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नाइट्रोजन प्रदूषण से बढ़ता वैश्विक जल संकट

Lokesh Pal February 10, 2024 05:31 115 0

संदर्भ

हाल ही में नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में जल की गुणवत्ता में गिरावट, विशेष रूप से नदियों में नाइट्रोजन प्रदूषण के कारण दुनिया भर में जल की कमी की गंभीर स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

    • “स्वच्छ जल की कमी”: अध्ययन “स्वच्छ जल की कमी” शब्द का परिचय देता है और जल की मात्रा तथा गुणवत्ता दोनों पर विचार करते हुए एक व्यापक मूल्यांकन प्रदान करता है।
  • यह आकलन वैश्विक नाइट्रोजन प्रदूषण और विभिन्न जलवायु एवं सामाजिक-आर्थिक परिदृश्यों को शामिल करता है।
    • नाइट्रोजन प्रदूषण का प्रभाव: दुनिया भर में भविष्य में नाइट्रोजन प्रदूषण के कारण उप-बेसिन (बड़े नदी बेसिन या जलग्रहण क्षेत्र के भीतर छोटी सक्रिय इकाइयाँ) में जल की कमी लगभग तीन गुना हो जाएगी।
    • प्रभावित क्षेत्रों का विस्तार: जल प्रदूषण के कारण दुनिया भर में 10,000 से अधिक मूल्यांकित उप-बेसिनों में से > 2000 उप-बेसिनों में जल की कमी उत्पन्न हो गई है।
      • वर्ष 2050 में जल की कमी का अनुमान: वैश्विक स्तर पर कुल नदी उप-बेसिनों में से 33% को जल की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
    • भारत पर प्रभाव: प्रारंभिक दो जलवायु परिदृश्यों में नाइट्रोजन प्रदूषण मुख्य रूप से कृषि गतिविधियों के लिए जिम्मेदार है।
  • हालाँकि अनुमान है कि सबसे गंभीर परिदृश्य में सीवेज कृषि को पीछे छोड़ते हुए प्राथमिक स्रोत बन जाएगा।
  • पानी की कमी वाले हॉटस्पॉट: नाइट्रोजन प्रदूषण दक्षिण चीन, मध्य यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका में कई उप-बेसिनों को प्रभावित कर सकता है।

नाइट्रोजन प्रदूषण के बारे में

  • यह पर्यावरण में नाइट्रोजन यौगिकों की अत्यधिक उपस्थिति को संदर्भित करता है जो अक्सर कृषि, औद्योगिक प्रक्रियाओं और परिवहन जैसी मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप होता है।
  • नाइट्रोजन की यह अधिशेष मात्रा जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान सहित विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दे सकता है।

नाइट्रोजन प्रदूषण के स्रोत

पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र में नाइट्रोजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका

  • नाइट्रोजन पृथ्वी के वायुमंडल में पाई जाने वाली प्रमुख गैस है, जो जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मृदा, भोजन और हमारे डीएनए (DNA) में पाई जाती है।
  • फसल की उर्वरता और प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक नाइट्रोजन सभी जीवित जीवों के विकास के लिए अपरिहार्य है।
  • वायुमंडल का 78% हिस्सा होने के बावजूद अधिकांश जीव वायुमंडलीय नाइट्रोजन का सीधे उपयोग नहीं कर सकते हैं, जिसके कारण नाइट्रोजन स्थिरीकरण जैसी रूपांतरण प्रक्रिया आवश्यक हो जाती है।
    • कृषि उर्वरक: नाइट्रोजन उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से वायुमंडल में नाइट्रस ऑक्साइड (एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस) का उत्सर्जन हो सकता है।
  • वाहित मल: 
    • खाद्य अपशिष्ट: खाद्य उत्पादन और आपूर्ति शृंखला के दौरान महत्त्वपूर्ण मात्रा में नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट उत्पन्न होता है जो मानव और पशु दोनों स्रोतों से उत्पन्न होता है।
    • अपशिष्ट जल उपचार: विशिष्ट नाइट्रोजन हटाने की प्रक्रियाओं की कमी वाली सुविधाएँ सतह और भू-जल में नाइट्रोजन के ऊँचे स्तर में योगदान कर सकती हैं।
    • ‘स्टॉर्म’ जल अपवाह: शहरी क्षेत्र तूफानी जल अपवाह के माध्यम से नाइट्रोजन प्रदूषण में योगदान करते हैं, जो सड़कों और छतों जैसी कठोर सतहों से नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे प्रदूषकों को पास के जल निकायों में ले जाता है।
  • जीवाश्म ईंधन का उपयोग (वाहन प्रदूषण): ट्रकों और कारों सहित डीजल से चलने वाले वाहन, स्वच्छ ईंधन और प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकी में प्रगति के बावजूद नाइट्रोजन प्रदूषण में योगदान करते हैं।

नाइट्रोजन प्रदूषण का प्रभाव

  • पारिस्थितिकी तंत्र का विघटन:
    • जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में: यह विषैले शैवाल पुष्पों और तटीय मृत क्षेत्रों का कारण बनता है, जो विश्व भर में जैव विविधता के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करता है।
    • भू-जल प्रदूषण
    • मृदा स्वास्थ्य का बिगड़ना
  • जलवायु परिवर्तन में योगदान: उर्वरक और कृषि उत्सर्जन नाइट्रस ऑक्साइड (एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस) और अमोनिया के उत्सर्जन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हैं, जिससे नाइट्रस ऑक्साइड और सूक्ष्म कण पदार्थ प्रदूषण का निर्माण होता है।
  • स्वास्थ्य जोखिम: जल स्रोतों में उच्च नाइट्रेट स्तर से शिशुओं में मेथेमोग्लोबिनेमिया (Methemoglobinemia) और वयस्कों में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
  • आर्थिक प्रभाव: मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके प्रभावों को देखते हुए वार्षिक रूप से $340 बिलियन से लेकर $3.4 ट्रिलियन तक की क्षति।

नाइट्रोजन प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए कदम

वैश्विक स्तर पर

भारत के संदर्भ में 

अंतरराष्ट्रीय नाइट्रोजन पहल:

  • यह नाइट्रोजन के स्थायी प्रबंधन के लिए अग्रणी विज्ञान-नीति मंच है- जो एक आवश्यक संसाधन और प्रमुख पर्यावरणीय खतरे के रूप में इसकी भूमिका को उजागर करता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 2003 में पर्यावरण की समस्याओं पर वैज्ञानिक समिति (SCOPE) और अंतरराष्ट्रीय जियोस्फीयर-बायोस्फीयर प्रोग्राम (IGBP) के प्रायोजन के तहत की गई थी।

गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल (1999):

  • यह एक बहु-प्रदूषक प्रोटोकॉल है, जिसे सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों और अमोनिया के लिए उत्सर्जन सीमा निर्धारित करके अम्लीकरण, यूट्रोफिकेशन और जमीनी स्तर के ओजोन को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

दक्षिण एशिया नाइट्रोजन हब (SANH):

  • इसका उद्देश्य दक्षिण एशिया और यूके के 32 से अधिक अग्रणी अनुसंधान संगठनों के विशेषज्ञों को एक साथ लाकर नाइट्रोजन के चुनौती से निपटना है।

सतत नाइट्रोजन अपशिष्ट प्रबंधन पर कोलंबो घोषणा:

  • इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक नाइट्रोजन अपशिष्ट को आधा करना है।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड:

  • यह किसानों को उनकी मिट्टी की पोषण स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है और मिट्टी के स्वास्थ्य तथा उर्वरता को बढ़ाने के लिए इष्टतम पोषक तत्त्व अनुप्रयोग के लिए सिफारिश करता है।
  • इस पहल ने कृषि में नाइट्रोजन की खपत में कमी लाने में योगदान दिया है।

नीम लेपित यूरिया (Neem-Coated Urea):

  • कृषि में नाइट्रोजन के उपयोग की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए इसे अनिवार्य कर दिया गया है।
  • यूरिया में नीम का लेप करने से नाइट्रोजन का निकलना धीमा हो जाता है, जिससे पौधों को इसे कुशलता से अवशोषित करने के लिए अधिक समय मिलता है।

भारत स्टेज मानदंड:

  • इसने विशेष रूप से SO2, NO2 आदि हानिकारक गैसों के वाहन उत्सर्जन को नियंत्रित किया है।

निष्कर्ष

वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और आर्थिक दक्षता में सुधार के लिए स्थायी प्रबंधन के माध्यम से नाइट्रोजन प्रदूषण को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है।

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