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मवेशियों की विदेशी नस्लें बनाम देशी नस्लें (Indigenous Cattle Breeds Over Exotic Breeds)

Samsul Ansari December 20, 2023 11:04 332 0

संदर्भ

भारतीय डेयरी क्षेत्र को लाभदायक और टिकाऊ बने रहने में मदद करने के लिए विदेशी और संकर नस्ल के मवेशियों से स्वदेशी नस्लों की ओर स्थानांतरित होने की जरूरत है।

Slow Growth

संबंधित तथ्य

  • भारत में 50 स्वदेशी गोवंशीय नस्लें (37 मवेशी और 13 भैंस) हैं।
    • दुधारू नस्लें: दुधारू मवेशी, वे नस्लें हैं जिन्हें विशेष रूप से दूध उत्पादन के लिए पाला जाता है। इनमें से पाँच अर्थात् साहीवाल, गिर, लाल सिंधी, थारपारकर और राठी अपनी दूध देने की क्षमता के लिए जानी जाती हैं।
    • दुधारू और भारवाहक नस्लें: भारवाहक मवेशियों को भारी श्रम उद्देश्यों, जुताई और परिवहन जैसी कृषि गतिविधियों में सहायता के लिए नियोजित किया जाता है। काँकरेज, ओंगोल और हरियाणा जैसी नस्लें, दोहरी नस्लों से संबंधित हैं जिनमें दुधारू और भारवाहक दोनों गुण होते हैं।           
  • वर्ष 1970 के बाद से, केंद्र सरकार ने डेयरी विकास कार्यक्रम ‘ऑपरेशन फ्लड’ के तहत होल्स्टीन-फ्रीजीसियन, जर्सी, ब्राउन स्विस और रेड डेन जैसी उच्च उपज देने वाली नस्लों को बढ़ावा दिया है।

ऑपरेशन फ्लड

  • शुरुआत: वर्ष 1970 में शुरू किए गए ऑपरेशन फ्लड ने डेयरी किसानों के विकास को गति देने में मदद की, जिससे वे अपने द्वारा विकसित संसाधनों को नियंत्रित कर रहे हैं।
  • महत्त्व: नीति आयोग के मार्च 2023 के श्वेत-पत्र के अनुसार, भारत का दूध उत्पादन वर्ष 1973 में 110 ग्राम प्रति व्यक्ति से बढ़कर वर्ष 2022 में 433 ग्राम प्रति व्यक्ति तक पहुँच गया है।
  • राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड: यह पूरे भारत में दूध उत्पादकों को 700 से अधिक कस्बों एवं शहरों में उपभोक्ताओं के साथ जोड़ता है, मौसमी एवं क्षेत्रीय मूल्य भिन्नता को कम करता है और यह सुनिश्चित करता है कि उत्पादक को नियमित आधार पर पारदर्शी तरीके से उचित बाजार मूल्य प्राप्त हो।

  • भारतीय गायों की विशेषता
  • कूबड़: भारतीय देसी बैलों एवं गायों की एक विशिष्ट विशेषता ‘कूबड़’ है जो उन्हें भार ढोने में सुविधा प्रदान करता है, जबकि विदेशी नस्लों में कूबड़ नहीं होता है।
    • गलकंबल (Dewlap): यह किसी जानवर की गर्दन से लटकती ढीली त्वचा होती है। स्वदेशी मवेशियों में कान के नीचे उनके व्यापक गलकंबल के कारण उच्च ताप-प्रतिरोध होता है, जो उनके विदेशी नस्लों में नहीं होता है।
    • गोबर: भारतीय नस्ल की गायों के गोबर का उपयोग कृषि, औषधि आदि में किया जाता है, जबकि विदेशी नस्ल की गायों का गोबर किसी काम का नहीं होता है।

विदेशी नस्लों की अपेक्षा स्वदेशी मवेशी नस्ल को अपनाने के कारण

  • रखरखाव: देशी मवेशियों के विपरीत, विदेशी या संकर नस्ल के मवेशियों की खरीद और रखरखाव महंगा है। उन्हें अधिक पौष्टिक आहार, नियमित स्नान, पंखे और अलग बाड़े की आवश्यकता होती है।
    • सेंटर फॉर साइंस ऑफ एनवायरनमेंट (CSE), दिल्ली के शोध के अनुसार, वैश्विक तापन के कारण डेयरी किसानों के लिए विदेशी नस्लों का रखरखाव अब लागत प्रभावी नहीं है।
    • अनुकूलनशीलता: सेंटर फॉर साइंस ऑफ एनवायरनमेंट के अनुसार, समशीतोष्ण क्षेत्रों के लिए अनुकूलित विदेशी नस्लें ग्रीष्म एवं आर्द्रता जैसे वातावरण के अनुकूल नहीं हैं। इसके विपरीत गिर, लखीमी आदि जैसी स्वदेशी नस्लें मौसम परिवर्तन के प्रति अधिक अनुकूल हैं क्योंकि वे सदियों से भारतीय कृषि का अभिन्न अंग रही हैं। देशी नस्लों में ग्रीष्म के प्रति सहनशीलता, रोग प्रतिरोधक क्षमता और चरम जलवायु में पनपने की क्षमता होती है।
      • उदाहरण के लिए बढ़ते तापमान के कारण जर्सी गायों का दूध उत्पादन आम तौर पर गर्मियों में कम हो जाता है जबकि देशी गायें शायद ही कभी बीमार पड़ती हैं और पारंपरिक घरेलू उपचारों से उनका आसानी से इलाज किया जा सकता है।

राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (National Bureau of Animal Genetic Resources- NBAGR)

  • राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो: यह एक ICAR संस्था है जिसका मूल उद्देश्य स्वदेशी नस्लों को मान्यता प्रदान करना है।
  • स्वदेशी नस्लों का संरक्षण: संस्थान कुछ स्वदेशी नस्लों के विकास और संरक्षण के लिए भी कार्यक्रम लागू करता है।
  • संरक्षण विधि: हालाँकि जानवरों को NBAGR के भीतर संरक्षित नहीं किया जाता है, कुछ स्वदेशी नस्लों के वीर्य और भ्रूण को जीन पूल के रूप में संस्थान द्वारा संगृहीत किया जाता है।

  • रोग प्रतिरोधक: ग्लोबल वार्मिंग से क्रॉसब्रीड और विदेशी मवेशियों में रोगों की अधिक संभावना रहती है, जबकि स्वदेशी नस्लों पर कम प्रभाव पड़ता है।

Better for long haul

  • वर्ष 2023 में ‘एशियन जर्नल ऑफ डेयरी एंड फूड रिसर्च’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, स्वदेशी नस्लें वेक्टर-जनित ट्रिपैनोसोमियासिस और टिक-जनित बेबियोसिस एवं थीलेरियोसिस सहित बीमारियों के प्रति अपनी प्रतिरोधक क्षमता के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • दीर्घकालिक लाभ: दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विदेशी और संकर नस्ल के मवेशियों को लाया गया लेकिन देशी नस्लों के विपरीत, संकर नस्लों का उत्पादन तेजी से गिरता गया क्योंकि वे संकर प्रजनन के कारण अपनी बेहतर कार्यप्रणाली खो देती हैं।
    • आईसीएआर-नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टिट्यूट (NDRI) द्वारा वर्ष 2020 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, संस्थान में विकसित ब्राउन स्विस और साहीवाल का एक संकर ‘करण स्विस’ (Karan Swiss) ने पहली पीढ़ी में दूध उत्पादन में 56% की उत्कृष्टता हासिल की किंतु दूसरी पीढ़ी में 24.5% की गिरावट आई। 
  • उत्सर्जन में कमी: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की तीसरी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (BUR) के अनुसार, डेयरी से संबंधित देशी मवेशी प्रति वर्ष केवल 28±5 किलोग्राम मेथेन उत्सर्जित करते हैं, जबकि एक संकर मवेशी एक वर्ष में 43±5 किलोग्राम मेथेन उत्सर्जित करता हैं।
  • समावेशी विकास: स्वदेशी नस्लों को बढ़ावा देना छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका का समर्थन करता है जिनके पास विदेशी नस्लों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए संसाधन नहीं हैं।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व: भारत में स्वदेशी मवेशियों की नस्लों का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व है क्योंकि कई समुदाय विभिन्न कृषि और धार्मिक प्रथाओं के लिए स्वदेशी नस्लों के उपयोग को महत्त्व देते हैं।

स्वदेशी मवेशी नस्लों से जुड़ी चुनौतियाँ                                                                                                          

राष्ट्रीय कामधेनु प्रजनन केंद्र

  • उद्देश्य: समग्र और वैज्ञानिक तरीके से सभी स्वदेशी गोवंशीय नस्लों (37 मवेशी और 13 भैंस) का विकास, संरक्षण एवं सुरक्षा।
  • कार्य: यह देश की पचास स्वदेशी नस्लों के जर्मप्लाज्म के राष्ट्रीय भंडार के रूप में कार्य करने की अनिवार्य आवश्यकता को पूरा करता है। यह देश में प्रमाणित जेनेटिक्स का एक स्रोत भी है।
  • उद्देश्य
    • स्वदेशी गोजातीय नस्लों का संवर्द्धन एवं संरक्षण करना।
    • उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाना।
    • आनुवंशिक योग्यता को उन्नत करना।
    • प्रमाणित विशिष्ट जर्मप्लाज्म की आपूर्ति करना।
    • संकटग्रस्त नस्लों को विलुप्त होने से बचाना।

  • कम दुग्ध उत्पादकता: दुग्ध उत्पादन में देशी नस्लों की उत्पादकता विदेशी नस्लों की तुलना में कम होती है, जिससे छोटे एवं सीमांत किसानों की वार्षिक आय सीमित होती है।
  • प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच: छोटे और सीमांत किसानों को आधुनिक प्रौद्योगिकियों जैसे बेहतर भोजन पद्धतियों एवं मवेशियों के लिए उन्नत स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच की कमी हो सकती है। इससे देशी नस्लों की आनुवंशिक क्षमता और समग्र उत्पादकता में सुधार में बाधा आ सकती है।
  • बाजार की माँग और प्राथमिकताएँ: उपभोक्ता की प्राथमिकताओं को बदलना और स्वदेशी नस्लों के उत्पादों के लिए बाजार की माँग स्थापित करना एक चुनौती हो सकती है।
  • देशी नस्लों की घटती जनसंख्या: 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, देशी मवेशियों की कुल संख्या में गिरावट आ रही है।
    • थारपारकर, साहीवाल, देवनी, लाल सिंधी आदि जैसी कुछ नस्लों की आबादी पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जबकि पुंगनूर और वेचूर जैसी नस्लें विलुप्त होने के कगार पर हैं।
  • जर्मप्लाज्म की कमी: भारत को देशी मवेशियों की नस्लों में गुणवत्ता वाले जर्मप्लाज्म की कमी का सामना करना पड़ता है। वर्ष 2019-20 तक, देश में 56 सीमेन केंद्र थे लेकिन अधिकांश सीमेन केंद्र, भैंसें के सीमेन और विदेशी या संकर मवेशियों के जर्मप्लाज्म की माँग को पूरा करते हैं।

Policy Push

    • ये सीमेन केंद्र दूध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध 37 देशी मवेशियों की नस्लों में से केवल नौ नस्लों के लिए जर्मप्लाज्म प्रदान करते हैं। 

आगे की राह

  • उत्पाद की माँग में सुधार: स्वदेशी मवेशियों के दूध की माँग में सुधार के लिए अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • जबकि देसी गाय के दूध की माँग बढ़ रही है, डेयरियाँ दूध की मात्रा और उच्च वसा सामग्री के कारण क्रॉसब्रीड मवेशियों को पसंद करती हैं। देसी गाय के दूध को बढ़ावा देने के लिए दुग्ध सहकारी समितियों की स्थापना से माँग में सुधार हो सकता है।
  • जागरूकता और शिक्षा: स्वदेशी नस्लों और उनके उत्पादों के लाभों को उजागर करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम और शैक्षिक अभियान चलाना। इसमें किसानों, पशु चिकित्सकों और अन्य हितधारकों तक पहुँचने के लिए कार्यशालाएँ, सेमिनार और विस्तार सेवाएँ शामिल हैं।
  • अनुसंधान और विकास: स्वदेशी नस्लों की उत्पादकता, रोग प्रतिरोधक क्षमता और अन्य वांछनीय लक्षणों में सुधार के लिए उन पर केंद्रित अनुसंधान तथा विकास कार्यक्रमों में निवेश करना। इसमें अनुसंधान संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग शामिल हो सकता है।
  • पशुधन विस्तार सेवाएँ: किसानों को देसी मवेशियों के प्रबंधन और प्रजनन के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करने हेतु इन सेवाओं को मजबूत करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए उत्पादन, उत्पादकता और शुद्ध कृषि आय बढ़ाने हेतु अनुसंधान संस्थान में प्रौद्योगिकी के उत्पादन और किसानों के खेतों में इसके अनुप्रयोग के बीच समय अंतराल को कम करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र (Krishi Vigyan Kendra -KVK) का लाभ उठाना।
  • डेयरी विकास कार्यक्रमों में स्वदेशी नस्लें: स्वदेशी नस्लों को राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय डेयरी विकास कार्यक्रमों में एकीकृत करना, यह सुनिश्चित करना कि उन्हें विदेशी नस्लों के समान समर्थन मिले।
  • छोटे और सीमांत किसानों को वित्तीय सहायता: स्वदेशी नस्लों को अपनाने या बनाए रखने वाले किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन और सब्सिडी प्रदान करना, जिसमें स्वदेशी मवेशियों के लिए इनपुट, उपकरण और स्वास्थ्य देखभाल पर सब्सिडी शामिल है।
    • उदाहरण के लिए, भारत के सभी मवेशियों और भैंसों के लिए, विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों के संबंध में, राष्ट्रीय पशुधन विकास योजना के तहत राष्ट्रीय गोकुल मिशन (Rashtriya Gokul Mission- RGM) शुरू किया गया है।

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