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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता

Lokesh Pal March 04, 2024 08:14 100 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने मेक-इन-इंडिया पहल और रक्षा में स्वदेशी क्षमताओं को महत्त्वपूर्ण बढ़ावा देने के लिए 39,125.39 करोड़ रुपये के पाँच प्रमुख पूँजी अधिग्रहण अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए हैं।

संबंधित तथ्य

  • खरीद सूची
    • मिग-29 विमान के लिए एयरो-इंजन (HAL)
    • L&T से क्लोज-इन वेपन सिस्टम (CIWS)
    • L&T से हाई-पॉवर रडार (HPR)
    • ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (BAPL) से ब्रह्मोस मिसाइलें और जहाज पर आधारित ब्रह्मोस प्रणाली

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता

  • राष्ट्रीय सुरक्षा दाँव पर: भारत महत्त्वपूर्ण रक्षा प्लेटफॉर्मों और उपकरणों के लिए विदेशी राष्ट्र पर निर्भर है। कलपुर्जों और संबंधित इकाई की कमी के कारण, आयातित उपकरण भारत में विभिन्न रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (Maintenance, Repair, and Overhaul-MRO) चुनौतियों का सामना करते हैं। यह देरी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और महत्त्वपूर्ण रणनीतिक हितों को कमजोर कर सकती है।
    • उदाहरण: वर्ष 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ गया था। उस दौरान, भारत महत्त्वपूर्ण रक्षा उपकरणों की कमी का सामना कर रहा था।

सामरिक स्वायत्तता

  • सैन्य हार्डवेयर के लिए एक ही आपूर्तिकर्ता पर अत्यधिक निर्भरता भारत को उस आपूर्ति को बनाए रखने के लिए उनकी माँगों के आगे झुकने के लिए मजबूर कर सकती है। घरेलू उत्पादन के माध्यम से अपने स्रोतों में विविधता लाकर, भारत किसी भी एक आपूर्तिकर्ता से दबाव कम करता है और बातचीत या गठबंधन में अपनी स्थिति मजबूत करता है।
    • उदाहरण के लिए: भारत ने रूस से S-400 मिसाइल प्रणाली खरीदी है। अमेरिका ने इस सौदे के लिए भारत पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है, जो भारत के समक्ष विश्व की दो महाशक्तियों के बीच रणनीतिक संबंधों के संतुलन को बनाए रखने की एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करता है।

वैश्विक अनिश्चितताएँ

  • कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी, रूस-यूक्रेन संघर्ष और लाल सागर संकट, आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकते हैं, जिससे आवश्यक रक्षा उपकरणों का आयात करना मुश्किल हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए, भारत के लगभग 60% उपकरण रूस से आते हैं, जो यूक्रेन के साथ संघर्ष में उलझा हुआ है। आत्मनिर्भर भारत अभियान इन घटकों के लिए घरेलू क्षमताओं को विकसित करके ऐसे जोखिमों को कम करने में मदद कर सकता है।
  • राजकोषीय बोझ में कमी: भारत वर्तमान में सऊदी अरब के बाद दुनिया में हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है।
    • भारत लगातार अपने सैन्य उपकरणों का आधुनिकीकरण करता रहता है। प्रारंभ में, स्वदेशी उत्पादन महंगा हो सकता है। हालाँकि, समय के साथ, अनुसंधान, विकास और विनिर्माण की लागत विदेशी मूल्य निर्धारण के अधीन लगातार आयातित उपकरण और स्पेयर पार्ट्स की तुलना में  स्थानीय उत्पादन लाभप्रद ही होगा।
    • उदाहरण: लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस भारत द्वारा विकसित एक स्वदेशी लड़ाकू जेट है। हालाँकि इसका प्रारंभिक विकास महंगा था, लेकिन विदेशी लड़ाकू विमानों के लगातार आयात की तुलना में दीर्घकालिक उत्पादन और रखरखाव लागत कम होने की उम्मीद है।

रोजगार सृजन

  • एक संपन्न घरेलू रक्षा उद्योग उच्च-कुशल इंजीनियरिंग, विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास नौकरियाँ सृजित करता है। इससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है और निरंतर नवाचार के लिए कुशल कार्यबल तैयार होता है।
    • उदाहरण के लिएउत्तर प्रदेश में रक्षा औद्योगिक गलियारा स्थापित करने का लक्ष्य लगभग 41,667 रोजगार के अवसर पैदा करना है।
  • युद्धक क्षमता
    • आत्मनिर्भरता भारत की विशिष्ट भौगोलिक और सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुरूप स्पष्ट रूप से तैयार किए गए सैन्य उपकरणों के डिजाइन और विकास में नवाचार को बढ़ावा देती है।
    • उदाहरण के लिए, DRDO भारत की विशिष्ट वायु रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सतह-से-हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइल प्रणाली जैसी स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकियों को सक्रिय रूप से विकसित कर रहा है।

रक्षा नीतियों के लिए वर्तमान कानूनी ढाँचा

  • उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951
  • भारतीय सेना अधिनियम 1950, भारत वायु सेना अधिनियम 1950, भारतीय नौसेना अधिनियम 1957
  • फेमा, 1999 के तहत FDI नीति और विनियम
  • रक्षा खरीद प्रक्रिया, 2016
  • औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग (Department of Industrial Policy and Promotion-DIPP)

रक्षा क्षेत्र में आत्म-निर्भरता हासिल करने में चुनौतियाँ

  • प्रौद्योगिकी अंतराल : विकसित देशों के पास उन्नत विमान, स्टील्थ सामग्री और अगली पीढ़ी के हथियार जैसी उच्च स्तरीय प्रौद्योगिकियों में काफी बढ़त है। इस अंतर को पाटने के लिए पर्याप्त अनुसंधान एवं विकास (R&D) निवेश और एक मजबूत घरेलू नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को पोषित करने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिए: अनुसंधान पर सकल घरेलू व्यय (Gross Domestic Expenditure on Research-GERD) वर्षों से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 0.7% पर स्थिर है। 
  • नौकरशाही और दक्षता संबंधी चिंताएँ: भारत की रक्षा खरीद प्रक्रिया अपनी धीमी और नौकरशाही प्रकृति के लिए जाना जाता है। रक्षा परियोजनाओं में देरी से उत्पादन समय सीमा और बजट प्रभावित होते हैं।
    • उदाहरण के लिए, पनडुब्बी परियोजना P-75I पिछले दो दशकों के अधिकांश समय से पाइपलाइन में होने के बावजूद वर्ष 2021 में केवल प्रस्ताव के लिए अनुरोध (Request for Proposal-RFP) चरण तक ही पहुँच पाई है।

औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र संकट

  • एक मजबूत घरेलू रक्षा उद्योग आपूर्तिकर्ताओं, निर्माताओं और कुशल श्रमिकों के एक विकसित पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करता है। निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना, स्टार्टअप्स (like IDEX) के बीच नवाचार को बढ़ावा देना और कुशल कार्यबल का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
    • रक्षा मंत्रालय के अनुसार, 333 निजी कंपनियों को कुल 539 औद्योगिक लाइसेंस जारी किए गए हैं। इनमें से 110 कंपनियों ने ही उत्पादन शुरू होने की सूचना दी है।
  • भू-राजनीतिक विचार: विदेशी आपूर्तिकर्ता भारतीय कंपनियों को संवेदनशील प्रौद्योगिकियों को हस्तांतरित करने में संकोच कर सकते हैं, जिससे भारत को पूर्ण आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
    • विदेशी निर्माता अपनी बौद्धिक संपदा पर नियंत्रण खोने के डर से भारत के रक्षा खरीद भागीदार के रूप में कार्य करने के लिए अनिच्छुक हैं।
    • भारत-ब्रिटेन के रक्षा क्षमताओं के संबंध में सहयोग के बावजूद,  ब्रिटिश कंपनियाँ भारत को अपनी संरक्षणवादी रक्षा औद्योगिक नीतियों के कारण एक चुनौतीपूर्ण बाजार के रूप में देखती हैं।
  • विनियमन से जुड़ी चुनौतियाँ: भारतीय एयरोस्पेस और रक्षा उद्योग में व्यापार करने की इच्छा रखने वाली एक घरेलू या विदेशी कंपनी को रक्षा खरीद प्रक्रिया (ऑफसेट नीति सहित), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), औद्योगिक लाइसेंसिंग, विदेशी व्यापार (निर्यात / आयात) और कराधान की परस्पर विरोधाभासी नीतियों का पालन करना होता है।
    • उदाहरण के लिए:  ‘अल्पावधि’ में, जिसे परिभाषित नहीं किया गया है, हथियारों या उपकरणों में उपयोग किए जाने वाले कम-से-कम 50% या अधिक भागों और सामग्रियों को घरेलू रूप से प्राप्त किया जाना चाहिए।
  • सीमित वित्तीय क्षमता : स्वदेशी रक्षा उपकरण विकसित करना महंगा हो सकता है, खासकर शुरुआती चरणों के दौरान। भारत को सामर्थ्य और तकनीकी प्रगति के बीच संतुलन खोजने की आवश्यकता है। कुछ मामलों में, अल्पावधि में कुछ उपकरणों का आयात करना सस्ता हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2023 के लिए 5.94 ट्रिलियन रुपये ($73.8 बिलियन) के के रक्षा बजट का अधिकांश हिस्सा या लगभग 53%, पेंशन और कर्मियों पर खर्च उपयोग किया गया , जो रक्षात्मक उपकरणों के आधुनिकीकरण और खरीद के लिए उपलब्ध राशि को कम कर देता है।
  • निर्माताओं और सैन्य बलों के बीच मतभेद
    • उदाहरण: नौसेना ने LCA तेजस को उसके वर्तमान स्वरूप में अस्वीकार कर दिया है क्योंकि यह विमानवाहक आधारित विमान बनने के लिए आवश्यक नौसैनिक गुणात्मक आवश्यकताओं (Qualitative Requirements-QRs) को पूरा नहीं करता है।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड में सुधार: आयुध आपूर्ति में स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार के लिए, आयुध निर्माणी बोर्ड (Ordnance Factory Board-OFB) का निगमीकरण किया जा रहा है और अंततः इसे शेयर बाजार में सूचीबद्ध किया जाएगा।
  • FDI सीमा में वृद्धि : स्वचालित मार्ग के तहत रक्षा विनिर्माण में FDI सीमा 49% से बढ़ाकर 74% की जाएगी।
  • रक्षा और आंतरिक सुरक्षा आधुनिकीकरण कोष की स्थापना: 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के बाद, सरकार ने गैर-व्यपगत होने वाला रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा आधुनिकीकरण कोष (Modernization Fund for Defence and Internal Security-MFDIS) की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य आंतरिक सुरक्षा और रक्षा के लिए अपेक्षित बजटीय आवश्यकताओं और आवंटन के बीच के वित्तीय अंतर को पाटना है।
  • रक्षा उत्कृष्टता के लिए नवाचार (IDEX): रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग द्वारा एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना को मंजूरी दी गई है। सरकार ने रक्षा उद्योग को आधुनिक बनाने में मदद के लिए iDEX नामक एक पहल शुरू की है।
  • 101 वस्तुओं की चौथी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची: रक्षा मंत्रालय ने स्वदेशी सैन्य क्षेत्र का समर्थन करने और रक्षा निर्यात को प्रोत्साहित करने के प्रयासों के तहत सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ प्रकाशित की हैं।
  • रक्षा औद्योगिक गलियारे (Defence Industrial Corridors-DIC): DIC को रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने और रक्षा एवं एयरोस्पेस से संबंधित वस्तुओं के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप आयात में कमी आती है और निर्यात में वृद्धि होती है।
  • रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (Defence Acquisition Procedure-DAP) 2020: इसे वर्ष 2020 में रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए एक संभावित उत्प्रेरक के रूप में स्थापित किया गया था।
    • यह त्रि-सेवाओं और अन्य संबद्ध रक्षा सेवाओं के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी, उत्पादों और सेवाओं की खरीद और अधिग्रहण को आसान बनाएगा।

आगे की राह: रक्षा में आत्मनिर्भरता की ओर

  • अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान: रक्षा स्टार्ट-अप नवाचार के चालक के रूप में काम करते हैं और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत के नए सिरे से प्रयास का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनने की क्षमता रखते हैं। सशस्त्र बलों को विशिष्ट क्षमताओं से लैस करने में स्टार्ट-अप विशिष्ट भूमिका निभा सकते हैं।
  • संयुक्त उद्यम और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: विदेशी कंपनियों के साथ रणनीतिक साझेदारी फायदेमंद हो सकती है। संयुक्त उद्यम प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ज्ञान साझा करने की सुविधा प्रदान कर सकते हैं, जिससे भारत को समय के साथ अपनी क्षमताओं का निर्माण करने की अनुमति मिल सकती है।
  • रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों और सार्वजनिक उपक्रमों को स्वायत्तता: अधिक परिचालन और वित्तीय स्वायत्तता राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों को लाभ, उत्पादकता और रोजगार बढ़ाने में मदद कर सकती है।
  • रक्षा खरीद नीतियों में सुधार: खरीद प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, नौकरशाही को कम करने तथा निर्णय प्रक्रिया में तेजी लाने से घरेलू विकल्प अधिक आकर्षक बनेंगे और अधिग्रहण प्रक्रियाओं में तेजी आएगी।
  • रक्षा निर्यात पर जोर: एक मजबूत घरेलू रक्षा उद्योग भारत को निर्यात महाशक्ति बनने में मदद कर सकता है। एक मजबूत निर्यात रणनीति विकसित करने से राजस्व उत्पन्न होगा और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा।
    • उदाहरण के लिए, भारत को एक सहज अंतरराष्ट्रीय रक्षा सौदे की सुविधा के लिए अमेरिका के विदेशी सैन्य बिक्री (Foreign Military Sales-FMS) कार्यक्रम के समान एक ढाँचा स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • शेखटकर समिति: इस समिति ने विशिष्ट कर्मियों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की सिफारिश की। इससे सरकार को अनुसंधान एवं विकास और बुनियादी ढाँचे के विकास जैसे रक्षा क्षेत्र के अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश करने हेतु धन बचाने में सहायता प्राप्त होगी।
  • विजय केलकर समिति: रक्षा उत्पादन में भारत की अग्रणी निजी कंपनियों को शामिल करने की उनकी सिफारिश महत्त्वपूर्ण है। उनकी विशेषज्ञता और विनिर्माण क्षमताओं का लाभ उठाना आत्मनिर्भरता के लिए महत्त्वपूर्ण होगा।

निष्कर्ष 

रक्षा मंत्री ने तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में देश के लिए आत्मनिर्भरता को विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता बताया है।

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