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Samsul Ansari
February 02, 2024 04:42
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उच्चतम न्यायलय ने प्रवर्तन निदेशालय (Directorate of Enforcement- ED) द्वारा की जा रही जाँचों में राजनीतिक प्रतिशोध संबंधी भावना का पता लगाने के लिए उचित कार्यप्रणाली के निर्माण पर बल दिया है।
प्रवर्तन निदेशालय (ED)
शक्तियाँ
चुनौतियाँ
आधार | प्रवर्तन निदेशालय (ED) | राज्य पुलिस |
---|---|---|
क्षेत्राधिकार | प्रवर्तन निदेशालय राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत एक विशेष कानून प्रवर्तन संस्था के रूप में कार्य करता है। | राज्य पुलिस अपनी-अपनी राज्य सरकारों के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करती है। |
कार्य | प्रवर्तन निदेशालय का प्राथमिक कार्य PMLA और FEMA के तहत मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशी मुद्रा उल्लंघन से संबंधित मामलों पर संज्ञान लेना तथा आर्थिक कानूनों को लागू करना है। | राज्य पुलिस का कार्य कानून व्यवस्था बनाए रखना, अपराधों को रोकना, उनका पता लगाना और सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करना आदि है, क्योंकि पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था को भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य के विषय के अंतर्गत रखा गया है। |
जाँच- पड़ताल | प्रवर्तन निदेशालय आर्थिक अपराधों, वित्तीय घोटालों, मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशी मुद्रा उल्लंघन से संबंधित मामलों की जाँच करता है, जिसका उद्देश्य अपराध में सहायक आय का पता लगाना, उसे पहचानना तथा जब्त करना है। | राज्य पुलिस चोरी, डकैती, हमला, हत्या, अपहरण, मादक पदार्थों की तस्करी और भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) एवं संबंधित राज्य में उल्लिखित अन्य अपराधों की जाँच करती है। |
मामलों का पंजीकरण | प्रवर्तन निदेशालय जाँच प्रक्रियाओं के बाद समन जारी करते हैं, लेकिन वे स्वतंत्र रूप से मामला दर्ज नहीं कर सकते हैं। इसके बजाय वे अपराध दर्ज करने के लिए CBI या राज्य पुलिस जैसी संस्थाओं पर निर्भर हैं, जिसके रिपोर्ट के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय मामला दर्ज करता है। | दूसरी ओर, राज्य पुलिस न्यायालय के आदेशों की आवश्यकता के बिना संज्ञेय मामलों में स्वतंत्र रूप से जाँच शुरू कर सकती है। |
बयान की स्वीकार्यता | मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के प्रावधान पुलिस की तुलना में प्रवर्तन निदेशालय को अधिक शक्ति प्रदान करते हैं। PMLA के तहत, एक जाँच अधिकारी के समक्ष दिया गया बयान न्यायालय में साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होता है। | किसी अभियुक्त द्वारा पुलिस को दिया गया बयान आमतौर पर न्यायालय में साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं होता है। |
आगे की राह
निष्कर्ष
प्रमुख जाँच संस्थानों की विश्वसनीयता की समीक्षा की जा रही है। भ्रष्टाचार संबंधी मामलों की जाँच प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए निर्णय लेने वाले अधिकारियों के बीच सहयोग की आवश्यकता होती है। उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रवर्तन निदेशालय और राज्य सरकारों के मध्य संघर्ष के संबंध में एक ‘स्क्रीनिंग’ प्रक्रिया की वकालत करने को एक सकारात्मक पहल के रूप में देखा जा रहा है, जिससे कथित या वास्तविक राजनीतिक प्रतिशोध की घटनाएँ कम हो सकती हैं।
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