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‘मोह-जुज’: असम की एक परंपरा (‘Moh-Juj’: A tradition of Assam)

Samsul Ansari January 19, 2024 02:40 241 0

संदर्भ

हाल ही में लगभग नौ वर्षों के बाद असम के अहातगुरी में ‘मोह-जूज’ (Moh-Juj) नामक परंपरागत भैंस लड़ाई आयोजित की गई।

संबंधित तथ्य

  •  ‘मोह-जूज’ पर रोक 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2014 में एक आदेश पारित कर सभी जानवरों की दौड़ और लड़ाई पर रोक लगा दी थी।
    • साथ ही भारतीय पशु कल्याण बोर्ड और केंद्र सरकार को जानवरों को अनावश्यक दर्द और पीड़ा देने से रोकने का निर्देश दिया गया।
  • अनुमति: दिसंबर 2023 में असम मंत्रिमंडल ने माघ बिहू के दौरान ‘मोह-जूज’ नामक पारंपरिक भैंस और बैल की लड़ाई आयोजित करने की अनुमति देने के लिए विस्तृत प्रक्रिया (SOP) के माध्यम से सैद्धांतिक मंजूरी प्रदान की थी।
    • SOP का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जानवरों पर कोई अत्याचार या क्रूरता न की जाए और वार्षिक मोह-जुज उत्सव के दौरान आयोजकों द्वारा उनका कल्याण सुनिश्चित किया जाए, जो सदियों पुरानी असमिया परंपरा एवं संस्कृति का अभिन्न अंग है। 

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड

  • परिचय: भारतीय पशु कल्याण बोर्ड पशु कल्याण कानूनों पर एक वैधानिक सलाहकार निकाय है और देश में पशु कल्याण को बढ़ावा देता है।
    • पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के खंड चार के तहत वर्ष 1962 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड का गठन किया गया था।
  • कार्य  
    • बोर्ड पशु कल्याण से संबंधित कानूनों का देश में सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करता है और इस कार्य से जुड़ी संस्थाओं की मदद करता है तथा केंद्र और राज्य सरकारों को इस संबंध में परामर्श देता है। 
  • संरचना: अधिनियम के अनुसार,  बोर्ड में 28 सदस्य होते हैं जिसमें 6 सांसद होते हैं (4 लोकसभा से और 2 राज्यसभा से)। 
  • मुख्यालय: केंद्र सरकार ने भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) का मुख्यालय चेन्नई, (तमिलनाडु) से हरियाणा के फरीदाबाद जिले के बल्लभगढ़ में स्थानांतरित कर दिया है।

‘मोह-जुज’ (Moh-Juj)

  • परिचय:
    • यह असम राज्य में माघ बिहू के दौरान पारंपरिक भैंस और बैल की लड़ाई आयोजित करने से संबंधित एक परंपरा है।
  • पृष्ठभूमि:
    • मोह-जुज को लगभग 200 वर्ष पहले अहोम शासक स्वर्गदेव रुद्रसिंह ने प्रारंभ किया था।
    • पहले मोह-जुज के दौरान अहोम गांवों में कुश्ती और कई खेल प्रतियोगिताएँ आयोजित होती थीं, जिनमें महिलाओं के लिए ‘धोप खेल’ (Dhop Khel) भी शामिल था
  • गतिविधियाँ
  • इस दौरान युवा बाँस, पत्तियों और छप्पर से अस्थायी झोपड़ियाँ बनाते हैं, जिन्हें ‘मेजी’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें वे भोजन खाते हैं और फिर अगली सुबह झोपड़ियों को जला देते हैं। 
  • लोग ‘टेकेली भोंगा (बर्तन तोड़ना)‘, और ‘कुकुरा जुज (मुर्गा लड़ाई)’ जैसे खेलों को भी आयोजित करते हैं। 
  • रात में परिवार के सदस्य अलाव के पास एकत्रित होते हैं और खाना पकाते हैं। 
  • इस दावत का आकर्षण सभी असमिया घरों में तैयार की जाने वाली पारंपरिक मिठाइयाँ हैं, जिनमें चावल के केक जिन्हें ‘शुंगा पीठा’, ‘तिल पीठा’ और नारियल की मिठाइयाँ जिन्हें ‘लारू’ कहा जाता है, शामिल हैं।

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