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भारत में धन विधेयक से जुड़ा विवाद

Lokesh Pal February 23, 2024 06:12 115 0

संदर्भ

चुनावी बॉण्ड योजना पर उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्णय के कारण, धन विधेयक एक संवैधानिक चुनौती का विषय बन गया है।

पृष्ठभूमि

  • केंद्र सरकार पर महत्त्वपूर्ण विधेयकों को पारित करने के लिए कथित रूप से धन विधेयक के मार्ग का उपयोग करने के आरोप लगते रहे हैं।
  • हालाँकि, इस बात को लेकर एक अनसुलझा प्रश्न बना हुआ है कि वास्तव में धन विधेयक क्या होता है।
  • वर्तमान में यह मामला सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के समक्ष विचाराधीन है।

धन विधेयक के बारे में

  • संवैधानिक प्रावधान
    • संविधान के अनुच्छेद-109 और अनुच्छेद-198 में धन विधेयक के संबंध में विशेष प्रक्रियाओं को निर्धारित किया गया है।
    • अनुच्छेद –110 और अनुच्छेद-199 धन विधेयक की परिभाषा से संबंधित हैं।

  • परिभाषा: एक विधेयक को तब धन विधेयक माना जाता है, यदि उसमें केवल निम्नलिखित मामलों से संबंधित प्रावधान शामिल होते हैं:
    • किसी भी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन;
    • केंद्र सरकार द्वारा धन उधार लेने का विनियमन;
    • भारत की संचित निधि या भारत की आकस्मिक निधि से धन का विनियोजन, भुगतान और निकासी,
    • भारत की संचित निधि या भारत की लोक लेखा में धन की प्राप्ति, अभिरक्षा, लेखापरीक्षा।
    • ऊपर निर्दिष्ट किसी भी मामले से संबंधित कोई भी मामला।
  • कौन से विधेयक धन विधेयक नहीं है?

किसी विधेयक को तब  इसलिए धन विधेयक नहीं माना जाएगा जब वह केवल निम्नलिखित में से किसी एक मामले से संबंधित है:

  • जुर्माना या अन्य आर्थिक दंड लगाना, अथवा
  • लाइसेंस के लिए शुल्क या प्रदान की गई सेवाओं के लिए शुल्क के भुगतान की माँग; या
  • स्थानीय उद्देश्यों के लिए किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा किसी कर का अधिरोपण, परिहार, परिवर्तन या विनियमन आदि

धन विधेयक के संबंध में विभिन्न संस्थाओं की भूमिका

  • लोकसभा अध्यक्ष
    • लोकसभा अध्यक्ष को यह प्रमाणित करना होता है कि सदन में प्रस्तुत किया जा रहा कोई विधेयक धन विधेयक अथवा नहीं।
    • इस संबंध में अध्यक्ष के निर्णय पर किसी भी न्यायालय या संसद के सदन अथवा यहाँ तक ​​कि राष्ट्रपति द्वारा भी सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
      • हालाँकि, उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2018 में आधार अधिनियम को बरकरार रखने वाले निर्णय को सुनाते हुए कहा था कि स्पीकर का निर्णय न्यायिक जाँच के अधीन होगा।
    • जब कोई धन विधेयक अनुशंसा के लिए राज्यसभा में भेजा जाता है और राष्ट्रपति की सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो अध्यक्ष इसे धन विधेयक के रूप में अनुशंसित करता है।
  • राज्यसभा
    • धन विधेयक को राज्यसभा द्वारा संशोधित या अस्वीकृत नहीं किया जा सकता है।
    • राज्यसभा को विधेयक को सिफारिशों के साथ या बिना सिफारिशों के लौटाना अनिवार्य है, जिसे लोकसभा स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
    • इसे राज्यसभा द्वारा अधिकतम 14 दिनों तक ही रोका जा सकता है।
  • राष्ट्रपति : राष्ट्रपति विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है, लेकिन पुनर्विचार के लिए उसे वापस नहीं कर सकता।
  • संयुक्त बैठक: दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है।

धन विधेयक का महत्त्व

  • वित्तीय मामलों से संबंधित: यह विशेष रूप से कराधान, सरकारी व्यय और अन्य संबंधित वित्तीय मुद्दों जैसे वित्तीय मामलों को संबोधित करने के लिए बनाया गया है।
    • सरकार के प्रभावी कामकाज और उसके बजटीय प्रस्तावों के कार्यान्वयन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • विश्वास मत: धन विधेयकों का पारित होना सरकार में विश्वास मत का एक वास्तविक संकेत माना जाता है।
    • लोकसभा में धन विधेयक पर समर्थन प्राप्त करने में असफल रहने पर सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है।
    • लोकसभा किसी धन विधेयक को पारित करने से इनकार करके सरकार के प्रति अपना असंतोष व्यक्त कर सकती है, जो विश्वास की कमी का संकेत है।
  • संवैधानिक सुरक्षा: संविधान धन विधेयक के गठन के संबंध में व्यापक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि यह विशेष रूप से वित्तीय मामलों से संबंधित है।
    • यह गैर-वित्तीय कानून के लिए धन विधेयक के दुरुपयोग को रोकता है।
  • समयबद्ध प्रक्रिया: धन विधेयकों का निपटान एक निश्चित समय सीमा के भीतर किया जाना चाहिए।
    • वित्तीय निर्णय लेने में अनावश्यक देरी को रोकता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि सरकार लंबी विधायी बहस के बिना अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों को कुशलतापूर्वक निभा सकती है।

धन विधेयक के संबंध में मुद्दा

  • धन विधेयक मार्ग का कथित दुरुपयोग: प्रमुख वित्तीय कानून पारित करने के लिए धन विधेयक मार्ग का उपयोग।
    • उदाहरण के लिए: आधार अधिनियम, 2016 ; धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act-PMLA) में संशोधन , और विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010 ( Foreign Contributions Regulations Act-FCRA)।
  • राज्यसभा की विधायी

भूमिका को सीमित करना : धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है।

    • राज्यसभा लोकसभा द्वारा पारित धन विधेयक में संशोधन नहीं कर सकती है और केवल सिफारिशें कर सकती है, जिन्हें लोकसभा स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है।
    • धन विधेयक का विकल्प राज्यसभा की जाँच को दरकिनार कर देता है, जिससे बहुमूल्य सुझावों की अनदेखी होती है।
    • इससे राज्यसभा की जाँच के बिना ही संसदीय निरीक्षण हो सकता है।
  • धन विधेयक का दुरुपयोग: यह तर्क देना कि मुख्य प्रावधान अनुच्छेद-110 के दायरे के अनुरूप हैं और धन विधेयक की आड़ में अन्य प्रावधानों को पारित करने से किसी भी विधेयक को धन विधेयक के रूप में पारित करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। यह संविधान की भावना के विरुद्ध है और विधायी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
  • विधि निर्माण में जल्दबाजी: धन विधेयक संसद द्वारा कानून बनाने के लिए एक त्वरित विकल्प प्रदान करता है।

गंभीर मामलों को न्यायालय में चुनौती

  • आधार अधिनियम, 2016: धन विधेयक के रूप में आधार अधिनियम की वैधता
    • उच्चतम न्यायालय ने 4:1 के बहुमत से आधार अधिनियम, 2016 की संवैधानिकता को बरकरार रखा और कहा कि संसद में आधार विधेयक को धन विधेयक के रूप में पारित करना संविधान का उल्लंघन नहीं था।
    • सरकार ने तर्क दिया कि कानून का उद्देश्य भारत की समेकित निधि के समर्थन से समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों को सहायता, अनुदान या सब्सिडी के रूप में लाभ पहुँचाना है।
    • इसलिए, यह अधिनियम अनुच्छेद-110 के दायरे में आता है और इसे धन विधेयक के रूप में वैध रूप से पारित किया गया था।
  • धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) संशोधन
    • वर्ष 2015, 2016, 2018 और 2019 में पारित वित्त अधिनियमों के माध्यम से PMLA में महत्त्वपूर्ण संशोधन किए गए।
    • संविधान के अनुच्छेद-110 के तहत बजट के दौरान पारित वित्त विधेयकों को धन विधेयक के रूप में पेश किया जाता है।
    • इन संशोधनों ने प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate-ED) को व्यापक शक्तियाँ प्रदान कीं, जिसमें गिरफ्तारी करने और छापेमारी करने का अधिकार भी शामिल था।
    • उच्चतम न्यायालय ने PMLA और ED की व्यापक शक्तियों को बरकरार रखा।
    • हालाँकि, पीठ ने धन विधेयक मार्ग के माध्यम से PMLA में संशोधन की वैधता को सुनवाई का निर्णय एक बड़ी संवैधानिक पीठ के लिए छोड़ दिया था।
  •  न्यायाधिकरण सुधार
    • रोजर मैथ्यू बनाम भारत संघ वाद में, उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधिकरण सदस्यों की सेवा शर्तों में बदलाव के विरुद्ध चुनौती पर सुनवाई की, जिसे वित्त अधिनियम, 2017 में धन विधेयक के रूप में भी पेश किया गया था।
    • सरकार ने तर्क दिया कि चूँकि न्यायाधिकरण के सदस्यों का वेतन भारत की संचित निधि से आता है, इसलिए संशोधनों को धन विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
    • उच्चतम न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने अपीलीय न्यायाधिकरण नियम, 2017 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया।
    • उच्चतम न्यायालय ने बताया कि पुट्टास्वामी वाद में धन विधेयक का मुद्दा  ‘यथोचित रूप से तर्कसंगत नहींथा और इसकी व्याख्या में संभावित टकराव या मतभेद हो सकता है।
      • SC  ने इस प्रश्न को उच्चतम न्यायालय की बड़ी बेंच के सामने रखने को कहा क्योंकि इस मामले में SC बेंच पुट्टास्वामी पीठ के समान ही थी।
  • वित्त अधिनियम, 2017: चुनावी बॉण्ड योजना का मार्ग प्रशस्त करने के लिए, वित्त अधिनियम, 2017 में भारत के चुनाव कानून, कंपनी अधिनियम और आयकर अधिनियम के प्रावधानों में बदलाव किया गया।
    • उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना (Electoral Bonds Scheme-EBS) को रद्द कर दिया और राजनीतिक चंदे के संबंध में चुनाव-पूर्व बॉण्ड की यथास्थिति को प्रभावी ढंग से बहाल कर दिया।

धन विधेयक पर सरकार का रुख

  • सरकार का कहना है कि किसी विधेयक को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत करते समय, उच्चतम न्यायालय को यह आकलन करना चाहिए कि क्या इसके प्राथमिक प्रावधान अनुच्छेद-110(1)(a) से अनुच्छेद-110(1)(f) के दायरे के अनुरूप हैं या नहीं।
  • अतिरिक्त प्रावधान, भले ही पूर्ण रूप से इसके अनुरूप न न हों, मुख्य विशेषताओं को अपना सकते हैं और धन विधेयक के साथ पारित किए जा सकते हैं।
  • इसलिए चरण-दर-चरण विश्लेषण से बचते हुए सभी प्रावधानों को एक साथ देखा जाना चाहिए।

निष्कर्ष 

उच्चतम न्यायालय को विधायी दक्षता और लोकतंत्र की समुचित कार्यप्रणाली के लिए धन विधेयक के घटकों को स्पष्ट करना चाहिए।

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