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भारतीय विमानन क्षेत्र (Indian aviation sector)

Samsul Ansari January 29, 2024 06:45 130 0

संदर्भ

केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री के अनुसार, सरकार द्वारा अगले तीन वर्षों में भारत को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन क्षेत्र बनाने के दिशा में प्रयास किया जा रहा है, जिसकी वैश्विक स्थिति वर्तमान में  पाँचवी है।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारतीय विमानन क्षेत्र- संभावनाएँ, चुनौतियाँ, सरकारी पहल और आगे की राह।

भारतीय विमानन क्षेत्र की स्थिति

  • यात्रियों की स्थिति: घरेलू यात्रियों की संख्या वर्ष  2030 तक बढ़कर 300 मिलियन हो जाएगी।
  • अंतरराष्ट्रीय यात्री: इनकी संख्या 43 मिलियन से बढ़कर 64 मिलियन हो गई है।
  • विमानों की संख्या में वृद्धि: विमानों  की संख्या  वर्ष 2014 में लगभग 400 थी, जो बढ़कर वर्ष  2023 में 723 तक पहुँच गई है।
  • हवाई अड्डे: वर्तमान में, भारत में लगभग 148 क्रियाशील  (operational) हवाई अड्डे हैं।
  • विमानन क्षमता: भारत मौजूदा विमानन क्षमता को 700 से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 2000 विमान तक पहुँच प्राप्त करने का है।

भारतीय विमानन क्षेत्र में अवसर

  • विमानन क्षेत्र लाभ की स्थिति में : (International Air Transport Association-IATA) के अनुसार, एयरलाइन इंडस्ट्री का ऑपरेटिंग प्रॉफिट, जो इस वर्ष  40.7 अरब डॉलर है, उसके वर्ष 2024 में बढ़कर 49.3 अरब डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास : वर्ष 2024 तक 100 हवाई अड्डे विकसित किए जाने हैं  जिसमें से  74 हवाई अड्डे विकसित किए जा चुके हैं।
  • रख-रखाव, मरम्मत और जाँच-पड़ताल  (Maintenance, Repair and Overhaul) सेवाओं को बढ़ावा देना: इसके लिए वर्ष 2025 तक इस पर होने वाले व्यय में वृद्धि कर $4.33 बिलियन के स्तर तक पहुँचाना।
  • मानवरहित हवाई वाहन में वृद्धि  (UAV): वर्ष 2026 तक मानवरहित हवाई वाहन के कुल कारोबार को 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर तक पहुँचाना।

भारत के विमानन क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियाँ

  • बुनियादी ढाँचा: भारत के हवाई अड्डों को अक्सर अपर्याप्त रनवे क्षमता, पुराने हवाई यातायात प्रबंधन प्रणाली और नाइट पार्किंग स्टैंड(night parking stand) की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • विनियमन: नागरिक उड्डयन मंत्रालय, DGCA, AAI आदि जैसी एजेंसियों के ​​शामिल होने के कारण भारतीय विमानन क्षेत्र का नियामक ढाँचा काफी जटिल बन जाता है, जो अस्पष्ट नीतियों और परमिट प्राप्त करने संबंधी प्रक्रियाओं में देरी का कारण बनता है।
  • कुशल कार्यबल: भारत में कुशल पेशेवरों की काफी कमी पाई जाती है। साथ ही उच्च प्रशिक्षण लागत और पुरानी प्रशिक्षण सुविधाओं के कारण स्किल मिसमैच (Skill Mismatch) की स्थिति निर्मित होती है, अर्थात् शिक्षा और प्रशिक्षण द्वारा श्रम बाजार में वैसे कौशल का निर्माण नहीं हो पता जिनकी नौकरियों में माँग होती है ।
  • डॉलर पर निर्भरता: भारतीय रुपये की विनिमय दर में परिवर्तन, अर्थात् रुपये की तुलना में डॉलर में उतार या चढ़ाव का होना, इस क्षेत्र के मुनाफे पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है क्योंकि विमान अधिग्रहण तथा रखरखाव जैसे प्रमुख व्यय डॉलर-मूल्य में किए जाते हैं।
  • मूल्य निर्धारण में अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा : यात्रियों को आकर्षित करने के लिए भारत में विभिन्न एयरलाइंस द्वारा अक्सर टिकट की कीमतों में भारी कटौती का सहारा लिया जाता हैं, जिससे लागत मूल्य को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • आपूर्ति शृंखला संबंधित मुद्दे: सेंटर फॉर एविएशन इंडिया(CAPA) के अनुसार, विभिन्न भारतीय विमानन कंपनियों  के 100 से अधिक विमान आपूर्ति शृंखला और गैर-आपूर्ति शृंखला संबंधित मुद्दों के कारण निष्क्रिय पड़े हुए हैं।
  • भारत में तुलनात्मक रूप से कम लोगों तक पहुँच: भारत में यात्री यातायात में तीव्र गति से वृद्धि होने के बावजूद विमान सेवाओं तक प्रति व्यक्ति पहुँच, वैश्विक औसत की तुलना में अभी भी काफी कम है।
  • उच्च ईंधन लागत: विमान टरबाइन ईंधन की लागत, कुल परिचालन व्यय का लगभग 50-70% तक है।
  • मॉक ड्रिल आवृत्ति: भारत में हर तीन साल में एक बार इमरजेंसी से संबंधित मॉक ड्रिल की जाती है, जबकि जापान में, विमानन कंपनियों के चालक दल के सदस्यों को प्रत्येक वर्ष आपात की स्थिति में 90 सेकंड के भीतर यात्रियों को निकालने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

भारतीय विमानन क्षेत्र के समर्थन हेतु सरकारी नीतियाँ

  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि: सरकार द्वारा गैर-अनुसूचित हवाई परिवहन सेवाओं, रखरखाव और मरम्मत से जुड़े संगठनों के लिए एमआरओ (MRO) आदि में स्वचालित मार्ग के तहत 100% तक FDI की अनुमति दी गई है।
  •   राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति-2016 (NCAP): इस नीति के तहत व्यापार में सुगमता , विनियमन, सरलीकृत प्रक्रियाओं और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा दिया गया है।
  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना या उड़ान (‘उड़े देश का आम नागरिक’): इस योजना के द्वारा भारत के असेवित (Unserved) और अल्प-सेवित (Under served) हवाई अड्डों तक कनेक्टिविटी बढ़ाने और हवाई यात्रा को किफायती बनाने की परिकल्पना की गई है।
  • डिजी यात्रा नीति: इसका उद्देश्य यात्रियों को हवाई अड्डों पर कई जाँच-पड़ताल वाले बिंदुओं पर टिकट और आईडी (ID) के सत्यापन की आवश्यकता के बिना निर्बाध और परेशानी मुक्त चेक-इन प्रक्रिया उपलब्ध कराना है।
  • परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण: भारतीय हवाईअड्डा प्राधिकरण (AAI) द्वारा कुछ संयुक्त उद्यमों का गठन किया गया है, जिसके तहत  कुछ एयरपोर्टों के परिचालन एवं प्रबंधन को 50 वर्षों की अवधि के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के तहत निजी कंपनियों को सौप दिया गया है।
  • राष्ट्रीय वायु खेल नीति (NASP) 2022: इस नीति के तहत देश में एक सुरक्षित, किफायती, सुलभ, मनोरंजक और धारणीय वायु खेल (Air Sport) से संबंधित वातावरण का सृजन करना और इसके माध्यम से वर्ष  2030 तक भारत को शीर्ष वायु खेल देशों की सूचि में शामिल करना है ।
  • ड्रोन का प्रसार: सरकार द्वारा उदारीकृत ड्रोन नियम, 2021 के तहत  ड्रोन और ड्रोन के विभिन्न घटकों के लिए पीएलआई(PLI) योजना को मंजूरी दी गई है।

  • उत्पादन-सम्बद्ध प्रोत्साहन(PLI) योजना मार्च 2020 में भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गयी थी, जो मेक इन इंडिया पहल के एक भाग के रूप में कार्य करती है I
  • इस योजना के तहत कंपनियों को पात्र घरेलु इकाईयों द्वारा निर्मित उत्पादों की बिक्री को अगले पांच वर्षों तक प्रोत्साहन प्रदान करना है I
  • मार्च 2023 में सरकार द्वारा भारत की विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात को बढावा देने हेतु  आईटी हार्डवेयर के लिये PLI 2.O योजना शुरू की गयी है I

  • एयर इंडिया का विनिवेश: सरकार द्वारा एयर इंडिया एक्सप्रेस (AIXL) में एयर इंडिया की इक्विटी शेयरहोल्डिंग के साथ-साथ एयर इंडिया (AI) में भारत सरकार की 100% हिस्सेदारी के रणनीतिक विनिवेश की प्रक्रिया अपनाई गई है।

आगे की राह

  • तकनीकी प्रोत्साहन और अवसर: विमानन परिचालन से संबंधित प्रभावशीलता में वृद्धि करना और लागत में कटौती करना जरूरी है।
  • विलंबित उड़ानों के लिए नया यात्री-हैंडलिंग मैनुअल: लंबी देरी के कारण होने वाली समस्याओं से बचने के लिए नियमों और परिचालन संबंधी कार्यकलापों में संशोधन करने की आवश्यकता है।
  • चालक दल और यात्री सुरक्षा की सुनिश्चितता : यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि चालक दल को अच्छी तरह से प्रशिक्षिण प्राप्त है और उसके द्वारा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नियमित अभ्यास किया जा रहा है और पूरी प्रक्रिया को सरलीकृत किया जा रहा है।
  • दक्ष नियामक प्रणाली: इस उद्योग की वृद्धि और विकास के लिए पारदर्शिता, जवाबदेहिता , सुधार में तीव्रता और उद्योग हितधारकों के साथ जुड़ाव बढ़ाना आवश्यक है।
  • कार्यबल के कौशल में वृद्धि  : उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों के मध्य समन्वय बढ़ाकर और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ जोड़कर कार्यबल की कुशलता में वृद्धि की जा सकती है।

                                                                                                                                                            News Source: PIB

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