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संसद द्वारा पारित अधिनियमों के लिए नियम बनाने में देरी (Rajya Sabha Panel on delay in framing rules for Acts passed by the Parliament)

Samsul Ansari December 21, 2023 01:13 168 0

संदर्भ 

हाल ही में, राज्यसभा की अधीनस्थ विधान समिति ने पाया है कि केंद्र सरकार संसद द्वारा पारित अधिनियमों के लिए नियम/विनियम बनाने में देरी कर रही है।

समिति के मुख्य निष्कर्ष

  • आवर्ती  घटना (Recurring Phenomenon): नियम बनाने में देरी करना केंद्रीय मंत्रालयों के लिए एक बार-बार होने वाली घटना बन गई है।
  • लंबित अधिनियमों की संख्या में वृद्धि : अधीनस्थ कानून बनाने और समिति की सिफारिशों के लिए समय प्रतिबंध के बावजूद, अधिनियम अभी भी कई वर्षों से लंबित हैं।
  • निष्क्रियता: नियम बनाने में देरी, कानूनों को अधिनियमित करने के मूल उद्देश्य को विफल करता है क्योंकि अधिनियमों को नियमों/विनियमों के बिना संचालित नहीं किया जा सकता है।
  • पूर्व के मामले : समिति ने अपनी वर्ष 1971 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि यदि छह माह के भीतर नियम नहीं बनाए गए तो सचिव को संबंधित मंत्री को सूचित करना चाहिए और उसका आदेश प्राप्त करना चाहिए।

समिति के विभिन्न सहायक उदाहरण

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013: इस अधिनियम के लगभग दस वर्ष पहले लागू होने के बावजूद, नियम बनाने की प्रक्रिया, विशेष रूप से राज्य सरकारों की ओर से अटकी हुई है। 
    • दिल्ली, राजस्थान और उत्तराखंड ने अभी तक प्रक्रिया पूरी नहीं की है।
  • मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम के नियम: इस नियम पर पिछले चार वर्षों में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है, इससे भारत में निवेश करने वाले अंतरराष्ट्रीय व्यापार समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड (PNGRB) अधिनियम, 2006: इस मंत्रालय द्वारा नियम बनाने में देरी पर चिंता व्यक्त की गई थी।
  • उच्च शिक्षा विभाग के संबंध में : सिक्किम विश्वविद्यालय अधिनियम, 2006; त्रिपुरा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2006; इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2007 और केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 के अधीनस्थ विधान अभी तक पेश नहीं किए गए हैं।

नियमों के निर्धारण के बारे में

  • कार्यपालिका का दायित्व: नियम बनाना कार्यपालिका का कर्तव्य है।
  • सरकारी आदेशों का मूल्यांकन: संसद के प्रत्येक सदन में अधीनस्थ विधान संबंधी एक समिति होती है जो नियमों, विनियमों और सरकारी आदेशों की विस्तार से जाँच करती है। 
    • विस्तृत दिशानिर्देश संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए संसदीय प्रक्रियाओं के नियमावली में उल्लिखित हैं।
  • समय सीमा: अधिनियम पारित होने के छह महीने के भीतर नियमों को निर्धारित किया जाना चाहिए और सरकार को अधिनियम के नियमों को संसद में पेश करना चाहिए।
    • विस्तार का प्रावधान: एक बार में अधिकतम तीन महीने की अवधि के लिए विस्तार दिया जा सकता है। हालाँकि, इसका कारण बताना आवश्यक है।

राज्यसभा की अधीनस्थ विधान समिति के बारे में

  • गठन: समिति में अध्यक्ष द्वारा नामित पंद्रह सदस्य होंगे।
  • समिति के अध्यक्ष: उन्हें समिति के सदस्यों में से राज्य सभा अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाएगा, बशर्ते कि यदि उपाध्यक्ष समिति के सदस्य हों, तो उन्हें नियुक्त किया जाएगा।
    • निर्णायक मत का प्रयोग: समिति के अध्यक्ष प्रथम दृष्टया मतदान नहीं करेंगे, परंतु किसी भी मामले में पक्ष व विपक्ष के मतों के बराबर होने की स्थिति में अध्यक्ष निर्णायक मतदान कर सकते हैं।
  • कोरम: समिति की बैठक गठित करने के लिए, कोरम पाँच सदस्यों का होगा।
  • अधिदेश(Mandate): संसद द्वारा कार्यपालिका को दिए गए नियम, विनियम, उप-नियम, योजनाएँ और अन्य संवैधानिक उपकरण बनाने के लिए प्रत्यायोजित शक्तियों उचित उपयोग की  जाँच एवं  करना तथा राज्यसभा को इसकी रिपोर्ट देना
  • प्रक्रिया का विनियमन: समिति को अधीनस्थ विधान के किसी भी प्रश्न पर विचार करने से जुड़े सभी मामलों के संबंध में अपनी स्वयं की प्रक्रिया निर्धारित करनी चाहिये।

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