हाल ही में हिंद महासागर सम्मेलन का सातवाँ सत्र पर्थ, ऑस्ट्रेलिया में आयोजित किया गया।
संबंधित तथ्य
विषय (Theme): स्थिर और सुरक्षित हिंद महासागर की ओर (Towards a Stable and Sustainable Indian Ocean)
प्रतिभागी देश: सम्मेलन में 22 से अधिक देशों के मंत्री, 16 देशों के वरिष्ठ अधिकारी और 6 बहुपक्षीय संगठन भाग लिया।
हिंद महासागर सम्मेलन (Indian Ocean Conference)
यह क्षेत्रीय मामलों पर चर्चा करने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र के देशों द्वारा संगठित एक प्रमुख मंच है।
आयोजन: इसका वार्षिक आयोजन वर्ष 2016 से इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से विदेश मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
उद्देश्य: ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ (Security And Growth for All in the Region, SAGAR) हेतु क्षेत्रीय सहयोग पर विचार-विमर्श करने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र के सदस्य देशों एवं क्षेत्र के प्रमुख समुद्री भागीदारों को एक साझा मंच प्रदान करना।
मुख्य परिणाम
रणनीतिक उन्नयन (Strategic Upgradation): IOC से संबंधित कूटनीति को ‘ट्रैक 1.5’ से ‘ट्रैक 1’ में स्थानांतरित कर दिया गया है।
ट्रैक 1 कूटनीति: यह एक प्रकार की आधिकारिक राजनैतिक प्रक्रिया है, जिसमें राजनयिकों, राज्य के प्रमुखों और अन्य प्राधकारियों द्वारा देशों के बीच संपर्क स्थापित किया जाता है।
प्रस्तावित समावेशन:60 प्रतिशत से अधिक वैश्विक कंटेनर यातायात और 70 प्रतिशत ऊर्जा संबंधी व्यापार हिंद महासागर क्षेत्र के माध्यम से होता है, इसलिए आगामी सम्मेलनों में व्यवसायियों एवं अर्थशास्त्रियों की आर्थिक दृष्टिकोण को शामिल करना लाभकारी हो सकता है।
सामूहिक गठबंधन: यह गठबंधन हितधारक देशों को परामर्श और वार्ता के लिए मंच प्रदान करता है, तथा इसके माध्यम से बाधाओं को संयुक्त रूप से संबोधित एवं इस विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में विश्वसनीय आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण किया जा सकता है।
भूमि-आधारित संचार का विकास (Land-based Connectivity): भूमि आधारित संचार के विकास के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र को स्थिर एवं सुरक्षित बनाने की आवश्यकता है।
भारत- मध्य पूर्व- यूरोप आर्थिक गलियारा (India- Middle East- Europe Economic Corridor) और भारत- म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग (India- Myanmar- Thailand Trilateral Highway) जैसी महत्त्वाकांक्षी परियोजनाएँ प्रशांत महासागर क्षेत्र को अटलांटिक क्षेत्र से जोड़ने में सहायक हो सकती हैं।
निर्बाधता स्थापित करना: इस भौगोलिक क्षेत्र में इस मंच के निर्माण के साथ ही क्षेत्रीय सहयोग बढ़ेगा, जिसके माध्यम से आसियान (Association of Southeast Asian Nations, ASEAN) की तर्ज पर हिंद महासागर क्षेत्र में व्यापारिक निर्बाधता का लक्ष्य सुनिश्चित किया जा सकता है।
हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region)
हिंद महासागर क्षेत्र भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और भू-रणनीतिक रूप से बहुत महत्त्व रखता है।
विस्तार: हिंद महासागर क्षेत्र का विस्तार अफ्रीका के पूर्वी तट से ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट तक है जिसके अंतर्गत अरब की खाड़ी, पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया से लेकर मलक्का जलडमरूमध्य और दक्षिणी महासागर द्वीपसमूह आते हैं, इस विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में लगभग 38 देश शामिल हैं।
कनेक्टिविटी (Connectivity): हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region, IOR)एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग है, जो मलक्का जलडमरूमध्य (Straits of Malacca), होर्मुज जलडमरूमध्य (Straits of Hormuz), बाब-अल-मंदेब (Bab el Mandeb), ओमबाई (Ombai) और वेटर जलडमरूमध्य (Wetar Straits) जैसे महत्त्वपूर्ण जल-बिंदुओं के माध्यम से पूर्व और पश्चिम को जोड़ता है।
हिंद महासागर क्षेत्र में चुनौतियाँ
समुद्री यातायात के लिए खतरा: क्षेत्रीय हितधारकों के बीच संघर्ष, तस्करी, समुद्री डकैती और आतंकवाद जैसी बढ़ती आपराधिक गतिविधियों के कारण अस्थिरता बढ़ी है, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में समुद्री यातायात के लिए खतरा बढ़ा है।
उदाहरण के तौर पर, ईरान समर्थित हूती (Houthi) विद्रोहियों ने लाल सागर और अरब सागर से गुजरने वाले मालवाहक जहाजों को मिसाइलों से निशाना बनाया है।
अंतरराष्ट्रीय कानून के लिए चुनौतियाँ: कुछ देशों द्वारा UNCLOS (United Nations Convention on the Law of the Sea) जैसे अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अवहेलना से समुद्री परिवहन और हवाई यातायात की संप्रभुता और स्वतंत्रता संबंधी सुरक्षा चुनौतियाँ पैदा होती हैं।
हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) का सैन्यीकरण: इस समुद्री क्षेत्र में भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और चीन के युद्धपोतों और पनडुब्बियों की उपस्थिति बढ़ रही है, जिसे हिंद महासागर क्षेत्र के सैन्यीकरण के रूप में देखा जा सकता है।
उदाहरण के लिए, मालदीव में चीनी अनुसंधान जहाजों की उपस्थिति।
ऋण जाल (Debt Trap): इस भौगोलिक क्षेत्र में कई छोटे देश अस्थिर ऋणों, अव्यवहारित परियोजनाओं और अविवेकपूर्ण आर्थिक नीतियों के कारण ऋण जाल में फँस रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन की उपस्थिति भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है।
रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा:संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के मध्य शक्ति संतुलन की धुरी (Balance of Power Axis) अब हिंद महासागर क्षेत्र में स्थानांतरित हो गई है, जिसके कारण इस भौगोलिक क्षेत्र के तटीय देशों को व्यापारिक और संप्रभुता संबंधी नुकसान हो सकते हैं।
चीन की बढ़ती उपस्थिति: हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते नौसैनिक हस्तक्षेप और अन्य देशों से चीन के समुद्री टकराव से रणनीतिक संतुलन बिगड़ रहा है, जैसे- दक्षिण चीन सागर संघर्ष। हिंद महासागर क्षेत्र में चीन अपने समर्थन और दबदबे के लिए एक मंच स्थापित करना चाहता है।
जलवायु संकट: समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण मालदीव और इंडोनेशिया जैसे छोटे द्वीपीय देशों का क्षेत्र डूब रहा है, जिससे पूरे क्षेत्र में शरणार्थी संकट पैदा होने की आशंका है।
भारत के लिए हिंद महासागर क्षेत्र का महत्त्व
रणनीतिक स्थिति: भारत हिंद महासागर के प्रमुख बिंदु पर स्थित है और हिंद महासागर से संलग्न भारत की 7,500 किलोमीटर से अधिक लंबी तटरेखा का रणनीतिक महत्त्व अत्यधिक है।
व्यापार: मात्रात्मक रूप से भारत का 95 प्रतिशत व्यापार और मूल्य के हिसाब से 68 प्रतिशत व्यापार हिंद महासागर क्षेत्र के माध्यम से होता है।
तेल पर निर्भरता: भारत की प्रतिदिन 3.28 मिलियन बैरल कच्चे तेल की आवश्यकता का 80 प्रतिशत हिस्सा हिंद महासागर क्षेत्र के द्वारा आयात किया जाता है तथा अपतटीय तेल उत्पादन एवं पेट्रोलियम निर्यात को शामिल कर लेने पर यह आँकड़ा 93% तक पहुँच जाता है।
भारत तरलीकृत प्राकृतिक गैस (Liquefied Natural Gas, LNG) का चौथा सबसे बड़ा आयातक भी है, जिसका लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा इसी क्षेत्र से आयातित होता है।
संसाधनों के लिए निर्भरता
मत्स्यपालन: भारत तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो 4.12 मिलियन टन समुद्री मछली के उत्पादन के साथ वैश्विक मछली उत्पादन में 8 प्रतिशत का योगदान देता है। यह दुनिया के शीर्ष पाँच मछली निर्यातक देशों में भी शामिल है।
खनिज संसाधनों का निष्कर्षण (Extraction): गहरे समुद्र में खनन के नियंत्रण हेतु निर्मित अंतरराष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (International Seabed Authority) ने हिंद महासागर के मध्य क्षेत्र (Central Indian Ocean Ridge) में संसाधनों के पता लगाने का विशेष अधिकार भारत को प्रदान किया है। अनुमान है कि इस क्षेत्र में मैंगनीज, कोबाल्ट, निकल, ताँबा, लीथियम आदि के विशाल भंडार हैं, जो औद्योगिक क्रांति 4.0 के लिए महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं।
सुरक्षा: भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में तस्करी, अवैध मछली पकड़ने, मानव तस्करी, समुद्री डकैती, आतंकवाद आदि जैसे अपराधों को रोकने के लिए नौसैनिक निगरानी और सतर्कता संचालन में वृद्धि की है, जिससे भारत की छवि हिंद महासागर क्षेत्र में एक सुरक्षा प्रदाता (Security Provider) के रूप में उभरी है।
उदाहरण के लिए, भारतीय तट रक्षक (Indian Coast Guard) लाल सागर में समुद्री डकैती के प्रयासों से आसानी से निपट रहे हैं।
मानवीय और आपदा राहत में भूमिका: भारत अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ (Neighbourhood First) नीति के तहत किसी भी संकट के दौरान इस भौगोलिक क्षेत्र में सहायता कार्य करता रहा है। उदाहरण के तौर पर, यमन में ऑपरेशन राहत तथा मालदीव को ताजा पेयजल उपलब्ध कराना।
भू-रणनीतिक महत्त्व: हिंद महासागर क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बिंदुओं (Choke Points) को नियंत्रित करके चीन की विस्तारवादी नीति को चुनौती दी जा सकती है।
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