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सल्लेखना विधि

Lokesh Pal February 23, 2024 06:51 127 0

संदर्भ

हाल ही में प्रधानमंत्री ने संत शिरोमणि विद्यासागर महाराज (Vidhyasagar Maharaj) पर अपने विचार व्यक्त किए।

  • विद्यासागर महाराज दिगंबर जैन समुदाय के एक प्रसिद्ध संत थे तथा सल्लेखना करने के बाद उनका निधन हो गया।

आचार्य विद्यासागर महाराज के बारे में

  • वह जैन समुदाय के एक प्रसिद्ध संत थे, जो अपने ज्ञान एवं आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए जाने जाते थे।
  • उन्होंने कम उम्र में मठवासी जीवन में प्रवेश किया एवं आचार्य की सम्मानित उपाधि प्राप्त की, जो उनके गहन ज्ञान और आध्यात्मिक उपलब्धि को दर्शाता है।
  • उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, पर्यावरण संरक्षण एवं सतत कृषि के क्षेत्र में उनके काम के लिए जाना जाता है।
  • उन्होंने सामाजिक सुधारों के लिए कार्य किया एवं लोगों से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेने का आग्रह किया।
  • उन्होंने स्वेच्छा से मृत्यु तक उपवास किया एवं अपने जीवन के अंतिम तीन दिनों में भोजन और तरल पदार्थ का सेवन छोड़ दिया था।

सल्लेखना (Sallekhana) के बारे में

  • सल्लेखना: इसे संथारा (Santhara), समाधि-मरण (Samadhi-Marana), संन्यास-मरण (Sanyasana-Marana) भी कहा जाता है, यह एक जैन धार्मिक परंपरा है, जिसमें आध्यात्मिक शुद्धि के लिए स्वैच्छिक उपवास एवं मृत्यु तक ध्यान शामिल है।
  • किसके द्वारा इसका अभ्यास किया जाता है: जब जैन संत अपने जीवन के अंतिम क्षणों के करीब होते हैं एवं बुढ़ापे या लाइलाज बीमारी के कारण सामान्य जीवन संभव नहीं रह जाता है तो सल्लेखना (दिगंबर जैनियों द्वारा) या संथारा (श्वेतांबरों जैनियों द्वारा) का अभ्यास करते हैं।
    • सल्लेखना एक व्रत है, जो जैन तपस्वियों और गृहस्थों दोनों के द्वारा किया जा सकता है। निशिधि उत्कीर्णन (Nishidhi Engravings) जैसे ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि जैन इतिहास में रानियों सहित पुरुषों एवं महिलाओं दोनों द्वारा सल्लेखना का पालन किया जाता था।
  • दर्शन: यह अभ्यास अहिंसा (Ahimsa) एवं भौतिक शरीर से वैराग्य के जैन सिद्धांत में निहित है।
  • ऐतिहासिक साक्ष्य: जैनियों की आचार संहिता ‘श्रावक अणुव्रत’ (Shravaka Anuvrata) में प्रतिक्रमण सूत्र (Pratikraman Sutra) में स्पष्ट रूप से संथारा की व्याख्या की गई है, जिसमें कहा गया है कि जब जीवन के सभी उद्देश्य पूरे हो जाते हैं या जब शरीर किसी और उद्देश्य को पूरा करने में असमर्थ होता है तो एक व्यक्ति इसे अपना सकता है।

सल्लेखना की प्रथा की वैधता

  • निखिल सोनी बनाम भारत संघ: वर्ष 2006 की एक जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि सल्लेखना अनुच्छेद-25 के तहत मौलिक अधिकार नहीं है, क्योंकि यह अनुच्छेद-21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है।
    • वर्ष 2015 में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने सल्लेखना की प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया, इसकी तुलना आत्महत्या के कार्य से की थी।
    • उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि यह प्रथा जैन धर्म की आवश्यक प्रथा नहीं है।

उच्चतम न्यायालय में अपील: उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय के एक आदेश पर रोक लगाकर आमरण अनशन की जैन धार्मिक प्रथा को बहाल कर दिया।

  • उच्चतम न्यायालय का अवलोकन
    • सल्लेखना का अभ्यास सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य या नैतिकता में हस्तक्षेप नहीं करता है।
    • संथारा या सल्लेखना का अभ्यास करने का अधिकार निजता के अधिकार के तहत सुरक्षित है।
    • इसकी व्यापकता को प्राचीन काल से ही स्वीकार किया गया है, यहाँ तक ​​कि वर्ष 1863 में प्रिवी काउंसिल (Privy Council) ने भी इसे मान्यता दी थी।
    • इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान का अनुच्छेद-26 यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है।

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