24 फरवरी, 2024 को गुरु रविदास जयंती मनाई जा रही है।
संबंधित तथ्य
हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, माघ महीने में पूर्णिमा के दिन गुरु रविदास की जयंती मनाई जाती है।
गुरु रविदास
परिचय
गुरु रविदास, जिन्हें रैदास, रोहिदास और रूहीदास के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 1377 ई. में उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव सीर गोवर्धनपुर में एक साधारण परिवार में हुआ था।
निर्धन पृष्ठभूमि के बावजूद, उन्होंने मानवाधिकारों और समानता पर अपनी शिक्षाओं के माध्यम से प्रसिद्धि प्राप्त की।
कार्य
उनके गीतों ने भक्ति आंदोलन पर त्वरित प्रभाव डाला और उनकी लगभग 41 कविताओं को सिखों के धार्मिक ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में शामिल किया गया।
गुरु रविदास ने मीराबाई जैसी आध्यात्मिक हस्तियों को भी प्रभावित किया, जो उन्हें अपने आध्यात्मिक गुरु के रूप में मानती थीं।
एक ईश्वर में विश्वास और निष्पक्ष धार्मिक कविताओं की रचना के कारण उन्हें ख्याति प्राप्त हुई।
उन्होंने अपना पूरा जीवन जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिये समर्पित कर दिया और ब्राह्मणवादी समाज की धारणा की खुले तौर पर निंदा की।
उनके भक्ति गीतों ने भक्ति आंदोलन पर त्वरित प्रभाव डाला।
उनकी लगभग 41 कविताओं को सिखों के धार्मिक पाठ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में भी शामिल किया गया।
रविदासिया धर्म (Ravidassia Dharam): उनकी शिक्षाएँ लोगों के बीच प्रतिध्वनित होती हैं, जिनके आधार पर रविदासिया धर्म का जन्म हुआ।
उन्होंने ईश्वर की सर्वव्यापकता के बारे में बताया और कहा कि मानव आत्मा ईश्वर का एक कण है। इस प्रकार गुरु रविदास ने इस विचार को अस्वीकार कर दिया कि निम्न जाति के लोग ईश्वर से साक्षात्कार नहीं कर सकते हैं।
उन्होंने अपने उपदेशों में कहा कि ईश्वर को पाने का एकमात्र तरीका मन को द्वंद्व से मुक्त करना है।
गुरु रविदास के साहित्यिक कार्यों के सबसे पुराने प्रलेखित स्रोतों में से दो (सिखों का आदिग्रंथ तथा दादू पंथ) की पंचवाणी हैं।
उन्हें भक्ति संत ‘कवि रामानंद’ का शिष्य और संत कबीर का समकालीन माना जाता है।
रविदास की नैतिक एवं बौद्धिक उपलब्धियों में ‘बेगमपुरा (Begampura) की संकल्पना’ अत्यंत प्रचलित थी अर्थात् एक ऐसा शहर जहाँ कोई दुख के बारे में नहीं जानता और एक ऐसा समाज जहाँ जाति एवं वर्ग कोई मायने नहीं रखते हैं।
आयोजन
नगर कीर्तन, गुरबानी के गायन के साथ जुलूस आयोजित किए जाते हैं और विशेष आरती की जाती है।
कई भक्त पवित्र स्नान करने के लिए पवित्र नदियों में जाते हैं, जबकि अन्य गुरु रविदास को समर्पित मंदिरों में प्रार्थना करते हैं।
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