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Lokesh Pal February 21, 2024 05:03 135 0
उच्चतम न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश में कहा कि ”राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को टीएन गोदावर्मन थिरुमलपाद बनाम भारत संघ वाद,1996 के ऐतिहासिक निर्णय में निर्धारित ‘वन’ की परिभाषा का पालन करना चाहिए।
गोदावर्मन निर्णय की उत्पत्ति
चिड़ियाघर की पहचान से संबंधित प्रावधान ‘वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972’ की धारा 38(H) में उल्लिखित है। |
भारत में वन संरक्षण का ढाँचा
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गोदावर्मन केस 1996 का प्रभाव और महत्त्ववन संरक्षण कानूनों पर
पर्यावरण प्रशासन में न्यायिक भागीदारी में वृद्धि
वन भूमि की सुरक्षा एवं संरक्षणभारत में व्यापक वन क्षेत्रों को संरक्षण प्राप्त हुआ है और भारत की विविध जैव विविधता को संरक्षित किया गया है, गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि को परिवर्तित करने की कई परियोजनाएँ रद्द कर दी गई हैं। वनवासियों और जनजातीय समुदायों के अधिकारों की मान्यताइसने वनवासियों और अपने भरण-पोषण के लिए वनों पर निर्भर आदिवासी समुदायों के अधिकारों को स्वीकार करने और उनकी सुरक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। इसके निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न समितियों की स्थापनाइससे वन संरक्षण पहलों के भीतर सतत विकास को बढ़ावा देने में मदद मिली है। |
हालिया संशोधनों ने अधिक वन भूमि को गैर-वन गतिविधियों के लिए स्थानांतरित करने पर जोर दिया। यह न केवल वनों और वन्य जीवन के लिये चुनौती प्रस्तुत करता है, बल्कि वन में रहने वाले समुदायों के कल्याण और आजीविका को भी खतरे में डालता है। इसलिए वन की परिभाषा और चिड़ियाघर एवं सफारी निर्माण की अनुमति पर उच्चतम न्यायालय का वर्तमान निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है।
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