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विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना

Lokesh Pal February 28, 2024 06:38 143 0

संदर्भ

हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना’ (World’s Largest Grain Storage Plan in the Cooperative Sector) लॉन्च की गई।

संबंधित तथ्य 

  • अनुमोदन:देश में खाद्यान्न भंडारण क्षमता की कमी को दूर करने के लिए भारत सरकार ने मई 2023 में इस योजना को मंजूरी दी थी।

  • यह परियोजना 11 राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, असम, गुजरात, कर्नाटक और तेलंगाना) में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों द्वारा संचालित की जा रही है।
  • दृष्टि:वर्ष 2027 से पहले 100% भंडारण क्षमता तक पहुँचने के लिए अगले कुछ वर्षों में देश भर से हजारों प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS) इसमें शामिल हो जाएँगी।

अनाज भंडारण की आवश्यकता

  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना:भारत के पास विश्व के कुल कृषि योग्य क्षेत्र का 11% और कुल विश्व जनसंख्या का 18% हिस्सा है। भारत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य कार्यक्रम चलाता है, जिसमें लगभग 81 करोड़ लोग शामिल हैं। इसलिए, एक अरब से अधिक आबादी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्न भंडारण सुविधाओं का एक मजबूत नेटवर्क आवश्यक हो जाता है।
  • भंडारण की कमी: FAO सांख्यिकीय डेटा 2021 के आधार पर, भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन 311 MMT है और भारत में कुल भंडारण क्षमता केवल 145 MMT है यानी 166 MMT भंडारण की कमी है।
    • अन्य देशों में 131% अधिशेष भंडारण क्षमता है, जबकि भारत में 47% की कमी है।
  • सहकार-से-समृद्धिके दृष्टिकोण को मूर्त रूप देना:आर्थिक विकास के लिए एक शक्तिशाली शक्ति के रूप में सहकारी समितियों के महत्त्व को पहचानते हुए, भारत सरकार ‘सहकार-से-समृद्धि’ (सहयोग के माध्यम से समृद्धि) के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है।
    • इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए,सहकारिता मंत्रालय (भारत सरकार) ने एक अभूतपूर्व पहल शुरू की है – सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA): इसका उद्देश्य रियायती कीमतों पर पर्याप्त खाद्यान्न तक पहुँच सुनिश्चित करके पात्र लाभार्थियों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है, जिसके लिए खाद्यान्न खराब होने की चुनौतियों का मुकाबला करने और बीजों एवं फसलों की लंबी उम्र बढ़ाने के लिए अच्छी भंडारण सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ:भारत में, भंडारण क्षमता विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है। उदाहरण: कुछ दक्षिणी राज्यों की भंडारण क्षमता 90% और उससे अधिक है, जबकि उत्तरी राज्यों की क्षमता 50% से कम है।

नई योजना के लिए PACS नेटवर्क को क्यों चुना गया है?

  • एक विशाल आधार और प्रसार: 13 करोड़ से अधिक किसानों के विशाल सदस्य आधार के साथ 1,00,000 से अधिक PACS देश भर में फैले हुए हैं।
    • समावेशिता: अलग-अलग आँकड़ों से पता चलता है कि इन 13 करोड़ से अधिक सदस्यों में से 81% लघु और सीमांत किसान हैं और जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों का लगभग 60% ऋण इन समितियों के माध्यम से होता है।
  • समस्या-समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका: किसानों की समस्याओं को ‘समूह/सामूहिक शक्ति के माध्यम से’ हल करने में PACS की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उदाहरण- अमूल और लिज्जत पापड़।
  • एक महत्त्वपूर्ण कड़ी: PACS की अपील इन समितियों में है, जो सहकारी ऋण संरचना में अंतिम, लेकिन महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम कर रही है।

प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) के बारे में 

  • PACS ग्राम-स्तरीय सहकारी ऋण समितियाँ हैं।
  • प्रथम PACS वर्ष 1904 में स्थापित की गई थी।
  • ये राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंकों (SCB) की अध्यक्षता वाली त्रि-स्तरीय सहकारी ऋण संरचना में अंतिम कड़ी के रूप में कार्य करती हैं।
  • ये किसानों को ऋण वितरण में अंतिम-मील कनेक्टिविटी प्रदान करती हैं।
  • अल्पावधि ऋण: PACS कम समय के भीतर न्यूनतम कागजी कार्रवाई के साथ ऋण यानी फसल ऋण प्रदान कर सकती है।

विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना के बारे में

  • यह सहकारी क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षी योजना है, जो कृषि एवं‘फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स’ (FMCG) उद्योग में क्रांति लाने के लिए तैयार है।
  • PACS भागीदारी को सक्षम करने के लिए:इस योजना में PACS स्तर पर विभिन्न कृषि बुनियादी ढाँचे का निर्माण शामिल है, जिसमें विकेंद्रीकृत गोदामों, कस्टम हायरिंग सेंटर, उचित मूल्य की दुकानों आदि की स्थापना शामिल है।

  • बजटीय आवंटन:हालाँकि योजना में अलग से आवंटन नहीं है, 8 योजनाओं को मिलाकर क्रियान्वित किया जाएगा।
  • नाबार्ड द्वारा वित्तीय सहायता:2 करोड़ रुपये तक की परियोजनाओं के लिए वैकल्पिक निवेश निधि (AIF) योजना के तहत 3% ब्याज छूट के लाभों को शामिल करने के बाद लगभग 1% की अत्यधिक रियायती दरों पर PACS  को पुनर्वित्त करना।
  • क्रियान्वयन:विभिन्न राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (National Cooperative Development Corporation- NCDC), नाबार्ड, भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI), केंद्रीय भंडारण निगम (Central Warehousing Corporation- CWC), नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (NABARD Consultancy Services – NABCONS), राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम (National Buildings Construction Corporation- NBCC) आदि के सहयोग से।
  • एक अंतर-मंत्रालयी समिति (IMC):इसका गठन योजना की जवाबदेही और सुचारू, प्रभावी और पारदर्शी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।
  • एक राष्ट्रीय स्तर की समन्वय समिति (NLCC): योजना के समग्र कार्यान्वयन को संचालित करने और कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा करने आदि के लिए संबंधित मंत्रालय/विभागों, केंद्र सरकार की एजेंसियों के सदस्यों को शामिल करके इसका भी गठन किया गया है।
  • निगरानी:राज्य स्तर पर राज्य सहकारी विकास समिति (SCDC) और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के प्रत्येक जिले में जिला सहकारी विकास समिति (DCDC) का भी गठन किया गया है।
  • उद्देश्य
    • 700 लाख मीट्रिक टन काभंडारण बुनियादी ढाँचा स्थापित करना।
    • मौजूदा भंडारण क्षमता को दोगुना करना।
    • देश भर में PACS के माध्यम से एकीकृत अनाज भंडारण सुविधाओं का एक नेटवर्क स्थापित करना।
    • PACS  की आर्थिक स्थितिमजबूत करना।

भंडारण अवसंरचना में वृद्धि के लाभ

  • फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी:देश में पर्याप्त भंडारण क्षमता बनाकर और पंचायत/ग्राम स्तर तक देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करना।

सहकारी समितियों को समर्थन देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • नई भंडारण योजना सरकार द्वारा सहकारी समितियों पर बढ़ते प्रभाव को इंगित करती है।
  • सरकार ने पहले देश में दो लाख प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS), डेयरी और मत्स्य पालन सहकारी समितियों की स्थापना की योजना की रूपरेखा तैयार की थी।
  • केंद्रीय बजट 2023-24 में 2,516 करोड़ रुपये के निवेश के साथ 63,000 PACS के कंप्यूटरीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत को हरी झंडी दी गई।
  • वर्ष 2021 में सहकारिता मंत्रालय का गठन भी इसी सहकारिता प्राथमिकता का परिचायक है।

खाद्यान्न की कमी को दूर करने की पहल

  • कृषि अवसंरचना निधि (AIF): इसमें प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता के माध्यम से फसल कटाई के बाद प्रबंधन बुनियादी ढाँचे और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण की परिकल्पना की गई है।
  • प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA): अधिसूचित तिलहन, दलहन और खोपरा की उपज के लिए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करना।
  • मूल्य समर्थन योजना (PSS): यह खरीदी गई दालों, तिलहनों और खोपरा को मंडी कर से छूट देती है।
    • जब कीमतें MSP से नीचे गिर जाती हैं तो केंद्रीय नोडल एजेंसियाँ MSP पर पूर्व-पंजीकृत किसानों से सीधे खरीद करती हैं।
  • मूल्य कमी भुगतान योजना (PDPS): इसमें MSP और बिक्री मूल्य के बीच अंतर का सीधा भुगतान शामिल है।
  • निजी खरीद और स्टॉकिस्ट योजना (Private Procurement and Stockist Scheme- PPSS): चयनित जिलों या APMC में पूर्व-पंजीकृत किसानों से प्रायोगिक आधार पर खरीद की जाती है।
  • बाजार हस्तक्षेप योजना (Market Intervention Scheme- MIS): इसमें उन कृषि और बागवानी वस्तुओं की खरीद शामिल है, जो खराब हो जाती हैं और जिनके लिए MSP की घोषणा नहीं की जाती है।
  • भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड (BBSSL): बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत, BBSSL को उन्नत बीजों की खेती, उत्पादन और वितरण एवं फसलों की उत्पादकता को बढ़ावा देने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक अंब्रेला संगठन के रूप में स्थापित किया गया है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के बारे में

  • यह वर्ष 2013 में पेश किया गया एक सामाजिक कल्याण कानून है, जिसका उद्देश्य रियायती कीमतों पर पर्याप्त खाद्यान्न तक पहुँच सुनिश्चित करके पात्र लाभार्थियों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है।
  • लाभार्थियों का दायरा: NFSA का लक्ष्य ग्रामीण आबादी के 75% तक और शहरी आबादी के 50% तक, कुल मिलाकर लगभग 81.35 करोड़ व्यक्तियों को कवर करना है।
  • अतिरिक्त लाभार्थी: 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 1.24 करोड़ और लाभार्थियों की पहचान करने की आवश्यकता है।
  • पात्रता (Entitlement): पात्र परिवारों को अनुसूची में निर्दिष्ट रियायती कीमतों पर प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न मिलता है।
  • मुफ्त खाद्यान्न: NFSA के तहत, पात्र लाभार्थी रियायती दरों (चावल 3 रुपये प्रति किलोग्राम, गेहूँ 2 रुपये प्रति किलोग्राम और पोषक अनाज 1 रुपये प्रति किलोग्राम) पर खाद्यान्न खरीद सकते हैं।

  • खाद्यान्न प्रबंधन और परिवहन लागत में कमी लाना:चूँकि PACS एक खरीद केंद्र के साथ-साथ उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के रूप में भी काम करेगी, इसलिए खरीद केंद्रों तक खाद्यान्न के परिवहन और फिर गोदामों से FPS तक स्टॉक को वापस ले जाने में होने वाली लागत भी बचाई जाएगी।
  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना:यह योजना देश भर में पंचायत/ग्राम स्तर पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करेगी, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ होगा।
  • एक कुशल खाद्य आपूर्ति शृंखला:PACS के व्यापक नेटवर्क का लाभ उठाकर, योजना का लक्ष्य कृषि उपज और उपभोक्ता माँग के बीच अंतर को पाटना है, जिससे एक स्थिर और कुशल खाद्य आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित हो सके।
  • किसानों को विभिन्न लाभ
    • किसानों के पासबाजार की स्थितियों के आधार पर अपनी उपज बेचने का विकल्प होगा और उन्हें संकट में बिक्री के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।
    • वे पंचायत/ग्राम स्तर पर विभिन्न कृषि इनपुट और सेवाएँ प्राप्त करने में सक्षम होंगे।
    • अपने व्यवसाय में विविधता लाने से किसान आय के अतिरिक्त स्रोत प्राप्त कर सकेंगे।
    • खाद्य आपूर्ति प्रबंधन शृंखला के साथ एकीकरण के माध्यम से, किसान अपने बाजार के आकार का विस्तार कर सकते हैं और अपनी उपज के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकते हैं।
    • फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी आने से किसान बेहतर कीमत प्राप्त में सक्षम हो सकेंगे।

चुनौतियाँ जिनसे निपटने की आवश्यकता

  • गैर-कार्यात्मक PACS:वर्तमान में बड़ी संख्या में PACS निष्क्रिय हैं। उदाहरण: भारत में वर्तमान में 1 लाख PACS में से केवल 63,000 ही क्रियान्वित हैं।
  • नौकरशाही चुनौतियाँ:विभिन्न योजनाओं का अभिसरण और समन्वय जटिल नौकरशाही चुनौतियाँ पेश कर सकता है।
    • परस्पर-विरोधी उद्देश्यों वाले संस्थानों की बहुलता से उनकी प्रभावशीलता कम होने की संभावना है।
  • बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी की कमी:ग्रामीण परिवेश और तकनीकी बुनियादी ढाँचे की संभावित कमी को देखते हुए आधुनिक भंडारण सुविधाएँ स्थापित करना और डिजिटल समाधान लागू करना एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है।
  • कौशल विकास:यह योजना स्थानीय रोजगार के अवसर पैदा कर सकती है, हालाँकि उन्नत भंडारण सुविधाओं के संचालन और प्रबंधन के लिए कुशल लोगों की आवश्यकता होगी, जो कौशल विकास की चुनौती पैदा करता है।
  • शासन संबंधी मुद्दे:खाद्य भंडारण को कृषि सहकारी समितियों के दायरे में रखना एक मुश्किल प्रतीत होता है।
    • FPO फसल कटाई के बाद उन उपज के प्रबंधन में भी शामिल होते हैं, जिनका कृषि सहकारी समितियों के साथ टकराव हो सकता है।
  • कृषि सहकारी समितियों की अकुशल कार्यप्रणाली:कृषि सहकारी समितियों की अकुशल कार्यप्रणाली को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है, पुनः भंडारण बुनियादी ढाँचे के कार्यान्वयन के साथ-साथ वित्तीय जिम्मेदारियाँ भी इसी पर हैं।
    • हालाँकि, FPO को बेहतर प्रशासन संरचना वाले व्यवसायों के रूप में चलाया जा रहा है।
  • बुनियादी ढाँचे का रखरखाव:बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना आसान है, लेकिन इसे प्रबंधित करना और बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। भारत के पास अपने बुनियादी ढाँचे को बनाए रखने का एक अविश्वसनीय रिकॉर्ड है, चाहे वह FCI भंडारण, पेयजल प्रणाली, सिंचाई प्रणाली आदि हो।
    • पूँजीगत रखरखाव व्यय (Capex) को शायद ही कभी वार्षिक बजट में शामिल किया जाता है।इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से कोई भी प्रणाली विभिन्न कारणों से वित्तीय रूप से व्यवहार्य नहीं है।
  • अन्य समस्याएँ:इसमें अभिजात वर्ग का कब्जा, नौकरशाही/राजनीतिक हस्तक्षेप और खराब विपणन शामिल हैं।

आगे की राह

  • गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचा:मौजूदा भंडारण बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण करना प्राथमिकता होनी चाहिए, विशेषकर खराब होने वाली वस्तुओं (फल, सब्जियाँ, दूध, मांस, मछली, आदि) के लिए।
    • खराब होने वाली वस्तुओं के मामले में, प्रसंस्करण से भोजन की अवधि बढ़ सकती है और इसका पोषण मूल्य कम हो सकता है। इसलिए, उच्च गुणवत्ता वाले प्रसंस्करण को सुनिश्चित करने के लिए आधुनिक तकनीकों की आवश्यकता है।
  • विवेकपूर्ण योजना:भारत के पास अपनी वार्षिक खराब होने वाली उपज के केवल आठवें हिस्से की भंडारण क्षमता है। इसके लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न उत्पादों के लिए भंडारण आवश्यकताओं की विवेकपूर्ण योजना और आकलन की आवश्यकता है।
  • PACS का पुनरुद्धार:योजना की सर्वोत्तम क्षमता प्राप्त करने के लिए इन समितियों को पुनर्जीवित और क्रियाशील बनाने की आवश्यकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को संबोधित करना: आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके खाद्यान्न भंडारण पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
  • निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन: सहकारी समितियों के खराब ट्रैक रिकॉर्ड पर काम करने के लिए, केंद्र ने निजी क्षेत्र को विपणन बुनियादी ढाँचे में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • निजी-सार्वजनिक-भागीदारी (PPP) पहल पर ध्यान:अधिक सकारात्मकता हासिल करने के लिए, FPO  की तर्ज पर निजी-सार्वजनिक-भागीदारी (PPP) पहल पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • इसे FPO  के अंतर्गत लाना भी एक बेहतर विकल्प होता।
  • हर्मेटिक भंडारण का उपयोग:हर्मेटिक भंडारण कृषि वस्तुओं के लिए एक वायुरोधी भंडारण तकनीक है। यह नमी के प्रति संवेदनशील वस्तुओं की सुरक्षा के लिए संशोधित वातावरण की अवधारणा का उपयोग करता है।
    • यह आसपास केवातावरण से गैस विनिमय को रोककर कीट संक्रमण की संभावना को दूर करता है। वातावरण के साथ संपर्क का अभाव यह भी सुनिश्चित करता है कि संगृहीत वस्तुएँ एफ्लाटॉक्सिन जैसे विषाक्त पदार्थों से मुक्त हैं।

निष्कर्ष

जैसा कि भारत अपनी वैश्विक प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने और टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है। भंडारण क्षमता विस्तार योजना आर्थिक विकास, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास के प्रति भारत के समर्पण का एक सफल उदाहरण है।

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