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चुनावी बॉण्ड पर SC का निर्णय और RTI अधिनियम

Lokesh Pal February 17, 2024 05:23 132 0

संदर्भ

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में माना कि चुनावी बॉण्ड मौलिक अधिकारों और सूचना के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन करता है।

चुनावी बॉण्ड पर SC का फैसला

  • ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया कैबिनेट सचिव और अन्य’ वाद : उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि चुनावी बॉण्ड योजना संविधान के अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत सूचना के अधिकार और वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है।
  • RTI का व्यापक दायरा: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि RTI केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें सहभागी लोकतंत्र के लिए आवश्यक जानकारी भी शामिल है।
    • राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयाँ हैं और चुनावी विकल्पों के लिए उनकी फंडिंग की जानकारी आवश्यक है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर: सूचना के अधिकार अधिनियम के मूलभूत उद्देश्यों, पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों को न्यायाधीशों ने अपना सर्वसम्मति से निर्णय देते समय ध्यान में रखा था।

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के बारे में

RTI अधिनियम का विकास

  • पृष्ठभूमि: भारत में सूचना के अधिकार की शुरुआत 12 अक्टूबर, 2005 को पुणे पुलिस स्टेशन में दायर की गई पहली क्वेरी के साथ हुई, जो पारदर्शिता में एक नए अध्याय की शुरुआत थी।
  • राजस्थान में जन आंदोलन: 1990 के दशक में राजस्थान के गाँवों में मजदूर किसान संगठन समिति (MKSS) द्वारा “हमारा पैसा – हमारा हिसाब” के नारे ने सरकारी रिकॉर्ड तक पहुँच के लिए एक आंदोलन की शुरुआत हुई और अंततः सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information-RTI Act) पारित हुआ।
  • विधायी अधिनियम: RTI अधिनियम वर्ष 2005 में संसद द्वारा पारित किया गया था। यह अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19(1)(a) के तहत नागरिकों को वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने में सक्षम बनाता है।
  • प्रावधान: अधिनियम के तहत, एक नागरिक “सार्वजनिक प्राधिकरण” (सरकार का एक निकाय) से जानकारी का अनुरोध कर सकता है, जिस पर संबंधित निकाय को 30 दिनों के जवाब देना आवश्यक है।

RTI अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ

  • लोक सूचना अधिकारी (PIO): कोई भी नागरिक संबंधित PIO को संबोधित करते हुए लिखित या इलेक्ट्रॉनिक रूप से आवेदन कर सकता है।
    • ये वे अधिकारी होते हैं, जिन्हें सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा उनके अधीन सभी प्रशासनिक इकाइयों या कार्यालयों में यह सुनिश्चित करने के लिए नामित किए जाते हैं कि अधिनियम के तहत सूचना का अनुरोध करने वाले नागरिकों को सूचना प्रदान की जाए।
  • समय पर प्रतिक्रिया: आवेदन प्राप्त होने पर, PIO को 30 दिनों के भीतर जवाब देना आवश्यक है।
    • असाधारण मामलों में जहाँ जानकारी किसी तीसरे पक्ष से संबंधित होती है, वहाँ जवाब देने का समय 45 दिनों तक बढ़ा दिया जाता है।
  • अपील करने का अधिकार: यह अधिनियम आवेदक और PIO दोनों के लिए अपील करने के अधिकार को मान्यता देता है।
    • यदि कोई आवेदक प्राप्त प्रतिक्रिया से संतुष्ट नहीं है या उसे निर्धारित समय सीमा के भीतर प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, तो वह प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दायर कर सकता है।
    • यदि आवेदक प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के निर्णय से अभी भी असंतुष्ट है, तो वह अंतिम अपीलीय प्राधिकारी के रूप में सूचना आयोग से संपर्क कर सकता है।
  • प्रकटीकरण दायित्व: सार्वजनिक प्राधिकरणों को अपने संगठन, कार्यों, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और सार्वजनिक योजनाओं से संबंधित जानकारी को सार्वजनिक करना होगा।
    • छूट: सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 पारदर्शिता को बढ़ावा देते हुए, रक्षा और सुरक्षा से जुड़े मामलों, व्यक्तिगत जानकारी और मंत्रिमंडल की कार्यवाही पर विशिष्ट छूट प्रदान करती है।
    • RTI अधिनियम की धारा 8 के तहत अपवादों का प्रावधान:
      • भारत की संप्रभुता और अखंडता,
      • राज्य की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हित,
      • विदेशी राज्यों के साथ संबंध,
      • किसी अपराध को उकसाने का कारण बनना,
      • धारा 8(2) आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के तहत छूट प्रदान करती है।
  • व्हिसलब्लोअर संरक्षण: इसके तहत भ्रष्टाचार या गलत काम को उजागर करने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए व्हिसलब्लोअर संरक्षण के प्रावधान शामिल हैं।
    • यह व्हिसलब्लोअर की पहचान का खुलासा करने पर रोक लगाता है और उन्हें होने वाले किसी भी नुकसान के लिए दंड का प्रावधान करता है।
  • सूचना आयोग: यह केंद्र में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) और राज्य में राज्य सूचना आयोग (SIC) के गठन का प्रावधान करता है।
  • सक्रिय प्रकटीकरण: सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 4 सभी सार्वजनिक प्राधिकरणों को सूचना का सक्रिय रूप से प्रकटीकरण करने का आह्वान करती है ताकि जनता को सूचना प्राप्त करने के लिए RTI अधिनियम का न्यूनतम उपयोग करना पड़े।

RTI अधिनियम की नींव पर आघात

  • राजनीतिक दलों द्वारा RTI का विरोध: राजनीतिक दलों को RTI जाँच के अधीन करने के CIC के वर्ष 2013 के प्रयास को राजनीतिक दलों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और कानूनी रूप से चुनौती दिए बिना ही फैसले की अनदेखी की गई।
    • इस प्रतिरोध ने न केवल CIC के अधिकार को कमजोर किया बल्कि आयोग और सरकार के बीच अविश्वास का दौर भी शुरू किया।
  • राजनीतिक और ऐतिहासिक जानकारी तक सीमित पहुँच: राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेशी संबंधों के आधार पर सूचनाओं को अवरुद्ध करना ऐतिहासिक दस्तावेजों तक सार्वजनिक पहुँच को प्रभावित करता है।
    • पीएम केयर फंड की जानकारी को भी RTI के दायरे से बाहर रखा गया है।
  • RTI संशोधन अधिनियम 2019
    • कार्यकाल और नियुक्ति: मूल अधिनियम राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner) और सूचना आयुक्त (Information Commissioner) के लिए एक निश्चित 5 वर्ष का कार्यकाल निर्धारित करता है। इस संशोधन ने केंद्र सरकार को मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त की पदावधि निर्धारण करने का अधिकार दिया है तथा 5 वर्ष के निश्चित कार्यकाल को हटा दिया गया है।
    • वेतन निर्धारण: मूल अधिनियम के अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त, चुनाव आयुक्तों और राज्य के मुख्य सचिवों के वेतन के समान था। यह संशोधन केंद्र सरकार को राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर CIC तथा IC के लिए वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों को निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।

RTI अधिनियम के साथ कार्यात्मक मुद्दे

  • अधीनस्थ नियमों पर निर्भरता: RTI का कार्यान्वयन केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए अधीनस्थ नियमों पर निर्भर है।
    • उदाहरण के लिए, एक सार्वजनिक प्राधिकरण किस भुगतान पद्धति को स्वीकार कर सकता है, इसका निर्णय राज्यों पर छोड़ दिया गया है।
    • उदाहरण: तमिलनाडु जैसे राज्य इंडियन पोस्टल ऑर्डर (IPOs) स्वीकार नहीं करते हैं।
  • RTI कार्यकर्ताओं को धमकियाँ: कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) के आँकड़ों के अनुसार, पूरे भारत में वर्ष 2006 से अब तक 99 RTI कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है, 180 पर हमला किया गया है और 187 को धमकियाँ दी गई हैं।
  • निष्क्रियता(Dysfunctional): अपवादों के कारण, सूचना आयोग निष्क्रिय बने हुए हैं।
    • सतर्क नागरिक संगठन ने राज्य सूचना आयोगों के प्रदर्शन के अपने हालिया अध्ययन में पाया कि 29 में से 4 राज्य सूचना आयोग निष्क्रिय हैं और कम-से-कम 3 में अभी भी किसी प्रमुख की नियुक्ति नहीं की गई है।
  • सूचना आयोगों में रिक्तियाँ: 10 राज्य सूचना आयोगों में, अपील दायर करने के बाद सुनवाई के लिए प्रतीक्षा समय एक वर्ष से अधिक है।
    • 29 आयोगों में से 19 आयोगों ने अधिनियम के तहत अनिवार्य अपनी वार्षिक रिपोर्ट दाखिल नहीं की है।
    • केंद्रीय सूचना आयोग में ही आठ पद रिक्त हैं और केवल तीन आयुक्त काम कर रहे हैं। इस स्थिति में लंबित मामलों के जल्द निपटारे की उम्मीद कम ही है।
    • उदाहरण के लिए, झारखंड SIC में मई 2020 से अपील सुनने के लिए कोई आयुक्त नहीं है।
  • शिथिल रवैया: सूचना अधिकारियों (PIO) द्वारा अक्सर 30 दिनों की समय सीमा का उल्लंघन किया जाता है और अक्सर RTI के उत्तर के रूप में अधूरी जानकारी उपलब्ध प्रदान की जाती है।
  • लंबित मामलों में वृद्धि: CIC के तहत लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है। 30 जून, 2023 तक विभिन्न आयोगों के समक्ष 3,21,000 अपीलें लंबित थीं।
  • न्यायिक अड़चनें: कई RTI मामले न्यायिक प्रक्रियाओं में उलझे हुए हैं।
  • अनुचित RTI आवेदन : नौकरशाहों द्वारा अपने गैर-पेशेवर रवैये के लिए बार-बार दोहराया जाने वाला बहाना अनुचित प्रश्नों या विकृत उद्देश्यों वाले RTI आवेदन दाखिल किये जाना है। हालाँकि, यह कुल अपीलों का केवल लगभग 4% है, जिसे आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है।

आगे की राह 

  • RTI अधिनियम का सुदृढ़ीकरण : RTI से जुड़े मुद्दों को संबोधित करने के लिए कार्मिक मंत्री के नेतृत्व में एक समिति का गठन करना।
  • आचार संहिता का निर्माण : सूचना आयुक्तों (केंद्रीय और राज्य) के लिए एक आचार संहिता विकसित की जाए, जो उन्हें सरकारी प्रमुखों और अधिकारियों से दूर रखे। यह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • निष्क्रिय आयोगों को पुनर्जीवित करना: राज्य आयोगों और केंद्रीय सूचना आयुक्तों की रिक्तियों को भरकर निष्क्रिय राज्य आयोगों को तुरंत शुरू किया जाना चाहिए।
  • स्वायत्त सूचना आयोग : प्रेस और लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना, भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित करना और सूचना आयोगों की पूर्ण स्वायत्तता बनाए रखना अनिवार्य है।
  • सूचना कानूनों के बारे में जागरूकता और शिक्षा: भारतीय सूचना कानून, जिसे दुनिया भर में सबसे मजबूत कानूनों में से एक माना जाता है, को लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाकर और सरकारी अधिकारियों के लिए कठोर प्रशिक्षण आयोजित करके और भी मजबूत बनाया जा सकता है।
  • स्थानीय भाषाओं में सूचना की उपलब्धता: RTI अधिनियम और इसकी कार्यप्रणाली से जुड़ी सभी जानकारी स्थानीय भाषा में उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

निष्कर्ष

RTI अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी और उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए RTI कार्यकर्ताओं, नागरिक समाज संगठनों तथा सरकारी एजेंसियों के बीच सहयोग आवश्यक है।

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