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NGT ने कावेरी बेसिन में हरित आवरण में कमी पर चिंता जताई (NGT expresses concern over reduction in green cover in Cauvery basin)

Samsul Ansari January 18, 2024 06:52 181 0

संदर्भ

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने कावेरी बेसिन में हरित आवरण में कमी पर भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) की एक रिपोर्ट के बाद कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की सरकारों को नोटिस जारी किया है।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal)

  • इसकी स्थापना वर्ष 2010 में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिए ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010’ के तहत की गई थी।
  • ‘सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908’ की निर्धारित नियमावली के तहत ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ बाध्य नहीं है बल्कि यह अधिकरण प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है।
  • यह बहु-विषयक मुद्दों से जुड़े पर्यावरणीय विवादों को सँभालने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता से सुसज्जित एक विशेष निकाय है।

NGT की बेंच

  • प्रधान पीठ: नई दिल्ली
  • क्षेत्रीय बेंच: भोपाल, पुणे, कोलकाता और चेन्नई।

संबंधित तथ्य 

  • वन क्षेत्र में कमी पर चिंता: NGT ने कावेरी बेसिन के 73.5% हिस्से में व्यापक कृषि और बागवानी गतिविधियों के बारे में चिंता व्यक्त की है।
    • केवल 18% क्षेत्र ही वन क्षेत्र के रूप में बचा हुआ है तथा घने जंगल केवल 13% क्षेत्र तक ही सीमित हैं।
  • तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता: NGT ने कावेरी बेसिन में पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने और इसके पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता पर जोर दिया है।
    • NGT ने संबंधित राज्यों से तुरंत जवाब देने का आग्रह किया गया है। इससे संबंधित  मामले की सुनवाई NGT की चेन्नई पीठ में होनी है, जो इस मामले पर अधिकार क्षेत्र रखती है।

रिपोर्ट की मुख्य बातें

  • हरित आवरण में गिरावट: कावेरी बेसिन में वर्षं 1965 से 2016 तक हरित आवरण में 12,850 वर्ग किलोमीटर की कमी देखी गई है।
    • इसी अवधि के दौरान कर्नाटक ने लगभग 57 प्रतिशत यानी 9,664 वर्ग किमी. के बराबर हरित आवरण खो दिया है, तमिलनाडु में 29 प्रतिशत (2,905 वर्ग किमी.) तथा  केरल में 27 प्रतिशत (279 वर्ग किमी.) का हरित आवरण खो गया है। 
  • प्राकृतिक भंडार में वन आवरण में कमी: कृषि गतिविधियों और खनन एवं विकास परियोजनाओं के विस्तार ने प्राकृतिक भंडार पर दबाव बढ़ा दिया है।
    • बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान: पिछले 50 वर्षों में उद्यान के वन क्षेत्र में 15.19% की कमी आई है, जिसका मुख्य कारण विकास गतिविधियाँ और जंगल में लगने वाली आग है।
    • नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान: मानवीय हस्तक्षेप और बढ़ती बागवानी गतिविधियों के कारण वन क्षेत्र में 11% की कमी देखी गई है।
    • बिलिगिरि रंगनाथस्वामी मंदिर (BRT) वन्यजीव अभयारण्य: इस वन्यजीव अभयारण्य में भी वन क्षेत्र में कमी का अनुभव किया गया है, जिससे वन अतिक्रमण के संबंध में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
    • कावेरी वन्यजीव अभयारण्य: जनसंख्या वृद्धि और अतिक्रमण के कारण इसके वन क्षेत्रों पर खतरा मंडरा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1973 और 2016 के बीच हरित आवरण में 18.43 प्रतिशत की कमी आई है।
    • बन्नेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान: इस उद्यान के घने वन क्षेत्र में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है, जो वर्ष 1973 में 50.40 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2016 में 28 प्रतिशत हो गई है।

कावेरी बेसिन

  • कावेरी बेसिन का विस्तार: कावेरी बेसिन का विस्तार तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 2.7% है।

  • क्षेत्रफल: यह 85,626.23 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसकी अधिकतम लंबाई और चौड़ाई क्रमशः 560 किमी. और 245 किमी. है।
  • भौगोलिक सीमाएँ: यह पश्चिम में पश्चिमी घाट से, पूर्व और दक्षिण में पूर्वी घाट से और उत्तर में इसे कृष्णा घाटी और पेन्नार घाटी से अलग करने वाली पर्वत शृंखलाओं से घिरा है।
  • कावेरी नदी का उद्गम: कावेरी नदी, जो इस बेसिन की मुख्य नदी है, कर्नाटक के पश्चिमी घाट में ब्रह्मगिरी रेंज पर तालाकावेरी से लगभग 1341 मीटर की ऊँचाई से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले लगभग 800 किमी. तक के अपवाह क्षेत्र को कवर करती है।
    • कावेरी नदी की सहायक नदियाँ: हरंगी, हेमवती, काबिनी, सुवर्णवती और भवानी।

कावेरी बेसिन संकट के पीछे कारण

    • मूल कारण: पारिस्थितिकीविदों के अनुसार, बड़े बाँध जल प्रवाह और तलछट परिवहन को बाधित करते हैं।
  • पश्चिमी घाट में वनों की कटाई: IIT-बॉम्बे के एक अध्ययन के अनुसार, पश्चिमी घाट (WG) में वनों की कटाई से तमिलनाडु जैसे पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जल संसाधन कम हो रहे हैं।
    • जैव-विविधता हॉटस्पॉट के रूप में पहचाने जाने वाले पश्चिमी घाट में वृक्षारोपण, कृषि के विस्तार और जलविद्युत बाँधों की माँग के कारण वर्ष 1920 के बाद से हरित आवरण में 35% की गिरावट देखी गई है।
  • वर्षा पैटर्न में व्यवधान: वर्ष 2018 में जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, इस पारिस्थितिकी गिरावट ने वर्षा के बुनियादी पैटर्न को बाधित कर दिया है।

जैव-विविधता हॉटस्पॉट: जैव-विविधता हॉटस्पॉट के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए, किसी क्षेत्र को दो सख्त मानदंडों को पूरा करना होगा:

  • इसमें संवहनी पौधों की कम-से-कम 1,500 प्रजातियाँ शामिल हैं, जो पृथ्वी पर कहीं और नहीं पाई जाती हैं (जिन्हें ‘स्थानिक’ प्रजाति के रूप में जाना जाता है)।
  • इसकी कम-से-कम 70 प्रतिशत प्राथमिक देशी वनस्पति नष्ट हो गई है।

भारत में जैव विविधता हॉटस्पॉट

  • हिमालय: इसमें संपूर्ण भारतीय हिमालयी क्षेत्र (पाकिस्तान, तिब्बत, नेपाल, भूटान, चीन और म्याँमार में पड़ने वाला क्षेत्र) शामिल है।
  • इंडो-बर्मा: इसमें असम और अंडमान द्वीपसमूह (और म्याँमार, थाईलैंड, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया और दक्षिणी चीन) को छोड़कर संपूर्ण उत्तर-पूर्वी भारत शामिल है।
  • सुंडालैंड: इसमें निकोबार द्वीपसमूह ( इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई, फिलीपींस) शामिल हैं।
  • पश्चिमी घाट और श्रीलंका: इसमें संपूर्ण पश्चिमी घाट (और श्रीलंका) शामिल हैं।

  • जून और सितंबर के बीच तमिलनाडु की 25% से 40% मानसून वर्षा के लिए पश्चिमी घाट जिम्मेदार हैं, जो महत्वपूर्ण खरीफ फसलों के अनुकूल है।
  • तापमान में वृद्धि: हरित आवरण के गायब होने से पूरे तमिलनाडु में भू-सतही तापमान में 0.25 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई।
    • वनों की कटाई से भूमि खाली हो जाती है, जिससे सूर्य की रोशनी पृथ्वी को अधिक गर्म कर देती है, जिससे वाष्पीकरण बढ़ जाता है और भूमि के जल संचय में बाधा आती है।

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