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संसदीय पैनल ने बाल श्रम खत्म करने के लिए कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की (Parliamentary panel recommends strict action to end child labor)

Samsul Ansari December 23, 2023 10:40 166 0

संदर्भ

हाल ही में श्रम पर संसदीय स्थायी समिति ने बाल श्रम पर केंद्र सरकार की नीति के कार्यान्वयन पर संसद में ‘बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति- एक आकलन‘ शीर्षक से एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

संबंधित तथ्य

  • कार्यशील बच्चों की स्थिति: कार्यशील बच्चों की संख्या 1.26 करोड़ (वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार) से घटकर 1.01 करोड़ (2011 की जनगणना के अनुसार) हो गई है।
    • 5-14 वर्ष की आयु वर्ग में कार्यशील बच्चों की संख्या भी 57.79 लाख ( वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार) से घटकर 43.53 लाख (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार) हो गई है।
  • बाल श्रम पर सर्वेक्षण: समिति के अनुसार, केंद्रीय श्रम मंत्रालय देशभर में बाल श्रमिकों की संख्या का पता लगाने के लिए कोई सर्वेक्षण नहीं करता है।
    • मंत्रालय ने कहा है कि जनगणना के आँकड़ों पर निर्भर रहने के अलावा बाल श्रम डेटा को बनाए रखने के लिए कोई तंत्र विकसित करने का कोई प्रस्ताव उनके समक्ष विचाराधीन नहीं है।
  • बाल श्रम उन्मूलन 2025: वर्तमान में बाल श्रम की व्यापकता को देखते हुए, वर्ष 2025 तक बाल श्रम को समाप्त करने की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता को पूरा करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।
    • वर्ष 2025 तक बाल श्रम के पूर्ण उन्मूलन के लिए बाल श्रमिकों की संख्या में गिरावट को 1.9 लाख प्रति वर्ष से बढ़ाकर 12.4 लाख प्रति वर्ष करना होगा।

बाल श्रम के बारे में

  • परिभाषा: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, बाल श्रम को अक्सर ऐसे काम के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी क्षमता और उनकी गरिमा से वंचित करता है, तथा शारीरिक और मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
    • यह ऐसे काम को संदर्भित करता है, जो बच्चों के लिए मानसिक, शारीरिक, सामाजिक या नैतिक रूप से खतरनाक एवं हानिकारक है।
    • यह उस काम को संदर्भित करता है, जो उन्हें स्कूल जाने के अवसर से वंचित करके उनकी स्कूली शिक्षा में बाधा डालता है।
  • बाल श्रम के सबसे खराब रूप: इसमें बच्चों को गुलाम बनाना, उनके परिवारों से अलग करना, गंभीर खतरों और बीमारियों का सामना करना और अक्सर बहुत कम उम्र में बड़े शहरों की सड़कों पर खुद की देखभाल के लिए छोड़ देना शामिल है।

Child Labour In India

संसदीय पैनल की सिफारिशें 

  • यह रिपोर्ट इस मुद्दे के लगभग सभी पहलुओं को दर्शाती है और केंद्र एवं राज्यों के विभिन्न मंत्रालयों को इसके समाधान के लिए समन्वित कदम उठाने की सिफारिश करती है-
  • उम्र के निर्धारण के लिए अस्पष्टता को दूर करना: समिति ने सिफारिश की है कि विभिन्न अधिनियमों में बच्चे की उम्र के निर्धारण के मानदंडों में विसंगतियाँ हैं। साथ ही बाल और किशोर श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत अपराध के संज्ञेय/गैर-संज्ञेय होने के प्रावधानों की जाँच की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इससे पीड़ित बच्चों को न्याय दिलाने में कोई अस्पष्टता या देरी नहीं होगी।
  • बाल श्रम पर जीरो टाॅलरेंस: समिति ने यह भी सिफारिश की है कि जुर्माने की राशि में तीन-चार गुना वृद्धि के अलावा, बच्चों के हितों की रक्षा के लिए लाइसेंस रद्द करने, संपत्ति की कुर्की आदि के रूप में कड़ी सजा को शामिल करने की आवश्यकता है।
    • बाल श्रम पर जीरो टॉलरेंस के लिए केंद्रीय श्रम मंत्रालय को इसे आगे बढ़ाना चाहिए।
  • बाल श्रम डेटा को व्यवस्थित करना : समिति ने श्रम मंत्रालय से गृह मंत्रालय के साथ अगले जनगणना अभ्यास के दौरान 14 से 18 वर्ष के बीच के बच्चों पर डेटा एकत्र करने का आग्रह किया ताकि बच्चों और किशोरों पर विश्वसनीय डेटा प्राप्त किया जा सके।
    • समिति बाल श्रमिकों की पहचान करने के लिए विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में समय-समय पर सर्वेक्षण करने के लिए केंद्रीय श्रम मंत्रालय पर दबाव डालती है।
    • पैनल ने केंद्र से यह भी कहा कि राज्यों को बाल श्रम की पहचान करने के लिए सर्वेक्षण करने, प्रवर्तन डेटा एकत्र करने और प्रस्तुत करने के साथ-साथ समस्या के समाधान के लिए अपने सुझाव देने का भी निर्देश दिया जाए।
  • कार्य योजना तैयार करना: समिति ने मंत्रालय पर इस मुद्दे को मिशन मोड में उठाने और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए एक नीति तैयार करने की सिफारिश की है।
  • जवाबदेही तय करना: समिति के अनुसार, नियोक्ता के अलावा प्रमुख नियोक्ता और तस्करों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। 

State wise Distribution in Child labour

भारत में बाल श्रम से जुड़ी चुनौतियाँ

  • गरीबी: गरीबी में रहने वाले कई परिवार पारिवारिक आय बढ़ाने के लिए अपने बच्चों को काम पर भेजने के लिए मजबूर होते हैं। भारत में, बच्चे को काम पर न लगाने का मतलब यह हो सकता है कि परिवार को अपनी जीविका चलाने के लिए पर्याप्त आय नहीं मिलेगी।
    • यह जबरन बाल श्रम अनैतिक है क्योंकि यह बच्चों की स्वायत्तता के खिलाफ है।
  • शिक्षा का अभाव: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सीमित पहुँच, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, बाल श्रम में योगदान करती है। जब बच्चों को उचित स्कूली शिक्षा नहीं मिलती है, तो कम उम्र में ही उनके श्रम में संलग्न होने की संभावना अधिक होती है।                                                                                                             
    • सरकार ने बच्चों को फैक्टरियों से दूर रखने और उन्हें स्कूलों में प्रवेश दिलाने के लिए कदम उठाए हैं और उम्मीद है कि इससे बच्चे कौशल के साथ सशक्त होंगे, जो भविष्य में उनकी आय बढ़ाने में मदद कर सकता है लेकिन अक्सर सार्वजनिक स्कूली शिक्षा का स्तर खराब होता है क्योंकि वे उपयोगी कौशल प्रदान करने में विफल होते हैं।
  • बाल श्रमिकों द्वारा सामना किए जाने वाले जोखिम: उन्हें व्यावसायिक रोगों जैसे त्वचा रोग, फेफड़ों के रोग, कमजोर दृष्टि, टीबी आदि के जोखिम का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, वे कार्यस्थल पर यौन शोषण के प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक कारक: कुछ सांस्कृतिक मानदंड और परंपराएँ बाल श्रम को बढ़ावा दे सकती हैं, क्योंकि कुछ समुदाय इसे बच्चों के लिए कम उम्र से काम करने के लिए स्वीकार्य मान सकते हैं। बाल श्रम के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण इसकी व्यापकता को प्रभावित कर सकता है।
    • जाति व्यवस्था, भेदभाव और लड़कियों के प्रति सांस्कृतिक पूर्वाग्रह जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू बाल श्रम में योगदान करते हैं।
  • कानूनों का अपर्याप्त कार्यान्वयन: सीमित संसाधन और भ्रष्टाचार, उपलब्ध कानूनी उपायों की प्रभावशीलता में बाधा डाल सकते हैं।
    • इस तथ्य के बावजूद वर्ष 2011 की जनगणना के दौरान 1 करोड़ से अधिक बच्चों की पहचान श्रमिक के रूप में की गई थी, तब से उन्हें श्रमिक स्थिति से वापस लेने के लिए बहुत प्रयास नहीं किए गए हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट 2022 के अनुसार, वर्ष 2021 में, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम,  1986 के तहत लगभग 982 मामले दर्ज किए गए थे।
    • बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम की तर्ज पर पहचान, बचाव और पुनर्वास के लिए CLPR अधिनियम के तहत कोई सतर्कता और निगरानी समिति नहीं है।
    • CLPR अधिनियम 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को स्कूल के घंटों के बाद गैर-खतरनाक, पारिवारिक उद्यमों और मनोरंजन और खेल उद्योग में काम करने की अनुमति देता है। इससे बच्चे पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है और बच्चा विकास के अधिकार से वंचित हो जाता है।
  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था: बाल श्रम का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में होता है, जहाँ नियमों में अक्सर कई लूपहोल होते हैं। बच्चे कृषि, लघु उद्योगों या घरेलू सहायकों के रूप में काम कर सकते हैं, जिससे उनकी कामकाजी परिस्थितियों की निगरानी और विनियमन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • अपर्याप्त पुनर्वास और सामाजिक समर्थन: यह पाया गया है कि श्रम से बचाए गए बच्चों के पुनर्वास से संबंधित मुद्दों से निपटने वाली कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी है। परिणामस्वरूप उनका पुनर्वास प्रभावित होता रहता है।

बाल श्रम का मुकाबला करने के लिए उठाए गए कदम

  • भारत का संविधान
    • अनुच्छेद-21A: 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा।
    • अनुच्छेद-23: किसी भी प्रकार का जबरन श्रम निषिद्ध है।
    • अनुच्छेद-24: 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को किसी भी खतरनाक कार्य करने के लिए नियोजित नहीं किया जा सकता है।
    • अनुच्छेद-39: श्रमिकों, पुरुषों एवं महिलाओं के स्वास्थ्य और कम उम्र के बच्चों का कार्य हेतु उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986: गुरुपादस्वामी समिति (Gurupadaswamy Committee) की सिफारिशों के आधार पर, यह अधिनियम वर्ष 1986 में अधिनियमित किया गया था। यह 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक उद्योगों और प्रक्रियाओं में काम करने से रोकता है।
  • बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016: यह सभी रोजगारों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है और खदानों, ज्वलनशील पदार्थों (विस्फोटक) तथा खतरनाक प्रक्रियाओं में किशोरों (14-18 वर्ष) के रोजगार पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान करता है।
  • बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति: वर्ष 1987 में बनाई गई यह नीति बच्चों और किशोरों के पुनर्वास पर ध्यान देने के साथ क्रमिक एवं अनुक्रमिक दृष्टिकोण अपनाने का प्रयास करती है।
  • अन्य उपाय
    • बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976
    • एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
    • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015
  • अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
    • भारत ने ILO के न्यूनतम आयु कन्वेंशन (नंबर 138) और बाल श्रम के सबसे खराब रूपों के कन्वेंशन (नंबर 182) को मंजूरी दे दी है।
    • बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRC) अनुच्छेद-32 (बाल श्रम): सरकार को बच्चों को स्वास्थ्य और व्यवसाय के लिए हानिकारक खतरनाक काम से बचाना चाहिए जो उनके विकास (शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक) के लिए असुरक्षित और अनुपयुक्त है। 

आगे की राह

  • गरीबी उन्मूलन: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, बड़े पैमाने पर आय सृजन के अवसरों का निर्माण, ताकि गरीब परिवारों के पास पैसा और क्रय शक्ति हो, जिससे उनके लिए अपने बच्चों को काम पर भेजना अनावश्यक हो जाए।
    • उदाहरण के लिए, ग्रामीण लोगों के बीच कौशल विकास और कृषि आधारित उद्योगों के साथ-साथ अन्य सूक्ष्म और लघु उद्योगों की स्थापना से कृषि पर पूर्ण निर्भरता को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों जैसे औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, पॉलिटेक्निक संस्थानों आदि की स्थापना करके कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है।
    • एक निश्चित आय से नीचे के सभी परिवारों के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम (UBIS) के विचार से ग्रामीण संकट में कमी आ सकती है जिससे परिवार अपने बच्चों को काम पर भेजने से हतोत्साहित हो सकते हैं।
  • जागरूकता सृजन और शिक्षा: ग्रामीण क्षेत्रों में बाल श्रम के दुष्प्रभावों के बारे में पूरी तरह से अज्ञानता के कारण बाल श्रम के बने रहने के आर्थिक कारक और भी बढ़ गए हैं।
    • लोगों को शिक्षा के मूल्य के बारे में जागरूक करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता सृजन कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है।
    • एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपाय उच्च माध्यमिक स्तर तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की पात्रता का विस्तार जो उनकी नामांकन दर को बढ़ाएगा तथा उन्हें श्रम या काम से दूर रखेगा।

बाल श्रम को कम करने में पंचायत की भूमिका

  • बाल श्रम के दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता पैदा करना।
  • माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • ऐसा माहौल बनाया जाए जहाँ बच्चे काम करना बंद कर दें और इसके बजाय स्कूलों में दाखिला लें।
  • यह सुनिश्चित किया जाए कि बच्चों को स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हों।
  • उद्योग मालिकों को बाल श्रम को प्रतिबंधित करने वाले कानूनों और इन कानूनों का उल्लंघन करने पर दंड के बारे में सूचित करना।
  • गाँव में कुछ समय के लिए छोटे बच्चों की जिम्मेदारी लेने हेतु आंगनवाड़ियों की भर्ती की जानी चाहिए।
  • स्कूलों की स्थिति में सुधार के लिए ग्राम शिक्षा समितियों (VEC) को प्रेरित करना।

  • मौजूदा बाल श्रमिकों का बचाव और पुनर्वास: यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बचाए गए बाल श्रमिकों और उनके परिवारों को उनके बचाव के तुरंत बाद पुनर्वास नीति के अनुसार उनके अधिकार मिलें।
    • पुनर्वास प्रक्रिया मुख्य रूप से बचाए गए बच्चे के सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास पर केंद्रित है, हालाँकि ऐसी स्थितियों से बचाए गए कई बच्चों को मनोवैज्ञानिक समर्थन की भी आवश्यकता होती है। इसलिए पुनर्वास मॉडल को ‘सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास‘ से ‘मनोवैज्ञानिक-सामाजिक और आर्थिक पुनर्वास‘ मॉडल में संशोधित करना आवश्यक है।
  • UNCRC और भारतीय कानूनों के बीच अंतर को कम करना: सीएलपीआर अधिनियम को विशेष रूप से बंधुआ श्रम प्रणाली उन्मूलन अधिनियम, 1976 की तर्ज पर बाल श्रम या किशोरों की रोकथाम, पहचान, बचाव और पुनर्वास के लिए प्रदान करना चाहिए।
    • इसके अलावा, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 सहित सभी निर्धारित कानूनी सुरक्षा उपायों के साथ केवल एकल परिवार उद्यमों और मनोरंजन उद्योग में उनकी वृद्धि, विकास और सुरक्षा के लिए अनुकूल तरीके से काम करने की अनुमति दी जा सकती है।
  • कानूनों और कार्यक्रमों का प्रभावी कार्यान्वयन: बाल संरक्षण और बाल अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाली कानून प्रवर्तन एजेंसियों, नागरिक समाज संगठनों, शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं के बीच अंतर की पहचान, प्रभावी शमन योजनाओं के निर्माण तथा उनके कार्यान्वयन के माध्यम से समन्वय को मजबूत करना होगा।
  • उदाहरण के लिए, कैलाश सत्यार्थी (बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक) ने हाल ही में संसद सदस्यों से एक विधेयक का समर्थन करने की अपील की, जो कृषि जैसे गैर-खतरनाक व्यवसायों को शामिल करने के लिए बाल श्रम पर प्रतिबंध का विस्तार करता है।

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