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भारत की रक्षा प्रौद्योगिकी का रोडमैप (India’s Defense Technology Roadmap)

Samsul Ansari January 20, 2024 11:19 178 0

संदर्भ

  • रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के कार्यों की समीक्षा के लिए रक्षा मंत्री द्वारा पूर्व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गई है।
  • हाल ही में, विजय राघवन पैनल द्वारा एक सुझाव प्रदान किया गया है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में रक्षा प्रौद्योगिकी परिषद (DTC) द्वारा देश की रक्षा प्रौद्योगिकी का रोडमैप तैयार करने की आवश्यकता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: विजय राघवन पैनल के बारे में।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO)- महत्त्व, चुनौतियाँ और आगे की राह।

समिति के गठन की आवश्यकता

  • भूमिकाओं को पुनर्परिभाषित करना: इसका कार्य विभाग की भूमिका की समीक्षा करना, उसे पुनः परिभाषित करना और रक्षा क्षेत्र में भविष्य की तकनीकी आवश्यकताओं के साथ इसका तालमेल स्थापित करने के संबंध में सिफारिशें तैयार करना है।
  • संसदीय समिति: वर्ष 2019 में, DRDO का प्रदर्शन मानकों से कम रहने पर  संसदीय समिति द्वारा एक महत्त्वपूर्ण पुनर्गठन की आवश्यकता पर बल दिया गया।
  • CAG रिपोर्ट: निर्धारित लक्ष्यों को पूरा नहीं करने के पश्चात् भी 20 मिशन मोड परियोजनाओं को ‘सफल’ के रूप में वर्गीकृत किए जाने पर DRDO की CAG द्वारा आलोचना भी की गई थी।
  • डॉ. पी. रामाराव समिति: इससे पहले DRDO के संचालन संबंधी मूल्यांकन के लिए DRDO द्वारा  डॉ. पी. रामाराव समिति की स्थापना की गई थी। हालाँकि इस समिति के सभी सुझावों को समर्थन देने के बावजूद भी उन्नत रक्षा विज्ञान (BRADS) के लिए अनुसंधान बोर्ड स्थापित करने संबंधी प्रस्ताव को DRDO द्वारा लागू नहीं किया गया।

समिति की शर्तें

  • रक्षा विभाग और डीआरडीओ की भूमिकाओं के पुनर्गठन और पुनर्निर्धारण की आवश्यकता।
  • शिक्षा जगत, एमएसएमई (MSME) और स्टार्टअप की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए इनके आपसी  सहयोग की अत्यधिक जरूरत
  • संस्थानों के अंदर कर्मचारियों के प्रदर्शन के संबंध में प्रोत्साहन और हतोत्साहन संबंधी नीतियों को अपना कर और खराब प्रदर्शन करने वालों को पद्च्युत कर उनकी जवाबदेहिता संबंधी जाँच करना।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ विशेषज्ञता का लाभ उठाना।
  • परियोजना कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण।
  • उनके प्रदर्शन के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया को बढ़ाने हेतु संरचनाओं को सुव्यवस्थित करना।

उच्च स्तरीय समिति या विजय राघवन पैनल की सिफारिशें

  • लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना : डीआरडीओ को रक्षा के लिए अपने मूल अनुसंधान एवं विकास लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • अन्य कार्यों में संलग्नता से बचाव: डीआरडीओ को उत्पादीकरण, उत्पादन चक्र और उत्पाद प्रबंधन में स्वयं को शामिल करने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
  • रक्षा प्रौद्योगिकी परिषद (DTC) की स्थापना: देश का रक्षा प्रौद्योगिकी रोडमैप निर्धारित करने और प्रमुख परियोजनाओं तथा उनके कार्यान्वयन पर निर्णय लेने के लिए रक्षा प्रौद्योगिकी परिषद की स्थापना जरूरी है।
  • रक्षा विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार विभाग की स्थापना आवश्यक है।

डीआरडीओ की कार्यप्रणाली में चुनौतियाँ

  • DRDO एक सरकारी पीएसयू (PSU) के रूप में कार्य करता है, जिसे संपूर्ण रक्षा प्रक्रियाओं पर ध्यान देना होता है।
  • दक्ष हार्डवेयर खरीद के मामले में समर्थन करने के बजाय रक्षा अधिग्रहण में बाधा उत्पन्न की जाती है।
  • परियोजनाओं  में देरी होने के परिणामस्वरूप बजट में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है ।
  • सीएजी(CAG) द्वारा जाँची गई 175 परियोजनाओं में से, दो-तिहाई को अपनी निर्धारित समय सीमा को पूरा करने में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसके लिए बजट में 16% से 500% तक की वृद्धि  करनी पड़ी।
  • हेलीकॉप्टर द्वारा लॉन्च की जाने वाली एंटी-टैंक मिसाइल ‘हेलिना’,  जिसकी समय सीमा दिसंबर 2010 तय की गई थी, का सफल परीक्षण अंततः वर्ष 2022 में किया गया।
  • अपर्याप्त फंडिंग:  इसे रक्षा बजट का लगभग 6% आवंटन ही प्राप्त होता है।
  • अपर्याप्त उत्पादन:  भारत अभी भी अपनी रक्षा आवश्यकताओं का 70% आयात करता है।
  • SIPRI रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2018-22 के मध्य, पाँच साल की अवधि के लिए विश्व का सबसे बड़ा हथियारआयातक देश था।
  • घटिया उत्पादन: उत्पादन गुणवत्ता में कमी के कारण सशस्त्र बलों द्वारा पिछले 15 वर्षों में 70% उत्पादों को अस्वीकार कर दिया गया है।

निष्कर्ष 

दीर्घकालिक एकीकृत परिप्रेक्ष्य योजनाओं (LTIPPS) के साथ क्षमता विकास योजनाओं पर ध्यान देने के साथ-साथ शीर्ष सैन्य नेताओं और वैज्ञानिकों को शामिल करते हुए रक्षा अनुसंधान एवं विकास परिषद के स्थापना की आवश्यकता है।

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