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कृषि वानिकी से बंजर भूमि का हरितकरण

Lokesh Pal February 14, 2024 05:45 95 0

संदर्भ

हाल ही में नीति आयोग ने कृषि वानिकी के साथ बंजर भूमि की हरियाली एवं बहाली (Greening and Restoration of Wasteland with Agroforestry- GROW) रिपोर्ट और पोर्टल लॉन्च किया है।

कृषि वानिकी के साथ बंजर भूमि की हरियाली एवं बहाली रिपोर्ट तथा पोर्टल के बारे में

  • राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखण: GROW पहल का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को बहाल करना है।

    • एक अतिरिक्त कार्बन सिंक स्थापित करने का लक्ष्य जो 2.5 से 3 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड के समकक्ष को अवशोषित करने में सक्षम हो।
  • GROW रिपोर्ट: यह रिपोर्ट विशेष रूप से अनुपयोगी भूमि, जैसे बंजर क्षेत्रों को कृषि-वानिकी में परिवर्तित करने के संभावित लाभों को रेखांकित करती है।
  • प्रयुक्त प्रौद्योगिकी: कृषि वानिकी उपयुक्तता का राष्ट्रव्यापी आकलन करने के लिए सुदूर संवेदन और भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic information system-GIS) का उपयोग किया गया है।  कृषि में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देता है।
  • कृषि वानिकी उपयुक्तता सूचकांक (Agroforestry Suitability Index-ASI) का विकास: राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिकता निर्धारण के लिए विषयगत आँकड़ों पर आधारित।
  • राज्य-वार और जिला-वार विश्लेषण: हरियाली एवं बहाली परियोजनाओं में सरकारी विभागों और उद्योगों का समर्थन करने के लिए रिपोर्ट में विस्तृत विश्लेषण प्रदान किया गया है।
  • भुवन पोर्टल: GROW उपयुक्तता मैपिंग पोर्टल भुवन’, राज्य और जिला-स्तरीय आँकड़ों तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करता है।

कृषि वानिकी के बारे में

  • परिभाषा: कृषि वानिकी एक भूमि प्रबंधन प्रणाली है, जिसमें वृक्षों को फसलों और/या जानवरों के साथ एक ही भूमि इकाई पर एकीकृत किया जाता है।
    • पोषक तत्त्वों के पुनर्चक्रण और ऊर्जा के प्रवाह को सुगम बनाता है, जिससे पारिस्थितिकी क्षमता बढ़ती है।
  • भारत में कृषि वानिकी की वर्तमान स्थिति: भारत में वर्तमान में कृषि वानिकी का विस्तार देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 8.65% या लगभग 28.42 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में है।
  • केंद्रीय बजट में सरकार की प्राथमिकता: भारत सरकार का वित्त वर्ष 2022-23 का केंद्रीय बजट कृषि वानिकी और निजी वानिकी को बढ़ावा देने पर जोर देता है।
  • राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति और उद्देश्य: भारत ने वर्ष 2014 में राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति प्रस्तुत की थी।
    • इसका उद्देश्य कृषि-पारिस्थितिकीय भूमि उपयोग प्रणालियों के माध्यम से उत्पादकता, लाभप्रदता और स्थायित्व को बढ़ाना है।
  • भारत में विविध कृषि वानिकी प्रणालियाँ: भारत में पाई जाने वाली प्रमुख प्रणालियों में कृषि-बागवानी, सिल्वी पाश्चर (Silvopasture) और कृषि-सिल्वीकल्चर (Agri-silviculture) शामिल हैं।
    • भारत में प्रचलित विभिन्न प्रणालियों में टौंग्या प्रणाली (Taungya System), कृषि सिल्वीकल्चर (Agri-silviculture) और जल वानिकी (Aqua Forestry) शामिल हैं।

बंजर भूमि (Wasteland) के बारे में

  • बंजर और बीहड़ भूमि, जो अनुत्पादक पड़ी हो, या जिसका उसकी क्षमता के अनुसार उपयोग नहीं किया जा रहा हो, आम तौर पर बंजर भूमि मानी जाती है।
    • उदाहरणों में बंजर भूमि, क्षतिग्रस्त वन, जलयुक्त दलदली भूमि, पहाड़ी ढलान, क्षरित घाटियाँ, अतिचारित चरागाह और सूखा प्रभावित चरागाह शामिल हैं।

वेस्टलैंड एटलस – 2019

  • बंजर भूमि क्षेत्र सांख्यिकी: वर्ष 2015-16 के लिए कुल अनुमानित बंजर भूमि क्षेत्र 55.76 मिलियन हेक्टेयर (भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 16.96%) है।
    • इसमें 2008-09 से 56.60 मिलियन हेक्टेयर (17.21%) की कमी देखी गई है।
  • बंजर भूमि में सकारात्मक परिवर्तन
    • राजस्थान (0.48 Mha), बिहार (0.11 Mha), उत्तर प्रदेश (0.10 Mha), आंध्र प्रदेश (0.08 Mha), मिजोरम (0.057 Mha), मध्य प्रदेश (0.039 Mha), जम्मू और कश्मीर (0.038 Mha) और पश्चिम बंगाल (0.032 Mha) जैसे राज्यों में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिला है।
    • अधिकांश क्षेत्र फसल भूमि (0.64 Mha), वन-सघन/खुला (0.28 Mha), वन वृक्षारोपण (0.029 Mha), बागान (0.057 Mha) और औद्योगिक क्षेत्र (0.035 Mha) जैसी श्रेणियों में परिवर्तित हो गया है।

कृषि वानिकी के माध्यम से बंजर भूमि का कायाकल्प

  • कृषि योग्य भूमि के उपयोग को संबोधित करना: बंजर भूमि को उत्पादक कृषि वानिकी प्रणालियों में परिवर्तित कर भूमि उपयोग दक्षता का अनुकूलन करता है।
    • यह मौजूदा कृषि भूमि पर दबाव कम करता है, खाद्य उत्पादन के लिए मूल्यवान कृषि योग्य भूमि को संरक्षित करता है।
  • आजीविका में सुधार: वृक्षों को फसलों या पशुधन के साथ एकीकृत करके ग्रामीण समुदायों के लिए विविध आय के अवसर प्रदान करता है।
    • लकड़ी, फल, मेवे और अन्य कृषि वानिकी उत्पादों के माध्यम से राजस्व उत्पन्न करता है, जिससे आर्थिक कल्याण बढ़ता है।
  • आयात निर्भरता में कमी: स्वदेशी और कम उपयोग में ली जाने वाली वृक्ष प्रजातियों को बढ़ावा देना, ताकि आयातित लकड़ी और लकड़ी उत्पादों पर निर्भरता कम हो सके।
    • कृषि वानिकी में उच्च पैदावार के लिए आनुवंशिक रूप से उन्नत सामग्री और प्रथाओं का विकास करना।
  • वैश्विक प्रतिबद्धताओं को संबोधित करने में भूमिका: वृक्षों, फसलों और पशुधन को एकीकृत करके खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसी चुनौतियों का समाधान करता है।
    • यह पेरिस समझौते, बॉन चैलेंज और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों जैसे वैश्विक समझौतों के साथ संरेखित।
  • पर्यावरण बहाली: कृषि वानिकी मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि कर, मिट्टी का कटाव कम करके और जैव विविधता को बढ़ावा देते हुए बंजर या क्षरित भूमि को पुनर्स्थापित करती है। वृक्ष मिट्टी को स्थिर करते हैं, जल के बहाव को रोकते हैं और मिट्टी की संरचना में सुधार करते हैं, जिससे भूमि क्षरण को कम किया जा सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन शमन: कृषि वानिकी कार्बन पृथक्करण (Carbon Sequestration), वैश्विक और राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन से निपटने में योगदान देती है।
  • सतत संसाधन प्रबंधन: जलसंभर संरक्षण, मृदा संरक्षण और जैव विविधता संरक्षण में योगदान देता है।

कृषि वानिकी की सीमाएँ

  • प्रारंभिक स्थापना लागत: वृक्ष फसलों या पशुधन एकीकरण की स्थापना के लिए आवश्यक अग्रिम निवेश में रोपण, बाड़ लगाने, सिंचाई प्रणाली और श्रम के खर्च शामिल हैं, जो संसाधन-सीमित किसानों या समुदायों के लिए एक चुनौती हो सकती है।
  • लंबी परिपक्वता अवधि: आम तौर पर वार्षिक फसलों की तुलना में इसकी परिपक्वता अवधि लंबी होती है। वृक्षों को परिपक्व होने और पैदावार देने में समय लगता है, जिससे निवेश पर रिटर्न में देरी होती है और किसानों को धैर्य रखने की आवश्यकता होती है।
  • कृषि वानिकी के पर्यावरणीय पहलू: वृक्षों द्वारा खाद्य फसलों के साथ स्थान, सूर्य का  प्रकाश, नमी और पोषक तत्त्वों के संभावित प्रतिस्पर्द्धा जिससे खाद्य फसलों की पैदावार कम हो सकती है।
    •  वृक्षों की कटाई के दौरान खाद्य फसल को नुकसान।
    • वृक्षों में आश्रय पाने वाले हानिकारक कीट खाद्य फसलोंको क्षति पहुँचा सकते हैं।
    • वृक्षों का तीव्र विस्तार, खाद्य फसलों को विस्थापित कर सकता है और पूरे खेतों पर कब्जा कर सकता है।
  • सामाजिक-आर्थिक पहलू: अधिक श्रम आदानों की आवश्यकता, जो कई बार अन्य कृषि गतिविधियों में कमी का कारण बन सकती है;
    • एकल फसल वाले खेतों की तुलना में कृषि वानिकी अधिक जटिल है।
  • प्रबंधन की जटिलता: कृषि वानिकी प्रणालियों के विविध घटकों जैसे वृक्षों, फसलों और पशुधन के प्रबंधन के लिए विशेष ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है।
  • बाजार पहुँच और मूल्य शृंखला: किसानों को लकड़ी, फल या मेवे जैसे वृक्ष उत्पादों के विपणन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, खासकर अगर इन उत्पादों के लिए स्थानीय या क्षेत्रीय स्तर पर बुनियादी ढाँचा या माँग अपर्याप्त हो।
  • भूमि का स्वामित्व और अधिकार: अस्पष्ट भूमि अधिकार या विवाद किसानों को दीर्घकालिक कृषि वानिकी प्रथाओं में निवेश करने से हतोत्साहित कर सकते हैं, विशेष रूप से सांप्रदायिक या विवादित भूमि पर।
  • पर्यावरण और जलवायु कारक: कृषि वानिकी प्रणालियाँ पर्यावरणीय और जलवायु कारकों जैसे सूखा, कीट, बीमारियाँ और चरम मौसम की घटनाओं के प्रति सुभेद्य होती हैं।
    • बंजर भूमि क्षेत्रों में मिट्टी की निम्न गुणवत्ता, सीमित जल उपलब्धता या कठोर जलवायु परिस्थितियाँ हो सकती हैं, जो कृषि वानिकी पहल की सफलता और लचीलेपन को प्रभावित कर सकती हैं।

विभिन्न प्रकार की भूमियों के लिए अनुशंसित वृक्ष और घास की प्रजातियाँ:

  • रेतीली मिट्टी: एकेशिया टॉर्टिलिस, प्रोसोपिस सिनेरिया, अल्बिजिया लेबबेक, सेंच्रस सेटिगरस आदि।
  • उथली मिट्टी: प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा, डाइक्रोस्टैचिस ग्लोमेरेटा, पैनिकम एंटीडोटेल आदि।
  • बलुआ पत्थर की चट्टानी साइटें: अल्बिजिया लेबेक, बोसवेलिया सेराटा, कैसिया ऑरिकुलाटा आदि।
  • लवणीय क्षेत्र: टैमरिक्स ऑरिकुलाटा, क्लोरिस प्रजातियाँ आदि।
  • स्थानांतरित रेत के टीले: एकेशिया सेनेगल, अल्बिजिया लेबेक, सचरम मुंजा आदि।
  • शुष्क क्षेत्रों के लिए कृषि फसलें: बाजरा, लोबिया, ज्वार, ग्वार, उड़द, मूंग।

आगे की राह

  • वित्तीय और ऋण सहायता: कृषि वानिकी परियोजनाओं पर विशेष रूप से लक्षित वित्तीय प्रोत्साहन, सब्सिडी और ऋण प्रदान करना। कृषि वानिकी परियोजनाओं के लिए अनुकूलित वित्तीय उत्पाद विकसित करने के लिए सूक्ष्म वित्त पहल और सहकारी ऋण समितियों की स्थापना और वित्तीय संस्थानों के साथ सहयोग करना।
    • उदाहरण के लिए, विश्व बैंक भारत की पारिस्थितिकी सेवा सुधार परियोजना (Ecosystem Services Improvement Project-ESIP) का समर्थन कर रहा है, जो हरित भारत मिशन के उद्देश्यों के अनुरूप है। यह परियोजना सतत भूमि और पारिस्थितिकी प्रबंधन के माध्यम से अनुकूलन आधारित शमन के मॉडल प्रदर्शित करके और साथ ही आजीविका लाभ प्रदान करके इन उद्देश्यों को पूरा करती है।

मरुस्थलीकरण

  • मरुस्थलीकरण: यह भूमि क्षरण का एक प्रकार है, जिसके कारण मरुस्थल जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, विशेष रूप से शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में, जो अक्सर वनों की कटाई और खनन जैसी मानवीय गतिविधियों के कारण और भी बदतर हो जाती हैं।
  • कारण:
    • जनसंख्या का दबाव
    • मवेशियों की संख्या में वृद्धि और अत्यधिक चराई
    • कृषि का विस्तार
    • तीव्र विकास गतिविधियाँ
    • वनों की कटाई

  • तकनीकी सहायता: सफल कृषि वानिकी मॉडल प्रदर्शित करने के लिए ज्ञान-साझाकरण मंच, किसान क्षेत्र स्कूल और प्रदर्शन भूखंड स्थापित करना।
    • उदाहरण के लिए, डिजिटल कृषि वानिकी प्रबंधन सूचना प्रणाली (Digital Agroforestry Management Information System-DAMIS) के विकास द्वारा सृजित ज्ञान का प्रसार करना।
    • DAMIS विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में वनों के बाहर के वृक्षों के लिए कृषि वानिकी वृक्ष प्रजातियों और अन्य प्रजातियों का एक भू-संदर्भित डेटाबेस तैयार करेगा।
  • सहयोग को बढ़ावा : कृषि-वानिकी पर संयुक्त शोध परियोजनाओं को सुगम बनाने के लिए शोध संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों, गैर-सरकारी संगठनों और सरकारी एजेंसियों के बीच सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण के लिए, भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (Indian Council of Forestry Research and Education-ICFRE) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research-ICAR) किसानों के लिए पारिस्थितिकी रूप से टिकाऊ और आर्थिक रूप से व्यवहार्य एकीकृत कृषि वानिकी मॉडल का विस्तार करने के लिए सहयोग कर सकते हैं।
  • नीति ढाँचे का सुदृढ़ीकरण: कृषि वानिकी पद्धतियों को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए स्पष्ट और सहायक नीतियों और नियमों का निर्माण करना।
    • उदाहरण के लिए, नियामक प्रणालियों को उदार बनाकर कृषि वानिकी में टीक, महोगनी और चंदन जैसी उच्च-मूल्य वाली, लंबी अवधि/आयु वाली वृक्ष प्रजातियों की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है।
    • गुजरात जैसे राज्य सरकार के स्वामित्व वाली बंजर भूमि को खेती के लिए आवंटित कर रहे हैं और हितधारकों को दीर्घकालिक पट्टे की पेशकश कर रहे हैं।
  • आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर बंजर भूमि को उपजाऊ बनाना: नेट हाउस, ग्रीन हाउस, मल्चिंग और उच्च घनत्व वृक्षारोपण जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकियों के उपयोग के माध्यम से बंजर भूमि को खेती के लिए उपजाऊ बनाया जा सकता है।
  • सर्वोत्तम प्रथाओं का दस्तावेजीकरण: सर्वोत्तम कृषि वानिकी प्रथाओं का दस्तावेजीकरण करना और टिकाऊ भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनके विस्तार के लिए रणनीतियाँ विकसित करना।
    • उदाहरण के लिए, शुष्क भूमि के अंतर्गत चिनार, नीलगिरी, कैसुरीना और मेलिया प्रजातियों के साथ-साथ बहुउद्देश्यीय वृक्ष प्रजातियों में किसानों की आय सृजन में सुधार करने की उच्च क्षमता है।

सरकारी कदम

  • सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture-NMSA)।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)।
  • जलसंभरण विकास कार्यक्रम।
  • किसानों की आय दोगुनी करने की पहल।
  • हरित भारत मिशन।

अंतरराष्ट्रीय प्रयास:

  • पेरिस समझौता
  • बॉन चैलेंज
  • संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य
  • मरुस्थलीकरण से निपटने पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (United Nations Convention on Combating Desertification-UNCCD)।

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