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पक्षकारों के सम्मेलन की 28वीं बैठक (Conference of the Parties- COP28)

Samsul Ansari December 18, 2023 11:00 205 0

संदर्भ 

हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के ‘पक्षकारों के सम्मेलन’ की 28वीं बैठक संपन्न हुई।

संबंधित तथ्य 

  • 30 नवंबर से 12 दिसंबर, 2023 तक 28वीं वार्षिक संयुक्त राष्ट्र (UN) जलवायु बैठक अर्थात COP28 संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के दुबई में हुई।

शिखर सम्मेलन के प्रमुख परिणाम

  • ग्लोबल स्टॉकटेक (GST): यह शिखर सम्मेलन एक समझौते के साथ संपन्न हुआ जिसे GST के रूप में जाना जाता है जो जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में बदलाव की सिफारिश करता है।
    • जलवायु कार्रवाई की दिशा में मार्ग: GST को COP28 का प्रमुख परिणाम माना जाता है क्योंकि विश्व के विभिन्न राष्ट्र इसका उपयोग वर्ष 2025 तक सशक्त जलवायु कार्य योजना विकसित करने के लिए कर सकते हैं।
  • जीवाश्म ईंधन पर घोषणा: GST के मसौदे में सीधे तौर पर जीवाश्म ईंधन की चर्चा की गई है।
    • इसने ‘जीवाश्म ईंधन उपयोग को कम करने’ और जीवाश्म ईंधन को स्वच्छ ऊर्जा से बदलने की आवश्यकता पर घोषणा को अपनाया।
    • यह पहली बार है कि COP में सभी जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) के भविष्य का स्पष्ट संदर्भ दिया गया है।
  • वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा: यह समझौता ‘वर्ष 2030 तक विशेष रूप से मीथेन उत्सर्जन सहित वैश्विक स्तर पर गैर-कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन में तेजी लाने और काफी हद तक कम करने’ की बात करता है।
  • अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य: इस सम्मलेन में कुछ सामान्य अनुकूलन लक्ष्यों की पहचान की गई है, जो पूरी दुनिया के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को तीन गुना करना: यह देशों से नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की वैश्विक स्थापित क्षमता को तीन गुना करने और ऊर्जा दक्षता में वार्षिक सुधार को दोगुना करने में योगदान देने का आह्वान करता है।
  • UAE सर्वसम्मति (UAE Consensus): यह राष्ट्रों को निरंतर विद्युत उत्पादन हेतु कोयला के उपयोग में कमी लाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
    • भारत और चीन द्वारा विशेष रूप से कोयला लक्ष्यीकरण का कड़ा विरोध करने के बाद एक समझौता हुआ।
  • अकुशल जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना: इसमें ‘अकुशल जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की प्रतिबद्धता शामिल है जो ‘एनर्जी पाॅवर्टी’ या ‘जस्ट ट्रांजिशन’ संबोधित नहीं करती है।”

प्रासंगिक शब्दावली

एनर्जी पाॅवर्टी’: यह तब होती है जब किसी घर को अपनी ऊर्जा खपत को उस हद तक कम करना पड़ता है जो निवासियों के स्वास्थ्य एवं जनकल्याण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

जस्ट ट्रांजिशन’: एक ‘जस्ट ट्रांजिशन’ दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय लेने वालों द्वारा प्रभावित लोगों पर विचार किया जाता है अर्थात ‘जस्ट ट्रांजिशन’ का अर्थ है किसी भी अर्थव्यवस्था को इस तरह से विकसित करना जो संबंधित सभी लोगों के लिए यथासंभव निष्पक्ष एवं समावेशी हो, काम के अच्छे अवसर उत्पन्न करें और किसी को भी पीछे न छोड़ें।

  • वर्ष 2050 तक नेट जीरो हासिल करना: वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करके और वर्ष 2030 तक ऊर्जा दक्षता सुधार की वैश्विक औसत वार्षिक दर को दोगुना करके वर्ष 2050 तक वैश्विक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करना है।
  • सड़क परिवहन से उत्सर्जन में कमी: यह बुनियादी ढाँचे के विकास और शून्य एवं कम उत्सर्जन वाले वाहनों को तेजी से तैनाती के माध्यम से किया जाना है।
    • मसौदे में ब्राउन फ्यूल के विकास का समर्थन किया गया, तेल समृद्ध देशों को एक व्यापार खिड़की की पेशकश की गई और विकासशील देशों को उनके हरित संक्रमण में कुछ लचीलापन प्रदान किया गया।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त करने का संकल्प: वैश्विक अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त करने के लिए निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की कार्रवाई में तेजी लाने के लिए मुख्य COP सारांश के बाहर 85 मिलियन डॉलर की प्रतिज्ञा की गई थी।

चुनौतियाँ (जिनसे निपटना अभी बाकी है) 

  • जीवाश्म ईंधन में ट्रांजिशन सीमित: ‘ट्रांजिशन अवे’ (Transition Away) का उपयोग ऊर्जा क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन तक सीमित है, जबकि बड़ी पेट्रोकेमिकल कंपनियाँ तरल पदार्थ से गैस पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
    • सऊदी अरब की पूर्व कंपनी अरमको (Aramco) जिसने वर्ष 2022 में प्रतिदिन 11.5 मिलियन बैरल कच्चे तेल का उत्पादन किया, को उम्मीद है कि वर्ष 2030 तक, रासायनिक उत्पादन के लिए प्रतिदिन 4 मिलियन बैरल अलग कर दिए जाएंगे।
  • सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की प्रतिबद्धता का अभाव: यह छोटे द्वीपीय राष्ट्रों की सभी जीवाश्म ईंधनों को ‘चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने’ या ‘चरणबद्ध तरीके से बंद करने’ की मांगों को संबोधित नहीं करता है।
    • यह समझौता केवल सरकारों से कोयले को चरणबद्ध तरीके से बंद करने और सभी जीवाश्म ईंधनों को पूरी तरह से समाप्त करने के खिलाफ जीवाश्म ईंधन के उपयोग और उत्पादन को कम करने का आग्रह करता है।
  • ऊर्जा संक्रमण के लिए ‘ट्रांजिशन फ्यूल’ का विशिष्ट संदर्भ: प्राकृतिक गैस को ‘ट्रांजिशन फ्यूल’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसकी ग्लोबल साउथ ने आलोचना की है। प्राकृतिक गैस लगभग 70 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जित करती है जो परिष्कृत पेट्रोलियम करता है और 50 प्रतिशत कार्बन जो एन्थ्रेसाइट कोयला उत्सर्जित करता है।
  • जलवायु वित्त पर कोई ऐतिहासिक परिणाम न निकलना: निम्न-आय वाले देशों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन के वित्तपोषण के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं की गई। पिछले COP में विकसित देशों द्वारा वादा किए गए धन का एक छोटा सा हिस्सा विकासशील देशों को हस्तांतरित किया गया था।
    • वर्ष 2020 और वर्ष 2025 के बीच प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने की प्रतिबद्धता वर्ष 2009 में की गई थी।
  • L&D फंड की स्वैच्छिक प्रकृति: मसौदे के अनुसार, हानि और क्षति फंड (L&D फंड) में योगदान स्वैच्छिक है। L&D फंड के लिए लाभार्थियों और संरक्षकों की भी पहचान नहीं की गई है, अब तक का सबसे बड़ा प्रदूषक अमेरिका, जिसने केवल 17.5 मिलियन डॉलर का योगदान दिया है।
  • बेरोकटोक कोयले को चरणबद्ध तरीके से कम करने पर विशेष ध्यान: इससे उत्तर-दक्षिण वैश्विक विभाजन के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है।
  • समानता और मानवाधिकार सिद्धांतों को हटाना: विकासशील देशों में कमजोर समुदायों के अधिकारों पर केवल निम्न-कार्बन संक्रमण के माध्यम से विचार नहीं किया गया है।
  • नेट जीरो के लिए समान समय सीमा: वर्ष 2050 तक वैश्विक शुद्ध शून्य का मतलब उस समय सभी देशों के लिए शुद्ध शून्य नहीं होना चाहिए।
    • विकासशील देशों को कुछ कार्बन स्पेस प्रदान करने के लिए विकसित देशों को बहुत पहले (2035-2040) नेट शून्य तक पहुँचने की आवश्यकता है।
    • कार्बन स्पेस से तात्पर्य वायुमंडल की कार्बन धारण करने की क्षमता से है जिसके परिणामस्वरूप सदी के अंत तक तापमान में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि नहीं होगी।
  • वैश्विक कार्बन बाजार पर कोई सहमति नहीं: 28वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP28) में देश वैश्विक कार्बन बाजार (GCM) स्थापित करने के नियमों को अपनाने में विफल रहे। 
    • GCM वायुमंडल से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने या हटाने से उत्पन्न कार्बन क्रेडिट के व्यापार की अनुमति देगा।
    • कार्बन हटाने की परियोजनाएँ प्रकृति-आधारित हो सकती हैं, जो कार्बन को कैप्चर और संग्रहीत करने के लिए जंगलों, मैंग्रोव और कृषि मिट्टी का उपयोग करती हैं या प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान जैसे कि ऐसे कार्बन डाइऑक्साइड के लिए बड़ी मशीनें तैनात करना।
  • GHG को कम करने के द्विपक्षीय उपाय: देश पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6.2 के तहत नियमों को अपनाने में भी विफल रहे, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने या हटाने के लिए देशों के बीच द्विपक्षीय कार्रवाई शामिल है।
    • हालाँकि अनुच्छेद 6.2 के तहत नियमों को अभी तक मंजूरी नहीं दी गई है, स्विट्जरलैंड, जापान, सिंगापुर और अन्य देशों ने पहले ही सौदे करना शुरू कर दिया है।
  • LNG निवेश में वृद्धि: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की जीवाश्म ईंधन की बढ़ती मांग में चेतावनी के बावजूद, देश तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) निर्यात बढ़ा रहे हैं।
    • ये निवेश सदी के मध्य और उसके बाद तक कार्बन लॉक-इन का जोखिम उत्पन्न करते हैं।
  • CCUS पर अत्यधिक ध्यान: मसौदा कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) जैसी GHG हटाने वाली प्रौद्योगिकियों का समर्थन करता है। 
    • ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के स्मिथ स्कूल ऑफ एंटरप्राइज एंड एनवायरनमेंट के एक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि तेल और गैस उद्योग में वर्तमान के आधे उत्सर्जन को कम करने के लिए डीकार्बोनाइजेशन के लिए एक उच्च CCUS मार्ग की लागत कम CCUS मार्ग की तुलना में वर्ष 2050 तक 30 ट्रिलियन डॉलर अतिरिक्त होगी।
    • महंगा होने के अलावा, CCUS उत्सर्जन कम करने में आशाजनक नहीं रहा है।
    • वर्ष 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, टेक्सास कोयला संयंत्र पर CCUS रेट्रोफिट ने 20 साल की अवधि में कार्बन डाइऑक्साइड-समतुल्य उत्सर्जन में केवल 10.8% की कमी की।

भारत द्वारा हस्ताक्षरित नहीं किए गए समझौते

  • जलवायु और स्वास्थ्य पर घोषणा: इसका उद्देश्य जलवायु से संबंधित स्वास्थ्य प्रभावों को संबोधित करना है।
  • वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता प्रतिज्ञा: यह ‘वर्ष 2030 तक दुनिया की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को कम से कम 11,000 गीगावॉट तक तीन गुना करने का संकल्प लेती है।
  • ट्रिपल परमाणु ऊर्जा की घोषणा: इसका उद्देश्य वर्ष 2050 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है।
  • खाद्य प्रणालियों, कृषि और जलवायु कार्रवाई पर घोषणा: इसका उद्देश्य कृषि और खाद्य प्रणालियों को राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में एकीकृत करने के प्रयासों को मजबूत करना है।
  • वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा: इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक मीथेन में कम-से-कम 30 प्रतिशत की कटौती करना है।

COP28 में भारत के नेतृत्व में पहल

  • ग्लोबल रिवर सिटीज़ एलायंस (GRCA): इसका उद्देश्य नदी शहरों के सतत विकास को बढ़ावा देना है।
  • ग्रीन क्रेडिट पहल: यह विभिन्न हितधारकों की स्वैच्छिक पर्यावरणीय गतिविधियों को प्रोत्साहित करती है।

भारत के लिए चुनौतियाँ

  • मीथेन उत्सर्जन में कमी: मसौदे में वर्ष 2030 तक वैश्विक मीथेन उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने का आह्वान किया गया है।
    • यह भारत जैसे बड़े कृषि क्षेत्रों वाले देशों में विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है, जहाँ किसानों की आजीविका पर प्रभाव के कारण मीथेन उत्सर्जन को संबोधित करना जटिल है।
    • यह ग्लोबल साउथ के लिए तत्काल आर्थिक चिंताओं और दीर्घकालिक पर्यावरणीय लक्ष्यों के बीच एक व्यापक दुविधा को दर्शाता है।
  • अर्थव्यवस्था-व्यापी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य: समझौते के अनुसार, विकासशील देशों को भी अगले वर्ष लक्ष्यों के अगले दौर में सभी क्षेत्रों और गैसों को कवर करते हुए ‘महत्वाकांक्षी, अर्थव्यवस्था-व्यापी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य’ निर्धारित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
    • यह केवल कार्बन डाइऑक्साइड और ऊर्जा क्षेत्र पर पिछले फोकस से विचलन का प्रतीक है।
  • नेट जीरो: यह निर्णय भारत के लिए अपनी विकासात्मक आवश्यकताओं का अनुपालन करने के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होगा।

आगे की राह

  • नया जलवायु वित्त लक्ष्य: COP29 में, सरकारों को समानता और न्याय के सिद्धांतों के आधार पर ग्लोबल साउथ के अधिकारों पर विचार करते हुए एक नया जलवायु वित्त लक्ष्य स्थापित करना चाहिए।
    • विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जलवायु कार्रवाई सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (CBDR-RC) के सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए।
  • परमाणु ऊर्जा पर ध्यान दिया जाना चाहिए: कार्बन शमन रणनीति के हिस्से के रूप में परमाणु ऊर्जा विकास को शामिल करना और उतना ही ध्यान देना जितना नवीकरणीय ऊर्जा पर दिया गया है।
    • बिजली भंडारण प्रौद्योगिकियों में प्रगति के बावजूद, बिजली आपूर्ति के लिए मुख्य रूप से नवीकरणीय ऊर्जा पर निर्भर रहने की व्यवहार्यता को लेकर चिंताएं हैं।
    • ऐसी नवीकरणीय ऊर्जा प्लस परमाणु रणनीति के लिए नवीकरणीय ऊर्जा पर वर्तमान जोर की तुलना में सार्वजनिक और निजी निवेश के बहुत अलग मिश्रण की आवश्यकता होगी।
  • राष्ट्रों को जवाबदेह बनाना: उन्हें विकासशील देशों से पहले उत्सर्जन कम करने की अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी पूरी करनी होगी और विकासशील देशों को ऊर्जा परिवर्तन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियाँ प्रदान करनी होंगी।
    • भारत ग्लोबल साउथ के अधिकारों की रक्षा करने में वैसे ही नेतृत्व कर सकता है जैसे उसने यूरोपीय संघ द्वारा एकतरफा व्यापार उपाय CBAM के खिलाफ बातचीत का नेतृत्व किया था।
    • यूरोपीय संघ (EU) द्वारा कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) एक भेदभावपूर्ण, एकतरफा रणनीति है जो स्टील और अन्य तुलनीय उत्पादों के प्रवेश को रोकने के बजाय कर लगाती है।
  • कृषि उत्सर्जन में कमी: आधे खाद्य पशु उत्पादों को पौधे-आधारित विकल्पों के साथ बदलने से वर्ष 2050 तक कृषि और भूमि-उपयोग ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 31 प्रतिशत की कमी आ सकती है और वन और प्राकृतिक भूमि का क्षरण रुक सकता है।
    • वैकल्पिक प्रोटीन (पौधे-आधारित भोजन और संवर्धित मांस) को बढ़ावा देना, खाद्य सुरक्षा में सुधार करना और कृषि खाद्य उत्सर्जन में कटौती करना।
    • किसानों को मीथेन-सघन फसलों से पारंपरिक किस्मों की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके एक अधिक टिकाऊ कृषि मॉडल प्राप्त किया जा सकता है।
  • अन्य क्षेत्रों से जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को संबोधित करना: प्लास्टिक, उर्वरक आदि जैसे अन्य प्रदूषणकारी उद्योगों से जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को संबोधित करने की आवश्यकता है।

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