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एक विस्तृत भूमि प्रबंधन नीति की आवश्यकता

Lokesh Pal February 27, 2024 05:30 99 0

संदर्भ:

एक व्यापक भूमि प्रबंधन नीति समय की माँग है। क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों स्तरों पर सभी को शामिल करके दीर्घकालिक स्थिरता के लिए उचित नीतियाँ तैयार करने की आवश्यकता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भूमि उपयोग प्रबंधन, यूएनसीसीडी के बारे में।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, भूमि उपयोग प्रबंधन के घटक।

संबंधित तथ्य : 

  • भूमि प्रबंधन की परिभाषा: यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा भूमि के संसाधनों को विभिन्न प्रकार के भूमि उपयोग में प्रभावी ढंग से आवंटित किया जाता है।
    • इसमें पर्यावरण और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से एक संसाधन के रूप में भूमि के प्रबंधन से संबंधित सभी गतिविधियों को शामिल किया गया है।
    • इसमें खेती, खनिज निष्कर्षण, संपत्ति और संपत्ति प्रबंधन, और कस्बों तथा ग्रामीण इलाकों की भौतिक योजनाएँ शामिल हो सकती हैं ।

भारत में चुनौतियाँ:

  • निम्नीकृत भूमि का अनुपात:
    • भारत में कृषि योग्य भूमि: कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 55%
    • वन क्षेत्र: 22% और शेष रेगिस्तान, पहाड़ आदि हैं।
  • भारत में कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 30% निम्नीकृत भूमि है।
  • भूमि पर बढ़ता दबाव: तेजी से जनसंख्या वृद्धि, बढ़ती कृषि माँगों, बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता, तेजी से शहरीकरण और सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय कारकों का अंतर्संबंध भूमि संसाधनों पर तनाव को बढ़ा रहा है।

अप्रभावी भूमि प्रबंधन:

  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को नुकसान: वैश्विक स्तर पर भूमि क्षरण के परिणामस्वरूप लगभग 6 ट्रिलियन डॉलर मूल्य की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का वार्षिक नुकसान होता है।
  • भूमि क्षरण: नई दिल्ली में 2019 संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम सम्मेलन (COP14) ने वैश्विक भूमि क्षरण मुद्दों पर ध्यान दिया और भूमि क्षरण तटस्थता (LDN) प्राप्त करने के महत्व पर जोर दिया।
    • भूमि क्षरण तटस्थता (LDN) तब प्राप्त की जा सकती है जबकि पारिस्थितिकी तंत्र कार्यों, सेवाओं और खाद्य सुरक्षा का समर्थन करने के लिए आवश्यक भूमि संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता स्थिर हो अथवा निर्दिष्ट अस्थायी और स्थानिक पैमाने पर सुधार करती हो।

  • भूमि उपयोग की दुविधा: भूमि उपयोग के लिए प्रतिस्पर्धा, विशेषकर कृषि और अन्य क्षेत्रों के मध्य तीव्र होती जा रही है।
    • इससे किसानों के मध्य बढ़ती प्रतिस्पर्धा, भूमि उपयोग में संघर्ष, भूमि की बढ़ती कीमतें और भूमि अधिकारों में परिवर्तन होता है।
  • खंडित दृष्टिकोण: क्षेत्र आवास, खेती, पर्यावरण आदि बिना किसी समन्वय के, जिससे भूमि का इष्टतम उपयोग नहीं होता है के माध्यम से कार्य करते हैं।
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) के बिना वन भूमि के पास किए गए पूर्व-कृषि भूमि आवंटन से अतिक्रमण और कीटनाशकों के उपयोग के कारण जैव विविधता को खतरा हो सकता है।
  • कमजोर नियम: भूमि रूपांतरण, तटीय विनियमन क्षेत्र के उल्लंघन, वन विचलन आदि पर कानूनों का खराब कार्यान्वयन।
  • डेटा अंतराल: वैज्ञानिक योजना के लिए भूमि विशेषताओं पर अद्यतन स्थानिक जानकारी का अभाव।
    • उदाहरणार्थ- आजीविका निर्भरता और जनजातीय अधिकारों पर अद्यतन सामाजिक आर्थिक डेटा की कमी के कारण, जनजातीय अधिकारों और विकास के मध्य संघर्ष की स्थिति है।
  • जलवायु जोखिम: संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र के पास बस्तियों, सड़कों के लिए भूमि आवंटित करते समय जोखिम मूल्यांकन और जलवायु-स्मार्ट उद्देश्यों का अभाव।
    • पूर्व- उचित जोखिम विश्लेषण के बिना हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की ढलानों पर बस्तियों, सड़कों के निर्माण से अत्यधिक वर्षा की घटनाओं से भूस्खलन हो रहा है।
  • विरासत संबंधी मुद्दे: भूमि अधिग्रहण, स्वामित्व विवाद, किरायेदारी संबंधी मुद्दे भूमि के सुचारु उपयोग में बाधाएँ पैदा करते हैं।
    • राज्यों में अलग-अलग मुआवजे की दरें परियोजनाओं के पूरा होने में बाधा डालती हैं।

समाधान:

  • लैंडस्केप दृष्टिकोण: भूमि विशेषताओं के आधार पर क्षेत्रों में अंतरसंबंधों का आकलन करते हुए समग्र जिला-स्तरीय योजना।
    • उदाहरण – मध्य प्रदेश में पेंच क्षेत्र वन क्षेत्रों, गाँवों और कृषि क्षेत्रों में फैले भूमि उपयोग का एक समेकित दृश्य प्रस्तुत करता है।
  • जलवायु-स्मार्ट उद्देश्य: जलवायु शमन, अनुकूलन और लचीलेपन के साथ भूमि उपयोग संरेखण, विशेष रूप से इको-बफ़र्स को मजबूत करना।
    • उदाहरण – ओडिशा की जलवायु लचीले कृषि कार्यक्रम कृषि-जलवायु क्षेत्रों की कमजोरियों का विश्लेषण करता है।
  • ग्रामीण आजीविका पर फोकस: तेलंगाना, झारखंड जैसे राज्य शहरी विस्तार के लिए लैंड पूलिंग नीति का उपयोग कर रहे हैं, जिसमें किसान आवासीय भूखंडों और वार्षिकी भुगतान के बदले में आजीविका को सुरक्षित करने के लिए शहर के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए सहकारी रूप से भूमि हस्तांतरित करते हैं।
  • जैव विविधता का संरक्षण: दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता के लिए आवास कनेक्टिविटी की रक्षा को बहाल करना।
    • उदाहरण- अतिक्रमण को हटाकर लोकटक झील के आवासों का पुनर्वास करने, पानी की लाइन की बारंबारता को बनाए रखने, परिधीय आर्द्रभूमि और मुख्य जल निकायों के मध्य संपर्क बहाल करने के लिए फुमदिस को साफ करने के मणिपुर के प्रयास, जिससे वनस्पतियों-जीवों को पनपने में मदद मिलती है।

News Source: The Hindu

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