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भारत में भीक्षावृत्ति की समस्या

Lokesh Pal March 02, 2024 05:00 92 0

संदर्भ:

वर्तमान भारत में तीव्र आर्थिक विकास के बावजूद भीख मांगना अभी भी सबसे गंभीर सामाजिक चुनौतियों में से एक है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: सतत विकास लक्ष्य, ट्रिकल डाउन प्रभाव, गरीबी के प्रकार इत्यादि के बारे में ।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: आय और धन वितरण से संबंधित मुद्दे, गरीबी से निपटने के लिए सरकारी योजनाएँ ।

संबंधित तथ्य :

  • भिक्षावृत्ति: भीख मांगने को पैनहैंडलिंग (मुख्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रचलित शब्द) भी कहा जाता है, दूसरों से भिक्षा या अन्य प्रकार की मदद मांगने की प्रथा है, जिसमें प्रतिदान की बहुत कम या कोई उम्मीद नहीं होती है।
  • पृष्ठभूमि: भिक्षा की याचना को हमेशा से एक नेक काम के रूप में देखा गया है। “भिक्षा” (दान) शब्द का प्रयोग अक्सर हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में किया जाता है। 
    • “ज़कात” इस्लामी धर्म में उपयोग किया जाता है। 

भारत में भिक्षावृत्ति के कारण:

  • आर्थिक पहलू: लोगों की ख़राब आर्थिक स्थितियाँ अक्सर व्यक्तियों को भीख माँगने के लिए विवश कर देती हैं । गरीबी, बेरोजगारी, अल्परोजगार के साथ-साथ आय हानि आदि ख़राब आर्थिक स्थिति के महत्वपूर्ण कारक माने जाते हैं।
    • कुछ भिखारियों द्वारा भीख माँगने को अक्सर आसानी से प्राप्त होने वाले धन के रूप में देखा जाता है।
    • तीव्र शहरीकरण और प्रवासन जैसे कारक भी भीख माँगने की समस्या में योगदान देते हैं ।
    • ग्रामीण क्षेत्रों से कई बार लोगों द्वारा बेहतर अवसरों की तलाश में शहरों की ओर पलायन किया जाता है, लेकिन सुलभता से उन अवसरों की प्राप्ति न होने की स्थिति में उन्हें भीख माँगना पड़ जाता है।
  • प्राकृतिक त्रासदियाँ: कई बार विभिन्न प्राकृतिक त्रासदियों यथा अकाल, भूकंप, सूखा, बवंडर, या बाढ़ द्वारा संपत्ति या कृषि योग्य भूमि को बहुत नुकसान पहुँचता है, जिससे लोगों को अपने घरों को छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ता है या भूखमरी की स्थिति से निपटने के लिए उन्हें भीख माँगने के लिये विवश होना पड़ता है।

भिक्षावृत्ति की समस्या के निदान के लिए भारत में कानूनी और नीतिगत ढाँचे:

  • 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में तकरीबन 4,13,670 भिखारी और आवारा घुमंतु लोग हैं।
  • सातवीं अनुसूची में राज्य सूची की 9वीं प्रविष्टि में “विकलांगों और बेरोजगारों के लिये राहत” को राज्य का विषय बताया गया है।
  • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का अनुच्छेद 41- राज्य को अपनी क्षमता के तहत कल्याणकारी उपाय करने के संबंध मार्गदर्शन प्रदान करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद 23- मानव तस्करी और जबरन श्रम पर रोक लगाता है।
  •  भारतीय दंड संहिता की धारा 363-A: अपहरण संबंधी कृत्यों या व्यक्तियों को भीख माँगने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से अपंग बनाने को अपराध घोषित करता  है।
  • विभिन्न राज्यों में भिक्षावृत्ति विरोधी अधिनियम (जैसे- भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959) भी इस प्रथा पर अंकुश लगाने का प्रयास करते हैं, हालाँकि, पुलिस द्वारा इन गरीब व्यक्तियों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेने के कई मामलों के कारण भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसकी आलोचना भी की गई है, क्योंकि अदालत इसे अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के उल्लंघन का कारण मानती है।

  • मनोवैज्ञानिक मुद्दे: भिक्षावृत्ति का कारण कभी-कभी किसी व्यक्ति की खराब मनोवैज्ञानिक स्थिति भी हो सकती है। इन मनोवैज्ञानिक कारणों में निराशा, श्रम के प्रति अनिच्छा और एकांत की ओर रुझान आदि पहलु शामिल हैं।
  •  सामाजिक मुद्दे: भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देने वाली सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के तहत  पैतृक पेशे से संबंधित मुद्दे, पारिवारिक विघटन और पति की मृत्यु जैसी स्थितियाँ शामिल हैं।
  • शारीरिक मुद्दे: भारत में अंधे, बहरे, गूंगे या शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के इलाज या सामाजिक पुनर्वास के लिए कोई उपयुक्त प्रावधान नहीं है। अतः किसी अन्य विकल्प के अभाव में ऐसे लोग भीख माँगने के लिये विवश हो जाते हैं।
  • धार्मिक पहलू: भारत में कई धर्मों के अंतर्गत अपने अनुयायियों के लिए अभावग्रस्त जीवन जीने की सलाह दी जाती है जिससे भिक्षावृत्ति को बढ़ावा मिलता है I
  • भीख माँगने का कार्टेल: भारत, विशेषकर दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई, कोलकाता आदि महानगरों में भिक्षावृत्ति ने एक महत्वपूर्ण उद्योग का रूप धारण कर लिया है।
    •  इस नेटवर्क का प्रत्येक नेता अपने समूह को एक निश्चित क्षेत्र सौपता है और पूरे दिन भर की होने वाली आय की जिम्मेदारी सभी भिखारियों के बीच बाँट दी जाती  है I 
  • सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों की न्यून और अपर्याप्त पहुँच: गौरतलब है कि बेघर, बेरोजगार और मानसिक रूप से बीमार लोगों हेतु सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों तक नाममात्र की और अपर्याप्त पहुँच देखी गयी है।

भारत में भिक्षावृत्ति के निहितार्थ:

  • भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार: भारत में भीख माँगने वाले लोगों को भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, खासकर उनके शारीरिक या मानसिक रूप विकलांग होने की स्थिति में। 
    • गौरतलब है कि उनके पास अक्सर बुनियादी चिकित्सा देखभाल या अन्य आवश्यकताओं तक पहुँच नहीं होती है और ऐसी स्थिति में  वे संगठित भीख माँगने वाले गिरोहों द्वारा दुर्व्यवहार और शोषण का शिकार हो सकते हैं।
  • शोषण और मानव तस्करी: कई बार शोषण और मानव तस्करी के आपराधिक नेटवर्क द्वारा लोगों, विशेषकर बच्चों को भीख माँगने के लिए मजबूर किया जा सकता है I
  • वास्तविक जरूरतमंदों और बहुरूपियों के मध्य अंतर मुश्किल: अक्सर असली और नकली भिखारियों के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
    • यहाँ तक ​​कि बहुत  छोटे बच्चों को भी भीख माँगने की उचित विधि की शिक्षा दी गई रहती है।
    • आमतौर पर भिक्षावृत्ति के दौरान भिखारियों की गोदी में शिशु सोते हुए पाए जाते हैं। असल में शिशुओं को दिन के दौरान ऐसा धीमा-जहर दिया जाता है, जिससे वे अस्वस्थ दिखें और युवा महिला भिखारियों द्वारा आसानी से उन्हें भीख माँगने हेतु ले जाया जा सके I
    • भिक्षावृत्ति को वैध बनाने के लिए बड़े पैमाने पर किराये पर बच्चों को लेकर भिक्षावृत्ति में उनका उपयोग किया जा रहा है।

निष्कर्ष: भिक्षावृत्ति से निपटने के लिए सामाजिक, आर्थिक और सरकारी पहलों को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। पुनर्वास कार्यक्रमों और सामुदायिक भागीदारी सहित सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से इस समस्या का बेहतर तरीके से समाधान किया जा सकता है।

News Source: Indian Express

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