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भारत में आय असमानता (Income inequality in India)

Samsul Ansari January 16, 2024 03:26 482 0

संदर्भ

पिछले तीन दशकों में भारत के राज्यों के बीच आय असमानताएँ काफी बढ़ी हैं।

संबंधित तथ्य

  • राज्य घरेलू उत्पाद (SDP) का भौगोलिक विभाजन: वर्ष 2019-20 में राष्ट्रीय औसत से ऊपर प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद (SDP) वाले राज्यों और उससे नीचे वाले राज्यों के बीच एक स्पष्ट भौगोलिक अंतर मौजूद है।
    • भारत में दक्षिण, पश्चिम और उत्तर-पश्चिम के राज्य अधिक समृद्ध हैं, जबकि कम समृद्ध राज्य उत्तर, मध्य भारत और पूर्व में अवस्थित हैं। (मानचित्र देखें)
    • वर्ष 1990-91 के दौरान, उच्च आय वाले राज्यों का प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद (SDP) निम्न आय वाले राज्यों का 1.7 गुना था, जो वर्ष 2019-20 तक बढ़कर 2.5 गुना हो गया।
  • विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में SDP के प्रमुख अंतर
    • विनिर्माण क्षेत्र में, उच्च से निम्न आय वाले राज्यों का प्रति व्यक्ति SDP अनुपात वर्ष 1990-91 में 2.4 से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 3.6 हो गया।
    • इसी प्रकार, इसी अवधि में सेवा क्षेत्र 2.0 से बढ़कर 2.9 हो गया।

राज्य घरेलू उत्पाद (State Domestic Product)

  • राज्य घरेलू उत्पाद को राज्य की भौगोलिक सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के आर्थिक मूल्य के योग के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसे एक निर्दिष्ट अवधि, आमतौर पर एक वर्ष के दौरान दोहराव के बिना गिना जाता है।

भारत में क्षेत्रीय असमानताओं के पीछे कारण

  • ऐतिहासिक कारक: ब्रिटिश शासकों और उद्योगपतियों ने भारत में केवल उन्हीं क्षेत्रों का विकास किया जिनमें समृद्ध विनिर्माण और व्यापारिक गतिविधियों की प्रचुर संभावना थी।
    • उदाहरण- महाराष्ट्र तथा कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे तीन महानगरीय शहर।

  • नियोजन तंत्र की विफलता: नियोजन तंत्र ने भारत के विकसित और कम विकसित राज्यों के बीच असमानता को बढ़ा दिया है।
    • पहली से सातवीं योजना तक पंजाब और हरियाणा को सबसे अधिक प्रति व्यक्ति योजना परिव्यय प्राप्त हुआ। गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को भी लगभग सभी पंचवर्षीय योजनाओं में अधिक योजना परिव्यय प्राप्त हुआ।
    • दूसरी ओर, पिछड़े राज्यों को लगभग सभी योजनाओं में प्रति व्यक्ति योजना परिव्यय का सबसे कम आवंटन प्राप्त हुआ।
  • पिछड़े राज्यों में अनुषंगी उद्योगों की वृद्धि में कमी: सरकार ने पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण अपनाया। इसके तहत राउरकेला, बरौनी, भिलाई, बोंगाईगाँव आदि जैसे पिछड़े क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र के औद्योगिक उद्यमों की स्थापना की।
    • हालाँकि, इन क्षेत्रों में अनुषंगी उद्योगों की वृद्धि में कमी के कारण, सरकार द्वारा किए गए भारी निवेश के बावजूद ये सभी क्षेत्र पिछड़े बने रहे।
  • भारत की औद्योगीकरण रणनीति की विफलता: चीन के विपरीत, भारत औद्योगीकरण की अपनी आर्थिक स्थिर स्थिति से नहीं निकल सका। इसके बजाय, सेवा क्षेत्र आर्थिक विकास के चालक के रूप में उभरा।
    • कृषि से पलायन करने वाले लोगों के लिए पर्याप्त रोजगार उत्पन्न करने में उद्योग और सेवा क्षेत्र की असमर्थता इस असमानता का एक और कारण है।
    • वर्ष 2012 और वर्ष 2019 के बीच, उद्योग क्षेत्र में कार्यरत कार्यबल में 1 प्रतिशत अंक की वृद्धि नहीं हुई है।
  • उच्च आय वाले राज्यों में सेवा क्षेत्र का संकेंद्रण: उदारीकरण के बाद के युग में विकास का एक प्रमुख स्रोत सेवाओं, विशेषकर सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों से आया है, जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 7.4 प्रतिशत है और 5.4 मिलियन लोगों को रोजगार देता है।
    • वे लगभग पूरी तरह से कुछ उच्च आय वाले राज्यों में अवस्थित हैं, अपवाद के रूप में पश्चिम बंगाल (कोलकाता) है।
    • हाल ही में, कुछ शहर कम विकास दर वाले राज्यों में सूचना प्रौद्योगिकी (InfoTech) केंद्र के रूप में उभरे हैं। उदाहरण- जयपुर, इंदौर, भोपाल और भुवनेश्वर।
      • हालाँकि, उत्तरी राज्यों में ऐसा कोई विकास नहीं देखा गया है।
  • सार्वजनिक निवेश में गिरावट: प्रति व्यक्ति राज्य घरेलू उत्पाद (SDP) में बढ़ती असमानता में योगदान देने वाला प्राथमिक कारक वर्ष 1991 के बाद के उदारीकरण युग के बाद निजी क्षेत्र में निवेश में हुई वृद्धि है।
    • वर्ष 1990-91 और वर्ष 2019-20 के बीच, सकल स्थिर पूँजी निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से घटकर 23 प्रतिशत हो गई है, जबकि निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत से बढ़कर 38 प्रतिशत हो गई है।
    • परिणामस्वरूप निजी क्षेत्र के अंतर्गत बड़े उद्यमों में उद्यमशील क्षमता का अत्यधिक असंतुलन उत्तर, मध्य एवं पूर्व भारत तथा दक्षिण, पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम भारत के बीच प्रति व्यक्ति आय में बढ़ते अंतर का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है।
  • आर्थिक केंद्रों का खराब जुड़ाव: भारत के विकास केंद्र भौगोलिक दृष्टि से या विकास के किसी विशेष इंजन के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े नहीं हैं। 
    • भारत में कुछ विकास केंद्रों के कारण राज्यों में रोजगार का विषम वितरण नहीं हुआ, जिससे गरीब राज्यों में गरीबी की स्थिति उत्पन्न हो गई।
    • भारत के गरीब राज्य कृषि गतिविधियों में संलग्न हैं। हालाँकि, राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में उनका योगदान न्यूनतम है।
    • कोई विकास इंजन न होने के कारण, कोई आर्थिक तंत्र नहीं है जिसके द्वारा ये राज्य जुड़ सकें और स्पिलओवर प्रभाव से लाभ उठा सकें।
    • उदाहरण:- उत्तर प्रदेश (उत्तर, उप-हिमालयी), राजस्थान (सुदूर-पश्चिम, रेगिस्तान), मध्य प्रदेश (मध्य, शुष्क पठार), बिहार और उड़ीसा (उत्तर-पूर्व में निकटवर्ती राज्य) और सुदूर में उप-हिमालयी पूर्वी राज्य।
  • हरित क्रांति (Green Revolution) की सीमित सफलता: हरित क्रांति के लाभ असमान रूप से वितरित किए गए हैं, कुछ क्षेत्रों को दूसरों की तुलना में अधिक लाभ हुआ है।
    • यह लाभ पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी क्षेत्रों में केंद्रित थे, जिससे क्षेत्रों के बीच आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ पैदा हुईं।

अन्य

  • श्रम बल असमानता: उत्तरी और मध्य राज्यों में, शहरी श्रम बल भागीदारी दर और नियमित वेतन वाले श्रमिकों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से नीचे है।
  • इंजीनियरिंग शिक्षा तक पहुँच में असमानता: लगभग 70 प्रतिशत इंजीनियरिंग सीटें उच्च आय वाले राज्यों में हैं।
  • शिक्षा में निवेश में कमी: स्वास्थ्य व्यय 4.5 प्रतिशत से बढ़कर 6.6 प्रतिशत हो गया है और शिक्षा में व्यय कम (10.8 प्रतिशत से 9.7 प्रतिशत) हो गया है।
  • उद्यमिता असंतुलन: उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) 2019-20 के अनुसार, उच्च आय वाले राज्यों में कारखानों, निश्चित पूँजी और रोजगार की संख्या का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा है।
    • सबसे धनी 100 भारतीयों में से 87 उच्च विकास वाले राज्यों में रहते हैं।

असमान विकास का प्रभाव 

  • असममित विकास के परिणामस्वरूप चुनिंदा क्षेत्रों में उद्योगों का संकेंद्रण हुआ। यह परिवारों की स्वास्थ्य, पोषण और भौतिक बुनियादी ढाँचे जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुँच को प्रभावित करता है।
    • अत्यधिक विषम जनसंख्या वितरण।
    • भीड़भाड़ वाले शहर।
    • गरीबों का शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन।
    • मलिन बस्तियों में वृद्धि।
    • शहरी आवास की लागत में वृद्धि।
    • जीवन की गुणवत्ता के मुद्दे जैसे- जल स्तर में कमी और वायु प्रदूषण।

पिछड़े क्षेत्रों के लिए सरकारी हस्तक्षेप

  • 14वें वित्त आयोग में ‘इनकम डिस्टेंस भारांक’: आयोग ने ‘इनकम डिस्टेंस’ को 50% भारांक दिया क्योंकि यह राजकोषीय क्षमता की एकमात्र माप है।
    • ‘इनकम डिस्टेंस’ किसी राज्य की आय की उच्चतम आय वाले राज्य से दूरी है।
  • पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि योजना: इसे विकास में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह फंड पहचाने गए जिलों में मौजूदा विकासात्मक प्रवाह को पूरा करने और परिवर्तित करने के लिए वित्तीय संसाधन प्रदान करेगा।
  • राष्ट्रीय सम विकास योजना (Rashtriya Sam Vikas Yojana- RSVY): इस योजना का उद्देश्य पिछड़े क्षेत्रों के लिए केंद्रित विकास कार्यक्रम है, जो असंतुलन को कम करने और विकास को गति देने में मदद करेगा।
  • आकांक्षी जिला कार्यक्रम (Aspirational Districts Programme- ADP): इसका लक्ष्य देश भर के 112 सबसे कम विकसित जिलों का सामाजिक-आर्थिक विकास करना है।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihoods Mission- NRLM): इसका उद्देश्य गरीबों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए मजबूत संस्थानों का निर्माण करके और इन संस्थानों को विभिन्न वित्तीय सेवाओं तथा आजीविका तक पहुँचने में सक्षम बनाकर गरीबी उन्मूलन को बढ़ावा देना है।

क्षेत्रीय असंतुलन से संबंधित समितियाँ

  • बी. डी. पांडे समिति, 1968: वित्तीय और राजकोषीय प्रोत्साहन के माध्यम से चयनित पिछड़े क्षेत्रों या क्षेत्रों में सभी आकार के उद्योगों की स्थापना करके क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने की रणनीति का सुझाव देना।
  • निरंजन नाथ वांचू समिति, 1968: इसे क्षेत्रीय असंतुलन पर सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा नियुक्त किया गया था।
  • सुखमय चक्रवर्ती, 1972: पिछड़े क्षेत्रों के वर्गीकरण और पहचान से संबंधित एक समिति।

आगे की राह

  • उच्च आय वाले राज्यों में मूल्य शृंखलाओं को कम आय वाले राज्यों से जोड़ना: इन क्षेत्रों को उच्च आय वाले राज्यों के साथ जोड़ने के साथ-साथ कम आय वाले राज्यों में उद्यमिता और श्रम कौशल को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • वर्तमान में, वाहन विनिर्माण जैसे उद्योगों में राष्ट्रीय मूल्य शृंखलाएँ कमोबेश उच्च आय वाले राज्यों तक ही सीमित हैं।
    • इसलिए, एक राष्ट्रीय नीति, जो दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में उद्यमों को उत्तरी तथा पूर्वी राज्यों में इनपुट आपूर्ति या असेंबली संचालन के लिए कम लागत के अवसरों से जोड़ने वाली मूल्य शृंखलाओं को बढ़ावा देती है, की आवश्यकता है।
    • इसके लिए मध्यम और छोटे उद्यमों के विस्तार को प्रोत्साहित करने के उपायों की आवश्यकता होगी, जो कम आय वाले राज्यों में बड़ी संख्या में मौजूद हैं।
  • कौशल विकास: कौशल विकास और इंजीनियरिंग शिक्षा को बढ़ाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
    • इससे उच्च आय वाले राज्यों के उद्यमों को आकर्षित करने के लिए आवश्यक क्षमता विकसित होगी, जो या तो पहले ही पार कर चुके हैं अथवा उस स्तर पर पहुँचने के कगार पर हैं, जहाँ कामकाजी उम्र की आबादी में उनकी हिस्सेदारी अब नहीं बढ़ रही है।
  • क्षेत्र-विशिष्ट हस्तक्षेप: भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए एक आकार-सभी के लिए उपयुक्त दृष्टिकोण अनुपयुक्त है।
    • इसमें कृषि-प्रसंस्करण, भंडारण इकाई और परिवहन की स्थापना और शिक्षा तथा स्वास्थ्य में महत्त्वपूर्ण निवेश के साथ-साथ सुलभ रोजगार के अवसर पैदा करने जैसे आयामों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • गरीब राज्यों के लिए उधार की सीमा में ढील: देश के गरीब राज्यों को देश के बाकी हिस्सों के बराबर पहुँचने के लिए दीर्घकालिक राजकोषीय प्रोत्साहन की आवश्यकता है।
    • केंद्र सरकार, गरीब राज्य सरकारों के लिए उधार की सीमा में ढील दे सकती है।
    • इससे गरीब राज्यों को अपना पूँजीगत व्यय बढ़ाने, विकास में वृद्धि करने और अन्य राज्यों के साथ बराबरी करने में मदद मिलेगी।
  • महिला श्रम बल भागीदारी दर में वृद्धि: महिला श्रम बल को अपनी भागीदारी दर बढ़ाने के लिए सशक्त होना चाहिए।
    • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट 2022-23 के अनुसार, भारत की महिला श्रम बल भागीदारी दर 2023 में 37% है।

निष्कर्ष

क्षेत्रीय विकास असमानता के मुद्दे को प्रमुख महत्त्व दिया जाना चाहिए क्योंकि कामकाजी उम्र की आबादी में 75 प्रतिशत मध्यम अवधि और 90 प्रतिशत दीर्घकालिक वृद्धि इन राज्यों में होगी। यदि हम इन राज्यों की आय और विकास क्षमता को बढ़ावा देने में विफल रहते हैं, तो भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश जनसांख्यिकीय गिरावट में बदल जाएगा, जो भारत में राजनीतिक अस्थिरता को और खराब कर सकता है।

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