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कृषि क्षेत्र में स्वैच्छिक कार्बन बाजार (Voluntary Carbon Market in Agriculture Sector)

Samsul Ansari January 31, 2024 03:09 186 0

संदर्भ

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने ‘कृषि क्षेत्र में स्वैच्छिक कार्बन बाजार के लिए रूपरेखा’ (Framework for Voluntary Carbon Market in the Agriculture Sector) और कृषि वानिकी नर्सरी के प्रत्यायन प्रोटोकॉल (Accreditation Protocol of Agroforestry Nurseries) का शुभारंभ किया।

संबंधित तथ्य 

  • कार्बन क्रेडिट लाभ प्राप्त करना: यह रूपरेखा छोटे और मध्यम किसानों को कार्बन क्रेडिट लाभ प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
  • सतत् कृषि को बढ़ाना: किसानों को कार्बन बाजार से परिचित कराने से उन्हें लाभ होगा और पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने में तेजी आएगी।

कृषि वानिकी (Agroforestry)

कृषि वानिकी एक भूमि उपयोग प्रणाली है जो उत्पादकता, लाभप्रदता, विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र स्थिरता को बढ़ाने के लिए कृषि भूमि और ग्रामीण परिदृश्य पर पेड़ों और झाड़ियों को एकीकृत करती है।

राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (National Agroforestry Policy)

इसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों की उत्पादकता, रोजगार, आय और आजीविका में सुधार के लिए फसलों एवं पशुधन के साथ पूरक एवं एकीकृत तरीके से वृक्षारोपण को प्रोत्साहित और विस्तारित करना है।

कृषि वानिकी नर्सरी के प्रत्यायन प्रोटोकॉल (Accreditation Protocol of Agroforestry Nurseries)

  • यह देश में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर रोपण वनस्पतियों के उत्पादन और प्रमाणन के लिए संस्थागत व्यवस्था को मजबूत करेगा।
  • गुणवत्तापूर्ण रोपण वनस्पतियों लाभ सुनिश्चित कर सकती है और राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

कार्बन बाजार (Carbon Market)

  • उत्पत्ति: ‘कार्बन बाजार’ का विचार पहली बार वर्ष 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) के दौरान सामने आया था, जिसने ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के उत्सर्जन को सीमित करने और कम करने के लिए देशों को प्रतिबद्ध करके जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन को क्रियान्वित किया।
  • कार्बन बाजारों के प्रकार: सामान्य तौर पर कार्बन बाजार दो प्रकार के होते हैं:- अनुपालन (Compliance) और स्वैच्छिक (Voluntary)।
    • अनुपालन बाजार (Compliance Market) किसी भी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और/या अंतरराष्ट्रीय नीति या नियामक आवश्यकता के परिणामस्वरूप बनाए जाते हैं।
    • स्वैच्छिक कार्बन बाजार (Voluntary Carbon Market) से तात्पर्य स्वेच्छा से कार्बन क्रेडिट जारी करने, खरीदने एवं बेचने से है।

कृषि क्षेत्र में स्वैच्छिक कार्बन बाजार (Voluntary Carbon Market in Agricultural Sector)

  • परिचय: टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने से उत्पन्न कार्बन क्रेडिट, वैश्विक स्वैच्छिक कार्बन बाजार (VCM) में बेचे जाते हैं। 
    • निगम अपने स्वयं के कार्बन उत्सर्जन की भरपाई के लिए ये क्रेडिट खरीद सकते हैं।
  • कार्बन क्रेडिट जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को लागू करने के लिए भुगतान है, जो कार्बन उत्सर्जन को कम करता है।

कृषि के लिए कार्बन बाजार की आवश्यकता

  • कृषि से कार्बन उत्सर्जन की अधिकता: कृषि क्षेत्र भारत के संचयी GHG उत्सर्जन का 18% हिस्सा है और देश के मीठे जल के संसाधनों का 50% से अधिक उपभोग करता है। यह देश के मीथेन उत्सर्जन में 73 प्रतिशत का योगदान देता है।
  • दुनिया में मीथेन का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक होने के बावजूद भारत ने वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की कटौती करने की हालिया EU-US प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

    • नाइट्रोजन उर्वरक उपयोग का प्रभाव: कृषि संबंधी मृदा, राष्ट्रीय सूची में नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) उत्सर्जन का सबसे बड़ा एकल स्रोत है। नाइट्रोजन उर्वरक के उपयोग से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन वर्ष 1980-81 से 2014-15 तक लगभग 358 प्रतिशत बढ़ गया, जो प्रति वर्ष 5,100 टन की सांख्यिकीय महत्त्वपूर्ण दर से बढ़ रहा है।
  • अतिरिक्त बफर स्टॉक से ग्रीनहाउस गैसों (GHG) का उत्सर्जन: भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पास चावल का भंडार चावल के बफर मानदंडों से सात गुना अधिक है, जो बड़ी मात्रा में GHG का भंडारण करता है।
    • राष्ट्रीय GHG सूची के अनुसार, भारतीय कृषि एवं पशुधन क्षेत्र में आंत्र किण्वन (54.6%) और उर्वरक उपयोग (19%) के बाद चावल की खेती GHG उत्सर्जन का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत (17.5 %) है।
    • IPCC की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट 2021 के अनुसार, धान के खेत वायुमंडलीय नाइट्रस ऑक्साइड और मेथेन के मानवजनित स्रोत हैं, जो 20 वर्षों में तापमान वृद्धि में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में क्रमशः 273 और 80-83 गुना अधिक शक्तिशाली हैं। 
    • मवेशी, भेड़ और भैंस जैसे जुगाली करने वाले जानवरों में आंत्र किण्वन पाचन क्रिया का एक हिस्सा है, जो बड़ी मात्रा में मेथेन पैदा करता है, यह एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
  • जल सघन फसलें: धान के खेतों में सिंचाई के लिए प्रति टन चावल के लिए लगभग 4,000 क्यूबिक मीटर जल की आवश्यकता होती है। 46 मिलियन मीट्रिक टन चावल के अधिशेष भंडार में लगभग 92 बिलियन क्यूबिक मीटर जल की आवश्यकता और 260 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड का निष्कर्षण होता है।
  • कृषि अनुसंधान, विकास, शिक्षा और विस्तार (ARDE) का विषम वितरण: ARDE में पशुपालन, डेयरी विकास और मत्स्यपालन क्षेत्रों की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत हो गई है, इसके बावजूद कृषि के अंतर्गत GHG उत्सर्जन का 54 प्रतिशत पशुधन क्षेत्र से आता है।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के साथ, किसानों को बढ़ते तापमान, जल की कमी और अस्थिर बाजार स्थितियों जैसे विभिन्न मुद्दों का सामना करना पड़ता है। 
    • कार्बन बाजार, कार्बन पृथक्करण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद कर सकता है, मृदा के स्वास्थ्य में सुधार के परिणामस्वरूप फसल की पैदावार और जल प्रतिधारण, जैव विविधता संरक्षण तथा टिकाऊ भूमि उपयोग में वृद्धि हो सकती है।
  • पृथक कार्बन का मुद्रीकरण: कार्बन बाजार के निर्माण से कृषि और कृषि वानिकी प्रणालियों में एकत्रित कार्बन का मुद्रीकरण करने में मदद मिलेगी और किसी भी अन्य वस्तु की तरह इसके लेनदेन की सुविधा मिलेगी। 
    • टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने वाले किसान, कार्बन क्रेडिट बेचकर और मृदा के स्वास्थ्य, फसल की उपज, भूमि उत्पादकता और लाभप्रदता में सुधार करके आय उत्पन्न कर सकते हैं। 
    • भारत में, एक कृषि-आधारित कार्बन क्रेडिट का बाजार मूल्य लगभग ₹725 है।
    • एक किसान अपनाई गई उन्नत कृषि पद्धतियों के प्रकार के आधार पर प्रति हेक्टेयर 4 से 12 कार्बन क्रेडिट उत्पन्न कर सकता है और इस प्रकार प्रति हेक्टेयर ₹3,000-9000 की अतिरिक्त आय अर्जित कर सकता है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़: देश का 54.6% कार्यबल कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की गतिविधियों में लगा हुआ है। 
    • सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 18.6% है, जबकि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में से बोया गया क्षेत्र 139.3 मिलियन हेक्टेयर है।

कृषि में कार्बन क्रेडिट सृजन: कार्बन क्रेडिट विभिन्न तरीकों से उत्पन्न किया जा सकता है।

  • बड़े पैमाने पर कार्बन सोखने वाली मृदा: फसलें हवा से कार्बन डाइऑक्साइड लेती हैं और मृदा में कार्बन जमा करती हैं, जिसे अगली फसल उगाने के लिए खेतों की जुताई के समय वापस वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है।

स्वैच्छिक कार्बन बाजार की स्थिति

  • तीव्र फैलाव: जलवायु परिवर्तन शमन के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए व्यावसायिक संगठनों की ओर से कार्बन क्रेडिट की बढ़ती माँग के कारण वैश्विक स्वैच्छिक कार्बन बाजार तेजी से बढ़ रहा है।
  • इकोसिस्टम मार्केटप्लेस की वर्ष 2022 रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में स्वैच्छिक कार्बन बाजार में वैश्विक स्तर पर लगभग 500 मिलियन कार्बन क्रेडिट का कारोबार किया गया, जिसका मूल्य 1.98 बिलियन डॉलर था।
  • हालाँकि, कृषि आधारित कार्बन क्रेडिट का हिस्सा $8.7 मिलियन मूल्य का केवल 10 लाख था।

  • जीरो टिलेज प्रथाएँ मृदा में कार्बनिक कार्बन को संगृहीत करने में मदद करती हैं, जिससे मृदा स्वस्थ होती है और पोषक तत्त्वों का उपयोग कम होता है।
  • यूरिया जैसे पोषक तत्त्वों का कम उपयोग और कृषि मशीनरी विनिर्माण के दौरान फीडस्टॉक के रूप में प्राकृतिक गैस का उपयोग करके ऊर्जा तथा उर्वरक बचाता है।
  • सिंचाई जल के कम उपयोग से ऊर्जा की बचत भी होती है क्योंकि डीजल या बिजली पंप आमतौर पर खेतों में पानी पंप करते हैं।
  • टिकाऊ प्रथाओं में जल के उपयोग को अनुकूलित करना, इनपुट को कम करने के लिए सटीक कृषि तकनीक को अपनाना, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और मृदा की उर्वरता में सुधार करना शामिल है।
  • फसल अवशेषों को यथास्थान प्रबंधित करना, चावल की खेती में जल के उपयोग को अनुकूलित करना, कृषि मशीनीकरण, ड्रोन एवं उपग्रह इमेजिंग को नियोजित करना जैसी तकनीकें उत्पादकता बढ़ा सकती हैं, फसल के नुकसान को रोक सकती हैं और बेहतर भूमि प्रबंधन के लिए रियल टाइम की जानकारी प्रदान कर सकती हैं।
  • मृदा सुधार कार्यक्रम मिट्टी में जैविक कार्बन सामग्री को बढ़ाने, कार्बन कैप्चर को बढ़ावा देते हुए कार्बन उत्सर्जन को कम करने वाली प्रथाओं और जैव-उत्तेजक या ड्रिप सिंचाई प्रणालियों का उपयोग करके जल अनुकूलन उपायों पर केंद्रित हैं।

कृषि क्षेत्र में कार्बन बाजार से संबंधित चुनौतियाँ

  • परिमाणीकरण: सबसे बड़ी चुनौती कृषि पद्धतियों को अपनाने के कारण मृदा में मौजूद अतिरिक्त कार्बन की मात्रा निर्धारित करना एवं सत्यापित करना है।
  • अतिरिक्त राजस्व और फसल उपज के बीच समझौता: यदि कार्बन क्रेडिट की बिक्री से प्राप्त राजस्व इसके अपनाने के कारण फसल की उपज में होने वाले नुकसान की भरपाई करेगा तो एक किसान कार्बन कटौती संबंधी प्रथाओं को अपनाएगा।
    • इस तरह का समझौता कार्बन उपशमन प्रथाओं को बड़े पैमाने पर अपनाने के लिए हतोत्साहित करने वाला हो सकता है।
  • किसानों में जागरूकता की कमी: बाजार के शुरुआती चरण के कारण कृषक समुदायों में कार्बन उपशमन प्रथाओं और कार्बन बाजारों के पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक लाभों के बारे में जागरूकता का अभाव है।
  • लंबी नकद प्रोत्साहन प्रक्रिया: सूचीबद्ध परियोजनाओं के लिए नकद प्रोत्साहन प्राप्त करने में किसानों और FPO/गैर-लाभकारी संस्थाओं को 8 से 12 महीने लग सकते हैं। यह देरी किसानों के लिए भारी पड़ सकती है।
  • लघु एवं सीमांत भूमि जोत: भारत में, कृषि में छोटी जोतों का वर्चस्व है, जो आमतौर पर उनके फसल पैटर्न और कार्बन उपशमन कृषि पद्धतियों को अपनाने में भिन्न होती है।
    • कुल 146 मिलियन भू-जोत में से, 86 प्रतिशत से अधिक का आकार दो हेक्टेयर से कम है और प्राप्त कार्बन क्रेडिट की मात्रा उनके लिए पुनर्योजी कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती है।
    • इतनी बड़ी संख्या में छोटे धारकों तक पहुँचने का अर्थ है- कार्बन क्रेडिट के खरीदारों के लिए उच्च प्रशासनिक एवं लेनदेन लागत।

कृषि क्षेत्र में कार्बन बाजार को बढ़ावा देने के सरकारी उपाय

  • ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022: इसे भारत में घरेलू कार्बन बाजारों को विकसित करने, कार्बन ऋण जोखिमों से बचने और देश को कार्बन क्रेडिट के दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक के रूप में स्थापित करने के लिए अधिनियमित किया गया है।
  • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अप्रैल 2023 में द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टिट्यूट (TERI) के सहयोग से एक कृषि वानिकी परियोजना शुरू की गई थी।
  • इस परियोजना का उद्देश्य कृषि में प्रकृति आधारित प्रणालियों को एकीकृत करना, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कार्बन पृथक्करण का लाभ उठाना और किसानों के लिए अतिरिक्त आय के अवसर उत्पन्न करना है।

आगे की राह

  • परिमाणीकरण विधि का मानकीकरण: विभिन्न कृषि पद्धतियों द्वारा उत्पन्न अतिरिक्त कार्बन की मात्रा निर्धारित करने और सत्यापित करने की एक पारदर्शी प्रक्रिया विकसित करने की आवश्यकता है।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रिमोट सेंसिंग, पृथक कार्बन की मात्रा का आकलन करने में मदद करेगी और कार्बन पृथक्करण के अधिक सटीक अनुमान के लिए रियल टाइम डेटा प्रदान करेगी।
    • अनुसंधान संस्थानों और कार्बन सत्यापनकर्ताओं के साथ सहयोग, माप और सत्यापन प्रक्रिया को सरल बनाकर मानकीकृत प्रोटोकॉल तथा दिशा-निर्देश विकसित करने में मदद कर सकता है।
  • नियामक नेटवर्क को सुव्यवस्थित करना: नियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित करना, लेनदेन लागत को कम करना और टिकाऊ कृषि प्रथाओं एवं कार्बन पृथक्करण के लिए प्रोत्साहन एवं सब्सिडी, कार्बन क्रेडिट की माँग को प्रोत्साहित कर सकता है।
    • नियामक ढाँचे को किसानों और अन्य हितधारकों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश और समर्थन प्रदान करना चाहिए।
  • सामूहिक कार्य: स्वैच्छिक कार्बन बाजार में कार्बन क्रेडिट बेचना व्यक्तिगत किसानों के लिए मुश्किल हो सकता है। 
  • इस प्रकार, कार्बन व्यापार में उनकी भागीदारी को किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और सहकारी समितियों के माध्यम से सुगम बनाया जा सकता है, जो किसानों को कार्बन कटौती प्रथाओं को अपनाने और उनकी ओर से अर्जित कार्बन क्रेडिट बेचने के लिए संगठित कर सकते हैं।
  • एग्रो-टेक कंपनियों के साथ सहयोग: वे स्वैच्छिक कार्बन बाजारों में अपनी भागीदारी को सुविधाजनक बना सकते हैं। वर्ष 2030 तक कार्बन क्रेडिट की माँग में अनुमानित 15 गुना वृद्धि को ध्यान में रखते हुए, एग्रीटेक कंपनियों को किसानों को आवश्यक उपकरणों से लैस करना चाहिए और कार्बन क्रेडिट के अधिग्रहण एवं बिक्री की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।
    • कुछ कृषि-तकनीकी कंपनियाँ उदाहरण के लिए, बूमित्रा (Boomitra) और नर्चर (Nurture), स्वैच्छिक कार्बन बाजारों में उनकी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए बिचौलियों के माध्यम से किसानों को संगठित करती हैं।
  • जागरूकता निर्माण: टिकाऊ प्रथाओं को व्यापक रूप से अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए जमीनी स्तर की उन पहलों की आवश्यकता है, जो किसानों को टिकाऊ खेती के लाभों के बारे में शिक्षित करने और समुदायों के बीच ज्ञान साझा करने की सुविधा प्रदान कर सके।
    • किसानों को टिकाऊ कृषि पद्धतियों, कार्बन पृथक्करण और कार्बन क्रेडिट के संभावित मुद्रीकरण के बारे में सूचित करने के लिए शैक्षिक कार्यक्रम, विस्तार सेवाएँ, कार्यशालाएँ तथा प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जा सकते हैं।
    • FPO और सहकारी समितियों के साथ सहयोग जागरूकता को बढ़ावा दे सकता है और व्यक्तिगत किसानों को सामूहिक रूप से कार्बन बाजारों में भाग लेने में सक्षम बना सकता है।
    • FPO और सहकारी समितियों के साथ सहयोग जागरूकता को बढ़ावा दे सकता है और व्यक्तिगत किसानों को सामूहिक रूप से कार्बन बाजारों में भाग लेने में सक्षम बना सकता है।
  • ARDE पर ध्यान देना: ICRIER के शोध के अनुसार, कृषि अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने से उर्वरक सब्सिडी (0.88), बिजली सब्सिडी (0.79), शिक्षा (0.97), या सड़क (1.10) पर खर्च किए गए रुपये की तुलना में बहुत अधिक रिटर्न (11.2) मिलता है।
    • इस प्रकार, ARDE पर बढ़ा हुआ जोर जलवायु परिवर्तन के बावजूद उच्च कृषि उत्पादन हासिल करने में मदद कर सकता है।
  • कृषि नीतियों का पुनर्निर्धारण: हालाँकि धान की खेती ने भारत को खाद्य सुरक्षा हासिल करने में मदद की है, लेकिन इसने भू-जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन विशेषकर उत्तर पश्चिम और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में किया है।
    • बिजली और उर्वरकों, MSP तथा खरीद पर सब्सिडी देने की नीतियों पर फिर से विचार करने एवं उन्हें GHG उत्सर्जन को कम करने की दिशा में पुनः उन्मुख करने की आवश्यकता है।
    • किसान समूह और निजी क्षेत्र के किसानों को कार्बन-सघन फसलों से कम-कार्बन-सघन फसलों पर स्थानांतरित करने या GHG उत्सर्जन को कम करने के लिए चावल प्रणालियों में खेती के तरीकों में सुधार करने के लिए पुरस्कृत कर सकते हैं।

निष्कर्ष

सुविधा (किसानों को शिक्षा और प्रशिक्षण) को प्राथमिकता देकर, सामूहिक प्रयासों एवं ज्ञान साझाकरण को बढ़ावा देकर और सहायक नीतियों एवं विनियमों को तैयार करके 3F फ्रेमवर्क को अपनाने से कृषि क्षेत्र किसानों तथा ग्रामीण समुदायों की भलाई सुनिश्चित करते हुए भारत के जलवायु लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम होगा।

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