMU की अल्पसंख्यक स्थिति से संबंधित एक संदर्भ को संबोधित किया और कहा कि एक शैक्षणिक संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा खत्म नहीं होता है, भले ही इसके संस्थापक बहुसंख्यक समूह से प्रशासक चुनते हों।

निष्कर्ष

अल्पसंख्यक वर्ग, विशेषकर मुसलमानों में शिक्षा का अभाव उनके पिछड़ेपन का एक कारण है। इस प्रकार, अल्पसंख्यकों के अधिकारों और अन्य पिछड़े वर्गों के शैक्षिक अधिकारों को संतुलित करने की आवश्यकता है।

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