राष्ट्रीय संग्रहालय में संरक्षित गौतम बुद्ध के 20 पुरावशेषों में से चार को एक महीने की प्रदर्शनी के लिए थाईलैंड ले जाया जा रहा है।
यह एक सदी से भी अधिक समय पहले प्राप्त संवेदनशील पुरावशेषों के लिए एक दुर्लभ विदेश यात्रा है।
संबंधित तथ्य
अवशेषों को भारतीय वायु सेना के एक विशेष विमान में ‘राज्य अतिथि’ के रूप में थाईलैंड ले जाया जाएगा।
‘AA’ श्रेणी को ध्यान में रखते हुए और उनकी संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए, अवशेषों को आमतौर पर प्रदर्शनी के लिए भारत से बाहर नहीं ले जाया जाता है।
आखिरी बार इन्हें वर्ष 2022 में मंगोलिया में प्रदर्शनी के लिए विदेश भेजा गया था।
बुद्ध अवशेषों के साथ-साथ मध्य प्रदेश के साँची में संरक्षित उनके दो शिष्यों के अवशेष भी प्रदर्शन के लिए थाईलैंड भेजे जा रहे हैं।
यह आयोजन विदेश मंत्रालय, थाईलैंड में भारतीय दूतावास, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ और मध्य प्रदेश सरकार के सहयोग से किया जा रहा है।
राष्ट्रीय संग्रहालय
15 अगस्त, 1949 को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली का उद्घाटन भारत के गवर्नर-जनरल आर.सी. राजगोपालाचारी द्वारा किया गया।
वर्तमान भवन की नींव 12 मई, 1955 को भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा रखी गई थी।
राष्ट्रीय संग्रहालय भवन के पहले चरण का औपचारिक उद्घाटन 18 दिसंबर 1960 को भारत के उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा किया गया था।
इसका दूसरा चरण वर्ष 1989 में पूरा हुआ।
नियंत्रण: राष्ट्रीय संग्रहालय की शुरुआत में वर्ष 1957 तक पुरातत्त्व महानिदेशक द्वारा देखभाल की जाती थी, जब भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने इसे एक अलग संस्थान घोषित किया और इसे अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखा।
वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
संबंधित पुरावशेष
राष्ट्रीय संग्रहालय के इन अवशेषों को ‘कपिलवस्तु अवशेष‘ के रूप में जाना जाता है क्योंकि इन्हें वर्ष 1898 में बिहार के एक स्थल से प्राप्त किया गया था, जिसे कपिलवस्तु का प्राचीन शहर माना जाता है।
इसके संबंध में जानकारी पिपरहवा (उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थनगर के पास) में स्तूप स्थल से प्राप्त हुई जिसने कपिलवस्तु की पहचान करने में मदद की।
इस स्तूप में बुद्ध और उनके समुदाय शाक्य से संबंधित अवशेष थे।
यह पहली बार होगा जब बुद्ध और उनके शिष्यों के अवशेषों को एक साथ प्रदर्शित किया जाएगा।
बुद्ध के पवित्र अवशेष
बौद्ध मान्यताओं के अनुसार, 80 वर्ष की आयु में बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में मोक्ष प्राप्त किया।
कुशीनगर के मल्लों ने एक सार्वभौमिक राजा के रूप में समारोहों के साथ उनके शरीर का अंतिम संस्कार किया।
अवशेष वितरण: अंतिम संस्कार के बाद उनके अवशेषों को एकत्र कर उन्हें आठ भागों में विभाजित किया गया, जिन्हें मगध के अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवी, कपिलवस्तु के शाक्य, कुशीनगर के मल्ल, अल्लकप्पा के बुलीज, पावा के मल्ल, रामग्राम के कोलिया और वेथादिपा के एक ब्राह्मण के बीच वितरित किया गया।
इसका उद्देश्य पवित्र अवशेषों पर स्तूप का निर्माण करना था।
इसके बाद दो और स्तूपों का पता चलता है, जिनमें से एक का निर्माण एकत्र किए गए अस्ति से भरे कलश के ऊपर तथा दूसरे का निर्माण अंगारे (लकड़ी का बिन जला कोयला) के ऊपर हुआ है।
बुद्ध के शरीर के अवशेषों पर बने स्तूप (सरिरिका स्तूप) सबसे पहले जीवित बौद्ध मंदिर हैं। इन आठ स्तूपों में से सात को अशोक (272-232 ईसा पूर्व) ने बनवाया, तथा बौद्ध धर्म के साथ-साथ स्तूपों को लोकप्रिय बनाने के प्रयास में उनके द्वारा बनाए गए 84,000 स्तूपों के भीतर अवशेषों के बड़े हिस्से को एकत्र किया।
गौतम बुद्ध
जन्म: गौतम बुद्ध का जन्म सिद्धार्थ के रूप में लगभग 563 ईसा पूर्व लुंबिनी में हुआ था और वे शाक्य वंश के थे।
ज्ञानप्राप्ति: गौतम ने बिहार के बोधगया में एक पीपल के पेड़ के नीचे बोधि (ज्ञानोदय) प्राप्त किया था।
बुद्ध ने अपना पहला उपदेश उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास सारनाथ गाँव में दिया था।
इस घटना को धर्म चक्र प्रवर्तन के रूप में जाना जाता है।
मृत्यु: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में 80 वर्ष की आयु में 483 ईसा पूर्व में उनका निधन हो गया। इस घटना को महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है।
बौद्ध धर्म
उत्पत्ति: भारत में बौद्ध धर्म की शुरुआत लगभग 2600 वर्ष पूर्व हुई थी।
शिक्षाएँ: बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षाएँ चार महान आर्य सत्य और आष्टांगिक मार्ग की मूल अवधारणा में समाहित हैं।
दुख (पीड़ा) और उसका विलुप्त होना बुद्ध के सिद्धांत के केंद्र में है।
बौद्ध धर्म का सार आत्मज्ञान या निर्वाण की प्राप्ति में है, जिसे इस जीवन में प्राप्त किया जा सकता है।
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