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बहुआयामी आपदा प्रबंधन योजना

Lokesh Pal February 22, 2024 06:42 183 0

संदर्भ

हाल ही में प्रधानमंत्री ने बहु-आयामी आपदा प्रबंधन योजना (Multi-dimensional Disaster Management Plan) प्रस्तुत की है।

संबंधित तथ्य

  • प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System): यह माना गया कि त्वरित प्रतिक्रिया बल और प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली से लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है।
  • जीरो कैजुअल्टी एप्रोच (Zero Casualty Approach): भारत द्वारा अपनाई गई जीरो कैजुअल्टी एप्रोच ने आपदा प्रतिक्रिया टीमों को प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षित करने के लक्ष्य से प्रेरित पेशेवर क्षमताओं के रूप में काम करने के योग्य बना दिया है।
  • आपदा प्रबंधन में युवाओं को प्रशिक्षण: भारत सरकार ने लाखों युवाओं को आपदा प्रबंधन में प्रशिक्षित किया है, जिससे प्रतिक्रिया बलों का मनोबल बढ़ा है और विभिन्न समुदाय आपदाओं से निपटने में सक्षम हुए हैं।

भारत की आपदा संवेदनशीलता

आपदा प्रवणता (Disaster Prone)

  • भारत दुनिया का 10वाँ सर्वाधिक आपदा-संभावित देश है।

भौगोलिक सुभेद्यताएँ (Geographical Vulnerabilities)

  • 60% भूभाग भूकंप के प्रति संवेदनशील है।
  • 40 मिलियन हेक्टेयर भूमि बाढ़ की चपेट में है।
  • 68% क्षेत्र सूखे के प्रति संवेदनशील है।

तटीय सुभेद्यताएँ (Coastal Vulnerabilities)

  • 7,516 किमी. लंबी तटरेखा में से लगभग 5,700 किमी. चक्रवात एवं सुनामी से प्रभावित है।

मानव जनित आपदा

  • भारत रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु (Chemical, Biological, Radiological and Nuclear- CBRN) आपात स्थितियों और अन्य मानव जनित आपदाओं जैसे- रेल एवं सड़क आपदाओं (ओडिशा ट्रेन दुर्घटना), भगदड़ (मंदिरों और त्योहारों पर) आदि के प्रति भी संवेदनशील है।

आर्थिक प्रभाव

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) के अनुसार, चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण वर्ष 2020 में भारत को लगभग 87 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।

मौजूदा आपदा प्रतिक्रिया ढाँचा

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005

  • वर्ष 2005 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (National Disaster Management Act) लागू किया गया, जिससे आपदा प्रबंधन के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक आदर्श परिवर्तन आया।
    • यह दृष्टिकोण पूर्व प्रतिक्रिया और राहत केंद्रित दृष्टिकोण से तैयारी, रोकथाम और योजना पर स्थानांतरित हो गया।
  • यह अधिनियम निम्नलिखित की स्थापना का प्रावधान करता है:-
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA)
    • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (State Disaster Management Authority- SDMA)
    • जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (District Disaster Management Authority- DDMA)
  • इस अधिनियम में यह भी प्रावधान है:-
    • राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर आपदा प्रतिक्रिया कोष (Disaster Response Fund) और आपदा न्यूनीकरण कोष (Disaster Mitigation Fund) का गठन।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (National Institute of Disaster Management- NIDM) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (National Disaster Response Force- NDRF) की स्थापना।

आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति (National Policy on Disaster Management- NPDM), 2009

  • समग्र दृष्टिकोण: NPDM आपदा अनुकूलन के लिए एक समग्र, सक्रिय रणनीति को बढ़ावा देता है, रोकथाम, शमन, तैयारी और प्रतिक्रिया को एकीकृत करता है और संस्थागत, कानूनी और वित्तीय ढाँचे सहित आपदा प्रबंधन के सभी पहलुओं तक विस्तृत है।
  • समावेशिता और समानता: यह सभी सामाजिक वर्गों के समावेश को सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से दिव्यांग व्यक्तियों, महिलाओं, बच्चों और वंचित समूहों पर ध्यान केंद्रित करते हुए राहत एवं पुनर्वास प्रयासों में समानता पर जोर देता है।
  • पारदर्शिता और सामुदायिक भागीदारी: समुदायों, स्थानीय निकायों, नागरिक समाज और पंचायती राज संस्थानों (PRIs) को सक्रिय रूप से शामिल करके आपदा प्रबंधन प्रक्रियाओं में पारदर्शिता एवं जवाबदेही का लक्ष्य है।

सेंदाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework)

  • वर्ष 2015 में, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने जापान के सेंदाई शहर में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन (Third UN World Conference on Disaster Risk Reduction) में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंदाई फ्रेमवर्क, 2015-2030 को अपनाया।
  • यह ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (Hyogo Framework for Action) का अद्यतन फ्रेमवर्क है।

सेंदाई फ्रेमवर्क के 4 प्राथमिकता वाले क्षेत्र

  • जोखिम को समझना।
  • जोखिम प्रशासन को सुदृढ़ बनाना।
  • आपदा अनुकूलन में निवेश।
  • आपदा प्रतिक्रिया के साथ-साथ आपदाओं के बाद बेहतर निर्माण के लिए क्षमताओं में सुधार करना।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (National Disaster Management Plan- NDMP), 2016

  • यह आपदा प्रबंधन के लिए देश में तैयार की गई पहली राष्ट्रीय योजना है और इसे आमतौर पर आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंदाई फ्रेमवर्क के लक्ष्यों के साथ जोड़ा गया है।
  • NDMP आपदा प्रबंधन चक्र के सभी चरणों के लिए सरकारी एजेंसियों को एक रूपरेखा और दिशा प्रदान करता है।
  • मुख्य गतिविधियाँ: यह योजना किसी आपदा पर प्रतिक्रिया देने वाली एजेंसियों के लिए एक ‘चेकलिस्ट’ के रूप में काम करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी, सूचना प्रसार, चिकित्सा देखभाल, ईंधन, परिवहन, खोज और बचाव, निकासी आदि जैसी प्रमुख गतिविधियों की पहचान करती है।
  • एकीकरण: NDMP सरकार की सभी एजेंसियों और विभागों के बीच क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर एकीकरण भी प्रदान करता है।

बहुआयामी आपदा प्रबंधन योजना की आवश्यकता

  • लगातार चुनौतियाँ: COVID-19 महामारी के बाद यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध जैसे मुद्दों के साथ वैश्विक खाद्य असुरक्षा उत्पन्न हो रही है।
    • मनुष्यों द्वारा बढ़ता अतिक्रमण अधिकाधिक जूनोटिक बीमारियों को जन्म दे रहा है, जिससे बीमारियों से निपटने संबंधी खतरा उत्पन्न हो गया है।
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण बार-बार और तीव्र चरम मौसमी घटनाएँ हो रही हैं। गतिशील आपदा स्थितियों से निपटने के लिए बहुआयामी एवं समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु में शहरी बाढ़; उत्तराखंड में हिमनद झील में विस्फोट और बिहार में बाढ़ की घटनाएँ जलवायु परिवर्तन का परिणाम हैं।
  • विनाशकारी आपदाओं के लिए तैयारियों में कमियाँ: भारत को आपदाओं से निपटने संबंधी महत्वपूर्ण तैयारियों में कमियों का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से बड़े भूकंप और बाढ़ जैसी विनाशकारी घटनाओं के लिए।
    • लेह में भूस्खलन, सिक्किम भूकंप और उत्तराखंड बाढ़ जैसी हालिया घटनाओं ने आपदा तैयारियों में अपर्याप्तता को उजागर किया है, जिससे मृत्यु दर एवं विस्थापन दर में वृद्धि हुई है।
  • उन्नत प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की आवश्यकता: प्रभावी आपदा प्रबंधन प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की सटीकता एवं समयबद्धता पर निर्भर करता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की अनिश्चितता एवं उनकी गति पर नजर रखने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
    • चक्रवात तौकते (Taukte) ने 100 से अधिक लोगों की जान ले ली, जिनमें से अधिकांश गुजरात में थे, और भारत के पश्चिमी तट पर आते ही इस चक्रवात ने केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र में विनाश किया। इसी तरह चक्रवात अम्फान (Amphan) ने पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में तबाही मचाई।
  • साइलो (Silos) में आपदा प्रबंधन चक्र का निष्पादन: आपदा प्रबंधन चक्र के विभिन्न चरण जैसे आपदाओं का पूर्वानुमान लगाना और शमन की योजना बनाना आदि साइलो में किया जाता है।
    • एकीकृत आपदा प्रबंधन के लिए बाढ़ के स्तर एवं अवधि, मृदा के प्रकार का आकलन और फिर बाढ़ के बाद की स्थितियों में उगने वाली फसलों की पहचान करना आवश्यक है।
  • तकनीकी प्रगति के एकीकरण का अभाव: नियमित प्रक्रियाओं को प्रबंधित करने और आपदा तैयारियों को बढ़ाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता और बिग डेटा जैसी आधुनिक तकनीक का उपयोग अभी भी नहीं है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा क्रियान्वित की जा रही आपातकालीन चेतावनी प्रणाली अभी भी क्रियाशील नहीं हो पाई है।
  • सामुदायिक भागीदारी का अभाव: आपदा प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी एवं सहयोग के लिए बेहतर प्रतिक्रिया हेतु उचित प्रशिक्षण एवं लगातार अभ्यास की आवश्यकता होती है। हालाँकि, स्थानीय स्तर पर आपदाओं से निपटने के लिए नागरिकों के प्रशिक्षण की बड़ी कमी है।

बहुआयामी आपदा प्रबंधन योजना

  • यह आपदा प्रबंधन के लिए एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण है जिसे भारत में अपनाया  गया है। यह राहत केंद्रित एवं प्रतिक्रियावादी दृष्टिकोण पर आधारित है।
  • बहुआयामी आपदा प्रबंधन योजना के विभिन्न घटक हैं:
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: संभावित आपदा जोखिमों का पूर्वानुमान एवं संचार करने के लिए तंत्र
  • शमन: किसी आपदा की गंभीरता और प्रभाव को कम करने की रणनीतियाँ।
  • सक्रिय रोकथाम: किसी आपदा की घटना को रोकने या समाज पर इसके प्रभाव को कम करने के लिए किए गए सक्रिय उपाय।
  • तैयारी: आपदाओं से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए व्यक्तियों और समुदायों की तैयारी की स्थिति।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण: सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए आपदा के जोखिमों की पहचान करने, उनका आकलन करने और उन्हें कम करने तथा लोगों और संपत्तियों की संवेदनशीलता को कम करने का एक दृष्टिकोण।

आपदा प्रबंधन के लिए भारत का बहुआयामी दृष्टिकोण

उन्नत प्रारंभिक चेतावनी और प्रतिक्रिया प्रणाली

  • आपदा न्यूनीकरण में सफलताएँ: प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के कार्यान्वयन से चक्रवातों के कारण होने वाले जान-माल के नुकसान में लगभग 98% की कमी आई है, साथ ही हीटवेव से संबंधित मृत्यु दर में भी काफी कमी आई है।
  • महत्वपूर्ण संपत्ति की सुरक्षा: यहाँ तक कि COVID-19 महामारी के दौरान भी, आपदा प्रबंधन प्रणाली ने चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में ऑक्सीजन उत्पन्न करने वाली इकाइयों जैसी महत्वपूर्ण संपत्तियों की प्रभावी ढंग से रक्षा की।

आपदा प्रतिक्रिया क्षमताओं को सुदृढ़ बनाना

  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया रिजर्व (National Disaster Response Reserve- NDRR): तत्काल राहत के लिए ‘तैयारी-से-तैनाती’ (Ready-to-Deploy) सूची बनाए रखने हेतु ₹250 करोड़ के परिक्रामी कोष (Revolving Fund) की स्थापना।
  • NDRF का विस्तार: 28 शहरों में राज्यों और क्षेत्रीय प्रतिक्रिया केंद्रों में पूर्व-तैनाती सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) द्वारा अतिरिक्त कोर और परिचालन जहाजों को तैनात किया गया है।
  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (State Disaster Response Force- SDRF): विशिष्ट आपदा प्रतिक्रिया कार्यों को संभालने के लिए तेलंगाना को छोड़कर सभी राज्यों में गठन किया गया है।

आपदा प्रबंधन के लिए वित्तीय एवं तकनीकी सहायता

  • वैज्ञानिक निधि आवंटन: NDMF और राज्य आपदा शमन निधि (SDMF) के तहत कुल ₹45,724 करोड़ के आवंटन के साथ 2021 में राष्ट्रीय आपदा शमन कोष (National Disaster Mitigation Fund- NDMF) का गठन।
  • नवाचार और प्रशिक्षण: एक लाख से अधिक स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करने के लिए NDRF अकादमी, आपदा मित्र योजना (Disaster Mitra Scheme) का शुभारंभ किया गया है।
  • आपदा प्रबंधन के लिए योजनाएँ: ₹8000 करोड़ से अधिक की तीन प्रमुख योजनाओं का उद्देश्य अग्निशमन सेवाओं को आधुनिक बनाना, प्रमुख महानगरों में शहरी बाढ़ को कम करना और व्यापक प्रभाव के लिए राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम शमन परियोजना शुरू करना है।

संचार एवं सूचना प्रणाली

  • कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल (Common Alerting Protocol- CAP): विभिन्न सरकारी और मौसम विज्ञान केंद्रों को एकीकृत करते हुए मोबाइल फोन के माध्यम से भौगोलिक रूप से लक्षित आपातकालीन अलर्ट देने के लिए ₹154 करोड़ की परियोजना।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन सूचना प्रणाली (National Disaster Management Information System- NIDMS) पोर्टल: आपदा से होने वाला नुकसान संबंधी डेटा एकत्र करने और सेंदाई फ्रेमवर्क संकेतकों की निगरानी के लिए एक ऑनलाइन मंच है।
  • मोबाइल एप्लिकेशन: दैनिक मौसम की जानकारी के लिए वेदर‘ (Weather) , किसानों द्वारा कृषि प्रबंधन के लिए मेघदूत (Meghdoot) और आकाशीय बिजली की चेतावनी के लिए ‘दामिनी‘ (Damini) जैसे मोबाइल एप्लिकेशन का विकास किया गया है।

आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली

  • डायल 112′ आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (Emergency Response Support System- ERSS): आपदा आपात स्थिति के लिए ₹41 करोड़ की पहल, क्षेत्र में योगदान को मान्यता देने के लिए सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार की संस्था द्वारा पूरक के रूप में कार्य करती है।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (AMCDRR): AMCDRR के 10-सूत्रीय DRR एजेंडा ने आपदाओं के खिलाफ लचीलापन बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और नवीन दृष्टिकोण के महत्व पर जोर दिया है।

आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिए गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI)

  • वित्तीय प्रतिबद्धता और वैश्विक भागीदारी: भारत ने आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने के लिए 31 देशों और विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर CDRI को वित्तीय सहायता देने का वादा किया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: एक अंतर्राष्ट्रीय इकाई के रूप में CDRI की मान्यता, जो भारत के साथ ‘हेडक्वार्टर एग्रीमेंट ‘ (Headquarters Agreement) से मजबूत हुई, वैश्विक आपदा लचीलापन बढ़ाने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करती है।

राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल NDRF के अंतर्राष्ट्रीय प्रयास

  • INSARAG मान्यता के लिए प्रयास: NDRF सक्रिय रूप से अंतर्राष्ट्रीय खोज और बचाव सलाहकार समूह (International Search & Rescue Advisory Group- INSARAG) से वैश्विक मान्यता प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है, जिसका लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र-समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार अपने संचालन को मानकीकृत करना है।
  • अंतर्राष्ट्रीय तैनाती: वर्ष 2023 में, NDRF ने भूकंप से राहत के लिए तुर्किये में टीमें भेजीं, जो अंतर्राष्ट्रीय आपदा सहायता के लिए भारत की क्षमता और समर्पण को प्रदर्शित करता है।

आपदा प्रबंधन से संबंधित चिंताएँ

  • वित्तीय जोखिम प्रबंधन का अभाव: वित्तीय जोखिमों और बीमा तंत्रों के प्रबंधन में अपर्याप्तता आपदा-संबंधी नुकसान को बढ़ा देती है, जिससे बेहतर वित्तीय रणनीतियों की आवश्यकता होती है।
  • शहरी नियोजन और भूमि उपयोग: अपर्याप्त योजना और व्यापक भूमि उपयोग नीतियों की कमी भूस्खलन की संवेदनशीलता में योगदान करती है। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों, विशेषकर उत्तर पूर्वी क्षेत्र में बुनियादी डेटा (जैसे अनाज) की कमी चुनौती को बढ़ा देती है।
  • निर्माण कानून और पर्यटन: निर्माण कानूनों का ढीला कार्यान्वयन और अत्यधिक पर्यटन पहाड़ी क्षेत्रों में जोखिमों को बढ़ा देता है। वनों की कटाई, सड़क बनाने और सीढ़ी बनाने से पहाड़ी क्षेत्र की संरचनात्मक अखंडता में असंतुलन पैदा होता है।
  • आपदा रेजिलियंस में निवेश: आपदा रेजिलियंस के लिए विकास-उन्मुख दृष्टिकोण की दिशा में निवेश में कमियाँ हैं, एक पारदर्शी, राष्ट्रीय कार्रवाई ढाँचे का आग्रह किया जा रहा है।

आगे की राह

  • आपदा प्रबंधन में रिमोट सेंसिंग और GIS का लाभ उठाना: रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) प्रभावित क्षेत्रों की मैपिंग के माध्यम से त्वरित प्रतिक्रिया और प्रभावी राहत की सुविधा प्रदान करती है।
    • वर्ष 2005 में हरिकेन कैटरीना के बाद GIS डेटा ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों की पहचान करने और सहायता को प्रभावी ढंग से निर्देशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • आपदा प्रतिक्रिया में बड़े डेटा और AI की क्षमता का उपयोग: AI और मशीन लर्निंग चरम घटनाओं की भविष्यवाणी करने, संवेदनशील मानचित्र बनाने, रियल टाइम घटना का पता लगाने, स्थितिजन्य जागरूकता प्रदान करने और निर्णय लेने में सहायता करने में सहायता करते हैं।
  • ड्रोन और रोबोटिक्स: वे विशाल क्षेत्रों का तेजी से सर्वेक्षण करने और चुनौतीपूर्ण इलाकों एवं खतरनाक वातावरण तक पहुँचने में मदद करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण: आपदा जोखिम में कमी और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के बीच संबंध को पहचानना आवश्यक है।
  • समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन: आपदाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए ज्ञान और उपकरणों के साथ स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना। इसमें बुनियादी प्रतिक्रिया उपायों में प्रशिक्षण, स्थानीय प्रतिक्रिया टीमों की स्थापना और नियमित आपदा तैयारी अभ्यास शामिल हैं।

निष्कर्ष

मानवजनित प्रभावों के साथ बदलता पर्यावरणीय परिदृश्य आपदाओं को प्रकृति में और अधिक गतिशील बना देगा। इसके लिए दुर्बल समुदायों की भविष्यवाणी करने, उन्हें कम करने और पुनर्वास करने के लिए तकनीकी प्रगति के साथ एकीकृत बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी।

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