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म्याँमार में असंतोष (unrest in myanmar)

Samsul Ansari January 31, 2024 11:30 168 1

संदर्भ

इस फरवरी में, सेना द्वारा म्याँमार में लोकतांत्रिक रूप से चयनित सरकार को पदच्युत कर सत्ता पर अधिग्रहण के पश्चात् शुरू हुए बड़े पैमाने पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन के तीन वर्ष पूरे हो जाएँगे।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: वैश्विक मानचित्र पर म्याँमार की अवस्थिति।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: म्याँमार के सैन्य तख्तापलट का भारत के हितों पर प्रभाव और म्याँमार के संबंध में भारत की नीति का पुनर्मूल्यांकन।

एक कठोर प्रतिरोध

  • गठबंधन के द्वारा: विगत वर्ष के अक्टूबर माह में, अराकान आर्मी, म्याँमार   नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी और ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी के गठबंधन द्वारा सेना पर समन्वित रूप से हमले शुरू किए गए थे।
  • जन प्रतिरोध आंदोलन: सत्ता के तख्तापलट के बाद से, सरकारी अधिकारियों, डॉक्टरों और पुलिस कर्मियों द्वारा प्रतिरोध आंदोलन में शामिल होकर सहयोग करने की भी यदा-कदा  रिपोर्टें सामने आई हैं।
  • क्षेत्रीय बदलाव: म्याँमार के शान राज्य, पलेतवा शहर (भारत की कलादान परियोजना में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी) में सेना को भारी नुकसान पहुँचाया गया और वहाँ के क्षेत्रीय नियंत्रण में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
  • प्रतिरोध की बारंबारता : इसके साथ ही, बहुसंख्यक बामर जातीय समुदाय जैसे सागांग, बागो और माग्वे के निवास वाले क्षेत्रों में भी इन प्रतिरोधों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
    • परिणामों का भुगतान : रिपोर्टों से यह बात सामने आई है कि है कि सेना के लिए बामर्स के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों से भी सेना में भर्ती कराना मुश्किल हो गया है, जहाँ से सेना के अधिकांश कर्मियों की भर्ती होती थी।

म्याँमार सेना के प्रति असंतोष और क्षेत्रीय क्षति:

  • उद्देश्य में विफल: तख्तापलट के दौरान म्याँमार सेना के विभिन्न उद्देश्यों में से एक राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के संकल्प में विफल होने के कारण लोगों में सेना के प्रति असंतोष की भावना ने जन्म लिया।
  • भूमि-क्षेत्र का नुकसान: सेना द्वारा क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा जातीय सशस्त्र संगठनों और पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज (PDF) को दे दिया गया था।
    • कारण: इन क्षेत्रों को खोने के कारणों का संबंध अब सैन्य अक्षमता से ज्यादा लोगों में बढ़ते असंतोष से बताया जा रहा है।
  • तनाव का सामना: एक माह पूर्व इन प्रतिरोध समूहों के हमले से बचने के लिए, 150 से अधिक सैनिकों द्वारा भारत में आकर आत्मसमर्पण किया गया।
    • लोगों में यह चर्चा है कि सेना के अधिकारियों को इन पलायन को रोकने में विफल रहने के लिए कड़ी सजा दी गई है, जिससे पता चलता है कि सैन्य-एकजुटता के संबंध तनावपूर्ण स्थितियाँ निर्मित हो रही हैं।

असंतोष का कारण

  • शक्ति का दुरुपयोग: वर्ष 2010 और 2020 के मध्य अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के काफी हद तक कम हो जाने की स्थिति में सेना द्वारा कई हवाई और सैन्य उपकरणों की खरीद की गई थी।

  • प्रतिकूल प्रभाव: विभिन्न रिपोर्टों से यह संकेत प्राप्त होता है कि तख्तापलट हुए नेताओं द्वारा भी निहत्थे नागरिकों पर गोलाबारी किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण रूप से आंतरिक विस्थापन हुआ और अंततः पड़ोसी देशों को शरणार्थी संकट का सामना करना पड़ा।

विभिन्न राष्ट्रों और संगठनों की भूमिका एवं सहभागिता

  • चीन की स्वार्थ-संबंधी रणनीतियाँ: अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन द्वारा म्याँमार की सेना का अंतरराष्ट्रीय निंदा से बचाव किया जाता रहा है।
    • इसके साथ ही म्याँमार की उत्तरी सीमा पर विभिन्न जातीय सशस्त्र संगठनों के साथ भी चीन के घनिष्ठ संबंध बताए जाते हैं।
  • दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) की क्षेत्रीय गतिशीलता: आसियान द्वारा पाँच-सूत्रीय सहमति (Five-point consensus) प्रस्तुत की गई और साथ ही अपने शिखर सम्मेलन में म्याँमार की सेना को भी अस्वीकृत कर दिया गया था।
    • कुछ आसियान सदस्यों द्वारा म्याँमार में तख्तापलट की तीखी आलोचना भी की गई है।
    • सीमित प्रभाव: कई बार किए गए प्रयासों के बावजूद, म्याँमार में आसियान के विशेष दूत को सभी संबंधित हितधारकों के साथ एक सार्थक बातचीत करने से रोका जा चुका है।
  • एक करीबी राष्ट्र थाईलैंड: थाईलैंड जो, म्याँमार के साथ लगभग 2,416 किमी. की सीमा साझा करता है, म्याँमार के लिए काफी महत्त्व रखता है।
    • प्रभावशाली भूमिका: थाईलैंड द्वारा बंदी बनाए गए नेताओं के साथ-साथ म्याँमार के सैन्य नेतृत्व के साथ भी बातचीत की गई है।
    • थाईलैंड द्वारा म्याँमार के विभिन्न निर्वासित संगठनों को आश्रय भी दिया जाता है और वह उनके साथ संबंध बनाने के लिए प्रयासरत भी रहता है I हाल के दिनों में थाईलैंड ने इस संबंध में अपनी मानवीय सहायता को बढ़ाने के भी प्रयास किए हैं।
  • भारत का मानवीय दृष्टिकोण: भारत को म्याँमार में विस्थापित समुदायों के संबंध में अधिक सक्रिय मानवीय दृष्टिकोण अपनाने पर विचार करने की आवश्यकता है। इससे भारत में शरणार्थियों के आगमन में भी कमी आएगी।
  • व्यावहारिक दृष्टिकोण: भारत द्वारा तीन राजनीतिक वास्तविकताओं यथा – लगातार व्याप्त असंतोष, तख्तापलट का लचीला प्रतिरोध और राजनीतिक रूप से खंडित म्याँमार पर विचार करते हुए कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

सैन्य, जातीय सशस्त्र संगठनों  द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग स्तर के  नियंत्रण के कारण म्याँमार आज राजनीतिक रूप से खंडित अवस्था में है। ऐसा प्रतीत होता है कि म्याँमार सेना लोगों में अपनी पहुँच बनाने के बजाय, अपना वजूद ही खोए जा रही है। बदलते परिदृश्य के साथ, अब समय आ गया है कि भारत सभी संबंधित हितधारकों के साथ परामर्श के उपरांत अपनी म्याँमार नीति में पुनः संशोधन करे।

                                                                                                                                                News Source: The Hindu

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