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अनुच्छेद-370 से परे: भारतीय संघवाद की चुनौतियाँ और इसका भविष्य (Beyond Article 370: Challenges of Indian federalism and its future.)

Samsul Ansari December 19, 2023 12:05 253 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अनुच्छेद-370 आंतरिक संप्रभुता के समान नहीं है बल्कि यह केवल विषम संघवाद की एक विशेषता है।

संबंधित तथ्य 

  • विशेष प्रावधान वाले राज्यों में डर: अनुच्छेद-370 के निरस्तीकरण ने अनुच्छेद-371 में संभावित संशोधनों के बारे में चर्चा शुरू कर दी है, जिससे संविधान के इस प्रावधान के तहत विशेष छूट प्राप्त करने वाले राज्यों में इसके संभावित उन्मूलन के बारे में चिंताएँ पैदा हो गई हैं।
  • अस्थायी प्रावधान: अनुच्छेद-370 संविधान में एक अस्थायी प्रावधान था, जो अन्य राज्यों के संबंध में अनुच्छेद-371 जैसे विशेष प्रावधान से अलग था।
  • केंद्र का आश्वासन: केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि उसका संविधान के किसी भी हिस्से को बदलने का कोई इरादा नहीं है, जो पूर्वोत्तर भारत के राज्यों और अन्य क्षेत्रों को विशेष प्रावधान देते है।
  • SC का फैसला: SC ने अनुच्छेद-370 को निलंबित करने के सरकार के फैसले को बरकरार रखा और पीठ ने केंद्रशासित प्रदेश के रूप में लद्दाख के पुनर्गठन की भी पुष्टि की।
    • अनुच्छेद-370: संविधान का अनुच्छेद-370 जम्मू-कश्मीर को भारतीय संघ में विशेष दर्जा देता था।
    • यह राज्य के संबंध में केंद्र की विधायी शक्तियों को रोकता था और राज्य विधायिका को वित्त, रक्षा, विदेशी मामलों और संचार के अतिरिक्त सभी मामलों में अपने स्वयं के कानून बनाने का अधिकार देता था।

राज्यों के लिए विशेष प्रावधानों की पृष्ठभूमि

  • संघीय संरचना: संवैधानिक रूप से, भारत की शासन संरचना एकात्मक झुकाव के साथ अर्द्ध-संघीय है।
    • हालाँकि राज्यों को स्वायत्तता प्राप्त है, परंतु संविधान कुछ क्षेत्रों में केंद्र की ओर झुका हुआ प्रतीत होता है।
  • संविधान की सातवीं अनुसूची: इसमें संघ, राज्य और समवर्ती सूचियाँ शामिल हैं, जो उन विषयों को निर्धारित करती हैं जिन पर केंद्र और राज्यों को कानून बनाने का अधिकार है।
    • समवर्ती सूची में शामिल विषयों के लिए, संसद द्वारा बनाए गए कानून और राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के बीच विरोधाभास  होने की स्थिति में संघ का कानून ही मान्य होगा।
  • राज्यों के बीच असमानता: भारत की बहुलता के लिए राजकोषीय, राजनीतिक और प्रशासनिक से लेकर विभिन्न कारकों के आधार पर राज्यों के लिए विभेदित समानता की व्यवस्था की आवश्यकता है।
  • SPS के लिए प्रावधान: संविधान के भाग-XXI में अनुच्छेद 371 से 371-J  में राज्यों  के लिए विशेष प्रावधान (Special Provisions for States- SPS) हैं।
    • मूल रूप से, संविधान ने इन राज्यों के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं किया था बल्कि इन्हें बाद के विभिन्न संशोधनों में उन्हें शामिल किया गया है।
  • अस्थायी प्रावधान: ये सभी अपवाद ‘अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान’ नामक संविधान की एक धारा के अंतर्गत हैं, जो इंगित करता है कि ये प्रावधान संकट (अलगाववादी संघर्ष या युद्ध) समाप्त होने तक ही लागू रहेंगे।
    • हालाँकि, किसी भी प्रावधान में कोई स्पष्ट समाप्ति तिथि नहीं है।

भारत में राज्यों के लिए विशेष प्रावधानों की आवश्यकता

  • विशेष प्रावधान असममित संघवाद (Asymmetric Federalism) की एक विशेषता है जिसका उद्देश्य कुछ राज्यों द्वारा सामना किए गए ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करना और समान विकास सुनिश्चित करना है।
    • उदाहरण के लिए, मिजोरम के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद-371G के तहत विशेष प्रावधानों को लागू किया गया था, उन्होंने विशेष रूप से अपने आदिवासी समुदायों के संबंध में ऐतिहासिक असुविधाओं (Disadvantages) का सामना किया था।
  • सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करना: राज्यों के बीच विकास, बुनियादी ढाँचे और संसाधनों तक पहुँच के स्तर में महत्त्वपूर्ण भिन्नताएँ हैं। विशेष प्रावधान इन सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को कम करने और संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।
  • जनजातीय आबादी: कई राज्यों में बड़ी संख्या में जनजातीय आबादी अलग-अलग चुनौतियों का सामना कर रही है। विशेष प्रावधान उनके अधिकारों की रक्षा करते हैं, उनकी संस्कृतियों को संरक्षित करते हैं और उनके समग्र विकास को बढ़ावा देते हैं।
    • उदाहरण के लिए, अनुच्छेद-371A  (नागालैंड से संबंधित) विशिष्ट संवैधानिक सुरक्षा उपाय प्रदान करता है, जो उन कानूनों के प्रवर्तन को रोकता है जो आदिवासी रीति-रिवाज (जनजातीय प्रथागत प्रथाएँ), भू-स्वामित्व और हस्तांतरण में हस्तक्षेप करते हैं जब तक कि संबंधित राज्य विधानसभाओं द्वारा ऐसे कानूनों को  अनुमोदित नहीं किया जाता है।
  • भौगोलिक चुनौतियाँ: कुछ राज्यों को अद्वितीय भौगोलिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे कठिन भू-स्थिति, दूरस्थता, या प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता।इन चुनौतियों का समाधान करने और ऐसे क्षेत्रों में विकास का समर्थन करने के लिए विशेष प्रावधान तैयार किए गए हैं।

भारत में राज्यों के लिए विशेष प्रावधानों से जुड़ी चुनौतियाँ

  • प्रशासनिक जटिलता: विशेष प्रावधानों को लागू करना और प्रबंधित करना प्रशासनिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय के लिए सावधानीपूर्वक योजना तथा कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है। राजनीतिक आवश्यकताओं के अलावा अन्य कारणों से भी राज्यों को रियायतें दी जाती हैं।
    • उदाहरण के लिए, अनुच्छेद-239AA राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासन के लिए एक अद्वितीय व्यवस्था का प्रावधान करता है। यह संविधान की पहली अनुसूची के तहत एक राज्य नहीं है, फिर भी इसे सातवीं अनुसूची में राज्य और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • क्षेत्रवाद को बढ़ावा: विशेष दर्जे क्षेत्रवाद और अलगाववाद के बीज बोते हैं जो राष्ट्रीय एकता को प्रभावित करते हैं।
    • उदाहरण के लिए, अनुच्छेद-371G के तहत मिजोरम में भू-स्वामित्व और हस्तांतरण को प्रभावित करने वाली विशिष्ट सुरक्षाएँ हैं, जो एक अद्वितीय क्षेत्रीय भावना में योगदान करती हैं।
  • डिपेंडेंसी सिंड्रोम (Dependency Syndrome): विशेष प्रावधानों पर अत्यधिक निर्भरता एक डिपेंडेंसी सिंड्रोम पैदा कर सकती है, जहाँ राज्य विशेष राहत एवं छूट प्राप्त करने के आदी हो जाते हैं।
    • इससे उन राज्यों के भीतर आत्मनिर्भरता और उद्यमिता के विकास में बाधा आ सकती है।
  • वित्तीय बोझ: विशेष प्रावधानों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने से केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है। इससे बजटीय चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं और कुछ मामलों में अन्य आवश्यक सेवाओं के लिए धन का आवंटन सीमित हो सकता है।

आगे की राह

  • आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा: विशेष प्रावधानों पर निर्भरता से ध्यान हटाकर आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • इसके लिए केंद्र को राज्यों को वित्तीय सहायता पर निर्भरता को कम करते हुए उद्योगों, उद्यमिता और नौकरी के अवसरों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
  • सामाजिक सद्भाव और समावेशिता को बढ़ावा : क्षेत्रवाद और अलगाववाद की भावना को बढ़ने से रोकने के लिए सामाजिक सद्भाव और समावेशिता को बढ़ावा देने पर जोर देना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, क्षेत्रीय पहचान के साथ-साथ राष्ट्रीय पहचान की भावना को बढ़ावा देना।
  • लक्षित हस्तक्षेप: सभी के लिए एकसमान (one-size-fits-all) दृष्टिकोण अपनाने के बजाय विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेष प्रावधानों को तैयार करना।
    • प्रत्येक राज्य या क्षेत्र के सामने आने वाली अनूठी (Unique) चुनौतियों के आधार पर लक्षित हस्तक्षेप पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना कि संसाधनों को वहीं निर्देशित किया जाए जहाँ उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
  • अनुकूलन नीतियाँ: यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि समय के साथ सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ बदलती हैं और इसे देखते हुए ऐसी नीतियाँ विकसित की जानी चाहिए जो बदलती परिस्थितियों के अनुकूल हों, और विशेष प्रावधान समकालीन चुनौतियों से निपटने में प्रासंगिक एवं  प्रभावी बने रहें।
    • समग्र और अनुकूली दृष्टिकोण अपनाकर, भारत यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि विशेष प्रावधान राष्ट्रीय एकता, आर्थिक विकास और सामाजिक सद्भाव के व्यापक लक्ष्यों में योगदान दें।

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