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हिमालयी भेड़िया (Himalayan wolf)

Samsul Ansari January 15, 2024 03:50 308 0

संदर्भ

हिमालयी भेड़िया (Himalayan Wolf) का मूल्यांकन पहली बार इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट में किया गया है।

संबंधित तथ्य

  • यह मूल्यांकन ब्रिटिश और नेपाली शोधकर्ताओं की एक टीम के नेतृत्व में वर्ष 2018 के अध्ययन पर आधारित है, जो हिमालयी भेड़िये की आनुवंशिक रूप से अद्वितीय वंश प्रकृति की पुष्टि करता है।

  • हिमालयी भेड़िये को IUCN की रेड लिस्ट में ‘सुभेद्य’ (Vulnerable) श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिनकी संख्या केवल लगभग 2,275 से 3792 के बीच बताई जाती है। 

हिमालयी भेड़ियों के बारे में

  • वैज्ञानिक नाम: कैनिस ल्यूपस चांको (Canis Lupus Chanco)
  • सीमा क्षेत्र: ये भारत, नेपाल के हिमालय तथा चीन के तिब्बती पठार में उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
    • प्राकृतिक वास: उच्च ऊँचाई वाले घास के मैदान।
  • बनावट: यह आकार में भारतीय और यूरोपीय भेड़ियों से बड़ा है। इसकी लंबाई 110-180 सेमी., पैर से कंधे तक लंबाई लगभग 75 सेमी. और वजन लगभग 50 किलोग्राम तक होता है।
  • खाद्य एवं शिकार: ये याक, किआंग, भरल, तिब्बती गजेल, साइबेरियन आइबेक्स, मर्मोट और खरगोश जैसे अन्य छोटे स्तनधारी जीवों का शिकार करते हैं।

मूल्यांकन के निष्कर्ष

  • हिमालयी भेड़िये को खतरा
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष: अतिक्रमण और जंगली शिकार की आबादी में कमी के कारण जंगली जानवर पालतू पशुओं के शिकार के लिए मानव बस्तियों में प्रवेश करते  हैं।
    • जंगली कुत्ते: कुत्तों के साथ संकरण लद्दाख और स्पीति में हिमालयी भेड़ियों की आबादी के लिए एक उभरता हुआ खतरा है, जहाँ जंगली कुत्तों की बढ़ती आबादी एक बड़ी चुनौती पैदा कर रही है।
    • शिकार: इनके फर एवं पंजे, जीभ, सिर और अन्य हिस्सों सहित शरीर के अंगों के व्यापार के लिए इनका अवैध रूप से शिकार किया जाता है।
    • पर्यावास हानि: जलवायु परिवर्तन, अतिक्रमण, अतिचारण और मानवीय गतिविधियों के कारण इनके घास के मैदानों का स्वरूप लगातार बदल रहा है।
  • संरक्षण के उपाय
    • जंगली शिकार आबादी और परिदृश्यों को सुरक्षित करना एवं पुनर्स्थापित करना तथा वन्यजीव आवास आश्रयों को अलग करना।
    • पशुधन की रखवाली के तरीके: शिकारी-रोधी बाड़ों का उपयोग करना और कम पशुधन भार, अनुकूलित चरवाहा सहित स्थायी पशुधन चराने की प्रथाओं का उपयोग करना।
    • जंगली कुत्तों की आबादी का प्रबंधन करना।
    • अनुसंधान और निगरानी के माध्यम से रेंज देशों (जिनमें हिमालयी भेड़िये पाए जाते हैं) में प्रजातियों के संरक्षण में सीमापारीय प्रयास किए जाने चाहिए।
    • हिमालयी भेड़िया आबादी के लिए पशुपालन/चरागाह प्रबंधन प्रथाओं में सुधार करना, जो कि लद्दाख की तरह पशुधन पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
    • हिमालयी भेड़ियों के लिए संरक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए, जो सार्वजनिक स्वीकृति को बढ़ावा देने और उनके शिकार को कम करने में सहायता कर सकता है।
    • उल्लेखनीय है कि भारत मैदानी इलाकों और दक्कन के पठार में पाए जाने वाले भारतीय/सामान्य/प्रायद्वीपीय भेड़िये (कैनिस ल्यूपस पल्लिप्स-Canis Lupus Pallipes) का भी घर है।

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