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COP28: जलवायु कार्रवाई में शहरों की भूमिका (COP28: Role of Urban Cities in Climate Action)

Samsul Ansari December 20, 2023 11:43 146 0

संदर्भ

जलवायु परिवर्तन से निपटने के संदर्भ में COP28 में शहरों की भूमिका और ‘ग्लोबल साउथ’ के शहरों को अधिक समर्थन देने की आवश्यकता पर चर्चा की गई।

पृष्ठभूमि

  • दुबई में आयोजित COP28 को कुछ लोगों ने मिश्रित उपलब्धि के तौर पर परिभाषित किया है। 
  • भले ही यह जीवाश्म ईंधन को समाप्त करने की गहन प्रतिबद्धता नहीं दे सका, परंतु कुछ महत्त्वाकांक्षी प्रतिनिधियों ने इसे ‘जीवाश्म ईंधन के युग के अंत की शुरुआत’ के रूप में वर्णित किया। 
  • वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने के पेरिस जलवायु समझौते पर ‘ग्लोबल स्टॉक टेकिंग’ (GST) के कारण यह एक महत्त्वपूर्ण COP था। इसी तरह ‘लॉस एंड डैमेज फंड’ को भी मंजूरी दी गई। 
  • COP28 में, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन पर मंत्रिस्तरीय बैठक के लिए समर्पित एक विशेष दिन रखा गया। 
  • इस तरह के कदमों ने शहर के कुछ प्रतिनिधियों और नागरिक समाज संगठनों (CSO) को अपनी आवाज उठाने और सिद्धांत पर जोर देने के लिए मजबूर किया।
  • शहरों के प्रतिनिधियों द्वारा बहु स्तरीय ‘ग्रीन डील’ संबंधी प्रशासन और ऊर्जा एवं जलवायु कार्रवाई के शासन तथा विनियमन को संशोधित करने के लिए वार्ता की गई। 

शहरों से संबंधित आँकड़े

  • वर्ष 1995 में जब UNFCCC ने COP की शुरुआत की तो 44% लोग शहरों में रहते थे। वर्तमान में वैश्विक आबादी का 55% शहरी है और वर्ष 2050 तक इसके 68% तक पहुँचने की उम्मीद है। 
  • शहरी दुनिया आज लगभग 75% प्राथमिक ऊर्जा की खपत करती है और लगभग 70% CO2 (कुल GHG का 76%) उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी है। इसलिए शहरी मुद्दों को संबोधित किए बिना पेरिस प्रतिबद्धताओं के वांछित परिणाम संभव नहीं हैं।

शहरी निकायों को सुझाव

  • COP28 के लिए मेयर प्रतिनिधिमंडल की वैश्विक जलवायु परिवर्तन वार्ता में स्थानीय प्रशासनों की भूमिका को औपचारिक रूप से पहचानने, शासन के सभी स्तरों पर कार्य करके जलवायु कार्रवाई में तेजी लाने और बढ़ाने के लिए तर्क दिया गया। 
  • शहरी क्षेत्रों को प्रत्यक्ष वित्तपोषण और तकनीकी सहायता प्रदान करना। 
  • विवादास्पद मुद्दा यह है कि क्या शहर और संबंधित क्षेत्र जलवायु महत्त्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने और हरित रोजगार पैदा करने, वायु प्रदूषण को कम करने, मानव स्वास्थ्य एवं कल्याण में सुधार करने में प्रमुख अभिकर्ता हैं। अगर ऐसा है तो COP निर्णय दस्तावेजों में शहरी प्रशासन के प्रयासों को औपचारिक रूप से मान्यता दी जानी चाहिए।

‘ग्लोबल साउथ’ के शहरों को अधिक महत्त्व

  • ‘ग्लोबल साउथ’ के शहर अपने पश्चिमी समकक्षों की तुलना में कहीं अधिक असुरक्षित हैं। 
  • शहरी नेतृत्वकर्ताओं को कम सशक्त किया गया है, प्रमुख रोजगार अनौपचारिक क्षेत्र में है, अनुकूलन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अधिकांश शहर जलवायु प्रेरित आपदाओं के प्रति संवेदनशील हैं और शहरों में निवेश आकर्षित करने के लिए किए गए कम प्रयासों ने अमीर और गरीबों के बीच अंतर को और अधिक बढ़ा दिया है। 
  • अधिकांश देशों में और विशेष रूप से भारत में 40% शहरी आबादी मलिन बस्तियों में रहती है। 
  • प्रदूषण, जीवन प्रत्याशा को कम करने में एक प्रमुख योगदानकर्ता है और इनकी प्रणालियों में सामाजिक एवं आर्थिक असमानताएँ अंतर्निहित हैं। 
    • इसलिए जलवायु कार्य योजनाओं में निष्पक्ष भागीदारी सुनिश्चित करने और नुकसान तथा क्षति मुआवजे आदि का दावा करने के लिए, शहरों को नियंत्रित करने वाली प्रक्रियाओं में आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा। 
  • इन शहरों को प्रगति हासिल करने में जलवायु एटलस बनाना, उनका मानचित्रण करना और हॉटस्पॉट की पहचान करना सहायक सिद्ध हो सकता है। 
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) और राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं की तैयारी के दौरान, शहर खुद को जलवायु कार्य योजनाओं की प्रक्रिया से बाहर पाते हैं। इस प्रक्रिया में शहरी नेतृत्वकर्ताओं और नागरिक समाज समूहों का शायद ही कोई प्रतिनिधित्व है।

भारतीय परिदृश्य

  • चेन्नई जैसे कुछ शहर अपनी जलवायु कार्य योजना का नेतृत्व कर रहे हैं और उन्होंने वर्ष 2050 तक अपने शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने का फैसला किया है।
  • जलवायु कार्य योजनाओं को पूरा करने में शहर सबसे आगे हैं इसलिए उन्हें शमन और अनुकूलन रणनीतियाँ दोनों की योजना बनाने में उचित हिस्सा मिलना चाहिए।

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