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जनसांख्यिकीय चुनौतियों के अध्ययन हेतु सरकारी पैनल का गठन

Lokesh Pal February 03, 2024 06:54 171 0

संदर्भ

संसद में अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि ”तीव्र जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय परिवर्तन” से उत्पन्न चुनौतियों पर विचार करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया जाएगा।

भारत की जनसांख्यिकी की स्थिति

  • जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति: वर्ष 2019-2021 के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)- 5 के अनुसार वर्ष 2015-16 में हुए पिछले सर्वेक्षण की तुलना में कुल प्रजनन दर 2.2% से घटकर 2% हो गई।
  • वैश्विक सांख्यिकी के साथ भारत की जनसांख्यिकी तुलना: भारत सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जो पृथ्वी के भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.4% कवर करता है और विश्व की 18% से अधिक आबादी को आश्रय देता है।
    • संयुक्त राष्ट्र की ‘वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्टस’ (World Population Prospects- WPP), 2022 रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है।
  • युवा जनसांख्यिकी प्रोफाइल: विश्व जनसंख्या समीक्षा की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में औसत आयु 28 वर्ष है, जो चीन (38 वर्ष), जापान (48 वर्ष), पश्चिमी यूरोप (43 वर्ष), अमेरिका (38 वर्ष) जैसे प्रमुख समकक्षों की तुलना में बहुत कम है। 
  • कार्यशील आबादी: कार्यशील आबादी की हिस्सेदारी 50% से बढ़कर 65% हो गई है। अगले 25 वर्षों में कार्यशील आयु वर्ग का हर पाँच में से एक व्यक्ति भारत में रहेगा।
  • लिंग अनुपात: वर्ष 2011 में लिंग अनुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 943 महिलाओं का था जो वर्ष 2022 तक यह प्रति 1,000 पुरुषों पर लगभग 950 महिलाओं का होने का अनुमान था।
  • जीवन प्रत्याशा: वर्ष 1947 में यह 32 वर्ष थी लेकिन वर्ष 2019 में यह 70 वर्ष हो गई।
  • शिशु मृत्यु दर:  वर्ष 1951 में 133 से घटकर वर्ष 2020 में 27 हो गई।
  • वैश्विक भूख सूचकांक: भारत 116 देशों में से 101वें स्थान पर है।

जनसांख्यिकीय परिवर्तन क्या है?

परिभाषा: जनसांख्यिकी मानव आबादी का अध्ययन है और जनसांख्यिकीय परिवर्तन समय के साथ मानव आबादी में बदलाव का अध्ययन है। इसमें जनसंख्या का आकार, संरचना (आयु, जातीयता, लिंग) और वितरण जैसे विभिन्न पहलू शामिल हैं।

जनसांख्यिकी को प्रभावित करने वाले कारक

    • प्राकृतिक कारक: जन्म दर, मृत्यु दर, प्रवासन आदि किसी राष्ट्र की जनसांख्यिकी को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक कारक हैं।
  • प्रवास 
      • देश की बदलती जनसांख्यिकी के पीछे पलायन एक बड़ा कारण है।
      • जब लोग किसी देश, स्थान या क्षेत्र में आते हैं, तो उसे प्रवास कहा जाता है, जबकि जब लोग किसी देश, स्थान या स्थानीय क्षेत्र से बाहर जाते हैं, तो उसे प्रवासन कहा जाता है।
  • जनसंख्या परिवर्तन के सूत्र इस प्रकार हैं:
    • जनसंख्या परिवर्तन = (जन्म+प्रवास) – (मृत्यु+प्रवासन)
  • सार्वजनिक नीतियाँ: सार्वजनिक नीति कई तरह से जनसांख्यिकी को प्रभावित करती है। इनमें सबसे सामान्य परिवार नीति, आप्रवासन नीति, स्वास्थ्य नीति, शिक्षा नीति, आर्थिक नीति आदि हैं।
  • पर्यावरणीय कारक: पर्यावरणीय कारकों और जनसांख्यिकी का एक जटिल, परस्पर संबंध है, जो एक दूसरे को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन: बढ़ता तापमान, वर्षा के पैटर्न में बदलाव, समुद्र के स्तर में वृद्धि खाद्य सुरक्षा, पानी की उपलब्धता और बीमारी की व्यापकता को प्रभावित कर सकती है, जिससे प्रवासन, जीवन प्रत्याशा में बदलाव तथा संभावित रूप से जन्म दर में बदलाव हो सकता है।
    • प्राकृतिक आपदाएँ: बाढ़, सूखा, भूकंप और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाएँ जनसंख्या को व्यापक रूप से विस्थापित कर सकती हैं, जिससे प्रवासन होता है तथा जन्म एवं मृत्यु दर प्रभावित होती है।
    • पर्यावरण प्रदूषण: वायु और जल प्रदूषण स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है जिससे मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है और संभावित रूप से प्रजनन दर प्रभावित हो सकती है।  

बदलती जनसांख्यिकी के निहितार्थ

  • आर्थिक निहितार्थ
      • श्रम बल: उच्च आप्रवासन कार्यबल को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन अगर वे कुशल नहीं हैं तो यह अर्थव्यवस्था पर बोझ है। ऐसे में उच्च श्रम बल प्रवासन की चुनौती को संबोधित करने के लिये श्रमिक प्रशिक्षण और एकीकरण में निवेश की आवश्यकता हो सकती है।
      • उपभोग व्यय: घरेलू संरचना और आयु संरचनाओं में बदलाव से उपभोक्ता खर्च के पैटर्न में बदलाव आ सकता है, जिससे विशिष्ट जनसांख्यिकी को पूरा करने वाले उद्योगों और व्यवसायों पर असर पड़ सकता है।
  • सामाजिक निहितार्थ
      • पारिवारिक संरचनाएँ: बदलती जनसांख्यिकी परिवार के आकार को प्रभावित कर सकती है, जो संभावित रूप से एकल परिवार की अवधारणाओं, रहने की व्यवस्था और लिंग भूमिकाओं को बढ़ावा दे सकती है, जिससे सामाजिक मान्यताओ और अपेक्षाओं पर असर पड़ सकता है।
      • सांस्कृतिक विविधता: बढ़ते प्रवासन से सांस्कृतिक विविधता में वृद्धि हो सकती है, जो समुदायों को समृद्ध कर सकती है लेकिन एकीकरण और सामाजिक एकजुटता में चुनौतियाँ भी पेश कर सकती है।
  • राजनीतिक निहितार्थ
    • सामाजिक अशांति और अस्थिरता: तीव्र जनसंख्या परिवर्तन या मान्यता प्राप्त असमानताएँ सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता को प्रभावित कर सकती हैं।
    • प्रतिनिधित्व और मतदान पैटर्न: जनसांख्यिकी बदलने से राजनीतिक प्रतिनिधित्व और मतदान पैटर्न में बदलाव हो सकता है, जो संभावित रूप से नीतिगत प्राथमिकताओं को प्रभावित कर सकता है।

जनसांख्यिकीय लाभांश क्या है?

जनसांख्यिकीय लाभांश से तात्पर्य किसी अर्थव्यवस्था में हुई उस वृद्धि से है, जो किसी देश की जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरुप होती है। यह आमतौर पर जन्म दर और मृत्यु दर में गिरावट के कारण होता है, जिसके कारण आश्रित समूहों (बच्चों और बुजुर्गों) की तुलना में आबादी का बड़ा हिस्सा कार्यशील आयु वर्ग (15-64 वर्ष) में होता है।

जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए शर्तें क्या हैं?व

  • प्रजनन दर में गिरावट: जब प्रति परिवार कम बच्चे पैदा होते हैं तो जनसंख्या में आश्रितों का अनुपात घट जाता है।

Demographic

  • बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और मृत्यु दर: जैसे-जैसे लोग लंबे समय तक जीवित रहते हैं, कार्यशील आयु वर्ग की आबादी का और विस्तार होता है।

भारत की जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ क्या हैं?

  • बेरोजगारी का मुद्दा: सबसे बड़ी जनसांख्यिकीय चुनौती जनसंख्या वृद्धि के अनुरूप नौकरियों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना है। फोर्ब्स के मुताबिक, वर्ष 2023 में बेरोजगारी दर 10.05% थी।
  • निम्न मानव विकास पैरामीटर: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) मानव विकास सूचकांक वर्ष 2021 में भारत का स्थान 191 देशों में से 132वाँ था, जो गंभीर रूप से चिंताजनक है।
  • लैंगिक असंतुलन: भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या कम है यानी प्रति 100 महिलाओं पर 106 पुरुष (2023 डेटा)। इससे लैंगिक समानता, बाल विवाह जैसे सामाजिक मुद्दों और भविष्य में संभावित श्रम की कमी के बारे में समस्याएँ  पैदा हो सकती  हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा और असमानता: ग्रामीण क्षेत्रों और वंचित समुदायों में अक्सर पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं और कर्मियों का अभाव होता है। बढ़ता जनसांख्यिकीय परिवर्तन स्वास्थ्य परिणामों और जीवन प्रत्याशा में असमानताएँ पैदा करता है।
    • ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2021-2022 के अनुसार, ग्रामीण भारत में 83% सर्जन, 74% स्त्री रोग विशेषज्ञ, 79% चिकित्सकों की कमी है।
    • 45% से कम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) 24*7 सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • शैक्षिक असमानता: यदपि साक्षरता दर बढ़ रही है, परंतु विभिन्न क्षेत्रों और सामाजिक समूहों में असमानताएँ बनी हुई हैं। श्रम बाजार की माँग के अनुरूप कौशल विकास में भी सुधार की आवश्यकता है;
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP),2020 के अनुसार, भारत वर्ष 2035 तक 50% का कुल पंजीकरण अनुपात (GER) हासिल करने का उत्कृष्ट प्रयास कर रहा है।
    • अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण से पता चलता है कि सकल नामांकन अनुपात अभी भी 27.2 प्रतिशत से कम है।
  • असंगठित जनसांख्यिकीय विभाजन: नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष के अनुसार, विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय भिन्नता भारत की जनसांख्यिकीय चुनौती के लिए सबसे बड़ी चुनौती में से एक है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण दक्षिणी राज्य केरल और उत्तरी राज्य बिहार के बीच जनसांख्यिकीय विभाजन है।
    • NFHS-4 के अनुसार, वर्ष 2020 में केरल की शिशु मृत्यु दर प्रति 1,000 जन्मों पर 6 मृत्यु थी,  लेकिन बिहार के लिए यह प्रति 10,000 जन्मों पर 47 मृत्यु थी।
    • केरल वर्तमान में अपनी जनसंख्या में शून्य वृद्धि दर की ओर अग्रसर है जबकि 2011-2021 के दशक के दौरान बिहार की जनसंख्या वृद्धि दर 18.15% थी, जो भारत में सबसे अधिक थी।

आगे की राह: 

  • शिक्षा मानकों में सुधार: जनसांख्यिकीय परिवर्तन ग्रामीण और शहरी विभाजन को बढ़ाते हैं। इसलिए सार्वजनिक स्कूल प्रणाली को ग्रामीण या शहरी परिवेश की परवाह किए बिना स्कूली शिक्षा में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।
    • शिक्षा पर संयुक्त केंद्र-राज्य व्यय 2014-20 तक सकल घरेलू उत्पाद का 2.8% रहा है।
    • यह वर्ष 1968 की शिक्षा नीति में वादा किए गए सकल घरेलू उत्पाद के 6% के लक्ष्य, जिसकी वर्ष 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में फिर से पुष्टि की गई थी, से बहुत कम है।
  • स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं में सुधार: स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को सरकारी बजट और योजनाओं में सबसे आगे होना चाहिए और वास्तविक समय की स्थिति में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
    • वर्ष 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का लक्ष्य वर्ष 2025 तक स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारी खर्च को सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% तक पहुँचाना है।
    • लेकिन 2014-20 की अवधि में स्वास्थ्य देखभाल के लिए बजटीय परिव्यय 1.2% और 1.4% के बीच सीमित कर दिया गया है।
  • लैंगिक अंतराल को काम करना : $3 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था में महिलाएँ और लड़कियाँ तभी लाभान्वित हो सकती हैं जब वे नए कौशल और अवसरों से सम्पन्न होंगी।
    • यह उनकी अंशकालिक नौकरी के लिए कर प्रोत्साहन को बढ़ावा देने, बेहतर बाल देखभाल लाभों को प्रभावित करने हेतु क्रेच प्रणाली को बढ़ाने, कानूनी अनिवार्य लिंग बजटिंग जैसी पहलों के माध्यम से किया जा सकता है।
  • राज्यों में स्थिति-आधारित दृष्टिकोण: राज्यों में स्थिति-आधारित दृष्टिकोण में शासन सुधार लाएगा जो जनसांख्यिकीय चुनौतियों के कारण होने वाली समस्याओं  में सुधार करेगा।
    • राज्यों को कौशल, शहरीकरण, प्रवासन, उम्र बढ़ने आदि से संबंधित विभिन्न मुद्दों के आधार पर काम करने की आवश्यकता है।

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