हाल ही में, भारत ने जलवायु और स्वास्थ्य पर COP-28 घोषणा पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है।
जलवायु और स्वास्थ्य पर COP-28 घोषणा के बारे में
प्रतिभागी देश: घोषणा पर 123 देशों ने हस्ताक्षर किए, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख देश शामिल थे।
अनुपस्थित देश: भारत ने घोषणा पर हस्ताक्षर नहीं किए।
स्वास्थ्य संबंधी विचारों का समावेश: इसके माध्यम से सभीदेश पेरिस समझौते और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) प्रक्रियाओं के संदर्भ में स्वास्थ्य संबंधी विचारों को शामिल करने के लिए प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हैं।
जलवायु योजना में स्वास्थ्य का एकीकरण: इस घोषणा में राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, दीर्घकालिक न्यूनतम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीतियों और राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं को डिजाइन करने में स्वास्थ्य संबंधी विचारों के एकीकरण पर जोर दिया गया है।
वन हेल्थ दृष्टिकोण (One Health Approach): इसके माध्यम सेसभीदेशों को वन हेल्थदृष्टिकोण लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जो मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण के अंतर्संबंध पर विचार करता है।
स्वास्थ्य प्रणालियों के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: इस घोषणा में स्वास्थ्य प्रणालियों के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का आकलन करने और उसे संबोधित करने के साथ स्वास्थ्य देखभाल में स्थिरता को बढ़ावा देने के प्रयासों का आह्वान किया गया है।
पर्यावरण और जलवायु कारकों को संबोधित करना: सभी देशों से पर्यावरण और जलवायु कारकों और रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बीच संबंधों को संबोधित करने का आग्रह किया गया है।
इसके अतिरिक्त, यह घोषणा महामारी की प्रभावी रोकथाम, तैयारियों और प्रतिक्रिया के लिए ज़ूनोटिक स्पिलओवर का शीघ्र पता लगाने के महत्त्व पर जोर देती है।
जलवायु वित्त: इस घोषणा के अंतर्गत रॉकफेलर फाउंडेशन, ग्रीन क्लाइमेट फंड, एशियन डेवलपमेंट बैंक और ग्लोबल फंड सहित अन्य फंडिंग एजेंसियों द्वारा जलवायु और स्वास्थ्य के लिए $1 बिलियन का वित्तपोषण प्रदान किया जाना है।
सीमाएँ या चिंताएँ
इसका कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ न होना और देशों के लिए केवल एक स्वैच्छिक अंगीकरण के विकल्प के रूप में होना, इसकी सबसे बड़ी सीमा है।
COP-28 घोषणा से भारत के दूर रहने के कारण
व्यावहारिक चिंताएँ: विभिन्न टीकों (Vaccines) और दवाओं के लिए कोल्ड स्टोरेज रूम की आवश्यकता के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र में शीतलन के लिए ग्रीनहाउस गैसों पर अंकुश लगाना अव्यावहारिक है।
कम समय सीमा के भीतर घोषणा की शर्तों को पूरा करना संभव नहीं है।
नैतिक आधार: भारत ने ऐतिहासिक रूप से वैश्विक उत्सर्जन में 4% से कम का योगदान दिया है।
एक विकासशील राष्ट्र के रूप में, भारत को अपनी विकास आवश्यकताओं के लिए कोयले जैसे संसाधनों का उपयोग करने का अधिकार है।
विकास और परिवर्तन को संतुलित करना: भारत अपनी विकास आवश्यकताओं को पूरा करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन की अनूठी चुनौती का सामना कर रहा है।
ध्यातव्य है कि स्वास्थ्य क्षेत्र को डीकार्बोनाइज़ करना चुनौतियाँ और आर्थिक अवसर दोनों प्रस्तुत करता है।
जलवायु समझौतों की बारीकियाँ: एशियाई देशों को चरम मौसम की घटनाओं और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे जलवायु समझौते जटिल हो जाते हैं।
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